विद्युत उपभोक्ता परिषद ने पीएम को लिखा पत्र: निजीकरण के लिए आई दो कंपनियों ने लगाएं ग़लत दस्तावेज; सीबीआई जांच की मांग – Lucknow News h3>
उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण को लेकर विरोध रुकने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने ट्रांजैक्शन एडवाइजर के टेंडर में शामिल होने वाली दो विदेशी कंपनियों पर आरोप लगाया है। परिषद का कहना है कि कंपनी ने गलत दस्तावेज लगाकर टेंडर में
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उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि 42 जनपदों के निजीकरण के लिए टेंडर जारी हुआ था। इसमें तीन विदेशी कंपनी ने भाग लिया है। जिसमें दो कंसलटेंट कंपनियां अर्नेस्ट एंड यंग और डिलाइट ने गलत तरीके से हिस्सा लिया है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश प्लानिंग डिपार्टमेंट ने पहले स्पष्ट निर्देश दिए थे कि टेंडर में हिस्सा लेने वाली कंपनियां प्रदेश के किसी दूसरे टेंडर में भाग नहीं ले सकतीं है। जबकि डिलाइट यूपी के नियोजन विभाग के साथ वन ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी में नियोजन विभाग के साथ काम कर रही है। इसके अलावा अर्नेस्ट एंड यंग ने विद्युत नियामक आयोग को शपथ पत्र दिया था कि वे बिजली कंपनियों में काम नहीं कर रहे हैं, फिर भी उन्होंने इस टेंडर में भाग लिया।
टेंडर में शामिल होने वाली कम्पनी की हो जांच अवधेश वर्मा ने बताया कि टेंडर प्रक्रिया में अनियमितताओं की वजह से सिंगल बिड पर टेंडर नहीं तय किया जा सकता। उन्होंने मांग करी है कि टेंडर प्रक्रिया को निरस्त किया जाए। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। इसकी उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए। प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर अपील करी है कि इस मामले की सीबीआई जांच करवाई जाए।
डेढ़ करोड़ उपभोक्ता होंगे सीधे प्रभावित प्रदेश सरकार 42 जिलों की बिजली निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है। इससे पूर्वांचल-दक्षिणांचल कंपनी के डेढ़ करोड़ उपभोक्ता सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इसके अलावा दोनों कंपनियों के 75 हजार नियमित और संविदा कर्मियों की नौकरी भी खतरे में बताई जा रही है। सरकार का तर्क है कि निजीकरण से वह शहर और गांव में 24 घंटे बिजली दे सकेगी।
सबसे पहले नोएडा में हुआ निजीकरण प्रदेश में सबसे पहले 1993 में ग्रेटर नोएडा में बिजली निजी हाथों में दी गई थी। इसके बाद 2010 में आगरा शहर की बिजली का निजीकरण किया गया था। चंडीगढ़ की पूरी बिजली व्यवस्था निजी हाथों में सौंप दी गई है।