मारना था बहन का बच्चा, मार दिया अपना बेटा: बहन-जीजा ने जेल से छुड़ाया उन्हें मारा, उनकी बेटी भी नहीं छोड़ी, नागपुर फैमिली मर्डर पार्ट-3

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मारना था बहन का बच्चा, मार दिया अपना बेटा:  बहन-जीजा ने जेल से छुड़ाया उन्हें मारा, उनकी बेटी भी नहीं छोड़ी, नागपुर फैमिली मर्डर पार्ट-3
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मारना था बहन का बच्चा, मार दिया अपना बेटा: बहन-जीजा ने जेल से छुड़ाया उन्हें मारा, उनकी बेटी भी नहीं छोड़ी, नागपुर फैमिली मर्डर पार्ट-3

30 मई 2014, सुबह 5 बजे, नागपुर के नवरगांव में धनराज खेत में शौच के लिए गया। अचानक उसे राख हो चुकी धान की पुआल में कुछ चमकती चीज दिखी। पास जाकर टॉर्च जलाई तो इंसानी खोपड़ी, जले हाथ में फंसा कड़ा और हड्डियां दिखीं।

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धनराज चीखता हुआ भागा- ‘मेरे खेत में लाश मिली है। कोई पुलिस बुलाओ।’ दो घंटे बाद एडिशनल पुलिस इंस्पेक्टर अरुण गुरमुले मौके पर पहुंच गए। उन्हें राख में हड्डियों के साथ चांदी के गहने, मंगलसूत्र और कड़ा मिला। गुरमुले को याद आया- ‘कुछ दिन पहले गीता कावले ने बेटी सविता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसी गांव में उसकी ससुराल भी है। कहीं ये लाश उसी की तो नहीं है।’

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DNA रिपोर्ट से साबित हुआ कि लाश सविता की ही थी। शक उसके पति विवेक पर था। कुछ ही दिनों में पुलिस ने विवेक को दबोच लिया। पुलिस की सख्ती के बाद विवेक टूट गया। कहने लगा- ‘उसका कई लोगों के साथ चक्कर था। मैंने खाट का पाया उखाड़ा और उसके सिर पर दे मारा। लाश को घसीटकर खेत ले गया और धान की पुआल में डालकर जला दिया।’

2015 में नागपुर सेशन कोर्ट ने विवेक को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन 2017 आते-आते ज्यादातर गवाह मुकर गए और वो बरी हो गया। विवेक को बचाने में उसके जीजा कमलाकर ने बहुत मदद की थी।

एक साल बाद यानी 10 जून 2018 की रात, विवेक गुस्से से तमतमाता हुआ अपने जीजा कमलाकर के घर पहुंचा। बहन अर्चना, जीजा कमलाकर, उसकी मां मीराबाई और भांजियों से मिला। उसके दोनों बच्चे कृष्णा और कात्यायनी भी यहीं रहते थे। काफी देर तक विवेक बच्चों के साथ खेलता रहा। फिर सभी खाना खाकर सो गए।

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रात करीब 1 बजे विवेक दबे पांव उठा और दरवाजा खोलकर बाहर चला गया। वापस कमरे में आया तो उसके हाथ में लोहे की एक भारी-भरकम रॉड थी। वह जीजा कमलाकर के पास गया और रॉड उठाकर उसके सिर पर दे मारा। खून के छींटे अर्चना पर पड़े तो वो भी उठ गई। विवेक ने उसके सिर पर भी रॉड दे मारी। तभी भांजी वेदांती आ गई। विवेक ने उसे भी मार डाला।

अब वो कमरे में गया और बेड पर सो रहे बच्चों के ऊपर भी दनादन रॉड से वार करने लगा। बच्चों की चीखें सुनकर कमलाकर की मां मीराबाई आ गई। विवेक ने मीराबाई का भी सिर कुचल दिया। सबको मारकर विवेक वहां से भाग गया। तब तक तीन बज चुके थे। घर में दो बच्चियां, मिताली और कात्यायनी जिंदा बच गईं।

इंस्पेक्टर मुकुल सलुंके को इस केस का जिम्मा मिला। वे विवेक को पकड़ने के लिए अलग-अलग जगहों पर छापे मारने लगे। एक रोज वे विवेक के किराए वाले कमरे में पहुंचे। वहां खून से सने कपड़े और एक पोस्टर मिला। जिसमें लिखा था- ‘मन ईश्वर है। सविता मेली, कमलाकर मेला, आज पांड्या मेला…’

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दैनिक NEWS4SOCIALकी सीरीज ‘मृत्युदंड’ में नागपुर फैमिली मर्डर केस के पार्ट-1 और पार्ट-2 में इतनी कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-3 में आगे की कहानी…

15 जून 2018, इंस्पेक्टर सलुंके ने कातिल विवेक को ढूंढने के लिए 8 टीमें बनाईं। सबको बुलाकर कहा- ‘जल्द से जल्द विवेक को दबोचो। उसका मोबाइल सर्विलांस पर डालो। और हां उसकी पत्नी की हत्या का क्या मामला था, उसकी भी फाइल निकालो।’

सलुंके को बताया गया कि विवेक के खिलाफ अरोली पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज हुआ था। वे फौरन अरोली पुलिस स्टेशन पहुंचे और केस की फाइल निकाली। फाइल पलटते ही उनके चेहरे का भाव बदल गया। फाइल में भारी भरकम लोहे की एक रॉड का जिक्र था। इंस्पेक्टर सलुंके ने कॉन्स्टेबल से कहा- ‘नागपुर की एक-एक दुकान छान मारो। पता करो विवेक ने रॉड कहां से खरीदी।’

अगले दिन पता चला कि इस तरह का रॉड जुना बस स्टैंड के आसपास मिलता है। इंस्पेक्टर सलुंके जुना बस स्टैंड में उस दुकानदार के पास पहुंचे जहां लोहे की रॉड मिलती है। इंस्पेक्टर ने एक दुकानदार को विवेक की फोटो दिखाते हुए पूछा- ‘इसे पहचानते हो। यहीं से लोहे की रॉड लेकर गया था न।’

दुकानदार पसीना-पसीना हो गया, हकलाते हुए बोला- ‘हां साहब, कुछ महीने पहले रॉड लेकर गया था यहां से… लेकिन हुआ क्या है।’

इंस्पेक्टर ने कड़क आवाज में कहा- ‘मर्डर हुआ है इस रॉड से, जल्दी इसका बिल ढूंढकर दो मुझे।’

दुकानदार बिल बुक के पन्ने पलटने लगा। मार्च महीने की एक रसीद मिली, जिसमें विवेक पालटकर नाम लिखा हुआ था। पुलिस उसका रिकॉर्ड लेकर वापस नंदनवन थाने आ गई।

दुकानदार ने इंस्पेक्टर सलुंके को उस लोहे की रॉड का बिल दिखाया, जिससे विवेक ने कत्ल किया था। स्केच: संदीप पाल

इंस्पेक्टर सलुंके ने एडिशनल पुलिस इंस्पेक्टर चौंगले को फोन मिलाया। चौंगले क्राइम ब्रांच में पोस्टेड थे। वह भी इस केस की जांच कर रहे थे। सलुंके ने चौंगले से कहा- ‘एक हफ्ते से ज्यादा वक्त बीत चुका है, अभी तक विवेक का कोई अता-पता नहीं है। लगातार उसका फोन ट्रैक करो।’

19 जून 2018 चौंगले के पास एक मैसेज फ्लैश हुआ। जिसमें विवेक की मोबाइल लोकेशन लुधियाना थी। चौंगले एक टीम लेकर लुधियाना के लिए निकल गए। वहां विवेक के मोबाइल की लोकेशन थी- शांति नगर, गली नंबर-2, गसपुरा।

पुलिस ने उस घर को चारों तरफ से घेर लिया। चौंगले ने दरवाजा खटखटाया, 35-36 साल का एक आदमी बाहर आया। चौंगले मन ही मन सोचने लगे- ‘यह विवेक तो नहीं है। फिर कौन है?’

‘क्या नाम है तुम्हारा?’, चौंगले ने कड़क आवाज में पूछा।

‘जी, टाटा सिंह ठाकुर।’, आदमी ने जवाब दिया।

चौंगले ने विवेक की फोटो दिखाते हुए पूछा- ‘इसे पहचानते हो।’

टाटा सिंह सकपका गया। चौंगले बोले- ‘सच-सच बताओ। विवेक को कहां छुपा रखा है? उसके मोबाइल का लोकेशन यहीं का है।’

‘साहब… इस आदमी ने तीन दिन पहले ही मुझे 700 रुपए में मोबाइल बेचा है। वो यहीं पास में ही रहता है, मैं आपको उसके घर ले चलता हूं।’, डरते हुए टाटा सिंह बोला।

पुलिस लोकेशन पर पहुंची तो पता चला विवेक ने अपना मोबाइल टाटा सिंह को 700 रुपए में बेच दिया था। स्केच: संदीप पाल

तब तक लुधियाना के लोकल क्राइम ब्रांच ऑफिसर संजीव कुमार धर्मपाल भी वहीं पहुंच गए। पुलिस टाटा सिंह को लेकर विवेक को ढूंढने निकल पड़ी। कुछ दूर जाकर टाटा सिंह ने एक घर की तरफ इशारा करते हुए कहा- ‘साहब, वो अजीत सिंह चवल का घर है, विवेक वहीं रहता है।’

पुलिस ने फौरन उस मकान को घेर लिया। चौंगले और संजीव कुमार गए तो देखा कि विवेक आराम से बैठा हुआ था। पुलिस को देखते ही हड़बड़ाकर खड़ा हो गया। चौंगले ने विवेक का कॉलर पकड़ा और गाली देते हुए बोले- ‘#%@&% 10 दिन से हमारी नाक में दम कर रखा है। तुझे ढूंढने के लिए दिन-रात एक करने पड़े। चल अब नागपुर।’

22 जून 2018 को पुलिस विवेक को लेकर पहले लुधियाना के सहनेवाल पुलिस स्टेशन पहुंची। फिर उसे महाराष्ट्र पुलिस को हैंडओवर किया गया। फ्लाइट से विवेक को नागपुर लाया गया।

थाने पहुंचते ही इंस्पेक्टर सलुंके ने सख्ती दिखाते हुए विवेक से पूछताछ शुरू की। विवेक बोला- ‘देखो साहब, मैंने ही उन पांच लोगों का मर्डर किया है। जो पूछोगे सब बताऊंगा, बस मारना नहीं।’

इंस्पेक्टर सलुंके ने पूछा- ‘लुधियाना कैसे पहुंचे?’

डरावनी हंसी में विवेक बोला- ‘10 जून की रात मैंने बहन-जीजा, भांजी समेत पांच लोगों का मर्डर किया, फिर अपने किराए के कमरे पर गया। कपड़ों में खून लग गया था, इसलिए सबसे पहले कपड़े बदले। हाथ-मुंह धोया। फिर जिस पोस्टर पर इन सभी के नाम लिखकर रखे थे उसे काटा। खून से सने कपड़े एक बैग में भरकर किनारे रख दिए, फिर लुधियाना जाने के लिए ट्रेन में बैठ गया।’

‘लुधियाना क्यों गए?’, इंस्पेक्टर सलुंके ने फिर पूछा।

‘पहले भी दो-तीन बार काम करने के लिए लुधियाना जा चुका था। यहां रहता तो पुलिस पकड़ लेती। इसलिए लुधियाना चला गया। मोबाइल चालू न हुआ होता तो आप लोग पकड़ नहीं पाते मुझे।’

विवेक का जवाब सुनते ही इंस्पेक्टर सलुंके गुस्से में तमतमा गए, उसकी गर्दन पकड़ते हुए बोले-‘जमीन के भीतर भी चला जाता तो खोदकर निकाल लेते।’

‘अपनी सगी बहन के पूरे परिवार को क्यों मारा’, सलुंके ने गुस्से में पूछा।

विवेक हंसते हुए बोला- ‘पत्नी की हत्या के मामले में सेशन कोर्ट ने मुझे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तब मैंने जीजा कमलाकर पावनकर से मदद मांगी थी, उन्होंने कहा कि बरी करवा देंगे। फिर जीजा ने एक महंगे वकील से हाईकोर्ट में मेरी पैरवी करवाई। उसकी फीस बहुत ज्यादा थी, वो भी जीजा ने ही भरी। आखिर हाईकोर्ट ने मुझे बरी कर दिया। जब जेल से बाहर आया, तो जीजा पैसे मांगने लगा। आए दिन कहता था कि वकील की फीस और बाकी सब में जो पैसे खर्च हुए हुए वो वापस चाहिए। मैंने कहा पैसे नहीं हैं तो तीन एकड़ जमीन मांगने लगे।

पत्नी की मौत के बाद दोनों बच्चे, कात्यायनी और कृष्णा भी उन्हीं लोगों के साथ रहते थे। इसलिए जीजा बच्चों के मेंटेनेंस के लिए पांच हजार रुपए मांगते। जब मैंने कहा कि अपने बच्चों को साथ ले जाता हूं, तो दीदी कहती थी कि घर में कोई औरत नहीं है, बच्चे कौन संभालेगा। जब दोनों बच्चे बड़े हो जाएंगे, तब ही मेरे साथ भेजेंगे।’

तो तूने पूरे परिवार को मार दिया? इंस्पेक्टर ने फिर पूछा

विवेक गुस्से में बोला- ‘मैं केवल अपने जीजा कमलाकर को मारना चाहता था। बाजार से लोहे की रॉड भी खरीदकर लाया था, लेकिन वह हाथ ही नहीं लग रहा था। आखिर मैंने पूरे परिवार को खत्म करने का प्लान बनाया।’

भौंहे सिकोड़ते हुए इंस्पेक्टर सलुंके ने पूछा- ‘अपने चार साल के बेटे कृष्णा को क्यों मारा?’

‘अपने बच्चे को कौन मारता है? वो तो पूरे कमरे में अंधेरा था। मुझे लगा था कि भांजी मिताली सो रही है, लेकिन मैंने अपने ही बच्चे को मार दिया।’, विवेक सिर झुकाए बोला।

थाने में विवेक से पूछताछ करते इंस्पेक्टर मुकुल सलुंके। स्केच: संदीप पाल

इंस्पेक्टर सलुंके ने 18 सितंबर 2018 को विवेक के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट पेश की। कमलाकर परिवार का केस दो वकील लड़ रहे थे। एक सरकारी वकील अभय जिरख और दूसरे एडवोकेट मोहम्मद अतीक। दोनों वकीलों ने कोर्ट में दलील दी, ‘विवेक हमेशा से खूनी रहा है। इसने पहले अपनी पत्नी को मारकर जला दिया था। सेशन कोर्ट ने इसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तब जीजा कमलाकर पावनकर ने ही इसकी मदद की था। जेल से बाहर आया तो इसने अपने जीजा और उसके परिवार को ही मार डाला।अपनी बहन को भी नहीं छोड़ा। इससे बड़ी क्रूरता क्या हो सकती है। इस केस में सबसे अहम गवाह मिताली और उसकी बेटी कात्यायनी है।’

अब विवेक के वकील आरपी धले खड़े हुए। बोले- ‘हुजूर, कमलाकर की बेटी मिताली 11 साल की थी। विवेक की बेटी कात्यायनी की उम्र 6-7 साल थी। इन बच्चों ने रात के अंधेरे में कैसे पहचान लिया कि मर्डर विवेक ने किया है। ये दोनों नाबालिग बच्चियां हैं। पुलिस ने इन दोनों का बयान भी घटना के तीन दिन बाद दर्ज किया है। बच्चों का क्या, जो उन्हें सिखाया, पढ़ाया गया, उन्होंने वही बयान दिया है।’

अभय जिरख ने उन्हें टोकते हुए कहा- ‘माइ लॉर्ड, बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते हैं। यदि ये बच्चे उस रात नहीं छिपे होते, तो ये भी उन्हीं लाशों के बीच होते। कोर्ट के सामने हमने 29 गवाह पेश किए हैं। कमलाकर पावनकर की पड़ोसी लता, संजय शेंद्रे और उनकी पत्नी पुष्पा शेंद्रे ने कोर्ट को बताया है कि उस रात उन्होंने विवेक को बहन अर्चना के घर जाते हुए देखा था। जब वह सुबह के 3 बजे मर्डर करने के बाद निकल रहा था, उस वक्त भी एक पड़ोसी अनिल कुमेरिया ने भी विवेक को खून से सने कपड़ों में भागते हुए देखा था।’

कील अभय जिरख आगे कहते हैं- ‘सबसे बड़ा सबूत तो विवेक की बाइक है जो मौका-ए-वारदात से बरामद हुई थी। गाड़ी का रजिस्ट्रेशन विवेक के नाम है। आखिरी बार कमलाकर के घर विवेक ही घुसा था। जिस किराए के कमरे में विवेक रहता था, उसके मालिक ने इस गाड़ी की पहचान की है। घर के भीतर से चाबी भी मिली है। लोहे की रॉड जिस दुकान से उसने खरीदा था, उस दुकानदार ने विवेक की पहचान की है।’

लुधियाना के जिस घर से विवेक की गिरफ्तारी हुई है, वहां से एक और पोस्टर मिला है। उस पर लिखा हुआ है- विवेक व कमलाकर मरण पावला, कमलाकर मरण पावला। यानी- विवेक ने कमलाकर को मारा कमलाकर मर गया। नागपुर में विवेक के किराए के कमरे में भी ऐसा ही एक पोस्टर मिला है।’

बचाव पक्ष के एडवोकेट धले में बीच में बोले-‘ये सारे आरोप आधारहीन हैं, इस बात का क्या सबूत है कि विवेक ने ही वो सब कुछ लिखा था।’

तब वकील अभय जिरख बोले- ‘अगर वो पोस्टर झूठ है तो क्या फोरेंसिक रिपोर्ट भी झूठी है, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि घटनास्थल से बरामद लाश के खून के सैंपल और विवेक के कमरे से मिले जींस-शर्ट पर लगे खून के धब्बे के सैंपल दोनों मैच कर रहे हैं। रॉड पर लगे खून से भी यह मैच हो रहा है। यानी विवेक ने ही इन पांचों को कत्ल किया है। यदि उसने यह अपराध नहीं किया, तो वह घटना के बाद से फरार क्यों था? बरी होकर आने के बाद इसके जीजा कमलाकर ने इसे गार्ड की नौकरी दिलाई। बरी कराने के लिए पैसे खर्च किए। चार साल से वह विवेक के दो बच्चों को पाल रहा था और इसने सबको मार दिया। ऐसे शैतान को फांसी की सजा से कम कुछ भी नहीं मिलना चाहिए।’

ये सुनते ही बचाव पक्ष में एडवोकेट धले बोले- ‘माइ लॉर्ड, अभी मेरे मुव्वकिल की उम्र 40 साल है। उसके आचरण में बदलाव की पूरी गुंजाइश है। उसका एक बच्चा है। एक बूढ़ी मां है। उसे कम-से-कम सजा दी जाए।’

नागपुर सेशन कोर्ट में ये मामला 4 साल 6 महीना और 28 दिन चला। दोनों पक्ष की दलील सुनने के बाद एडिशनल सेशन जज आरएस पवसकर ने 15 अप्रैल 2023 को इस मामले में विवेक पालटकर को दोषी करार दिया।

फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा- ‘बहन-बहनोई के पूरे परिवार को मारने के उद्देश्य से ही आरोपी विवेक उस रात लोहे की रॉड लेकर उनके घर गया था। उसने अपनी बहन के हाथ का खाना खाया। बच्चों के साथ खेला और फिर अपनी बहन-बहनोई का ही कत्ल कर दिया। कत्ल करने का तरीका वीभत्स है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में स्पष्ट है कि आरोपी ने लोहे की रॉड से बहन के सिर पर वार किया।

जो बहन अपने भाई के बच्चों को पाल रही थी, उसी को आरोपी ने मौत के घाट उतार दिया। विवेक के बच्चे कात्यायनी और कृष्णा अपनी बुआ के यहां रहते थे। वे इन्हें बड़ी मम्मी और बड़े पापा कहती थी। आरोपी पहले ही बच्चों की मां सविता का मर्डर कर चुका है। हाईकोर्ट से बरी होने के बाद उसने अपनी बहन का परिवार उजाड़ दिया। इस प्रवृत्ति के अपराधी पर रहम करना या कम सजा देना न्यायसंगत नहीं होगा।’

जज ने आगे कहा- ‘हमने आरोपी के आचरण को लेकर नागपुर सेंट्रल जेल की जेल सुपरिंटेंडेंट से रिपोर्ट मंगवाई है। आरोपी विवेक के खिलाफ जेल में FIR नंबर 200/2021 के तहत अटेम्प्ट टु मर्डर के मामले दर्ज हैं। आरोपी ने जेल में बंद राजू मोहनलाल वर्मा और आत्माराम पन्नालाल रॉय और प्रताप सिंह ठाकुर को जान से मारने की कोशिश की।

यदि आरोपी जेल में या जेल से बाहर जिंदा रहा, तो वह इस तरह की घटना को अंजाम देता रहेगा। वह हत्या करने की मानसिकता वाला अपराधी बन चुका है। ऐसे व्यक्ति का जिंदा रहना समाज के लिए घातक है। कमलाकर के परिवार का नरसंहार रेयरेस्ट ऑफ रेयर यानी विरल से विरलतम की श्रेणी में है। आरोपी विवेक पालटकर को मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है। कंफर्मेशन के लिए मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट भेजा जाता है।’

सेशन कोर्ट के जज ने विवेक को मृत्युदंड सुनाया। स्केच: संदीप पाल

18 दिसंबर 2023 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पूरे मामले की सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रखा। तीन महीने बाद 27 मार्च 2024 को अपने जजमेंट में कोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले पर मोहर लगा दी।

हाईकोर्ट ने कहा- ‘लास्ट सीन थ्योरी, घटनास्थल से औजार की बरामदगी, खून से सने कपड़ों के ब्लड सैंपल की मैचिंग, मोटर साइकिल की बरामदगी और वारदात को अंजाम देने का मोटिव, सब बचाव पक्ष के खिलाफ हैं। यह व्यक्ति हत्या करने की प्रवृत्ति का अपराधी है। इसलिए इसका जिंदा रहना समाज के लिए ठीक नहीं है।’

अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। पहले विवेक पालटकर नागपुर सेंट्रल जेल में बंद था। अभी वह पुणे के यरवदा जेल में सजायाफ्ता है।

मृत्युदंड’ सीरीज में अगले हफ्ते पढ़िए एक और सच्ची कहानी…

(नोट- यह सच्ची कहानी पुलिस चार्जशीट, कोर्ट जजमेंट, एडवोकेट मोहम्मद अतीक और अभय जिखर, रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर मुकुल सलुंके और कमलाकर पावनकर के भाई केशव पावनकर से बातचीत पर आधारित है। सीनियर रिपोर्टर नीरज झा ने क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा है।)

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नागपुर फैमिली मर्डर केस की पहली और दूसरी कड़ी पढ़िए

1. गांवभर से इश्क लड़ा रही है, आज बचेगी नहीं:खाट के पाए से पत्नी का सिर कुचला, घसीटकर लाश जला दी; नागपुर फैमिली किलर पार्ट-1

बात 30 मई 2014 की है। सुबह के 5 बज रहे थे। नागपुर के नवरगांव में धनराज भिवगड़े नाम का एक शख्स शौच के लिए खेत पहुंचा। अचानक उसे धान के पुआल के ढेर पर चमकती हुई कोई चीज दिखी। उसने पास जाकर टॉर्च जलाई। पुआल जलकर राख हो चुका था। पढ़िए पूरी कहानी… 2. दीदी-जीजा और भांजी का सिर कुचला:खाना खाकर बेटा जैसे ही सोया उसे भी मार डाला; नागपुर फैमिली किलर, पार्ट-2

30 मई 2014, सुबह के करीब 5 बज रहे थे। नागपुर के नवरगांव का धनराज खेत में शौच के लिए गया। ‘अरे ये क्या चमक रहा है?’ धनराज टॉर्च लेकर जैसे ही आगे बढ़ा, कांप उठा… राख हो चुके पुआल की ढेर में इंसानी खोपड़ी, हाथ में कड़ा फंसा हुआ। पढ़िए पूरी कहानी…

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