राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के पहले दिन पश्मीना का मंचन: बेगूसराय में कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से बांधा समां, मंत्रमुग्ध हुए दर्शक – Begusarai News h3>
बेगूसराय के दिनकर भवन में शुरू राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के पहले दिन आशीर्वाद रंगमंडल द्वारा डॉ. अमित रौशन के निर्देशन में मृणाल माथुर लिखित नाटक ‘पश्मीना’ का मंचन किया गया। नाटक के कलाकारों ने अपने अभिनय कौशल और उत्कृष्ट संवाद से दर्शकों को अंतिम समय
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पश्मीना कश्मीर की पृष्ठभूमि पर लिखा एक मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण संवेदनशील नाटक था, जो मानवीय रिश्तों के ताने-बाने को पश्मीना के नाजुक धागे से जोड़ता है। नाटक ’ये’ और ’वो’ की लड़ाई में एक कुशल कबूतरबाज की तरह मानवता की पतली रस्सी पर चलकर संतुलन बनाने की एक कोशिश करता दिखा।
नाटक का दृश्य।
कलाकारों ने इस प्रकार किया नाटक प्रस्तुत
एक मध्यम वर्ग के जोड़े विभा और अमर सक्सेना अपनी वार्षिक छुट्टियों की योजना बना रहे हैं। वे हर साल एक नई जगह की यात्रा करते हैं और उस राज्य से कुछ अनोखा लेकर आते हैं। विभा कश्मीर जाने से कतराती है, उनके अस्तित्व में एक अकथनीय खोखलापन है, जिससे कि उनका रोजमर्रा का आदान-प्रदान भी श्रमसाध्य लगता है।
जैसे कि वे सामान्य होने की कोशिश में अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं। जब वे कश्मीर जाने का मन बनाते हैं तो पशमीना शॉल लेने का फैसला करते हैं। अपनी खोई हुई मातृभूमि के प्रति उदासीन पड़ोसी से सलाह लेते हुए शॉल के विशेष विक्रेता के पास जाने का फैसला करते हैं। अपने होटल में उनकी मुलाकात एक तेज तर्रार पंजाबी रविन्द्र और स्वीटी से होती है।
रविन्द्र दिल्ली का विशिष्ट डींगे हांकने वाला व्यवसायी है, जो अपनी संपत्ति और संबंधों का घमंड करता है। सक्सेना परिवार को शॉल की दरें उनके बजट से अधिक लगती है। दुकानदार समझता है कि यह सामान्य मोल-भाव करने वाले पर्यटक नहीं हैं। वे साझा हानि और दुख से उत्पन्न एक अनकहा संबंध बनाते हैं।
इस तरह एक मूल्यवान पशमीना शॉल दोनों तरफ की पीड़ा के उपचार का प्रतीक बन जाता है। मृणाल माथुर लिखित नाटक पशमीना एक बहुत ही नाजुक धागों से बुना हुआ दिखा। ठीक उसी प्रकार जैसे मानवीय संबंध भी बहुत ही नाजुक होता है। नाटक में पशमीना शॉल को प्रतीक बनाकर इंसानी संबंधों के मानवीय संवेदनाओं, संबंधों की जटिलता को दिखाया गया था।
जैसे जीवन में हम बड़े-छोटे तथा ये और वो के चक्कर में बंटे रहते हैं। भौतिक साधनों की पूर्ति के लिए आपसी संबंधों को भूलकर अपने को सर्वोपरि साबित करने में बहुमूल्य जीवन गंवा देते हैं। निर्देशक ने अपने कलाकारों के अभिनय, संगीत व इम्प्रोवाइजेशन को आधार बना कर लेखक की कल्पना को दर्शकों के समक्ष रखने का प्रयास किया था।
नाटक की प्रस्तुति करते कलाकार।
नाटक में शामिल कलाकार
नाटक में अमर सक्सेना की भूमिका में सचिन कुमार, विभा सक्सेना बनी कविता कुमारी, डॉ. कौल बने सचिन कुमार (जूनियर) एवं अमित, रविन्द्र ढिल्लो बने कुणाल भारती, स्वीटी बनी रितु कुमारी, दुकानदार बने अरूण कुमार, दुकानदार का बेटा शुभम कुमार एवं मकसूदन कुमार, वेटर बने बिट्टू कुमार तथा फौजी और फोटोग्राफर शुभम कुमार ने शानदार अभिनय किया।
नाटक में संगीत अमन शर्मा, प्रकाश वरूण, मेकअप सचिन कुमार, वस्त्र विन्यास मोहित मोहन एवं रितु कुमारी, सेट निर्माण विजय शर्मा, प्रोपर्टी कुणाल भारती, सहयोग पंकज कुमार सिन्हा, धर्मेन्द्र कुमार, रिषभ कुमार, मोहित मोहन, आशीष कुमार एवं विष्णु कुमार तथा सेट डिजाइन वरिष्ठ चित्रकार सीताराम का था।