रोमा सेन कैसे बन गईं सुचित्रा सेन, एक्‍ट्रेस जिसे सेट पर गुलजार भी बुलाते थे सर

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रोमा सेन कैसे बन गईं सुचित्रा सेन, एक्‍ट्रेस जिसे सेट पर गुलजार भी बुलाते थे सर

रोमा सेन कैसे बन गईं सुचित्रा सेन, एक्‍ट्रेस जिसे सेट पर गुलजार भी बुलाते थे सर

सुचित्रा सेन, 50 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री की वो एक्ट्रेस रही हैं, जिन्हें ‘महानायिका’ का दर्जा दिया गया। वो पहली कलाकार थीं, जिन्हें बेस्ट एक्ट्रेस के लिए इंटरनेशनल अवॉर्ड मिला था। वो बंगाली फिल्म इंडस्ट्री की शायद पहली ऐसी एक्ट्रेस रहीं, जिन्होंने शादी और मां बनने के बाद एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा और सफलता का एक अलग मुकाम हासिल किया। उन्होंने बंगाली के साथ हिंदी फिल्मों में भी खूब काम किया। ‘देवदास’ (1955) उनकी हिंदी डेब्यू मूवी थी और ये फिल्म जबरदस्त हिट रही थी। वो गुलजार की ‘आंधी’ में भी नजर आईं। सुचित्रा की पर्सनल लाइफ रहस्य से भरी रही। उनका नाम रोमा सेन था, लेकिन फिल्मों में आने के बाद वो सुचित्रा बन गईं। कैसै? गुलजार सेट पर उन्हें ‘सर’ बुलाते थे। क्यों? महज 15 साल की उम्र में उनकी दिबानाथ से शादी हो गई, जिनका फेमस डायरेक्टर बिमल रॉय से करीबी रिश्ता था। दिबानाथ ने ही सुचित्रा को एक्ट्रेस बनने के लिए प्रेरित किया और हर कदम पर उनका साथ दिया। सुचित्रा ने इंडस्ट्री में खूब नाम कमाया, लेकिन एक ऐसा वक्त भी आया, जब फिल्म फ्लॉप होने के बाद उन्होंने एक्टिंग की दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। इसके बाद सुचित्रा ने कभी किसी को अपना चेहरा नहीं दिखाया। यहां तक कि दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड लेने तक नहीं पहुंचीं और मौत के बाद भी कोई नहीं देख पाया कि वो अंतिम पलों में कैसी दिखती थीं। आज मुनमुन सेन की मां और रिया-राइमा सेन की नानी सुचित्रा के बारे में जानिए ऐसी बातें, जिसे आप शायद ही जानते होंगे।

रोमा कैसे बनीं सुचित्रा

रोमा कैसे बनीं सुचित्रा सेन? उन्हें उनके पति दिबानाथ ने फिल्मों में कदम रखने के लिए प्रोत्साहित किया। कहा जाता है कि शुरुआत में उन्हें पार्क स्ट्रीट के एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो में गाना गाने का ऑफर दिया गया था। तब उन्हें रोमा सेन के रूप में पेश किया गया था, लेकिन उस समय के फेमस फिल्ममेकर सुकुमार दासगुप्ता के डायरेक्शन में बन रही फिल्म को टाल दिया गया था। सुकुमार दासगुप्ता ने रोमा सेन का स्क्रीन टेस्ट कराया। फिल्म थी ‘Saat Number Koyedi’। उनके असिस्टेंट नीतीश रॉय ने रोमा का नाम बदलकर सुचित्रा कर दिया। 1952 में उन्होंने तीन और फिल्में साइन कीं। एक थी ‘काजोरी’, जिसका निर्देशन निरेन लाहिड़ी ने किया था। उसके बाद निर्मल डे द्वारा निर्देशित ‘सारे चुट्टार’ थी और फिर ‘भगवान श्री श्री कृष्ण चैतन्य’ जिसे देबकी बोस ने डायरेक्ट किया, जिसमें बसंत चौधरी ने अहम भूमिका में अपनी शुरुआत की। Saat Number Koyedi में उनके हीरो समर रॉय थे, जबकि Saare Chuattar में उत्तम कुमार थे।

शुरू से ही रिजर्व रहती थीं रोमा सेन

शुरू से ही रिजर्व रहती थीं रोमा सेन

इंडस्ट्री में उन्हें रोमा कहने वालों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। उत्तम कुमार उनमें से एक थे। कुछ अन्य लोगों में प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर असित चौधरी और उस समय डीसीपी अनिल बंदोपाध्याय थे। मिसेज सेन के जीवन और करियर में ये तीन दोस्त प्रभावशाली थे। आज तक, बंगाली फिल्म इंडस्ट्री में हर कोई उन्हें ‘मैडम’ या ‘मिसेज सेन’ ही कहता है। शुरू से ही वो काफी रिजर्व रहीं और उनका मानना था कि वो एक्ट्रेस हैं और उन्हें सिर्फ स्क्रीन पर ही दिखना चाहिए।

रोमा को गुलजार कहते थे ‘सर’

रोमा को गुलजार कहते थे सर

एक ग्रुप था, जो रोमा सेन को ‘सर’ कहकर संबोधित करता था। फिल्म-निर्माता गुलजार, जिन्होंने ‘आंधी’ में सुचित्रा सेन को डायरेक्ट किया था, उस ग्रुप का नेतृत्व करते हैं। वो उनके आखिरी दिनों तक भी उन्हें ‘सर’ कहकर ही बुलाते थे, ये उनके बीच में ‘आंधी’ के समय से ही एक मजाकिया ब़ॉन्ड था। गुलजार ने कहा था, ‘हालांकि, मैं एक्सपीरियंस और उम्र में उनसे बहुत छोटा था, जब वो ‘आंधी’ में काम कर रही थीं, तो उन्होंने मुझे ‘सर’ कहने पर जोर दिया। हम राखी और मेघना के साथ लोकेशन पर गए थे, जो उस समय बच्ची थी। उनकी राखी से दोस्ती हो गई, लेकिन वो मुझे ‘सर’ बुलाती रहीं। फिर एक दिन मैंने उन्हें वॉर्निंग दी कि अगर उन्होंने ‘सर’ कहना बंद नहीं किया तो मेरी पूरी यूनिट उन्हें ‘मैडम’ नहीं, बल्कि ‘सर’ कहकर बुलाएगी। इसके बाद ये हमेशा कायम रहा।’

बचपन, शादी और कुछ मीठी यादें

बचपन, शादी और कुछ मीठी यादें

सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल को पाबना (अब बांग्लादेश में है) में हुआ था। उनके जन्म का वर्ष कुछ धुंधला है, क्योंकि कुछ कहते हैं कि वो 1931 में पैदा हुई थीं, जबकि कई इसे 1934 बताते हैं। वो तीन भाई और पांच बहनों में पांचवी थीं। उनके पिता का नाम करुणामय दासगुप्ता था और उनकी माता का नाम इंदिरा था। उनका निकनेम कृष्ण था। कुछ का कहना है कि उन्होंने शांति निकेतन में पढ़ाई की। लेकिन कई मानते हैं कि उनके समय में मिडिल क्लास बंगाली परिवारों की बेटियां बोर्डिंग स्कूल नहीं जाती थीं। लेकिन तब उनके अंकल (मामा) बीएन सेन बोलपुर में परिवार संग रहते थे और वो अक्सर उनके साथ रहने आती थीं। बचपन में वो कुछ समय के लिए मामा के परिवार के साथ पटना में रही थीं। तब पबना गर्ल्स हाई स्कूल में उनका एडमिशन कराया गया था, तब उनके पिता ने एडमिशन फॉर्म में उनका नाम ‘रोमा’ दर्ज किया था। वो बचपन से ही अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती थीं। शायद यह उनकी सुंदरता ही थी, जिसने 1947 में एक रईस ज्वॉइंट फैमिली के बेटे दिबानाथ सेन से उनकी शादी हो गई और वो कोलकाता चली गईं। सुचित्रा बंगाल की शायद पहली भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने शादी और मां बनने के बाद फिल्मों में डेब्यू किया है। उनकी बेटी मुनमुन सेन भी एक्ट्रेस रही हैं।

ऐसे हुई थी फिल्मों में एंट्री

ऐसे हुई थी फिल्मों में एंट्री

कहा जाता है कि दिबानाथ ने शादी होते ही अपनी बीवी की कलात्मक क्षमता पर ध्यान दिया। सांस्कृतिक रूप से झुकाव होने के कारण वह चाहते थे कि उनकी पत्नी सांस्कृतिक दुनिया का हिस्सा बनें। उनके पिता आदिनाथ सेन की पहली पत्नी, बिमल रॉय की बहन थीं। हालांकि, बहन का निधन काफी पहले हो गया था और आदिनाथ ने फिर से शादी कर ली, लेकिन परिवार ने बिमल रॉय के साथ संबंध बनाए रखा और बच्चे उन्हें ‘मामा’ कहकर संबोधित करते रहे। यह कड़ी तब काम आई, जब दिबानाथ ने अपनी पत्नी को फिल्मों में लाने की इच्छा जताई। इसके चलते रिकॉर्डिंग स्टूडियो का इवेंट हुआ और अंत में Saat Number Koyedi मूवी मिल गई। शूटिंग शुरू होने से पहले एक बड़ी बाधा को पार करना था। कौन आदिनाथ सेन से बात करेगा और अपनी बहू को फिल्मों में काम करने की इजाजत मांगेगा? दिबानाथ में अपने पिता के पास जाने की हिम्मत नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को ऐसा करने के लिए कहा। रोमा ने हिम्मत करके अपने ससुर के पास जाकर सब कुछ बता दिया। ‘यदि आपके पास प्रतिभा है, तो मुझे इसे नष्ट करने का कोई अधिकार नहीं है। तो अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें तुम्हारे सपने को पूरा करने से नहीं रोकूंगा।’ ये उनके ससुर की लाइन थी।

बड़े फिल्ममेकर की ठुकराई मूवीज

बड़े फिल्ममेकर की ठुकराई मूवीज

साल 1953 से 1978 सुचित्रा ने बंगाली और हिंदी मिलाकर 61 फिल्मों में काम किया। उत्तम कुमार संग उनकी जोड़ी हिट थी। बताया जाता है कि सुचित्रा ने बड़े फिल्ममेकर की फिल्में भी ठुकराई थीं और उस जमाने में एक हीरोइन के लिए ऐसा करना, वाकई में बड़ी बात थी। उन्होंने शेड्यूल में समस्या के कारण सत्यजीत रे के ऑफर को ठुकरा दिया था। इसके बाद सत्यजीत रे ने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित उपन्यास पर आधारित फिल्म ‘देवी चौधुरानी’ फिल्म कभी नहीं बनाई। उन्होंने RK बैनर के तहत एक फिल्म के लिए राज कपूर की के ऑफर को भी मना कर दिया था। 1970 में पति की मौत के बाद सुचित्रा ने एक्टिंग करना जारी रखा, लेकिन प्रणय पाशा फ्लॉप होने के बाद उन्होंने 1978 में कैमरे की दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें राजेश खन्ना संग ‘नाटी बिनोदिनी’ भी करना था, लेकिन शूटिंग को बीच में ही रोक दिया गया, क्योंकि उन्होंने एक्टिंग छोड़ने का फैसला कर लिया था। उन्होंने फिल्मों से दूरी बनाने के बाद जनता की नज़रों से दूर रहकर अपना समय रामकृष्ण मिशन को समर्पित किया।

आखिरी समय में भी नहीं हो सका दीदार

आखिरी समय में भी नहीं हो सका दीदार

सुचित्रा सेन को 24 दिसंबर 2013 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और पता चला कि उन्हें लंग इंफेक्शन है। जनवरी के पहले हफ्ते में उनके ठीक होने की सूचना मिली थी, लेकिन बाद में उनकी हालत और खराब हो गई और हार्ट अटैक पड़ने से 17 जनवरी 2014 को सुबह 8.25 बजे उनका निधन हो गया। वो 82 साल की थीं। उनके निधन पर राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक ने शोक व्यक्त किया था और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर उनके दाह संस्कार से पहले तोपों की सलामी दी गई थी। उनकी गोपनियता का सम्मान करते हुए अंतिम संस्कार कोलकाता के कैओराटोला श्मशान घाट में किया गया। उनकी मौत के बमुश्किल साढ़े पांच घंटे बाद फूलों से सजा ताबूत पहुंचा और उन्हें अंतिम विदाई दी गई। आखिरी पलों में भी कोई उनका दीदार नहीं कर सका। बंगाल की सबसे बड़ी स्टार होने के बावजूद, जिन्हें ‘महानायिका’ कहा जाता है, उन्होंने गुमनामी में जीना चुना था और वो अपने अंतिम पलों तक एक पहेली बनी रहीं। हॉस्पिटल में उनका इलाज भी गोपनीय तरीके से हुआ था।

खुद को नजरों से दूर रखने के लिए दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से इनकार

खुद को नजरों से दूर रखने के लिए दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से इनकार

सुचित्रा सेन एक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड पाने वाली पहली भारतीय एक्ट्रेस थीं, जब 1963 के मास्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में, उन्होंने ‘सात पाके बांधा’ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का सिल्वर अवॉर्ड जीता था। 1972 में उन्हें पद्म श्री से नवाजा गया। 1979 से उन्होंने दुनिया से दूरी बना ली और कभी लोगों के सामने नहीं आईं। इसके लिए उनकी तुलना Greta Garbo से की जाती है। साल 2005 में जनता की नजरों से दूर बने रहने के लिए उन्होंने भारत के सर्वोच्च सिनेमाई पुरस्कार दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड से इनकार कर दिया था।