भोपाल में हीमोफीलिया बीमारी पर कार्यक्रम: स्टेट मॉडल ऑफिसर बोलीं-सरकार का ब्लड डिसऑर्डर्स पर विशेष ध्यान, मेडिकल सुविधाएं बेहतर हुई – Bhopal News

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भोपाल में हीमोफीलिया बीमारी पर कार्यक्रम:  स्टेट मॉडल ऑफिसर बोलीं-सरकार का ब्लड डिसऑर्डर्स पर विशेष ध्यान, मेडिकल सुविधाएं बेहतर हुई – Bhopal News
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भोपाल में हीमोफीलिया बीमारी पर कार्यक्रम: स्टेट मॉडल ऑफिसर बोलीं-सरकार का ब्लड डिसऑर्डर्स पर विशेष ध्यान, मेडिकल सुविधाएं बेहतर हुई – Bhopal News

भोपाल के कोर्टयार्ड मैरियट में गुरुवार को हीमोफीलिया बीमारी पर जागरूकता कार्यक्रम हुआ।

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भोपाल के कोर्टयार्ड मैरियट में गुरुवार को हीमोफीलिया बीमारी पर जागरूकता कार्यक्रम हुआ। जिसमें देश-विदेश से आए डॉक्टर और मेडिकल फिल्ड के विशेषज्ञों ने भाग लिया। वहीं, ब्लड डिस ऑर्डर स्टेट मॉडल ऑफिसर रूबी खान ने बताया कि प्रदेश सरकार अब ब्लड डिस ऑर्डर्

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गुरु गोविंद सिंह कॉलेज पंजाब में प्रोफेसर डॉ. वरुण कॉल ने बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य हीमोफीलिया बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करना है।

स्टेट मॉडल ऑफिसर रूबी खान ने बताया कि, प्रदेश सरकार अब ब्लड डिस ऑर्डर्स, मेंटल हेल्थ, ब्लड प्रेशर, और डायबिटीज पर भी ध्यान दे रही है।

ब्लड डिस ऑर्डर्स स्वास्थ्य नीतियों का अहम हिस्सा

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कार्यक्रम के दौरान रूबी खान ने बताया कि राज्य सरकार अब सिर्फ मातृ एवं शिशु सेहत तक सीमित नहीं है, बल्कि आम लोगों की नियमित स्वास्थ्य समस्याओं जैसे उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) और मधुमेह (शुगर) पर भी काम कर रही है। ब्लड डिस ऑर्डर्स को भी अब गंभीरता से लिया जा रहा है। इसे स्वास्थ्य नीति का एक अहम हिस्सा बनाया गया है।

मनोचिकित्सा में सुधार हुआ

रूबी खान ने बताया कि प्रदेश सरकार स्वस्थ शरीर के साथ-साथ स्वस्थ मन की अवधारणा पर काम कर रही है। जिसमें मेंटल हेल्थ को भी प्राथमिकता दी जा रही है। मानसिक स्वास्थ्य आज के समय में बेहद जरूरी विषय है, जिसे पहले नजरअंदाज किया जाता था, लेकिन अब इसे भी राज्य की स्वास्थ्य योजनाओं में जोड़ा गया है।

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6 महीने की उम्र से दिखने लगते हैं हीमोफीलिया के लक्षण

कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर डॉ. वरुण कॉल ने बताया कि हीमोफीलिया एक जैविक (आनुवंशिक) बीमारी है। जिसमें बच्चे के शरीर में खून का थक्का (clot) नहीं बनता। इसका मतलब है कि अगर चोट लग जाए, तो खून रुकता नहीं है। कई बार तो बिना किसी चोट के भी, जैसे पेशाब के रास्ते खून आना या दिमाग के अंदर ब्लीडिंग होना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ये बीमारी अधिकतर 6 महीने से 1 साल के समय में ही पता चल जाती है।

प्रोफेसर डॉ. वरुण कॉल ने हीमोफीलिया बीमारी के बारे में जानकारी दी।

कारण क्या है?

  • हमारे शरीर में कुछ विशेष प्रोटीन फैक्टर होते हैं। जो खून को जमने में मदद करते हैं। इन्हें क्लॉटिंग फैक्टर्स कहा जाता है।
  • सामान्यतः ये फैक्टर शरीर में 50% से 150% तक रहते हैं।
  • अगर ये फैक्टर बहुत कम हो जाएं, तो व्यक्ति को हीमोफीलिया हो जाता है।

इलाज क्या है?

  • इस बीमारी का इलाज अब काफी आसान हो गया है।
  • इसमें शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर को बाहर से दिया जाता है।
  • कई प्रकार के फैक्टर उपलब्ध हैं, जैसे प्लाज्मा डेराइव्ड फैक्टर्स।

फैमिली हिस्ट्री का पता होना जरूरी

वहीं, एम्स, नई दिल्ली की प्रोफेसर डॉ. तूलिका सेठ ने बताया कि हीमोफीलिया एक आनुवंशिक बीमारी है, यानी यह पीढ़ी दर पीढ़ी चल सकती है। इसलिए इलाज शुरू करने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि परिवार में पहले किसी को यह बीमारी थी या नहीं। अगर किसी बच्चे के परिवार में पहले से किसी को हीमोफीलिया है, तो उस बच्चे की भी जांच करानी चाहिए।

प्रोफेसर डॉ. तूलिका सेठ ने बताया कि जिला अस्पतालों में हीमोफीलिया का इलाज निशुल्क है।

कई राज्यों में निशुल्क इलाज

पहले इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा होता था और सभी के लिए उपलब्ध नहीं था। लेकिन अब हर राज्य में सरकार द्वारा इलाज मुफ्त किया गया है और जरूरी फैक्टर भी फ्री में दिए जा रहे हैं। यदि बच्चे को हीमोफीलिया A या B है, तो उसे अपने जिला अस्पताल जाकर इलाज लेना चाहिए।

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