मूवी र‍िव्‍यू: मर्डर एट तीसरी मंजिल 302

81
मूवी र‍िव्‍यू: मर्डर एट तीसरी मंजिल 302


मूवी र‍िव्‍यू: मर्डर एट तीसरी मंजिल 302

कहानी
एक अमीर बिजनसमैन की बीवी अचानक लापता हो जाती है। अफसरों की एक पूरी टीम उसकी तलाश में जुटी है। लेकिन कहानी में सिर्फ एक गुमशुदा महिला की तलाश ही नहीं है। कहानी में और भी परतें हैं। क्‍या अफसर इस तलाश में आगे बढ़ते हुए सच तक पहुंच पाएंगे? फिल्‍म इसी की कहानी है।

रिव्‍यू
इरफान खान अब हमारे बीच नहीं हैं। तीन दशक के करियर में उन्‍होंने एक से बढ़कर एक फिल्‍में दीं। 29 अप्रैल 2020 को सिनेमा प्रेमियों को बेशुमार यादों से सहारे छोड़कर वह हम सभी से दूर चले गए। इरफान अपने पीछे सदाबहार फिल्‍मों की एक विरासत छोड़ गए हैं। कैंसर से लड़े पर जीत न सके। यह इरफान की आख‍िरी फिल्‍म है। यह दुर्भाग्‍य है कि इस फिल्‍म को जब हम देख रहे हैं तो वह हमारे साथ नहीं हैं। ‘मर्डर एट तीसरी मंजिल 302’ को रिलीज के लिए 14 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा है। फिल्‍म की कहानी के केंद्र में अभ‍िषेक दीवान का किरदार है, जो रणवीर शौरी ने निभाया है। वह एक बिजनसमैन हैं, जिनकी पत्‍नी माया लापता है। अभ‍िषेक पुलिस को खबर करते हैं और तेजिंदर सिंह (लकी अली) के जिम्‍मे जांच सौंपी जाती है।

नवनीत बज सैनी के डायरेक्‍शन में बनी इस थ्र‍िलर फिल्‍म में कई ट्विस्‍ट और टर्न हैं। बतौर दर्शक आप यह सोचते रहते हैं कि माया वाकई गुमशुदा है या उसका कत्‍ल हो गया है। या फिर ये भी संभव है कि यह सब एक बड़े प्‍लान का हिस्‍सा हो? इस कहानी में शेखर उर्फ चांद भी है। इस किरदार को इरफान ने निभाया है। वह इन कहानी से जुड़ा हुआ है। फिल्‍म बहुत पहले बनी थी, लिहाजा आज के हिसाब से इसमें मॉर्डन टच की कमी है। लेकिन नवनीत सैनी ने स्‍क्रीनपले पर अच्‍छा काम किया है। यह आपको बांधे रखती है। लेकिन अच्‍छे स्‍क्रीनप्‍ले और बेहतरीन कलाकारों के अलावा फिल्‍म में और जो कुछ भी है, वह इसे फीका बना देते हैं।

फिल्‍म की कहानी में कई ऐसे पेंच हैं, बहुत सी ऐसी चीजे हैं जिन पर भरोसा नहीं होता। किरदारों को भी लिखने में मेहनत कम पड़ गई है। उदाहरण के लिए जिस तरह फिल्‍म में पुलिसवालों को दिखाया गया है, वह जोकर जैसे लगते हैं। खासकर कैमरे से नाराजगी होगी, क्‍योंकि वह बिना वजह हिलता रहता है।

दिवंगत इरफान को पर्दे पर देखना सुकून देता है। शेखर शर्मा उर्फ चांद के किरदार में वह जंचते हैं। अपने अंदाज में वन-लाइनर्स मारते हैं। फिल्‍म में इरफान दीपल शॉ के साथ रोमांस करते नजर आए हैं। यह भी थोड़ा अजीब लगता है। कई बार तो ऐसा लगता है कि दीपल के किरदार को लिखते वक्‍त न जाने राइटर्स के दिमाग में क्‍या चल रहा था, क्‍योंकि उनकी ऐक्‍ट‍िंग से ज्‍यादा उनके कैरेक्‍टर में खामियां हैं। पहले ही सीन से रणवीर शौरी अपील नहीं कर पाते हैं। लकी अली को देखकर न तो आपको पुलिसवाले जैसा एहसास होगा और न ही वो आपको फनी लगते हैं।

सिनेमेटोग्राफर रव‍ि वालिया ने थाईलैंड के कुछ बहुत खूबसूरत लोकेशंस को कैप्‍चर किया है। फिल्‍म का संगीता ऐसा है, जो आपको दो घंटे बाद भी याद नहीं रहता। हालांकि, समंदर किनारे फिल्‍माया गया ड्रीम सीक्‍वेंस देखने लायक है। 126 मिनट की इस फिल्‍म में एक अच्‍छी बात यह है कि ये बेवजह ख‍िंचती नहीं है। क्‍लाइमेक्‍स भी बहुत ज्‍यादा आकर्षक और मनोरंजक नहीं है। कहने वाले यह कह सकते हैं कि फिल्‍म बहुत पहले बनी थी और तब से अब की टेक्‍नोलॉजी में बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन फिर भी यह फिल्‍म तब की फिल्‍मों की तुलना में भी पिछड़ती है।

कुल मिलाकर, ‘मर्डर एट तीसरी मंजिल 302’ आपको इरफान की यादों में गोते लगाने को मजबूर करती है। लेकिन यह ऐसी फिल्‍म नहीं है, जिसे आप याद रखना चाहेंगे। ऐसे में यदि आप सच में इरफान को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो उनकी कुछ अच्‍छी फिल्‍में देख‍िए। आप ‘द लंचबॉक्‍स’ देख सकते हैं। ‘पीकू’ देख सकते हैं। ‘पान सिंह तोमर’ या ‘मकबूल’ जैसी फिल्‍म भी आपकी वॉचलिस्‍ट में होनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि यह नई रिलीज इनमें से किसी को भी दूर-दूर से भी नहीं छू पाती है।



Source link