मम्मी-मम्मी चिल्ला रहे मासूम का कत्ल, लाश पर 42 जख्म: जज बोले- सजा-ए-मौत से ज्यादा कुछ होता तो वही देते; अंजनाबाई केस का पार्ट-3

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मम्मी-मम्मी चिल्ला रहे मासूम का कत्ल, लाश पर 42 जख्म:  जज बोले- सजा-ए-मौत से ज्यादा कुछ होता तो वही देते; अंजनाबाई केस का पार्ट-3
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मम्मी-मम्मी चिल्ला रहे मासूम का कत्ल, लाश पर 42 जख्म: जज बोले- सजा-ए-मौत से ज्यादा कुछ होता तो वही देते; अंजनाबाई केस का पार्ट-3

12 अप्रैल 1996 को कोल्हापुर के पल्लवी लॉज के कमरे में एक बच्ची ‘मम्मी… मम्मी…’ बिलख रही थी। रेणुका और सीमा नाम की दो बहनें और उनकी 60 बरस की मां अंजनाबाई भी वहीं थीं। सीमा बोली- ‘उषा थिएटर में दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे फिल्म लगी है, चलें?’

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यह सुनते ही बच्ची और तेज रोने लगी। अचानक अंजनाबाई ने बच्ची गला दबा दिया। फिर चादर में लपेटकर तीन-चार बार दीवार पर दे मारा। तीनों ने बच्ची की लाश एक बैग में भरी और फिल्म देखने पहुंच गईं। इंटरवल में सीमा ने यह बैग टॉयलेट में रख दिया।

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इससे करीब 8 महीने पहले इन्हीं तीनों ने कोल्हापुर के एक खेत में 9 साल की बच्ची की गला दबाकर मार डाला था। क्रांति नाम की यह बच्ची अंजनाबाई के पहले पति मोहन गावित की दूसरी पत्नी से जन्मी बेटी थी। रेणुका और सीमा बच्ची को बड़ी मम्मी यानी अंजनाबाई से मिलाने के नाम ले गई थीं। कई दिन तलाशने के बाद बच्ची के पिता मोहन ने तीनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी।

इससे पहले ये तीनों ने 1991 में कोल्हापुर में ही ढाई साल के एक बच्चे को लोहे की रेलिंग पर पटककर और 1994 में हडपसर में तीन साल की बच्ची को तीसरी मंजिल से फेंककर मार चुके थे।

अक्टूबर 1996 ने पुलिस ने तीनों मां-बेटियों को कोल्हापुर से पकड़ लिया। जांच कर रहे इंस्पेक्टर शशिकांत बोड़े ने महाराष्ट्र में 1990 से 1996 के बीच गायब बच्चों के बारे में पूछताछ की तो अंजनाबाई ने 13 से ज्यादा बच्चों का कत्ल की बात कबूल ली। इस बीच पुलिस जब उनके घर पहुंची तो ऐसा कुछ दिखा कि सभी की आंखें फटी रह गईं।

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दैनिक NEWS4SOCIALकी सीरीज ‘मृत्युदंड’ में अंजनाबाई केस के पार्ट-1 और पार्ट-2 में इतनी कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-3 में आगे की कहानी…

इंस्पेक्टर शशिकांत बोड़े ने अंजनाबाई के घर की तलाशी ली, तो अलमारी में गहने-जेवर और छोटे बच्चों के कई कपड़े मिले। ये कपड़े एक साल से लेकर 10 साल तक के बच्चों के थे। कुछ कपड़ों पर खून जैसे निशान थे। कमरे की दीवारों पर भी खून की तरह लाल धब्बे थे।

इंस्पेक्टर बोड़े ने पूछा- ‘ये किसके कपड़े हैं?’

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किरण- ‘बच्चों के?’

‘बच्चों के? दर्जनों कपड़े? दीवार पर, कपड़ों पर ये धब्बे कैसे लगे?’

किरण- ‘मुझे नहीं पता साहब।’

जोर से डांटते हुए इंस्पेक्टर बोड़े बोले- ‘सच बता दो, वर्ना हड्डियां तोड़ दूंगा।’

किरण ने कोई जवाब नहीं दिया।

इंस्पेक्टर बोड़े- ‘परदेसी.. इसे थाने लेकर चलो।’

थाने में इंस्पेक्टर बोड़े की सख्ती के बाद किरण टूट गया। बोल पड़ा- ‘साहब, वो कपड़े किडनैप किए हुए बच्चों के हैं। अंजनाबाई, रेणुका और सीमा तीनों मिलकर ये काम करती हैं।’

‘वो बच्चे कहां गए? खून जैसे धब्बे क्यों थे दीवारों पर?’ कड़क आवाज में इंस्पेक्टर बोड़े ने फिर पूछा।

किरण- ‘साहब… तीनों ने मिलकर सारे बच्चों को पटक-पटककर मार दिया। दीवारों पर उन्हीं के खून के निशान हैं।’

इंस्पेक्टर बोड़े ने महाराष्ट्र में 1990 से 1996 के बीच अलग-अलग थानों में दर्ज लापता या मार दिए गए बच्चों की लिस्ट निकाली। इसके बाद ये केस C.I.D ऑफिसर सुहाष नादगौड़ा को सौंप दिया गया।

C.I.D ने किरण को गायब हुए बच्चों की फोटो दिखाईं। उसने ज्यादातर बच्चों को पहचान लिया। कहने लगा- ‘साहब… ये तो ढाई साल के संतोष की फोटो है। अंजनाबाई और उसकी दोनों बेटियों ने इसे कोल्हापुर से किडनैप किया था। फिर कोल्हापुर बस स्टैंड पर उसे मारकर लाश विक्रम हाई स्कूल के पास ऑटो रिक्शे के नीचे रख दी थी।’

C.I.D ऑफिसर सुहाष नादगौड़ा ने किरण शिंदे को लापता और मारे गए बच्चों की फोटो दिखाई। स्केच: संदीप पाल

फिर कुछ और फोटो देखकर किरण बोला, ‘संतोष के बाद बंटी, गुड्डू, अंजली, भाग्यश्री, क्रांति, गौरी, पंकज और स्वप्निल को भी इन लोगों ने मार दिया। सभी छोटे बच्चे थे। कोई एक साल का, कोई दो साल का तो कोई 9 साल का। इन लोगों ने कुछ भीख मांगने वाले बच्चों को भी उठाया था, लेकिन उनको मारा नहीं।’

‘वो बच्चे कहां है अब?’

जवाब मिला- ‘सबको भीड़ वाली जगह पर छोड़ आए थे। अब वो बच्चे कहां हैं, मुझे नहीं पता।’

कोल्हापुर पुलिस ने सभी के खिलाफ IPC की धारा 302 यानी कत्ल करने, 365- अपहरण, 120 (बी)- आपराधिक साजिश रचने, 342- किसी को बंधक बनाए रखना, 344- किसी को 10 घंटे से ज्यादा समय तक बंधक बनाए रखना समेत कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। C.I.D ऑफिसर सुहाष नादगौड़ा ने 3 महीने के भीतर इन सभी के खिलाफ चार्जशीट फाइल कर दी।

चारों को उन जगहों पर ले जाया गया, जहां इन लोगों ने बच्चों को मार कर फेंका था। कुछ डेड बॉडीज के तो कपड़े भी अभी तक नहीं गले थे। चप्पलें भी पास ही पड़ी थीं। एक बच्ची के कान की बाली भी बरामद हुई।

C.I.D ऑफिसर नादगौड़ा सोचने लगे- ‘इन लोगों ने तो सच में बच्चों को मारा है। पर इनकी चोरी और लूट का बच्चों से क्या कनेक्शन है?’

उन्होंने अंजनाबाई और उसकी दोनों बेटियों से पूछा, ‘किडनैप के बाद तुम लोगों ने बच्चों को मारा क्यों?’

अंजनाबाई हंसने लगी। कुछ देर बाद झल्लाते हुए बोली, ‘मारती नहीं तो क्या करती। वो चोरी करने में साथ नहीं दे रहे थे।’

‘चोरी करने में बच्चों का साथ…’ उन्होंने चारों को धमकाते हुए कहा- ‘सच सच बताओ पूरा मामला क्या है, वर्ना सबकी खाल उधेड़ दूंगा।’

रेणुका बोलने लगी, ‘एकबार पॉकेट मारते हुए मैं पकड़ी गई। तब मेरा बेटा आशीष गोद में था। लोग मुझे मारने-पीटने लगे तो मैं कहने लगी कि बच्चे के लिए मजबूरी में चोरी कर रही। इस बच्चे के लिए मुझ पर रहम कर दो। बच्चे की बात सुनकर उन लोगों ने मुझे छोड़ दिया।’

रेणुका ने बताया कि बेटे को गोद में लेकर चोरी करते हुए पकड़ी गई तो ये कहकर बच गई कि बच्चे के लिए चोरी कर रही हूं। स्केच: संदीप पाल

ये बात मैंने मां अंजनाबाई को बताई, तो उसने कहा कि क्यों न चोरी करते वक्त अपने साथ बच्चों को ले जाएं। मैं अपना बेटा तो हर बार ले नहीं जा सकती, तो हमने बच्चा चोरी करने का प्लान बनाया। कभी अकेली औरतों की मदद करने के बहाने उनके बच्चे चुराए, कभी झुग्गी वालों के बच्चे लेकर भाग निकले।

बच्चों को साथ लेकर भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाते, कभी पर्स मारते, कभी मंगलसूत्र छीन लेते। जब पकड़े जाते तो कह देते कि इन्हीं बच्चों के लिए तो कर रहे हैं। लोगों को दया आ जाती और वो हमें जाने देते। जो बच्चे थोड़े बड़े रहते उनसे चोरी भी करवाते। एक बार तो मंदिर में चोरी करते पकड़ी गई, तो कहा बच्चे के लिए कर रही हूं। लोग पुलिस बुलाने की धमकी देने लगे। तब मैंने गुस्से से बच्चे को जमीन पर पटक दिया और चीख-चीखकर कहने लगी- सब इसकी वजह से हुआ है। लोगों को बच्चे का खून देखकर दया आ गई। वो लोग मुझे पैसे देते हुए बोले-बच्चे का इलाज करवा लेना।

हालांकि, ये बच्चे घर में काफी तंग करते थे। दिन-रात चीखते रहते थे। हम डर गए कि कहीं इनकी आवाज सुनकर कोई आ न जाए। फिर तो हमारा भांडा ही फूट जाएगा। इसलिए हम दो-चार दिन बाद बच्चे को मार देते थे। फिर नया बच्चा उठा लाते थे।’

अब पुलिस ने मुंबई, पुणे, नासिक और कोल्हापुर में लोकल लोगों से चारों के बारे में पूछताछ शुरू की। कई लोगों ने बताया- ‘जी साहब पहचानते हैं। ये लोग किराए पर रहते थे। घर से हर वक्त बच्चों के रोने की आवाज आती रहती थी। कई बार अचानक बच्चों की आवाज बंद हो जाती थी।’

अंजनाबाई, रेणुका, सीमा और किरण चारों कोल्हापुर जेल में बंद थे। CID ऑफिसर केस की कड़ियां जोड़ने में जुटे थे। किरण अपनी पत्नी रेणुका, अंजनाबाई और सीमा के खिलाफ गवाही देने को तैयार हो गया। इसलिए उसे सरकारी गवाह बना दिया गया।

कोल्हापुर सेशन कोर्ट में अंजनाबाई और उसकी बेटियों के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई। इन्वेस्टिगेटिव टीम ने कोर्ट में महालक्ष्मी धर्मशाला के रजिस्टर की एंट्री, पल्लवी लॉज की एंट्री, प्रतिभा, मोहन गावित और किरण के बयान पेश किए। साथ ही जिन माता-पिता ने अपने बच्चे की फोटो और उनके कपड़े पहचाने, उनकी गवाही भी हुई। कुल 156 गवाहों के बयान कोर्ट में पेश किए गए।

अंजनाबाई, रेणुका और सीमा का केस लड़ने वाले कोल्हापुर के एडवोकेट मनिक मुलिक याद करते हैं, ‘जेलर के जरिए अंजनाबाई ने मुझे बुलाकर कहा था कि मैं उनका केस लड़ूं। कोर्ट में किरण ने बयान दिया कि इस पूरे मामले की मास्टरमाइंड अंजनाबाई है। ज्यादातर बच्चों की हत्या उसी ने की है। रेणुका और सीमा कुछ ही मामलों में शामिल रही हैं।’

इसी बीच 17 दिसंबर 1997 को अंजनाबाई की जेल में ही हार्टअटैक से मौत हो गई।

इस पूरे केस को कवर करने वाले कोल्हापुर के सीनियर जर्नलिस्ट नंदू ओटारी बताते हैं, ‘किरण शिंदे ने कोर्ट में एक-एक बच्चों की किडनैपिंग और कत्ल की कहानी बतानी शुरू की, तो वहां सन्नाटा पसर गया। हर कोई मौन था। इतनी बेरहमी से हत्या वो भी मासूमों की। कौन भला ऐसी कहानियां सुन पाता।

एक महीने तक उसके बयान दर्ज किए जाते रहे। गवाही के दौरान एक महिला ने अपने बच्ची की कान की बाली पहचानी। वो देखते ही फूट-फूटकर रोने लगी, कटघरे में ही बेहोश हो गई।’

सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट उज्ज्वल निकम ने कोर्ट में कहा, ‘कितनी शर्म की बात है माय लॉर्ड कि एक महिला अपनी दोनों बेटी के साथ 4 शहरों से 6 साल में दर्जनों अनाथ, लावारिस, दुधमुंहे बच्चों को किडनैप करती रही, उन्हें मारती रही, लेकिन हम पकड़ नहीं पाए।

जब अंजनाबाई के दूसरे पति मोहन गावित की बच्ची को किडनैप किया गया और उसका बेरहमी से मर्डर किया गया, तब इस मामले का खुलासा हुआ। हम देर से आए हैं, लेकिन सभी बच्चों को, उनके माता-पिता को न्याय मिलना चाहिए। पूरे देश की नजर कोर्ट पर है।’

सीनियर एडवोकेट उज्ज्वल निकम ने कोर्ट में कहा- इन तीनों औरतों ने 6 साल में इतने बच्चों का कत्ल किया है कि इन्हें गिनती भी याद नहीं है। स्केच: संदीप पाल

अंजनाबाई के वकील मनिक मूलिक ने यहां एक पैंतरा चला। अंजनाबाई की मौत हो चुकी थी, रेणुका और सीमा के बचने का कोई रास्ता नहीं था। इसलिए उन्होंने पूरा दोष अंजनाबाई के ऊपर मढ़ दिया।

उन्होंने कहा, ‘हुजूर, इस केस में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। अंजनाबाई के दामाद और रेणुका के पति किरण ने खुद मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया है कि इस पूरे किडनैपिंग और मर्डर केस में अंजनाबाई का हाथ है। उसकी तो मौत हो गई है। फिर अंजनाबाई के जुर्म की सजा रेणुका और सीमा को क्यों मिले।’

हालांकि कोर्ट वकील मनिक मूलिक की बात से सहमत नहीं हुआ।

तब उज्ज्वल निकम ने किरण को कोर्ट के सामने पेश किया। इस बार किरण अपने बयान से पलट गया। उसने कहा- ‘हुजूर , रेणुका और सीमा भी हर कत्ल में शामिल रही हैं।’

मनिक मूलिक ने फिर कहा, ‘साहेब… इन दोनों महिलाओं का अगर एक-दो मामले में भी इन्वॉल्वमेंट है, तो कम-से-कम सजा दी जाए।’

उज्जवल निकम बोले, ‘जिस मां के अपने 4 छोटे-छोटे बच्चे हैं, उसने 12-13 मासूमों की जान ली है। बेरहमी से, दीवार में, लोहे की रॉड पर पटककर मारा है। ऐसी मानसिकता का व्यक्ति यदि समाज में जिंदा रहेगा, तो पूरा समाज खौफजदा रहेगा।

जिस बेरहमी, बर्बरता के साथ तीनों ने मिलकर छोटे-छोटे बच्चों का कत्ल अपने लालच में किया, यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर है। यह देश का पहला ऐसा मामला है, और अब ये आखिरी मामला होना चाहिए।’

किडनैप किए जिन दो बच्चों को अंजनाबाई ने छोड़ा था, उन बच्चों ने भी कोर्ट में बयान दिए।

22 जून 2001 को कोल्हापुर सेशन कोर्ट के एडिशनल जज जी.एल एडके ने इसे रेयरेस्ट ऑफ रेयर यानी विरल से विरलतम कहा।

उन्होंने 1100 पन्नों के जजमेंट में 9 बच्चों में से 6 बच्चों के मर्डर के मामले में रेणुका और सीमा को दोषी करार देते हुए ‘मृत्युदंड’ सुनाया।

जज ने भारी मन से कहा, ‘एक जज के लिए सबसे कठिन काम होता है इस बात को चुनना कि आरोप साबित होने के बाद आरोपी को किस तरह की सजा दी जानी चाहिए।

रेणुका और सीमा ने सिर्फ पैसे के लालच में, अपने फायदे के लिए इन बच्चों का इस्तेमाल किया और फिर मार दिया। यह पूरा खूनी-खेल प्री-प्लांड था। इसमें किरण शिंदे के अलावा कोई चश्मदीद नहीं था। हालांकि, किरण भी इस अपराध में शामिल था।

इससे बड़ा विरलतम मामला क्या हो सकता है, जिसमें दोनों आरोपी ने गौरी नाम की बच्ची का गला दबाकर मर्डर करने के बाद फिल्म देखी और लाश सिनेमा हॉल के टॉयलेट में जाकर फेंक दी। इससे बर्बरता की हद समझी जा सकती है। इन आरोपियों की मानसिकता कितनी क्रूर है।

पंकज नाम के बच्चे को छत से नीचे फेंक दिया गया। उसकी बॉडी से पोस्टमॉर्टम टीम ने 42 जख्म के निशान दर्ज किए थे। क्रांति का गन्ने के खेत में मर्डर किया गया। इससे ज्यादा क्रूरता क्या हो सकती है। यह अत्यधिक क्रूर और दिल को विचलित करने वाला है।

सभी असहाय बच्चों का कत्ल किया गया। यह इनका सॉफ्ट टारगेट था। सिर्फ और सिर्फ खुद की लग्जरी लाइफ के लिए। रेणुका के शिवाजी कोऑपरेटिव बैंक अकाउंट में 50 लाख रुपए जमा थे। ये सारे पैसे चोरी के थे।

जिस तरह से 6 साल में एक के बाद एक जुर्म को अंजाम दिया गया, इन दोनों को सजा-ए-मौत से कम नहीं दी जा सकती। भारत के कानून में यही सबसे बड़ी सजा है, जो दी जा सकती है। यानी इससे भी बड़ी कोई सजा होती, तो मैं वो सजा इन दोनों दोषी को देता।

इस पूरे घटनाक्रम को अंजाम देने वाली रेणुका खुद 4 बच्चों की मां है। एक मां ऐसा कैसे कर सकती है।

इन दोनों को जीने का कोई हक नहीं है। दोनों को मरते दम तक फांसी के फंदे पर लटकाए जाने की सजा सुनाई जाती है।’

कोर्ट में जज ने फांसी की सजा सुनाते हुए कहा कि रेणुका खुद चार बच्चों की मां है। आखिर कोई मां ऐसा कैसे कर सकती है। स्केच: संदीप पाल

सेशन कोर्ट के खिलाफ दोनों बहनों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई, जिसे 2004 में कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट की फांसी की सजा को बरकरार रखा।

दोनों ने उस वक्त के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास दया याचिका भी दाखिल की, लेकिन 2015 में उन्होंने भी इसे खारिज कर दिया। इसी बीच फिर से दोनों बॉम्बे हाईकोर्ट चली गईं। 2022 में हाईकोर्ट ने जजमेंट दिया कि जो कैदी लंबे वक्त से फांसी की सजा का इंतजार कर रहे हैं, उनकी सजा को उम्रकैद में बदला जाता है। अभी रेणुका शिंदे और सीमा गावित पुणे की यरवदा जेल में उम्रकैद काट रही हैं।

(नोट- अंजनाबाई केस की पूरी कहानी रिटायर्ड C.I.D ऑफिसर सुहाष नादगौड़ा, कोर्ट जजमेंट, एडवोकेट मनिक मूलिक और जर्नलिस्ट नंदू ओटारी से बातचीत पर आधारित है।)

‘मृत्युदंड’ सीरीज में अगले हफ्ते पढ़िए एक और सच्ची कहानी…

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