मंदिर की करोड़ों की भूमि मामले में नया मोड़:अब ट्रस्ट के अध्यक्ष का परिवार आया सामने | New twist in land case worth crores of Jageshva temple | News 4 Social h3>
आखिर कहा गया तीन महिलाओं का परिवार
राजा आनंद सिंह महाराज ने अपने ट्रस्ट में सरस्वती देवी, सुंदरी देवी, लाली देवी को भी रखा था। विल में लिखा है कि नैनी पट्टी तल्ली सेवी पिथौरागढ़ निवासी सरस्वती देवी उनकी नर्स थी। सुंदरी देवी सरस्वती की पुत्री थी। इसके अलावा लाली देवी नाम की भी एक महिला उस ट्रस्ट में थी। राजा ने वसीयत में इन महिलाओं और उनके परिवारों के आजीवन भरण पोषण का प्रावधान किया गया था। साथ ही सरस्वती और उनकी बेटी के लिए अल्मोड़ा के बंगले में कमरे और बाथरूम आदि देने की बात भी वसीयत में लिखी है। लेकिन अब इन तीनों महिलाओं के परिवारों का कोई अता-पता नहीं है।
भूमि पर कोई नहीं जता सकता अधिकार राजा ने वसीयत में स्पष्ट किया है कि उस समस्त भूमि के स्वामी जागेश्वर होंगे। विल में स्पष्ट लिखा है कि राजा का कोई कार्यकर्ता या जागेश्वर का कोई पंडा आदि इस जमीन पर हक नहीं जता सकते हैं। जमीन के असल स्वामी जागेश्वर रहेंगे। यहां तक की राजा ने भूमि से अर्जित आय से जागेश्वर में एक संस्कृत स्कूल और एक अस्पताल खोलने का भी प्रावधान रखा था। बावजूद इसके राजा आनंद सिंह महाराज की ओर से जागेश्वर को भेंट की गई उस जमीन का एक टुकड़ा भी अब जागेश्वर के पास नहीं है। समस्त जमीनें खुर्दबुर्द हो चुकी हैं।
ऐसे खुर्दबुर्द हुई जमीनें लंबी बीमारी के कारण 25 मार्च 1938 को राजा आनंद सिंह महाराज का कम उम्र में ही निधन हो गया था। अपनी मृत्यु से पूर्व बीमारी के दौरान ही राजा आनंद सिंह महाराज वसीयत लिख गए थे। 1965 में उस ट्रस्ट के अध्यक्ष मुरलीधर पंत का भी निधन हो गया था। मुरलीधर पंत के निधन के बाद ट्रस्ट की जमीनें खुर्दबुर्द होती चलीं गईं। आज हालात ये हैं कि जागेश्वर मंदिर के पास राजा की ओर से दी गई जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं बचा है।
1940 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुख्ता हुई है राजा की वसीयत स्व. मुरलीधर पंत के परिवार के पास वर्ष 1940 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में राजा आनंद सिंह की वसीयत की पुष्टि होने से संबंधित करीब 80 पेज के आदेश की एक प्रमाणित कॉपी समेत तमाम अन्य दस्तावेज मौजूद हैं। साथ ही उस दौर में मैनेजर और अन्य कर्मचारियों को दिए गए वेतन समेत अन्य खर्चों का भी पूरा विवरण सुरक्षित है। राजपरिवार के सदस्यों ने भी राजा आनंद सिंह महाराज की विल को हाईकोर्ट में सत्यापित किया है।
जागेश्वर में शिवरात्रि पर 50 रुपये खर्चने का प्रावधान पंत परिवार के पास मौजूद हाईकोर्ट के आदेश की प्रति के मुताबिक राजा आनंद सिंह महाराज ने करीब 1936 में ही जागेश्वर क्षेत्र की करीब 10 हजार नाली जमीन को दान देकर ट्रस्ट गठित कराया था। विल के मुताबिक उस जमीन से प्राप्त आय से महाशिवरात्रि में राजा की ओर से जागेश्वर मंदिर में दूध, दही, घी और शहद से रुद्राभिषेक कराने, जागेश्वर के 11 ब्राह्मणों से रुद्रीपाठ करवाने, 11 सौ बेल पत्र चढ़ाने, फलाहार भोजन वितरण करने आदि का प्रावधान तय किया था। साथ ही साल के तीन पर्वों पर जागेश्वर में अनुष्ठान और भंडारे आदि के लिए भी वसीयत में 150 रुपये खर्च करने का प्रावधान रखा गया था।
मृत्युंजय, डंडेश्वर, वृद्ध जागेश्वर मंदिर के लिए भी प्रावधान राजा ने विल में मृत्युंजय मंदिर, डंडेश्वर मंदिर और वृद्ध जागेश्वर मंदिर में स्नान, पूजा, तर्पण आदि का प्रावधान तय किया था। इसके अलावा उन्होंने मंदिर में महा स्नान का भी प्रावधान रखा था। आय घटने पर भी जागेश्वर की पूजाओं में खर्च होने वाली राशि में किसी प्रकार की कटौती नहीं करने की बात भी विल में लिखी है।
सदाव्रत भंडारे का भी प्रावधान राजा ने अपनी वसीयत में लिखा है कि भूमि से अर्जित आय से जागेश्वर में सदाव्रत भंडारा खोला जाए। जागेश्वर में आने वाले संतों और ब्राहमणों को भंडारे में भोजन कराया जाए।
पंत आवास में हुई बैठक गुरुवार को इस संबंध में डॉ. ललित पंत के कोसी स्थित आवास पर इसे लेकर बैठक भी हुई। बैठक में मुरलीधर पंत के पौत्र डॉ. ललित पंत पौत्रवधु अधिवक्ता नीतू सहित जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति के उपाध्यक्ष नवीन चंद्र भट्ट, मुख्य पुजारी पंडित हेमंत भट्ट, नंदादेवी मंदिर समिति अध्यक्ष मनोज वर्मा, सचिव मनोज सनवाल, व्यवस्थापक अनूप साह आदि गणमान्य और जानकार लोग मौजूद रहे। मुरलीधर पंत के परिजनों का दावा है कि उनके पास राजा आनंद सिंह महाराज की जागेश्वर, अल्मोड़ा और गेवाड़ घाटी समेत अन्य संपत्तियों से जुड़े तमाम पुराने दस्तावेज और अन्य साक्ष्य मौजूद हैं। जल्द ही वह लोग इस मामले में आगे की रणनीति तैयार करने में जुटे हुए हैं।
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आखिर कहा गया तीन महिलाओं का परिवार
राजा आनंद सिंह महाराज ने अपने ट्रस्ट में सरस्वती देवी, सुंदरी देवी, लाली देवी को भी रखा था। विल में लिखा है कि नैनी पट्टी तल्ली सेवी पिथौरागढ़ निवासी सरस्वती देवी उनकी नर्स थी। सुंदरी देवी सरस्वती की पुत्री थी। इसके अलावा लाली देवी नाम की भी एक महिला उस ट्रस्ट में थी। राजा ने वसीयत में इन महिलाओं और उनके परिवारों के आजीवन भरण पोषण का प्रावधान किया गया था। साथ ही सरस्वती और उनकी बेटी के लिए अल्मोड़ा के बंगले में कमरे और बाथरूम आदि देने की बात भी वसीयत में लिखी है। लेकिन अब इन तीनों महिलाओं के परिवारों का कोई अता-पता नहीं है।
भूमि पर कोई नहीं जता सकता अधिकार राजा ने वसीयत में स्पष्ट किया है कि उस समस्त भूमि के स्वामी जागेश्वर होंगे। विल में स्पष्ट लिखा है कि राजा का कोई कार्यकर्ता या जागेश्वर का कोई पंडा आदि इस जमीन पर हक नहीं जता सकते हैं। जमीन के असल स्वामी जागेश्वर रहेंगे। यहां तक की राजा ने भूमि से अर्जित आय से जागेश्वर में एक संस्कृत स्कूल और एक अस्पताल खोलने का भी प्रावधान रखा था। बावजूद इसके राजा आनंद सिंह महाराज की ओर से जागेश्वर को भेंट की गई उस जमीन का एक टुकड़ा भी अब जागेश्वर के पास नहीं है। समस्त जमीनें खुर्दबुर्द हो चुकी हैं।
ऐसे खुर्दबुर्द हुई जमीनें लंबी बीमारी के कारण 25 मार्च 1938 को राजा आनंद सिंह महाराज का कम उम्र में ही निधन हो गया था। अपनी मृत्यु से पूर्व बीमारी के दौरान ही राजा आनंद सिंह महाराज वसीयत लिख गए थे। 1965 में उस ट्रस्ट के अध्यक्ष मुरलीधर पंत का भी निधन हो गया था। मुरलीधर पंत के निधन के बाद ट्रस्ट की जमीनें खुर्दबुर्द होती चलीं गईं। आज हालात ये हैं कि जागेश्वर मंदिर के पास राजा की ओर से दी गई जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं बचा है।
1940 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में पुख्ता हुई है राजा की वसीयत स्व. मुरलीधर पंत के परिवार के पास वर्ष 1940 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में राजा आनंद सिंह की वसीयत की पुष्टि होने से संबंधित करीब 80 पेज के आदेश की एक प्रमाणित कॉपी समेत तमाम अन्य दस्तावेज मौजूद हैं। साथ ही उस दौर में मैनेजर और अन्य कर्मचारियों को दिए गए वेतन समेत अन्य खर्चों का भी पूरा विवरण सुरक्षित है। राजपरिवार के सदस्यों ने भी राजा आनंद सिंह महाराज की विल को हाईकोर्ट में सत्यापित किया है।
जागेश्वर में शिवरात्रि पर 50 रुपये खर्चने का प्रावधान पंत परिवार के पास मौजूद हाईकोर्ट के आदेश की प्रति के मुताबिक राजा आनंद सिंह महाराज ने करीब 1936 में ही जागेश्वर क्षेत्र की करीब 10 हजार नाली जमीन को दान देकर ट्रस्ट गठित कराया था। विल के मुताबिक उस जमीन से प्राप्त आय से महाशिवरात्रि में राजा की ओर से जागेश्वर मंदिर में दूध, दही, घी और शहद से रुद्राभिषेक कराने, जागेश्वर के 11 ब्राह्मणों से रुद्रीपाठ करवाने, 11 सौ बेल पत्र चढ़ाने, फलाहार भोजन वितरण करने आदि का प्रावधान तय किया था। साथ ही साल के तीन पर्वों पर जागेश्वर में अनुष्ठान और भंडारे आदि के लिए भी वसीयत में 150 रुपये खर्च करने का प्रावधान रखा गया था।
मृत्युंजय, डंडेश्वर, वृद्ध जागेश्वर मंदिर के लिए भी प्रावधान राजा ने विल में मृत्युंजय मंदिर, डंडेश्वर मंदिर और वृद्ध जागेश्वर मंदिर में स्नान, पूजा, तर्पण आदि का प्रावधान तय किया था। इसके अलावा उन्होंने मंदिर में महा स्नान का भी प्रावधान रखा था। आय घटने पर भी जागेश्वर की पूजाओं में खर्च होने वाली राशि में किसी प्रकार की कटौती नहीं करने की बात भी विल में लिखी है।
सदाव्रत भंडारे का भी प्रावधान राजा ने अपनी वसीयत में लिखा है कि भूमि से अर्जित आय से जागेश्वर में सदाव्रत भंडारा खोला जाए। जागेश्वर में आने वाले संतों और ब्राहमणों को भंडारे में भोजन कराया जाए।
पंत आवास में हुई बैठक गुरुवार को इस संबंध में डॉ. ललित पंत के कोसी स्थित आवास पर इसे लेकर बैठक भी हुई। बैठक में मुरलीधर पंत के पौत्र डॉ. ललित पंत पौत्रवधु अधिवक्ता नीतू सहित जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति के उपाध्यक्ष नवीन चंद्र भट्ट, मुख्य पुजारी पंडित हेमंत भट्ट, नंदादेवी मंदिर समिति अध्यक्ष मनोज वर्मा, सचिव मनोज सनवाल, व्यवस्थापक अनूप साह आदि गणमान्य और जानकार लोग मौजूद रहे। मुरलीधर पंत के परिजनों का दावा है कि उनके पास राजा आनंद सिंह महाराज की जागेश्वर, अल्मोड़ा और गेवाड़ घाटी समेत अन्य संपत्तियों से जुड़े तमाम पुराने दस्तावेज और अन्य साक्ष्य मौजूद हैं। जल्द ही वह लोग इस मामले में आगे की रणनीति तैयार करने में जुटे हुए हैं।