मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: जरूरी है कि हम युद्ध से हुए रणनीतिक लाभ को न गंवाएं h3>
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3 घंटे पहले
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मिन्हाज मर्चेंट लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
- स्पीक-अप – युद्धों से नुकसान हो ही ये आवश्यक नहीं
क्या पाकिस्तान के साथ युद्ध भारत की आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकता था? कई लोगों का यही मानना है। वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के उभरने की सम्भावना हर किसी को पसंद नहीं है। जब भारत ने पाक के प्रमुख सैन्य ढांचे नष्ट कर दिए, तब पाकिस्तान ने संघर्ष-विराम की अपील की।
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भारत में भी आवाजें उठने लगीं कि पाकिस्तान के साथ युद्ध भारत की आर्थिक प्रगति को रोक सकता है। अपने तर्क को मजबूत करने के लिए पश्चिमी अखबारों का सहारा लिया गया। जबकि युद्ध का दूसरा पहलू यह है कि यह अर्थव्यवस्था को बढ़ावा भी देता है।
दूसरे विश्व युद्ध की वजह से अमेरिका 1929-1939 तक चली महामंदी से उबरा था। जब 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो अमेरिकी कारखानों ने न केवल हथियार, लड़ाकू जेट और युद्धपोत बनाने शुरू किए, बल्कि सैनिकों के लिए लाखों वर्दियां भी बनाईं। लॉकहीड मार्टिन, जनरल डायनेमिक्स और रेथियॉन जैसी रक्षा फर्मों की स्थापना के साथ ही यूएस मिलिट्री-इंडस्ट्रीयल कॉम्प्लेक्स (एमआईसी) की शुरुआत हुई। 1940 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उछाल आया।
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तब से, ऐसा कोई दशक नहीं बीता जब अमेरिका किसी युद्ध में शामिल न रहा हो : 1950 के दशक में कोरिया, 1960 के दशक में वियतनाम, 1970 के दशक में मध्य-पूर्व, 1980 के दशक में ईरान, 1990 के दशक में पूर्वी यूरोप, 2000 के दशक में इराक, 2010 के दशक में अफगानिस्तान और 2020 के दशक में गाजा। अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था को युद्ध के बल पर ही खड़ा किया है।
इसके उलट, भारत का कभी ऐसा इरादा नहीं रहा। पिछले हफ्ते पाकिस्तान से हुए संघर्ष में भारत ने रणनीतिक बदलाव किया। वर्ष 1971 के बाद पहली बार भारत ने घातक हथियारों से पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमला किया।उरी हमले के बाद भारतीय विशेष बलों ने नियंत्रण रेखा के नजदीक आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तानी इलाके में प्रवेश किया था। यह एक सीमित कार्रवाई थी। पाकिस्तान ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
पुलवामा हमले के बाद भारत बालाकोट पर हवाई हमला करके पाकिस्तान में और अंदर तक गया था। तब भारत के पास राफेल 4.5 जनरेशन का फाइटर प्लेन नहीं था। तब हम मिराज 2000 पर निर्भर थे, जिसे अपनी मिसाइलों को लॉन्च करने के लिए पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से उड़ान भरनी थी। भारत ने पाकिस्तानी गोलाबारी में एक विमान खोया था। लेकिन पिछले हफ्ते के सैन्य अभियान के दौरान भारतीय वायुसीमा में रहते हुए राफेल लड़ाकू विमान से घातक स्कैल्प मिसाइलें दागी गईं।
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स्कैल्प की मारक क्षमता 400 किलोमीटर है और यह भारत से पाकिस्तान में किसी भी लक्ष्य को भेद सकती है। संघर्ष के पहले दिन स्कैल्प मिसाइलों ने 9 आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया, जिसमें 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। इनमें भारत पर कई हमलों में शामिल मोस्ट-वांटेड भी शामिल थे, जैसे अबू जुंदाल और मोहम्मद यूसुफ अजहर। जब पाकिस्तानी अधिकारी आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए तो यह सच उजागर हो गया कि आतंकवादी पाकिस्तानी सेना का ही अंग हैं।
युद्ध हमेशा से ही भारत के लिए अंतिम विकल्प रहा है, जबकि अमेरिका या ब्रिटेन के लिए यह ऐतिहासिक रूप से पहला विकल्प रहा है। युद्ध की कीमत चुकानी ही होती है, फिर वह भौतिक नुकसान हो, या मानवीय क्षति।
रूस-यूक्रेन के बीच चार साल से चल रहे युद्ध ने हजारों जानें ली हैं, लेकिन इसने भारी प्रतिबंध झेल रही रूसी अर्थव्यवस्था को बढ़ने में मदद भी की है। युद्ध-अर्थव्यवस्था मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देती है। रूस ने भी प्रतिबंधों को धता बताते हुए तेजी से विकास किया।युद्ध हो या शांति, भारत की आर्थिक उन्नति को धीमा करने में पश्चिम और चीन का निहित स्वार्थ है।
चीन भारत के साथ व्यापार करना चाहता है और भारत के बढ़ते उपभोक्ता-बाजार में निवेश करना चाहता है। लेकिन उभरता भारत, बीजिंग के लिए भू-रणनीतिक खतरा है। पश्चिमी देशों का एजेंडा बहुत सूक्ष्म है। वे भारत की भू-राजनीतिक उन्नति से चिंतित जरूर हैं, लेकिन उन्हें चीन के मुकाबले भारत की जरूरत ज्यादा है।
हालांकि, अमेरिका यह बिल्कुल नहीं चाहता कि भारत अगला चीन बन जाए। ऐसे में भारत को सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान से संघर्ष में उसे जो रणनीतिक लाभ हुआ है, वह व्यर्थ न जाए। इस्लामाबाद अब अच्छी तरह से जानता है कि भविष्य में युद्ध की उसे कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी।
- पश्चिमी देशों का एजेंडा बहुत सूक्ष्म है। वे भारत की भू-राजनीतिक उन्नति से चिंतित जरूर हैं, लेकिन उन्हें चीन के मुकाबले भारत की जरूरत ज्यादा है। हालांकि, अमेरिका यह बिल्कुल नहीं चाहता कि भारत अगला चीन बन जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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क्या पाकिस्तान के साथ युद्ध भारत की आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकता था? कई लोगों का यही मानना है। वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के उभरने की सम्भावना हर किसी को पसंद नहीं है। जब भारत ने पाक के प्रमुख सैन्य ढांचे नष्ट कर दिए, तब पाकिस्तान ने संघर्ष-विराम की अपील की।
भारत में भी आवाजें उठने लगीं कि पाकिस्तान के साथ युद्ध भारत की आर्थिक प्रगति को रोक सकता है। अपने तर्क को मजबूत करने के लिए पश्चिमी अखबारों का सहारा लिया गया। जबकि युद्ध का दूसरा पहलू यह है कि यह अर्थव्यवस्था को बढ़ावा भी देता है।
दूसरे विश्व युद्ध की वजह से अमेरिका 1929-1939 तक चली महामंदी से उबरा था। जब 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो अमेरिकी कारखानों ने न केवल हथियार, लड़ाकू जेट और युद्धपोत बनाने शुरू किए, बल्कि सैनिकों के लिए लाखों वर्दियां भी बनाईं। लॉकहीड मार्टिन, जनरल डायनेमिक्स और रेथियॉन जैसी रक्षा फर्मों की स्थापना के साथ ही यूएस मिलिट्री-इंडस्ट्रीयल कॉम्प्लेक्स (एमआईसी) की शुरुआत हुई। 1940 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उछाल आया।
तब से, ऐसा कोई दशक नहीं बीता जब अमेरिका किसी युद्ध में शामिल न रहा हो : 1950 के दशक में कोरिया, 1960 के दशक में वियतनाम, 1970 के दशक में मध्य-पूर्व, 1980 के दशक में ईरान, 1990 के दशक में पूर्वी यूरोप, 2000 के दशक में इराक, 2010 के दशक में अफगानिस्तान और 2020 के दशक में गाजा। अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था को युद्ध के बल पर ही खड़ा किया है।
इसके उलट, भारत का कभी ऐसा इरादा नहीं रहा। पिछले हफ्ते पाकिस्तान से हुए संघर्ष में भारत ने रणनीतिक बदलाव किया। वर्ष 1971 के बाद पहली बार भारत ने घातक हथियारों से पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमला किया।उरी हमले के बाद भारतीय विशेष बलों ने नियंत्रण रेखा के नजदीक आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तानी इलाके में प्रवेश किया था। यह एक सीमित कार्रवाई थी। पाकिस्तान ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
पुलवामा हमले के बाद भारत बालाकोट पर हवाई हमला करके पाकिस्तान में और अंदर तक गया था। तब भारत के पास राफेल 4.5 जनरेशन का फाइटर प्लेन नहीं था। तब हम मिराज 2000 पर निर्भर थे, जिसे अपनी मिसाइलों को लॉन्च करने के लिए पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से उड़ान भरनी थी। भारत ने पाकिस्तानी गोलाबारी में एक विमान खोया था। लेकिन पिछले हफ्ते के सैन्य अभियान के दौरान भारतीय वायुसीमा में रहते हुए राफेल लड़ाकू विमान से घातक स्कैल्प मिसाइलें दागी गईं।
स्कैल्प की मारक क्षमता 400 किलोमीटर है और यह भारत से पाकिस्तान में किसी भी लक्ष्य को भेद सकती है। संघर्ष के पहले दिन स्कैल्प मिसाइलों ने 9 आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया, जिसमें 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। इनमें भारत पर कई हमलों में शामिल मोस्ट-वांटेड भी शामिल थे, जैसे अबू जुंदाल और मोहम्मद यूसुफ अजहर। जब पाकिस्तानी अधिकारी आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए तो यह सच उजागर हो गया कि आतंकवादी पाकिस्तानी सेना का ही अंग हैं।
युद्ध हमेशा से ही भारत के लिए अंतिम विकल्प रहा है, जबकि अमेरिका या ब्रिटेन के लिए यह ऐतिहासिक रूप से पहला विकल्प रहा है। युद्ध की कीमत चुकानी ही होती है, फिर वह भौतिक नुकसान हो, या मानवीय क्षति।
रूस-यूक्रेन के बीच चार साल से चल रहे युद्ध ने हजारों जानें ली हैं, लेकिन इसने भारी प्रतिबंध झेल रही रूसी अर्थव्यवस्था को बढ़ने में मदद भी की है। युद्ध-अर्थव्यवस्था मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देती है। रूस ने भी प्रतिबंधों को धता बताते हुए तेजी से विकास किया।युद्ध हो या शांति, भारत की आर्थिक उन्नति को धीमा करने में पश्चिम और चीन का निहित स्वार्थ है।
चीन भारत के साथ व्यापार करना चाहता है और भारत के बढ़ते उपभोक्ता-बाजार में निवेश करना चाहता है। लेकिन उभरता भारत, बीजिंग के लिए भू-रणनीतिक खतरा है। पश्चिमी देशों का एजेंडा बहुत सूक्ष्म है। वे भारत की भू-राजनीतिक उन्नति से चिंतित जरूर हैं, लेकिन उन्हें चीन के मुकाबले भारत की जरूरत ज्यादा है।
हालांकि, अमेरिका यह बिल्कुल नहीं चाहता कि भारत अगला चीन बन जाए। ऐसे में भारत को सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान से संघर्ष में उसे जो रणनीतिक लाभ हुआ है, वह व्यर्थ न जाए। इस्लामाबाद अब अच्छी तरह से जानता है कि भविष्य में युद्ध की उसे कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी।
- पश्चिमी देशों का एजेंडा बहुत सूक्ष्म है। वे भारत की भू-राजनीतिक उन्नति से चिंतित जरूर हैं, लेकिन उन्हें चीन के मुकाबले भारत की जरूरत ज्यादा है। हालांकि, अमेरिका यह बिल्कुल नहीं चाहता कि भारत अगला चीन बन जाए।
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