लोग बोले- न अलर्ट आया, न सायरन बजा: हाइफा में ईरानी मिसाइलों से तबाही, आयरन डोम भी फेल

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लोग बोले- न अलर्ट आया, न सायरन बजा:  हाइफा में ईरानी मिसाइलों से तबाही, आयरन डोम भी फेल
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लोग बोले- न अलर्ट आया, न सायरन बजा: हाइफा में ईरानी मिसाइलों से तबाही, आयरन डोम भी फेल

‘देर रात ही मुझे पता चल गया था कि अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर बमबारी कर उसे तबाह कर दिया है। ये जानकर मैं खुश हुआ और राहत भी महसूस हुई। हालांकि, ये डर भी सताने लगा कि अब ईरान इसके जवाब में और खतरनाक हमले कर सकता है। मुझे पूरी रात नींद नह

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गिलान चपेआ, इजराइल की पोर्ट सिटी हाइफा के सेंट्रल इलाके में रहते हैं। 22 जून की सुबह ईरानी बैलिस्टिक मिसाइल उनके घर से सिर्फ 30 मीटर की दूरी पर गिरी। धमाके की आवाज इतनी तेज थी, जो इससे पहले कभी नहीं सुनी। गिलान की जिंदगी में ये अब तक का सबसे खौफनाक मंजर था।

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उनकी पत्नी हाना कहती हैं, ’इस मिसाइल अटैक से पहले न कोई अलर्ट मिला और न ही सायरन बजा। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।’

ये सेंट्रल हाइफा की तस्वीर है, जहां 22 जून की सुबह ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया।

ऐसा महसूस करने वाले गिलान और हाना अकेले नहीं हैं। हाइफा में दैनिक NEWS4SOCIALसे बात करने वाले ज्यादातर लोग कहते हैं कि हमास के हमलों के वक्त ऐसे धमाके कभी नहीं हुए। इसीलिए पहले लोग सायरन को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं थे। ईरान के हमले इतने खतरनाक हैं कि अब सायरन की आवाज सुनते ही लोग सेफ हाउस की ओर भागते हैं।

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हाइफा में ही भारत के अडाणी ग्रुप का पोर्ट भी है। हालांकि ईरानी हमलों में इसे नुकसान पहुंचने की कोई जानकारी नहीं है। नेवल बेस होने के कारण हमें वहां तक जाने की परमिशन नहीं मिली।

सेफ हाउस में जाने का न अलर्ट मिला, न सायरन बजा गिलान 22 जून का घटनाक्रम सिलसिलेवार सुनाते हैं। वे बताते हैं ‘सुबह करीब साढ़े 7 का वक्त था। मैं पत्नी हाना और बेटे हालोन के साथ घर पर ही था। फोन पर एक अपडेट मिला- अगले कुछ मिनटों में इलाके में अलर्ट हो सकता है। आप बेहतर लोकेशन पर चले जाएं, जहां पर आप सेफ हों। अगर आपको अलर्ट मिलता है तो सेफ हाउस में दाखिल हो जाएं और जब तक निर्देश ना मिले, वहीं रहें।’

इजराइल के ऑफिशियल ऐप होम फ्रंट कमांड की ओर से लोगों को मिसाइल अटैक से अलर्ट करने के लिए इस तरह के मैसेज आते हैं।

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इजराइल में ऑफिशियल ऐप ‘होम फ्रंट कमांड’ मिसाइल अटैक की पूरी निगरानी करता है। हर इजराइली नागरिक के फोन में ये ऐप होता है। अगर किसी भी इलाके में मिसाइल अटैक की आशंका होती है, तो पहले एक मैसेज आता है, जैसा गिलान को आया। इसके बाद अगला अलर्ट सेफ हाउस यानी बॉम्ब शेल्टर के अंदर जाने का मिलता है।

अगर मिसाइल आपके इलाके की तरफ आ रही है, तब होम फ्रंट कमांड का दूसरा अलर्ट आता है। इसमें फोन वाइब्रेट होने लगता है और सायरन बजने लगता है। होम फ्रंट कमांड के ऐप पर मैसेज फ्लैश होता है- ‘आपके इलाके में रॉकेट और मिसाइल फायर। सेफ हाउस में चले जाएं, आपके पास डेढ़ मिनट का वक्त है।’

होम फ्रंट कमांड की ओर से ऐसे अलर्ट अटैक के ठीक पहले भेजे जाते हैं, ताकि लोगों को सेफ हाउस में भेजा जा सके।

ये मैसेज आने से पहले ही गिलान के घर से सिर्फ 200 मीटर दूर ईरानी बैलिस्टिक मिसाइल आकर गिरी। वे कहते हैं, ‘ऐसा धमाका ना पहले देखा और न महसूस किया। धमाके ने कुछ सेकेंड के लिए धरती हिलाकर रख दी। इजराइल ने जब ईरान पर हमले शुरू किए थे, हमें तभी लग गया था कि अब हम ज्यादा समय तक सेफ नहीं है। मेरा घर कारोबारी ठिकानों के पास है। मैं मेंटली इसके लिए तैयार था, लेकिन मेरी पत्नी और बच्चे इस हमले से बुरी तरह डर गए हैं।’

‘ये पहली बार हुआ कि मिसाइल गिरने के पहले सायरन सिस्टम काम नहीं किया। सायरन का वक्त पर अलर्ट ना देना हमारे लिए हैरान करने वाला है।’

गिलान और उनकी पत्नी हाना इजराइल में हमलों के कई दौर देख चुके हैं। उनका कहना है कि ईरानी हमले सबसे खतरनाक हैं।

गिलान से हमने पूछा कि ऐसे वक्त में आप दुनिया और खासतौर पर भारत के लोगों को क्या मैसेज देना चाहते हैं? वे जवाब में कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि दुनिया महात्मा गांधी से बहुत कुछ सीख सकती है। ऐसे संघर्षों से निपटने के लिए उनकी विचारधारा लाजवाब थी। मुझे लगता है कि लोग उनका बताया शांति का रास्ता अपनाएं। गांधी की जीत भी उसी रास्ते से हुई थी।’

अटैक के घंटों बाद भी नॉर्मल नहीं हो सके गिलान के बेटे हालोन अभी मिडिल स्कूल में पढ़ रहे हैं। मिसाइल हमले के घंटों बाद भी वो नॉर्मल नहीं हो सके। हालोन बताते हैं, ‘धमाका इतना जोरदार था कि मैं डरकर कांपने लगा था। मेरा पूरा कमरा हिल रहा था। मेरे घर का सारा सामन बिखर गया। कुछ मिनटों तक मुझे कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या करूं। मैं उम्मीद करता हूं कि आगे कभी ऐसा मंजर ना देखना पड़े। ये बुरा वक्त मैं कई सालों तक नहीं भूल पाऊंगा।’

गिलान की पत्नी हाना का स्टडी रूम सेफ हाउस में ही है। जिस वक्त मिसाइल अटैक हुआ वो स्टडी रूम में ही थीं। हाना कहती हैं,

हाइफा में जो हुआ, उससे मैं हैरान हूं। हमारे पास मिसाइल डिटेक्ट करने और उसे रोकने के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन टेक्नोलॉजी है। फिर भी हमें मिसाइल गिरने के पहले अलर्ट तक नहीं मिला। अलर्ट क्यों नहीं मिला? किसकी गलती थी? ये तो अभी नहीं पता।

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इधर इजराइली डिफेंस फोर्स का कहना है कि वॉर्निंग सिस्टम बिल्कुल ठीक है। उसमें कोई गड़बड़ी नहीं आई है। सायरन क्यों नहीं बजा और अलर्ट क्यों नहीं गया, इसकी जांच की जा रही है।

शहर के बीचोंबीच चौराहे पर गिरी मिसाइल हम हाइफा में ईरानी मिसाइल से हुई तबाही वाली साइट पहुंचे। लोगों की खुशकिस्मती थी कि मिसाइल किसी बिल्‍डिंग पर ना गिरकर बीच चौराहे पर गिरी। सड़क के आसपास की इमारतों और दुकानों को नुकसान हुआ है। जब हम वहां पहुंचे, तब तक लोकल प्रशासन, पुलिस, सिविल डिफेंस और इजराइली डिफेंस फोर्स की टीम ने पूरे इलाके को सील कर दिया था। वहीं हॉस्पिटल की टीमें लोगों को मेडिकल हेल्प देने में लगी हुईं थीं।

ईरान के हमले खतरनाक, अब सायरन सुनते सेफ हाउस में भागते हैं लोग हाइफा में तबाही वाली साइट पर हमें राबाइन मिले। वो हाइफा के ही रहने वाले हैं। राबाइन बताते हैं, ‘जिस वक्त धमाका हुआ, मैं अपने बच्चों के साथ सेफ हाउस में था। ये अब तक का सबसे खतरनाक धमाका था। हम धमाके के करीब आधे घंटे बाद सेफ हाउस से बाहर निकले। अब यहां मैं ये देखने आया हूं कि मिसाइल ने कितनी तबाही मचाई है।’

हमने राबाइन से पूछा कि हमास और हिजबुल्लाह के हमलों से ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलों का हमला कितना अलग है? इस पर राबाइन कहते हैं, ‘इसकी कोई तुलना ही नहीं है। पहले लोग सायरन या अलर्ट को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते थे। अब ईरान के हमलों वाले सायरन सुनते ही हर कोई सेफ हाउस की तरफ भागता है।’

अटैक के वक्त सेफ हाउस में था, फिर भी कांप गया उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले अर्जुन प्रजापति भारतीय नागरिक हैं और वर्किंग वीजा पर इजराइल में रह रहे हैं। अर्जुन हजारों भारतीयों की तरह इजराइल में कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं। धमाके की साइट से उनका रूम सिर्फ 200 मीटर दूर है।

अर्जुन बताते हैं, ‘धमाके के वक्त हम 6 मंजिल नीचे अंडरग्राउंड बॉम्ब शेल्टर में चले गए थे। फिर भी धमाके का असर वहां तक महसूस किया जा सकता था।’

हमले की साइट पर मिलीं ताया कहती हैं कि जब मिसाइल अटैक हुआ तो लोग तो डरे ही, बेजुबान भी सदमे में हैं। मेरा डॉग धमाके के बाद से ही सहमा हुआ है और कुछ भी नहीं खा रहा। मैं इंसान और जानवरों की तुलना नहीं कर रही, लेकिन उनकी भी जान है, भावनाएं हैं। वो भी हमारे साथ इन हमलों का सामना कर रहे हैं।

हाइफा में हमले की साइट पर अपने डॉगी के साथ मिलीं ताया की अब वापस घर के अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही है। वो हमले से बहुत डर गई हैं।

हाइफा के डाउन टाउन में मस्जिद के पास गिरी मिसाइल हाइफा के डाउन टाउन इलाके में भी 20 जून की दोपहर ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया। हमला अल जरीना मस्जिद के पास हुआ। धमाके में मस्जिद की खिड़कियों के कांच टूट गए हैं। ये कारोबारी इलाका है। यहां गगनचुंबी इमारतें को भी काफी नुकसान हुआ है। अब पूरे इलाके को सील कर दिया गया है। लोकल प्रशासन अटैक वाली साइट पर मलबा हटाने का काम कर रहा है।

ईरान के मिसाइल हमले में 22 जून को हाइफा की दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद अल जरीना भी निशाना बनी। इसमें मस्जिद को नुकसान पहुंचा और हमले के वक्त अंदर मौजूद मौलवी को भी चोटें आई हैं।

तेल अवीव में भी बैलिस्टिक मिसाइल के हमला 22 जून को हाइफा में हुए हमले के कुछ देर पहले ही तेल अवीव के उत्तरी इलाके रमात अवीव में भी ईरानी बैलिस्टिक मिसाइल से अटैक हुआ। लोकल प्रशासन और सिविल डिफेंस की टीम ने 2 घंटे के अंदर तबाही वाली साइट को मलबा हटाकर साफ किया।

रमात अवीव में जिस इमारत पर हमला हुआ, आदम उसी के पास वाली बिल्डिंग में रहते हैं। वे बताते हैं ‘मैंने सुबह उठकर खबर पढ़ी कि अमेरिका ने ईरान के खिलाफ न्यूक्लियर ठिकानों पर बमबारी की है। तभी मुझे अंदाजा हो गया था कि अब लड़ाई और तेज होगी। वही हुआ भी। ईरान के धमाके की आवाज इतनी तेज थी कि लगा मुझ पर ही बम गिर गया। हमारे कान कुछ देर के लिए सुन्न पड़ गए। बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन शब्द नहीं निकल रहे थे।’

ईरानी हमलों में सबसे ज्यादा इजराइल के तेल अवीव, हाइफा, रिशोन लेजियन और बीर्शेबा शहर प्रभावित हुए हैं। अमेरिका के ईरान पर अटैक के बाद 22 जून को भी सबसे ज्यादा तबाही हाइफा और तेल अवीव में देखी गई।

मिसाइल हमले के बाद रिस्पॉन्स टीमें कैसे करती हैं काम मिसाइल गिरने के बाद लोगों को मिसाइल अलर्ट बंद होने के लिए कुछ देर इंतजार करना होता है। होम फ्रंट कमांड से जब निर्देश मिलता है कि अब सेफ हाउस से निकल सकते हैं, तब लोग बाहर आना शुरू करते हैं। हालांकि, मिसाइल अटैक की रिस्पॉन्स टीम इस वक्त का इंतजार नहीं करती।

अटैक की कंफर्म खबर मिलते ही सबसे पहले लोकल प्रशासन और पुलिस की टीमें लोकेशन पर पहुंचती हैं। हालात का जायजा लेने के बाद हॉस्पिटल तैयार करने के निर्देश दिए जाते हैं। सबसे पहले घायलों को हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है। हॉस्पिटल पहले से इमरजेंसी अलर्ट पर रखे जाते हैं। इनपुट के मुताबिक, जरूरी बेड मरीजों के लिए तैयार रखे जाते हैं।

सिविल डिफेंस की टीमें तबाही वाली साइट के पास ही हेल्प डेस्क लगाती हैं, ताकि किसी नागरिक को पूछताछ करनी हो या कोई मदद चाहिए तो वो बता सके। अगर किसी को पैनिक या एंग्जाइटी अटैक आते हैं, तो हेल्प डेस्क इस तरह के मामलों में भी नागरिकों की मदद करती है।

हाइफा में हमले वाली साइट पर सिविल डिफेंस की टीम ने हेल्प डेस्क लगाकर लोगों की मदद की।

मेडिकल और सिविल डिफेंस की टीमों के बाद नगर पालिका की टीमों का काम शुरू होता है। महज 3-4 घंटे में नगर पालिका की टीमें मिलकर तबाही वाली साइट को मलबा हटाकर साफ कर देती हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा मकसद ये होता है कि युद्ध के इस मुश्किल वक्त में बाकी लोगों का हौसला ना टूटे।

ईरान में अब तक 657, इजराइल में 24 की मौत इजराइल-ईरान के बीच जारी संघर्ष को 10 दिन बीत गए हैं। अमेरिका स्थित ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स न्यूज एजेंसी के अनुसार, ईरान में 13 जून से अब तक 657 लोगों की मौत हुई है और 2000 से ज्यादा घायल हैं।

हालांकि, ईरान की हेल्थ मिनिस्ट्री ने सिर्फ 430 नागरिक के मारे जाने और 3,500 लोगों के घायल होने की पुष्टि की है। वहीं, इजराइल में 21 जून तक 24 लोग मारे गए हैं, जबकि 900 से ज्यादा घायल हुए हैं।

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इजराइल-ईरान जंग पर ये ग्राउंड रिपोर्ट पढ़िए

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