लोकसभा में पहली बार बोले आरजेडी के अभय कुशवाहा, माले के सुदामा प्रसाद; पढ़िए क्या कहा
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राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के संसदीय दल के नेता अभय कुशवाहा और सीपीआई माले के सुदाना प्रसाद ने सोमवार को पहली बार लोकसभा में भाषण दिया। अभय कुशवाहा ने आरजेडी की तरफ से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग मोदी सरकार से कर दी। इसके अलावा उन्होंने बिहार में बाढ़ और सुखाड़ की समस्या से निपटने, सिंचाई एवं पेयजल संकट से उबरने के लिए केंद्र सरकार से नीति बनाने की मांग की। वहीं, माले के सुदामा प्रसाद ने नए आपराधिक कानूनों पर पुनर्विचार करने की मांग की। बता दें कि कुशवाहा और सुदामा, दोनों पहली बार संसद पहुंचे हैं।
लालू यादव ने औरंगाबाद से नए नवेले सांसद अभय कुशवाहा को पिछले दिनों लोकसभा में आरजेडी संसदीय दल का नेता बनाया था। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कुशवाहा ने पहली बार सदन में भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देकर आर्थिक पैकेज मिलना चाहिए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं। अब देर किस बात की, आप सरकार में हैं।
अभय कुशवाहा ने अपने भाषण में कहा कि बिहार में सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं है, पीने के पानी की किल्लत है। बिहार और केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई नल जल योजना जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। औरंगाबाद, गया, सासाराम जैसे जिलों में पानी का स्तर जमीन से 200 फीट नीचे चला गया है। सरकार द्वारा पीने का पानी और सिंचाई हेतु जल संसाधन की नीति नहीं बनाई गई है। बिहार एक तरफ बाढ़ तो दूसरी तरफ सुखाढ़ का प्रकोप झेलता है। जो बाढ़ से त्राहिमाम होता है, हर साल हजारों करोड़ों का नुकसान होता है। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार को एक नीति बनाकर इसका निदान निकालना चाहिए। आरजेडी सांसद ने पूरे देश में जातिगत जनगणना कराने और उसके अनुरूप आरक्षण की स्थिति सुधारने की मांग की। उन्होंने युवाओं के लिए राष्ट्रीय युवा आयोग बनाने की भी मांग की।
आरा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे सीपीआई माले के सुदामा प्रसाद ने अपने पहले भाषण में किसानों की समस्या उठाई। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस देश में लागत सामग्री के महंगे होने से खेती घाटे में जा रही है। ऐसे में जिन खेत मालिकों के पास रोजगार के दूसरे विकल्प हैं, वे खेती नहीं करना चाहते हैं। वे लोग पट्टे या बटाई पर खेत दे रहे हैं। इससे घाटे की खेती का भार बटाईदार किसानों पर आ रहा है। मगर उन्हें किसान नहीं समझा जा रहा है। हजारों करोड़ों के कृषि बजट का लाभ उन्हें पहचान पत्र के अभाव में नहीं मिल रहा है। उन्होंने सरकार से जॉब कार्ड की तर्ज पर बटाईदार किसानों को पहचान पत्र दिलाने की मांग की।
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सुदामा प्रसाद ने आगे कहा कि पिछले कुछ सालों में नोटबंदी, जीएसटी, तीन कोविड लॉकडाउन लगने और ऑनलाइन व्यापार आने से खुदरा व्यापारी, दुकानदारों, फुटपाथ पर सामान बेचने वालों का धंधा पटरी से उतर गया है। ऐसे में केंद्र सरकार को देश के खुदरा व्यापारियों के विकास के लिए व्यावसायिक आयोग का गठन करना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने तीन नए आपराधिक कानूनों को अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन बताया।
उन्होंने कहा कि यह देश को पुलिस राज में तब्दील करने का षडयंत्र है। इससे पुलिस को अस्थायी तौर पर आपातकाल लगाने की छूट दे दी गई है। इसमें भूख हड़ताल और धरना प्रदर्शन करने वालों को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही थानेदारों के विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वे एफआईआर करेंगे या नहीं। थानों में हिरासत की अवधि को बढ़ा दिया गया है, इससे पुलिस आरोपी को प्रताड़ित कर कुछ भी उगलवा सकती है। इसलिए इस कानून को सदन के पटल पर रखा जाए, इस पर पुनर्विचार हो। जरूरी सुझाव आए, उस आधार पर आगे बढ़ाया जाए।
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राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के संसदीय दल के नेता अभय कुशवाहा और सीपीआई माले के सुदाना प्रसाद ने सोमवार को पहली बार लोकसभा में भाषण दिया। अभय कुशवाहा ने आरजेडी की तरफ से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग मोदी सरकार से कर दी। इसके अलावा उन्होंने बिहार में बाढ़ और सुखाड़ की समस्या से निपटने, सिंचाई एवं पेयजल संकट से उबरने के लिए केंद्र सरकार से नीति बनाने की मांग की। वहीं, माले के सुदामा प्रसाद ने नए आपराधिक कानूनों पर पुनर्विचार करने की मांग की। बता दें कि कुशवाहा और सुदामा, दोनों पहली बार संसद पहुंचे हैं।
लालू यादव ने औरंगाबाद से नए नवेले सांसद अभय कुशवाहा को पिछले दिनों लोकसभा में आरजेडी संसदीय दल का नेता बनाया था। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कुशवाहा ने पहली बार सदन में भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देकर आर्थिक पैकेज मिलना चाहिए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं। अब देर किस बात की, आप सरकार में हैं।
अभय कुशवाहा ने अपने भाषण में कहा कि बिहार में सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं है, पीने के पानी की किल्लत है। बिहार और केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई नल जल योजना जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। औरंगाबाद, गया, सासाराम जैसे जिलों में पानी का स्तर जमीन से 200 फीट नीचे चला गया है। सरकार द्वारा पीने का पानी और सिंचाई हेतु जल संसाधन की नीति नहीं बनाई गई है। बिहार एक तरफ बाढ़ तो दूसरी तरफ सुखाढ़ का प्रकोप झेलता है। जो बाढ़ से त्राहिमाम होता है, हर साल हजारों करोड़ों का नुकसान होता है। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार को एक नीति बनाकर इसका निदान निकालना चाहिए। आरजेडी सांसद ने पूरे देश में जातिगत जनगणना कराने और उसके अनुरूप आरक्षण की स्थिति सुधारने की मांग की। उन्होंने युवाओं के लिए राष्ट्रीय युवा आयोग बनाने की भी मांग की।
आरा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे सीपीआई माले के सुदामा प्रसाद ने अपने पहले भाषण में किसानों की समस्या उठाई। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस देश में लागत सामग्री के महंगे होने से खेती घाटे में जा रही है। ऐसे में जिन खेत मालिकों के पास रोजगार के दूसरे विकल्प हैं, वे खेती नहीं करना चाहते हैं। वे लोग पट्टे या बटाई पर खेत दे रहे हैं। इससे घाटे की खेती का भार बटाईदार किसानों पर आ रहा है। मगर उन्हें किसान नहीं समझा जा रहा है। हजारों करोड़ों के कृषि बजट का लाभ उन्हें पहचान पत्र के अभाव में नहीं मिल रहा है। उन्होंने सरकार से जॉब कार्ड की तर्ज पर बटाईदार किसानों को पहचान पत्र दिलाने की मांग की।
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सुदामा प्रसाद ने आगे कहा कि पिछले कुछ सालों में नोटबंदी, जीएसटी, तीन कोविड लॉकडाउन लगने और ऑनलाइन व्यापार आने से खुदरा व्यापारी, दुकानदारों, फुटपाथ पर सामान बेचने वालों का धंधा पटरी से उतर गया है। ऐसे में केंद्र सरकार को देश के खुदरा व्यापारियों के विकास के लिए व्यावसायिक आयोग का गठन करना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने तीन नए आपराधिक कानूनों को अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन बताया।
उन्होंने कहा कि यह देश को पुलिस राज में तब्दील करने का षडयंत्र है। इससे पुलिस को अस्थायी तौर पर आपातकाल लगाने की छूट दे दी गई है। इसमें भूख हड़ताल और धरना प्रदर्शन करने वालों को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही थानेदारों के विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वे एफआईआर करेंगे या नहीं। थानों में हिरासत की अवधि को बढ़ा दिया गया है, इससे पुलिस आरोपी को प्रताड़ित कर कुछ भी उगलवा सकती है। इसलिए इस कानून को सदन के पटल पर रखा जाए, इस पर पुनर्विचार हो। जरूरी सुझाव आए, उस आधार पर आगे बढ़ाया जाए।