बोरिस जॉनसन और ब्रिटेन के एक फैसले ने 2 देशों को किया तबाह, विंबलडन पर ये कैसा पाखंड
ग्रैंड स्लैम विंबलडन भले ही खत्म हो चुका है, लेकिन पाखंड का कड़वा स्वाद जेहन में अब भी बना हुआ है। पूरे टूर्नामेंट के दौरान विंबलडन और उसके अधिकारी पूर्व ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन के क्रूर फैसले को ढोते नजर आए। बोरिस जॉनसन ने यूक्रेन पर हमले के लिए रूस और उसके सहयोगी बेलारूस को सबक सिखाने के लिए विंबलडन से बैन करने का फैसला किया था, जबकि खिलाड़ियों व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन के युद्ध से कोई लेना देना नहीं था। इस साल हालांकि खिलाड़ियों पर से यह बैन हट गया था, लेकिन समय-समय पर उसका पाखंड नजर आता रहा।बेलारूसी टेनिस स्टार और दुनिया की नंबर 2 रैंक वाली खिलाड़ी आर्यना सबालेंका टूर्नामेंट के पहले दौर में हंगेरियन पन्ना उडवार्डी पर जीत चुकी थीं। विंबलडन में इंटरव्यू के दौरान मुस्कुरा रही थीं। उन्होंने सेमीफाइनल का सफर तय किया। ऑस्ट्रेलियन ओपन चैंपियन के हर मैच को लोग एंजॉय करते नजर आए। यही खेल है। इसे इसी तरह लिया जाना चाहिए था। ऑल इंग्लैंड लॉन टेनिस क्लब ने पिछले साल के टूर्नामेंट में रूस और बेलारूस के सभी टेनिस खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिए रूस और उसके साथी देश बेलारूस को सजा देने के लिए यह फैसला किया था।
एक नजर में खेल संस्कृति और खेल भावना के खिलाफ फैसला था, क्योंकि खिलाड़ियों का रूस या बेलारूस के सरकारी फैसलों से कोई लेना देना नहीं था। यहां रोचक बात यह है कि मेंस टॉप-12 में 3 रूसी हैं- डेनियल मेदवेदेव, एंड्री रुबलेव और करेन खाचानोव। मेदवेदेव और खाचानोव तो रूस में भी रहते भी नहीं हैं। सबालेंका अमेरिका को अपना घर कहती हैं, जबकि विक्टोरिया अजारेंका, अन्य बेलारूसी पूर्व विश्व नंबर 1, जो लॉस एंजिल्स में रहती हैं। रुबलेव ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि यूक्रेन पर उनके देश का आक्रमण “भयानक” था। उन्होंने यह जानते हुए यह बात कही कि मॉस्को की आलोचना करना कितना बड़ा अपराध है।
विंबलडन में बैन लगाने का फैसला टेनिस के उन चाहने वालों के लिए निराश करने वाला था, जिनके पैसों से ग्रैंड स्लैम के बिल पास होते हैं। ब्रिटेन के इस फैसले का विरोध कोई न करे, इसके लिए बड़ा स्वांग रचा गया। हालांकि, एटीपी और डब्ल्यूटीए पुरुष और महिला टेनिस में संबंधित खिलाड़ियों के एसोसिएशनों ने विंबलडन के पाखंड को भांप लिया था और अपने टूर्नामेंट्स में बैन को सख्ती से खारिज कर दिया। उन्होंने सटीक तर्क भी दिया कि किसी भी देश के खिलाड़ियों को योग्यता के आधार पर टूर्नामेंट में प्रवेश मिलना चाहिए और राष्ट्रीय भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
दूसरी ओर, विंबलडन ने इस सीजन में रूस और बेलारूस के प्लेयर्स से बैन तो हटाया, लेकिन टूर्नामेंट के दौरान प्लेयर्स के देश वाला हिस्सा खाली रखने का क्रूर फैसला किया। पिछले साल महिलाओं की विजेता ऐलेना रयबाकिना ने विंबलडन को झटका देते हुए अपना फेडरेशन बदल लिया था। वह रूस में पैदा हुईं और पली-बढ़ी और 19 साल तक रहीं। उन्होंने टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए कजाकिस्तान के झंडे तले आना का फैसला किया था। हालांकि, इस बार विंबलडन ने सबक सीखा और रूसी और बेलारूसी खिलाड़ियों पर से प्रतिबंध हटा दिया।
बात यहीं खत्म नहीं होती। ऑन-कोर्ट टीवी रिपोर्टर ने सबलेंका से कुरेदते हुए पूछा कि हमें बताएं कि विंबलडन में वापस आकर आप कितनी खुश हैं? यह सवाल थोड़ा अजीब था। ऐसा लग रहा था कि वह मानो व्यक्तिगत कारणों से पिछले साल टूर्नामेंट में शामिल नहीं हुई थी। हालांकि, चालाक सबालेंका ने पूरा मामला समझ लिया। उन्होंने जोरदार तालियों के बीच जवाब दिया- मुझे नहीं पता कि यह जगह मेरे लिए कितनी मायने रखती है। आने के लिए आप सभी को धन्यवाद। यह सचमुच मेरे लिए बहुत मायने रखता है! उनके इस जवाब ने हर किसी का दिल जीत लिया।
विंबलडन में हालांकि रूसी और बेलारूसी खिलाड़ियों के साथ भेदभाव जारी रहा। प्रसिद्ध ब्लैक एंड लाइम स्कोरबोर्ड पर खिलाड़ी के नाम के आगे रूस और बेलारूस के नाम खाली रहे (यहां कुछ भी नहीं लिखा था। जैसे कि ये देश मौजूद ही नहीं हैं।) विंबलडन को जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र को बुलाना चाहिए। हर दूसरे खिलाड़ी के पास अपने देश थे, तो रूसी और बेलारूसी के पास क्यों नहीं? बात यहीं खत्म नहीं होती। अगर किसी खिलाड़ी के किट पर रूस का झंडा या कोई भी प्रतीक होता तो उस पर कार्रवाई होती।
दूसरी ओर, कुछ उत्साही खिलाड़ी यूक्रेन के समर्थन में बयान देते दिखे। पोलैंड की वर्तमान विश्व नंबर 1 महिला खिलाड़ी इगा स्विएटेक ने तो पाखंड की सीमा लांघते हुए यूक्रेन का झंडा पहनकर उतरीं। क्या इस पर विंबलडन की नजर नहीं पड़ी। खेल को राजनीति और कूटनीति की गंदगी से परे माना जाता है, जो गरीब-अमीर से अलग योग्यता के तराजू पर तौला जाता है। यहां तारीफ करनी होगी आईओसी की। उसने पेरिस 2024 खेलों पर एक सराहनीय फैसला किया है। पश्चिमी देशों और यूक्रेन के तमाम दबावों और राजनीति को खारिज करते हुए रूसी और बेलारूसी एथलीटों पर बैन लगाने से मना कर दिया। खेलों के इस महाकुंभ में एथलीट तटस्थ रूप से हिस्सा ले सकेंगे।
(लेखक: राजकमल राव, अमेरिका बेस्ड कॉमेंटेटर, पूर्व प्रबंधन सलाहकार और एक शैक्षिक परामर्श फर्म के एमडी हैं)
एक नजर में खेल संस्कृति और खेल भावना के खिलाफ फैसला था, क्योंकि खिलाड़ियों का रूस या बेलारूस के सरकारी फैसलों से कोई लेना देना नहीं था। यहां रोचक बात यह है कि मेंस टॉप-12 में 3 रूसी हैं- डेनियल मेदवेदेव, एंड्री रुबलेव और करेन खाचानोव। मेदवेदेव और खाचानोव तो रूस में भी रहते भी नहीं हैं। सबालेंका अमेरिका को अपना घर कहती हैं, जबकि विक्टोरिया अजारेंका, अन्य बेलारूसी पूर्व विश्व नंबर 1, जो लॉस एंजिल्स में रहती हैं। रुबलेव ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि यूक्रेन पर उनके देश का आक्रमण “भयानक” था। उन्होंने यह जानते हुए यह बात कही कि मॉस्को की आलोचना करना कितना बड़ा अपराध है।
विंबलडन में बैन लगाने का फैसला टेनिस के उन चाहने वालों के लिए निराश करने वाला था, जिनके पैसों से ग्रैंड स्लैम के बिल पास होते हैं। ब्रिटेन के इस फैसले का विरोध कोई न करे, इसके लिए बड़ा स्वांग रचा गया। हालांकि, एटीपी और डब्ल्यूटीए पुरुष और महिला टेनिस में संबंधित खिलाड़ियों के एसोसिएशनों ने विंबलडन के पाखंड को भांप लिया था और अपने टूर्नामेंट्स में बैन को सख्ती से खारिज कर दिया। उन्होंने सटीक तर्क भी दिया कि किसी भी देश के खिलाड़ियों को योग्यता के आधार पर टूर्नामेंट में प्रवेश मिलना चाहिए और राष्ट्रीय भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
दूसरी ओर, विंबलडन ने इस सीजन में रूस और बेलारूस के प्लेयर्स से बैन तो हटाया, लेकिन टूर्नामेंट के दौरान प्लेयर्स के देश वाला हिस्सा खाली रखने का क्रूर फैसला किया। पिछले साल महिलाओं की विजेता ऐलेना रयबाकिना ने विंबलडन को झटका देते हुए अपना फेडरेशन बदल लिया था। वह रूस में पैदा हुईं और पली-बढ़ी और 19 साल तक रहीं। उन्होंने टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए कजाकिस्तान के झंडे तले आना का फैसला किया था। हालांकि, इस बार विंबलडन ने सबक सीखा और रूसी और बेलारूसी खिलाड़ियों पर से प्रतिबंध हटा दिया।
बात यहीं खत्म नहीं होती। ऑन-कोर्ट टीवी रिपोर्टर ने सबलेंका से कुरेदते हुए पूछा कि हमें बताएं कि विंबलडन में वापस आकर आप कितनी खुश हैं? यह सवाल थोड़ा अजीब था। ऐसा लग रहा था कि वह मानो व्यक्तिगत कारणों से पिछले साल टूर्नामेंट में शामिल नहीं हुई थी। हालांकि, चालाक सबालेंका ने पूरा मामला समझ लिया। उन्होंने जोरदार तालियों के बीच जवाब दिया- मुझे नहीं पता कि यह जगह मेरे लिए कितनी मायने रखती है। आने के लिए आप सभी को धन्यवाद। यह सचमुच मेरे लिए बहुत मायने रखता है! उनके इस जवाब ने हर किसी का दिल जीत लिया।
विंबलडन में हालांकि रूसी और बेलारूसी खिलाड़ियों के साथ भेदभाव जारी रहा। प्रसिद्ध ब्लैक एंड लाइम स्कोरबोर्ड पर खिलाड़ी के नाम के आगे रूस और बेलारूस के नाम खाली रहे (यहां कुछ भी नहीं लिखा था। जैसे कि ये देश मौजूद ही नहीं हैं।) विंबलडन को जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र को बुलाना चाहिए। हर दूसरे खिलाड़ी के पास अपने देश थे, तो रूसी और बेलारूसी के पास क्यों नहीं? बात यहीं खत्म नहीं होती। अगर किसी खिलाड़ी के किट पर रूस का झंडा या कोई भी प्रतीक होता तो उस पर कार्रवाई होती।
दूसरी ओर, कुछ उत्साही खिलाड़ी यूक्रेन के समर्थन में बयान देते दिखे। पोलैंड की वर्तमान विश्व नंबर 1 महिला खिलाड़ी इगा स्विएटेक ने तो पाखंड की सीमा लांघते हुए यूक्रेन का झंडा पहनकर उतरीं। क्या इस पर विंबलडन की नजर नहीं पड़ी। खेल को राजनीति और कूटनीति की गंदगी से परे माना जाता है, जो गरीब-अमीर से अलग योग्यता के तराजू पर तौला जाता है। यहां तारीफ करनी होगी आईओसी की। उसने पेरिस 2024 खेलों पर एक सराहनीय फैसला किया है। पश्चिमी देशों और यूक्रेन के तमाम दबावों और राजनीति को खारिज करते हुए रूसी और बेलारूसी एथलीटों पर बैन लगाने से मना कर दिया। खेलों के इस महाकुंभ में एथलीट तटस्थ रूप से हिस्सा ले सकेंगे।
(लेखक: राजकमल राव, अमेरिका बेस्ड कॉमेंटेटर, पूर्व प्रबंधन सलाहकार और एक शैक्षिक परामर्श फर्म के एमडी हैं)