मूवी रिव्‍यू: अनूठी कहानी पर साधारण सी, लेकिन मनोरंजक फिल्‍म है ‘ट्रायल पीरियड’

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मूवी रिव्‍यू: अनूठी कहानी पर साधारण सी, लेकिन मनोरंजक फिल्‍म है ‘ट्रायल पीरियड’

मूवी रिव्‍यू: अनूठी कहानी पर साधारण सी, लेकिन मनोरंजक फिल्‍म है ‘ट्रायल पीरियड’

‘ट्रायल पीरियड’ की कहानी

कहानी में एक अकेली मां है। उसका एक बेटा है, जिसे ‘नए पापा’ चाहिए। तलाश शुरू होती है। उज्जैन का एक दयालु आदमी है, जो नौकरी की तलाश में है। वह ‘ट्रायल पीरियड’ पर बच्‍चे का पिता बनने के लिए तैयार हो जाता है। अब कहानी में एक सुंदर और अपरंपरागत परिवार आकार लेता है। लेकिन दोनों अलग-अलग बैकग्राउंड से हैं और इसलिए टकराव भी शुरू होता है। लेकिन क्या यह सब बस ‘ट्रायल पीरियड’ तक के लिए है? या रिश्‍तों की यह अनोखी बानगी कोई और मोड़ लेगी? जिनिलिया डिसूजा और मानव कौल की फिल्‍म इसी के इर्द-गिर्द बुनी गई है।

दिल्ली की एक सिंगल मदर अपने बेटे के लिए किराये का पिता ढूंढ़ रही है। वह ऑड‍िशन ले रही है। यकीनन यह एक अलग हटके और दूर की सोच है। लेकिन एना रॉय चौधरी (जेनेलिया डिसूजा) दिल्‍ली की शहरी सोच वाली लड़की है। उसका सामना उज्जैन के एक देसी, हिंदी बोलने वाले, इतिहास के शिक्षक, प्रजापति द्विवेदी उर्फ पीडी (मानव कौल) से हाता है। जाहिर है इस कहानी से आगे क्‍या उम्मीद की जानी चाहिए, यह बात समझ में आ जाती है। एना ने यह अनूठी व्यवस्था अपने 6 साल के बेटे रोमी (जिदान ब्रेज) को खुश करने के लिए किया है। जिदान स्कूल में दाखिला लेना चाहता है और सभी बच्चों की तरह उसे भी एक सुपरहीरो पिता चाहिए। इस छोटे बच्चे की चाहत का पड़ोसी टिम्मी शर्मा (शक्ति कपूर) और उसकी पत्नी (शीबा चड्ढा) सपोर्ट करते हैं। टिम्मी टेलीशॉपिंग का आदी है और एक विज्ञापन देखने के दौरान रोमी को यह आइडिया मिलता है कि वो ट्रायल पीरियड पर अपने लिए पापा ऑर्डर कर सकता है। यानी अगर वह उसे बाद में पसंद नहीं करे तो वापस किया जा सकता है। कई पुरुषों के ऑडिशन के बाद नौकरी के लिए तरस रहा पीडी बेमन से ही सही, इस काम के लिए तैयार हो जाता है।

‘ट्रायल पीरियड’ का ट्रेलर

‘ट्रायल पीरियड’ मूवी रिव्‍यू

‘ट्रायल पीरियड’ की कहानी इस बारे में भी है कि कैसे मिलनसार स्‍वभाव का पीडी, 6 साल के रोमी को अपने हक के लिए खड़े होने की सीख देता है। कहानी एक अलग हटके परिवार की है। एना और पीडी चली आ रही परंपराओं के समीकरण के अलग कुछ नया कर रहे हैं। लेकिन क्या सुपरहीरो होना सिर्फ शारीरिक रूप से मजबूत होना है? फिल्‍म यह भी दिखाती है कि सिंगल मदर्स के लिए अक्सर बच्चे को पालने और समाज से वैलिडेशन पाने में कितनी मशक्‍कत करनी पड़ती है।

अलेया सेन शर्मा के डायरेक्‍शन में बनी यह फिल्‍म प्रेडिक्‍टेबल है। इसे देखते हुए आप यह आसानी से अनुमान लगा लेते हैं कि आगे क्‍या होने वाला है। करीब 2 घंटे और 5 मिनट के रनटाइम में स्‍क्रीनप्‍ले समय-समय पर स्‍लो लगती है। हालांकि, राइटर और डायरेक्‍टर के तौर पर अलेया ने एक दिल छू लेने वाली और मनोरंजक कहानी तैयार की है। इस कारण उनकी सराहना होनी चाहिए। फिल्‍म में किरदारों को जिस तरह पॉजिटिव तरीके से पेश किया गया है, वह भी तारीफ के काबिल है।

मानव कौल ने ग्रामीण परिवेश वाले, सीधे-सादे इंसान के तौर पर शानदार परफॉर्मेंस दी है। एक शहरी और सोफिस्‍ट‍िकेटेड सिंगल मदर के रोल में जिनिलिया डिसूजा का काम भी बेहतरीन है। इन दोनों ही लीड एक्‍टर्स की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री सहज लगती है। चाइल्‍ड आर्टिस्‍ट के तौर पर जिदान ब्रेज ने अपना किरदार बखूबी निभाया है। खासकर पीडी के साथ उनके बनते रिश्‍ते के सीन्‍स, स्कूल के गुंडों का डटकर मुकाबला करने के सीन बढ़‍िया लगते हैं। शक्ति कपूर, शीबा चड्ढा, पीडी के चाचा के रोल में गजराज राव, एना की प्यारी लेकिन सख्त मां के रोल में स्वरूपा घोष और बरुण चंदा भी अपनी-अपनी भूमिका में अच्‍छे लगते हैं।

अनुपम रॉय के बैकग्राउंड स्कोर का जिक्र भी करना होगा, क्‍योंकि वह कहानी में जान डालते हैं। खासकर क्‍लासिकल इंडियन स्‍टाइल वाले हिस्‍सों में वह छाप छोड़ते हैं। गाने ऐसे हैं, जो याद रह जाते हैं। अर्को का गर्मजोशी से भरा और रोमांटिक गाना ‘धीरे-धीरे’ और कौशिक-गुड्डू का बंगाली लोक गीत ‘गोले माले’ एंटरटेनिंग हैं।

क्‍यों देखें- ‘ट्रायल पीरियड’ एक पारिवारिक मनोरंजक फिल्म है, जिसमें हल्की-फुल्की कॉमेडी है, कुछ इमोशनल कर देने वाले सीन हैं, खासकर किरदारों के बीच की केमिस्‍ट्री अच्‍छी लगती है। कुल मिलाकर इसे एक बार तो जरूर देखा जा सकता है।