राजस्थान में डॉक्टर हड़ताल क्यों कर रहे हैं? यहां पढ़ें पूरा मामला

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राजस्थान में डॉक्टर हड़ताल क्यों कर रहे हैं? यहां पढ़ें पूरा मामला

राजस्थान में डॉक्टर हड़ताल क्यों कर रहे हैं? यहां पढ़ें पूरा मामला


Rajasthan Right To Health Bill: राजस्थान में पिछले कुछ दिनों से प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम बंद हैं। डॉक्टर हड़ताल पर चल रहे हैं और राइट टू हेल्थ विधेयक पर बवाल मचा हुआ है। हड़ताली डॉक्टरों की दलील है कि अलग से राइट टू हेल्थ बिल की क्या जरूरत है?

 

हाइलाइट्स

  • राजस्थान सरकार राइट टू हेल्थ बिल 2022 लाने वाली पहले राज्य सरकार है
  • लेकिन इस बिल के विरोध में असंतुष्ट लगभग 2,500 निजी अस्पतालों के डॉक्टर सड़कों पर हैं
  • राजधानी जयपुर के 200 से अधिक अस्पताल बंद हैं
  • यहां पढ़ें मरीजों के लिए लाभकारी इस बिल पर डॉक्टरों की नाराजगी क्यों?
जयपुर: स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर इन दिनों राजस्थान उबाल पर है। यह देश की पहली ऐसी राज्य सरकार है, जिसने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लाया राइट टू हेल्थ बिल 2022 बीती 21 मार्च को पारित किया है। विधेयक के प्रावधानों से असंतुष्ट लगभग 2,500 निजी अस्पतालों के डॉक्टर सड़कों पर हैं। इस वजह से राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से लड़खड़ा गई हैं। वहीं यह विधेयक उन मरीजों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया जा रहा है, जो निजी अस्पतालों का भारी-भरकम खर्च नहीं उठा सकते। इसे राजस्थान विधानसभा के पटल पर सितंबर 2022 में ही रखा गया था, लेकिन विपक्ष और डॉक्टरों की मांग पर इसमें कुछ संशोधन किए गए। इमरजेंसी की विशेष व्याख्या करते हुए इसमें दुर्घटना, पशुओं और सांप के काटने और प्रसव की जटिलताओं को भी शामिल किया गया।

राइट टू हेल्थ से राजस्थान में ये होगा खास

– विधेयक के तहत इमरजेंसी में निजी और सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए मरीज को एडवांस पेमेंट से छूट है।
– अगर मरीज भुगतान नहीं कर पाता है तो खर्च राज्य सरकार उठाएगी। दूसरे अस्पताल में रेफर होने पर भी सरकार सारा खर्च देगी।
– सरकारी और गैर-सरकारी अस्पताल और डॉक्टर इमरजेंसी वाले मरीजों का मुफ्त इलाज करने से पल्ला नहीं झाड़ सकेंगे। मेडिको-लीगल केस में भी उन्हें बिना पुलिस मंजूरी के तुरंत इलाज करना होगा।
– इमरजेंसी केस के अलावा मरीज अपनी सुविधा और इच्छानुसार लैब और दवा की दुकान चुन सकता है यानी दवा दुकानों, लैब और निजी अस्पतालों के बीच कमिशन का जाल टूटेगा।
– अस्पताल में भर्ती मरीज अगर किसी बाहरी डॉक्टर से राय लेना चाहता है तो अस्पताल को उसके इलाज के सारे दस्तावेज समय से देने होंगे।
– किसी भी नियम के उल्लंघन की दशा में 10,000 रुपये का दंड प्रस्तावित है, जो दोबारा तोड़ने पर 25,000 रुपये का होगा।
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राजस्थान के डॉक्टरों की चिंता?

– विधेयक के विरोध में प्राइवेट अस्पतालों में इलाज लगभग ठप है तो राज्य के 45 फीसदी मरीजों का अतिरिक्त लोड सरकारी अस्पतालों पर आ पड़ा है।
– डॉक्टरों का आरोप है कि सरकार अपनी जिम्मेदारियां प्राइवेट डॉक्टरों के कंधे पर डालना चाहती है। इस विधेयक के चलते निजी अस्पतालों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
– इससे उनकी जीविका कमाने का अधिकार छिन जाएगा, तो आम लोगों को 24 घंटे मिलने वाली चिकित्सा सुविधा से वंचित होना पड़ेगा।
– इस विधेयक की रूपरेखा अभी तक साफ नहीं है, मसलन- मरीज को इलाज देने के बाद सरकार किस तरीके से उसका भुगतान करेगी?
– हड़ताली डॉक्टरों को आपत्ति है कि सरकार जब पहले से ही कई स्वास्थ्य योजनाएं चला रही है तो अलग से राइट टू हेल्थ बिल की क्या जरूरत है?
– विधेयक की टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव इसी साल प्रस्तावित हैं।

पहले से मौजूद चिकित्सा क्षेत्र में चार योजनाएं

पहले से मौजूद योजनाएं भी इस पर असमंजस की स्थिति बना रही हैं। राज्य सरकार ने इसी साल के बजट में चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में 10 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज की सुविधा को बढ़ाकर 25 लाख कर दिया। इस योजना में सरकार ने 1 अप्रैल 2022 से 31 दिसंबर 2022 के बीच 1,940 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। दूसरी योजना सरकारी कर्मचारियों, मंत्रियों, पूर्व और वर्तमान विधायकों के लिए है। तीसरी ‘निशुल्क निरोगी राजस्थान योजना‘ में सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा, सभी ओपीडी-आईपीडी और रजिस्ट्रेशन की सुविधा है। इसमें मार्च 2022 से दिसंबर 2022 तक 1,072 करोड़ रुपये खर्च हुए। चौथी, निशुल्क टेस्ट योजना में मेडिकल कॉलेजों से संबंधित सरकारी अस्पतालों में 90 टेस्ट मुफ्त में कराने की सुविधा है।
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बार-बार संशोधन होने से लोगों का इस पर भरोसा कितना रह जाएगा?

विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने भी दो मुद्दों पर आपत्ति की है। उसका कहना है कि इसमें कम से कम 50 बेड वाले मल्टिस्पेशलिटी अस्पताल ही हों और मरीजों की समस्या या शिकायत के लिए सिंगल विंडो सिस्टम हो। वैसे आपत्ति करने वाले बीजेपी के दोनों ही विधायक कालीचरण सर्राफ और राजेंद्र राठौर बिल पर बनी प्रवर समिति के मेंबर भी थे। फिलहाल, सरकार जरूरत के हिसाब से संशोधन की बात कह रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि बार-बार संशोधन होने से लोगों का इस पर भरोसा कितना रह जाएगा?
रिपोर्ट- वीरेन्द्र मेहता

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