Advertising

मनोज जोशी का कॉलम: अमेरिका और चीन व्यापार में नुकसान से डरकर पीछे हटे

2
मनोज जोशी का कॉलम:  अमेरिका और चीन व्यापार में नुकसान से डरकर पीछे हटे

Advertising

मनोज जोशी का कॉलम: अमेरिका और चीन व्यापार में नुकसान से डरकर पीछे हटे

Advertising
  • Hindi News
  • Opinion
  • Manoj Joshi’s Column America And China Backed Off Fearing Losses In Trade

3 घंटे पहले

Advertising
  • कॉपी लिंक

मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार

अमेरिका और चीन ने 90 दिनों के लिए टैरिफ कम करने पर सहमति जताई है। इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत के रूप में देखा जाना चाहिए। जेनेवा में अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट और चीनी वित्त मंत्री लैन फॉन के बीच वार्ता में किए गए सौदे के हिस्से के रूप में अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त टैरिफ को 145% से घटाकर 30% कर दिया है और चीन भी अमेरिकी आयातों पर शुल्क को 125% से घटाकर 10% कर रहा है।

Advertising

Advertising

इसके अलावा, चीन अमेरिका के खिलाफ अपने गैर-टैरिफ उपायों को निलंबित कर रहा है, जिसका अर्थ है महत्वपूर्ण खनिजों और चुम्बकों के निर्यात पर लगाए प्रतिबंधों को हटाना।

वाशिंगटन डीसी में आईएमएफ मुख्यालय के बेसमेंट में बेसेंट और लैन फोन के बीच गुप्त बैठक हुई थी। इसके बाद बेसेंट और चीनी उप-प्रधानमंत्री के बीच वार्ता हुई, जिसमें उन्होंने टैरिफ में कमी का फैसला किया और नए सौदे के लिए समयसीमा तय की। इस निर्णय ने दोनों पक्षों को एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने की नीति से पीछे हटने में सक्षम बनाया।

Advertising

चीन में नौकरियों पर खतरा था और अमेरिका में मुद्रास्फीति बेलगाम हो रही थी। नई डील चीनी वस्तुओं पर कुल प्रभावी टैरिफ को लगभग 40% पर ले आती है, जबकि अमेरिका पर चीनी कर लगभग 25% होगा। बिजनेस-लीडर्स ने ट्रम्प से मुलाकात करते हुए उन्हें बताया था कि टैरिफों से अमेरिकी स्टोर्स को खासा घाटा होगा।

चीन और अमेरिका अप्रैल से ही ट्रेड-वॉर में उलझे हुए हैं, जब दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ भारी टैरिफ की दीवारें खड़ी कर दी थीं। यह अमेरिका की तरफ से 145% और चीन की तरफ से 125% तक पहुंच गई। इन स्तरों पर उनके बीच व्यापार असंभव हो गया और वे प्रभावी रूप से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को एक-दूसरे से अलग करने के लिए तैयार हो गए थे।

Advertising

दोनों पक्षों ने अब इस हकीकत को समझ लिया है कि उनके अलग होने से उनकी अपनी अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ वैश्विक विकास भी प्रभावित होगा। ट्रम्प ने हाल ही में कहा कि उन्होंने चीन के साथ टोटल-रीसेट की योजना बनाई है। इस बीच, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के टैब्लॉइड ग्लोबल टाइम्स के पूर्व संपादक ने लिखा कि यह समझौता चीन के लिए एक बड़ी जीत है।

ट्रम्प कह रहे हैं कि हम चीन को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं और अमेरिका और चीन के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इस सप्ताह के अंत तक शी जिनपिंग से बात करने की उम्मीद है। हालांकि उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर बीजिंग के साथ लंबी अवधि की वार्ता विफल हो जाती है, तो चीनी वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ वापस काफी ऊंचे स्तर पर आ सकते हैं। लेकिन उन्होंने आशा व्यक्त की कि दोनों पक्ष एक समझौते पर काम करेंगे क्योंकि विकल्प अमेरिका और चीनी अर्थव्यवस्थाओं को अलग करना था।

वॉशिंगटन और बीजिंग दोनों ने कहा था कि वे लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं, लेकिन अस्थायी सौदा उम्मीद से कहीं अधिक तेजी से और आसानी से हुआ। यह दर्शाता है कि दोनों पक्ष जितना उन्होंने कहा था, उससे कहीं अधिक आर्थिक तकलीफ सह रहे हैं। सवाल यह है कि पहले कौन झुका?

अब यह साफ है कि पहल अमेरिका ने की। उसे एहसास हो गया कि वह खुद को नुकसान पहुंचाए बिना टैरिफ को उच्च स्तर तक नहीं बढ़ा सकता। अब उसे सबक मिल गया है। लेकिन ट्रम्प इसके साथ ही चीन को उच्च टैरिफ की धमकी देकर बीजिंग से रियायतें हासिल करने में सफल रहे हैं।

हमें तभी पता चलेगा, जब अंतिम सौदे पर हस्ताक्षर किए जाएंगे और वह अभी दूर है। किसी भी तरह का स्थायी सौदा कठिन होगा, इसलिए कोई भी पक्ष अभी जीत की घोषणा नहीं कर सकता है। अमेरिका-चीन टैरिफ समझौते के भू-राजनीतिक परिणाम होंगे। इससे भारत भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकता है।

भारत को क्वाड समूह के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में देखा जाता है, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीनी शक्ति को संतुलित करता है। ट्रम्प इस साल के अंत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन के लिए नई दिल्ली आ सकते हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

खबरें और भी हैं…

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News

Advertising