भारत का पहला न्यूक्लियर टेस्ट जिसने बदल दी दुनिया: बौखलाया था अमेरिका-चीन; 20 रुपए बीघा पर खरीदी गई टेस्टिंग साइट, फ्लाइट-सड़क से पहुंचे थे पुर्जे h3>
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18 मई 1974 की सुबह यानी आज से ठीक 51 साल पहले। प्रधानमंत्री आवास में सुबह से ही चहल-पहल थी। इंदिरा गांधी लोगों से मिल जरूर रही थीं, लेकिन अंदर से बेचैन थीं। उन्होंने करीब 8.30 बजे अपने सेक्रेटरी पीएन धर को आते देखा, तो लगभग दौड़ते हुए खुद ही उनके पास
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आज इस घटना को 51 साल पूरे हो चुके हैं। इस स्टोरी में जानेंगे भारत के पहले न्यूक्लियर टेस्ट की सीक्रेट कहानी…
1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद मशहूर वैज्ञानिक होमी भाभा ने देश को परमाणु हथियार संपन्न बनाने पर काम शुरू कर दिया था, लेकिन 24 जनवरी 1966 को होमी भाभा की विमान दुर्घटना में मौत हो गई। भारत के न्यूक्लियर पावर बनने के सपनों को ये बड़ा झटका था।
भाभा के बाद विक्रम सारा भाई को एटॉमिक एनर्जी कमीशन यानी AEC का अध्यक्ष बनाया गया। ये वो समय था जब भारत कर्ज में डूबा हुआ था। इस वक्त न्यूक्लियर टेस्ट की बात ठंडी पड़ गई। विक्रम साराभाई के निधन के बाद भाभा के शिष्य होमी सेठना को जिम्मेदारी मिली।
1971 में पाकिस्तान से युद्ध में जब अमेरिका ने अपना 7वां बेड़ा भेजा और परमाणु बम की धमकी दी तो इंदिरा को लगा भारत को भी इसका जवाब तैयार करना होगा। इसके बाद इंदिरा ने परमाणु बम कार्यक्रम को तेजी से बढ़ा दिया।
1972 में इंदिरा ने परमाणु बम बनाने के लिए मौखिक आदेश दिया। तब होमी सेठना ने कहा कि मैडम हमें 18 महीने दीजिए। उस समय परमाणु बम परीक्षण के लिए 20 किलो प्लूटोनियम की जरूरत थी।
परमाणु ऊर्जा करार के तहत भारत ने कनाडा से प्लूटोनियम लिया था, जिसका उपयोग पूर्णिमा रिएक्टर के लिए किया जा रहा था। बाद में इसका उपयोग ऊर्जा की बजाय बम बनाने में किया गया। 1973 तक मटेरियल लेवल की सारी परेशानी लगभग दूर हो चुकी थी।
भारत के पहले रिएक्टर और प्लूटोनियम रिप्रोसेसिंग फैसिलिटी की सैटेलाइट तस्वीर।
पोकरण में 20 रुपए बीघा पर खरीदी गई टेस्टिंग साइट
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के तत्कालीन निदेशक राजा रमन्ना अपनी बायोग्राफी ‘इयर्स ऑफ पिल्ग्रिमेज’ में लिखते हैं कि परमाणु परीक्षण के लिए हमने पोकरण का चयन किया, क्योंकि यहां इतनी आबादी नहीं थी। न ही बहुत ज्यादा जमीनी संसाधन थे।
पोकरण रेंज के आसपास कई गांव हैं। ऐसा ही एक गांव खेतोलाई के स्कूल प्रिंसिपल सोहन राम विश्नोई बताते हैं कि 1960 के दशक में रक्षा विभाग ने उनके पिता और सैकड़ों किसानों को उनकी जमीन बेचने के लिए मजबूर किया था। तब ये जमीन चार रुपए बीघा पर खरीदी गई थी। लोग इसका विरोध कर रहे थे। 1974 में जब विरोध बढ़ा तो सरकार ने मुआवजा बढ़ाकर 20 रुपए बीघा कर दिया था।
1974 के अंडरग्राउंड परमाणु परीक्षण के बाद टेस्टिंग साइट पर बना विशाल गड्ढा।
आर्मी ने कुआं खोदा तो पानी निकल आया, सूखे कुएं की तलाश थी
न्यूक्लियर वेपन आर्काइव के अनुसार, जोधपुर की 61 रेजिमेंट पुल और बंकर बनाने की एक्सपर्ट थी। उसे ही 107 मीटर गहरा एक शाफ्ट बनाने का काम सौंपा गया। जवानों को बस इतना बताया गया कि भूकंप को लेकर वैज्ञानिकों को कोई प्रयोग करना है।
लोकल कमांडर ने इसे यह कहकर टाल दिया था कि ये उनका काम नहीं है। इसके बाद सेनाध्यक्ष जनरल गोपाल गुरुनाथ बेवूर को दखल देना पड़ा। उन्होंने इसके मौखिक आदेश दिए कि ये अपना भी काम है। इसके बाद जवानों ने कुएं की खुदाई की।
बाहरी दुनिया को बताया गया कि ONGC गैस के कुंओं के लिए खुदाई कर रही है। लोकल लोगों में बात फैलाई गई कि सेना के लिए पानी के कुएं खोदे जा रहे हैं।
जनवरी 1974 में खुदाई के दौरान भूमिगत जल आ गया। खुदाई करने वाले जवान बहुत खुश हुए, लेकिन वैज्ञानिक बहुत निराश हुए। उन्हें परमाणु परीक्षण के लिए सूखा कुआं चाहिए था। वैज्ञानिकों ने उस कुएं को छोड़ दिया।
इसके बाद एक और गांव खेतोलाई में खुदाई की गई। सूखे कुएं की पहचान के लिए एक लाेकल जल विशेषज्ञ को भी बुलाया गया। इस तरह से सेना ने तय समय 15 फरवरी 1974 को सूखा कुआं खोद दिया, जिसे वैज्ञानिक शाफ्ट कहते थे।
सलाहकारों के खिलाफ जाकर इंदिरा गांधी ने कहा- हम टेस्ट करेंगे
राजा रमन्ना लिखते हैं कि पहली बार DRDO और बार्क एक साथ इतने बड़े और सीक्रेट प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। जब परीक्षण की तैयारी की गई तो इसकी खबर कुछ चुनिंदा लोगों को ही थी। पहले दौर की बैठक अप्रैल 1974 में की गई।
PM इंदिरा गांधी के सेक्रेटरी पीएन हक्सर, PM के पूर्व प्रधान सचिव पीएन नाग चौधरी, रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार एचएन सेठना, AEC के तत्कालीन अध्यक्ष और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र यानी बार्क के डायरेक्टर राजा रमन्ना ही इन बैठकों में शामिल थे।
बैठक में नाग चौधरी ने इस परीक्षण का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इससे हमारी इकोनॉमी बर्बाद हो जाएगी। अमेरिका और पश्चिमी देश कई तरह के बैन लगा देंगे। अर्थशास्त्री के रूप में हक्सर ने भी नाग से सुर में सुर मिलाया और कहा कि परमाणु बम के परीक्षण के लिए ये सही समय नहीं है, लेकिन पश्चिम देश थोड़े दिन चिल्लाएंगे फिर चुप हो जाएंगे।
इसके बाद राजा रमन्ना ने कहा कि इस टेस्ट को रोका नहीं जाना चाहिए। एटम बम क्लब में आने से हम पर कोई देश दादागिरी नहीं कर पाएगा। उस समय तक एटम बम क्लब में पांच देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस ही थे।
आखिर में इंदिरा गांधी ने कहा कि देश के लिए एटम बम का परीक्षण जरूरी है। हमें ये टेस्ट करना होगा। इसके लिए 18 मई 1974 बुद्ध पूर्णिमा का दिन चुना गया। ऑपरेशन का नाम दिया गया- स्माइलिंग बुद्धा।
फ्लाइट और सड़क से अलग-अलग पुर्जे पोकरण पहुंचाए गए
उधर मुंबई स्थित ट्रॉम्बे परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान में टेस्ट के लिए जरूरी प्लूटोनियम बॉल और ट्रिगर भी समय पर तैयार हो गया था। पीके अयंगर इन्हें कॉमर्शियल फ्लाइट से लेकर जोधपुर होते हुए पोकरण पहुंचे।
वहीं आर गोपाल चिदंबरम दूसरे उपकरणों को सेना के काफिले के साथ मुंबई से पोकरण बाय रोड लेकर पहुंचे। बाकी टीम बचे हुए सामान के साथ पोकरण पहुंची। राजा रमन्ना, सेठना और नाग चौधरी एक ही विमान में जोधपुर पहुंचे।
अब असेंबली का काम शुरू हो गया था और कुल मिलाकर ये अंतिम चरण में था। 14 मई 1974 को एल आकार के शाफ्ट में बिजली केबल डालने का काम सिस्टम इंटीग्रेटेड टीम के लीडर जितेंद्र नाथ सोनी और परमाणु डिवाइस रखने का काम डॉ. नागपट्टिनम संबाशिव वेंकटेशन ने किया। इसके बाद शाफ्ट को रेत से भर दिया गया।
15 मई को प्रधानमंत्री की अंतिम मंजूरी के लिए सेठना दिल्ली पहुंचे। उन्होंने वहां पहुंचकर इंदिरा गांधी से कहा कि हमने परमाणु डिवाइस काे शाफ्ट में पहुंचा दिया है। अब हम इसे बाहर नहीं निकाल सकते। आप कहेंगी तो भी हम इसे बाहर नहीं निकाल सकते। हमें अब आगे बढ़ना ही होगा।
इंदिरा ने कहा- आगे बढ़िए, क्या आपको डर लग रहा है। सेठना ने कहा- बिल्कुल भी नहीं, मैं बस आपको ये बताना चाह रहा था कि अब हम यू-टर्न नहीं ले पाएंगे।
4 किमी दूर मचान से निगरानी कर रहे थे वैज्ञानिक
18 मई 1974 आ गया। ये बहुत ही गरम दिन था। सुबह-सुबह ही तापमान 35 पार चला गया था।
परीक्षण से पहले टीम ने सारी चीजों की फाइनल चेकिंग की, तो विस्फोट के लिए बनाए गए 107 मीटर गहरे गड्ढे में बिजली सप्लाई के दौरान कुछ अर्थिंग की दिक्कत आ गई थी। DRDO के वैज्ञानिक बालकृष्णनन नीचे गड्ढे में उतरे और जान पर खेलकर अर्थिंग को ठीक किया।
रमन्ना, सेठना, नागचौधरी, अयंगर और सुभरवाल शाफ्ट से 5 किमी दूर एक खाईदार मचान पर खड़े थे। चिदंबरम और सिक्का कंट्रोल रूम के पास दूसरे कमरे में थे। श्रीनिवासन और दस्तीदार कंट्रोल रूम में थे। वहां सेना अध्यक्ष जनरल बेवूर और लेफ्टिनेंट कर्नल सभरवाल भी मौजूद थे।
उसके अपोजिट ही चार किलोमीटर दूर फोटोग्राफ लेने वालों के लिए एक मचान बनाया गया था। फोटोग्राफर सही से फोटो ले सकें; उन्हें पता चले कि कब क्लिक करना है, फोटोग्राफर्स को काउंटिंग सुनाई दे, इसके लिए अलग से स्पीकर की व्यवस्था की गई। तय किया गया कि ट्रिगर सुबह 8 बजे दबाया जाएगा।
इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई में गड़बड़ी, भगवान का नाम लेकर ट्रिगर दबाया
मचान के पास लगे लाउडस्पीकर से उल्टी गिनती शुरू हुई। उधर फोटोग्राफर भी चौकन्ने हो गए। पांच तक गिनती पहुंचते ही प्रणव ने हाई वोल्टेज स्विच ऑन किया। दस्तीकार ने जब इलेक्ट्रिसिटी मीटर को देखा तो वो चौंक गए। इलेक्ट्रिसिटी मीटर की रीडिंग बता रही थी कि न्यूक्लियर डिवाइस तक तय वोल्टेज का केवल 10 प्रतिशत ही सप्लाई हो रहा है।
दस्तीकार के असिस्टेंट भी ये देखकर घबरा गए। वो चिल्लाने लगे क्या हम इसे रोक दें…रोक दें। इस उठापटक में गिनती बंद हो गई। मचान पर बैठे रमन्ना और सेठना को जब गिनती की आवाज लाउडस्पीकर में सुनाई देनी बंद हो गई तो उन्होंने माना कि किसी तकनीकी खराबी के कारण टेस्ट रोक दिया गया है। उधर दस्तीकार लगभग चीखे- नहीं हम रुकेंगे नहीं, हम आगे बढ़ेंगे। ये बात रमन्ना और सेठना को नहीं पता थी। दस्तीदार ने अपने ‘सौभाग्य’ का लाल बटन दबाया।
राजा रमन्ना लिखते हैं कि बटन दबाने के पहले से ही डॉ. नागपट्टिनम संबाशिव वेंकटेशन ने विष्णु सहस्रनाम का जाप शुरू कर दिया। बताया जाता है कि वेंकटेशन भले ही मिसाइल बनाने वाले वैज्ञानिक थे, लेकिन उनकी ईश्वर में गहरी आस्था थी। यही कारण था कि पृथ्वी के गर्भ में विनाश वाले बम के सफलतापूर्वक फटने के लिए पृथ्वी के पालनकर्ता विष्णु से प्रार्थना कर रहे थे।
लगा मेहनत बेकार गई, इसके बाद रेत का पहाड़ उछल गया
जब ट्रिगर दबाने के बाद भी विस्फोट नहीं हुआ तो वेंकटेशन कुछ पलों के लिए चुप हो गए। सब उम्मीद कर रहे थे कि तुरंत आवाज होगी। जब तीस सेकेंड तक भी कुछ नहीं हुआ तो सबके चेहरे उतरने लगे।
फिर करीब एक मिनट बाद रेगिस्तान में रेत का एक पहाड़ उछलता नजर आया। एक मिनट तक रेत हवा में थी। सब सोच रहे थे कि विस्फोट हो गया, लेकिन आवाज नहीं आई। कुछ पल बाद वैज्ञानिकों ने आवाज भी सुनी जो जमीन के भीतर 107 मीटर नीचे हुई।
विस्फोट से जो झटका मिला उससे रमन्ना नीचे गिर गए। अब बारी परमाणु ताकत की थी। जो कोई भी खड़े रहने की कोशिश कर रहा था वो सब गिर गए। जब रेत का पहाड़ वापस जमीन पर गिरा तो सब शांत हो गया। सब तेजी से उठे और जश्न मनाने लगे।
राजा रमन्ना लिखते हैं कि रेत का पहाड़ हवा में देखकर ऐसा लगा जैसे हनुमान ने पहाड़ को उठा लिया हो। उधर मचान पर खड़े सिक्का इतना एक्साइटेड हो गए कि मचान पर बनी सीढ़ी से उतरने के बजाय कूद गए।
फोन खराब हो गया, लेकिन मैसेज पहुंचाया- ‘बुद्धा इज स्माइलिंग’
इसके बाद सेठना ने दिल्ली में इंदिरा गांधी के सेक्रेटरी पीएन धर को फोन किया और कहा- बुद्धा इज स्माइलिंग। इसका मतलब था- टेस्ट सफल रहा। हालांकि टेलिफोन लाइन खराब होने के कारण फोन कट गया। सेठना को लगा कि धर को सुनाई नहीं दिया।
इसके बाद सेठना ने सेना की जीप निकाली। उनके साथ लेफ्टिनेंट कर्नल सभरवाल भी थे। दोनों ने सेना की जीप दौड़ाई और पोकरण पहुंचे। यहां सेना का एक टेलिफोन एक्सचेंज स्थापित किया गया था। वहां पहुंचकर सेठना ने जोर से माथा पीटा, क्योंकि उन्हें धर का नंबर याद नहीं था और जो नंबर था उसे लिखकर नहीं लाए थे।
सेठना का चेहरा देखकर सभरवाल समझ गए। उन्होंने अपनी सेना वाली कड़क आवाज में टेलीफोन ऑपरेटर से कहा- मेरी प्रधानमंत्री कार्यालय में तुरंत बात कराइए। जब फोन PMO को लगा तो सभरवाल ने जोर से कहा ‘बुद्धा इज स्माइलिंग’ यानी टेस्ट सफल रहा।
सुबह 9 बजे आकाशवाणी से घोषणा की गई कि सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर भारत ने देश के पश्चिमी हिस्से में किसी गुप्त स्थान पर शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए सफल परमाणु परीक्षण किया।
उधर राजा रमन्ना और सेठना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे। इंदिरा ने कहा कि आपकी टीम ने शानदार काम किया है। कार्यक्रम खत्म हुआ। अब पार्टी कीजिए।
टेस्ट के बाद PM इंदिरा गांधी पोकरण रेंज गई थीं और देखा कि कहां टेस्ट हुआ।
विस्फोट के बाद केवल फ्रांस ने बधाई दी, बाकी ने आलोचना की
इस विस्फोट के बाद दुनियाभर में हलचल मच गई। सबसे ज्यादा लाल-पीला कनाडा हुआ। उसे पता था कि भारत ने उसके प्लूटोनियम का उपयोग ऊर्जा अनुसंधान की बजाय बम बनाने में किया है। उसने हमें आगे प्लूटोनियम देने पर बैन लगा दिया।
अमेरिका भी भारत पर तमाम आर्थिक पाबंदियां लगाने की बात कर रहा था। उधर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने परमाणु बम बनाने के लिए अपना रक्षा बजट कई गुना बढ़ा दिया। फ्रांस ही एकमात्र पश्चिमी देश था जिसने भारत को परमाणु परीक्षण की बधाई दी थी।
टेस्ट के बाद अमेरिका की मीडिया ने प्रथम पेज पर भारत के टेस्ट को जगह दी थी। उस समय हम छठे देश थे जिसके पास परमाणु शक्ति थी।
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