बेंत से लड़कियां करती है पिटाई, सोने से लदी होती है मां गौरी की प्रतिमाएं, यह है राजस्थान का अनूठा मेला
जोधपुर: राजस्थान के जोधपुर शहर में 16 दिन तक चले धींगा गवर उत्सव की चर्चा देशभर में हो रही है। सोमवार की सुबह इस उत्सव का समापन हुआ। वहीं रविवार की रात को जोधपुर के परकोटा शहर में इसे लेकर हुए मेले में बड़ी संख्या में लोग जुटे। जोधपुर में होने वाला यह अनूठा मेला विश्वभर में अपनी पहचान रखता है। यहां इस दौरान शहर की गली-गली में शृंगार की हुई गवर प्रतिमाएं नजर आती हैं। वहीं धींगा गवर के इस मेले में महिलाएं आकर्षक स्वांग रचकर सड़कों पर निकलती हैं। हर बार अलग-अलग थीम दिखाई देती है। इस बार महिलाओं में कांतारा थीम को लेकर स्पेशल क्रेज था। कांतारा के पंजुर्ली देव बनने के लिए 5 महिलाओं ने स्पेशल मेकअप आर्टिस्ट बुलाए थे।
ऐसे शुरू हुआ धींगा गवर पर्व
कभी विधवा महिलाओं को गणगौर पूजा का अवसर देने के लिए यह पर्व शुरू हुआ था। अब इसने मेले का रूप ले लिया है। अब इस पर्व में विधवा महिलाओं के साथ कुंआरी लड़कियां और विवाहित महिलाएं भी शरीक होने लगी है। सब मिलकर एक साथ गणगौर पूजा करती हैं।
ऐसे शुरू हुई बेंत मारने की परपंरा
दरअसल, पांच दशक पहले जब मेला शुरू हुआ था तो विधवा महिलाएं जो गणगौर की पूजा करती थीं और रात को एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले में गणगौर के दर्शन करने जाती थीं। तो उनके सामने पुरुषों के आने की मनाही होती थीं। फिर भी अगर कोई पुरुष उनको रास्ते में मिल जाता था तो महिलाएं उसे बेंत मारती थीं। कई बार जान-पहचान के या रिश्तेदार पुरुष के मिलने पर महिलाएं ठिठोली के अंदाज में भी उसे बेंत मारती थी। इसके बाद में यह परम्परा बन गई। साथ ही हजारों के संख्या में लोग मेले में आने लगे।
सोने के गहने से लदी होती है गणगौर प्रतिमाएं
कभी परकोटे के भीतर बसे पुराने शहर में महिलाओं के लिए शुरू किए गए इस मेले ने अब काफी बड़ा और आधुनिक रूप ले लिया है। गणगौर पूजने वाली महिलाएं और मेले में आए पुरुष सभी सुनारों की घाटी में विराजित की जाने वाली गणगौर की प्रतिमा के दर्शन जरूर करते हैं। यह गणगौर चमत्कारी मानी जाती है और इसकी साज-सज्जा भी अनूठी होती है। इस गणगौर प्रतिमा को कई किलो सोने के गहने पहनाए जाते हैं।
मेले के प्रसाद की भी अपनी विशेषता
धींगा गवर मेले की एक विशेषता इस का प्रसाद भी है। यह प्रसाद मेले के मजे को और बढ़ा देता है। कम मात्रा में भांग मिला यह प्रसाद सभी को बांटा जाता है। हाथों में डंडे लिए मेले में घूमती महिलाएं भी यह प्रसाद लेती है।
बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात
मेले में सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था। मेला सोमवार तड़के करीब चार बजे तक चला। इसके बाद पांच बजे महिलाएं अलग-अलग तालाब और बावड़ियों पर जाकर गणगौर पूजा की सामग्री का विसर्जन कर व्रत खोला। घूंघट प्रथा वाले प्रदेश में महिलाओं की इस तरह आजादी वाकई अलग तरह का अहसास कराती है। रिपोर्ट : लालिता व्यास।
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जोधपुर: राजस्थान के जोधपुर शहर में 16 दिन तक चले धींगा गवर उत्सव की चर्चा देशभर में हो रही है। सोमवार की सुबह इस उत्सव का समापन हुआ। वहीं रविवार की रात को जोधपुर के परकोटा शहर में इसे लेकर हुए मेले में बड़ी संख्या में लोग जुटे। जोधपुर में होने वाला यह अनूठा मेला विश्वभर में अपनी पहचान रखता है। यहां इस दौरान शहर की गली-गली में शृंगार की हुई गवर प्रतिमाएं नजर आती हैं। वहीं धींगा गवर के इस मेले में महिलाएं आकर्षक स्वांग रचकर सड़कों पर निकलती हैं। हर बार अलग-अलग थीम दिखाई देती है। इस बार महिलाओं में कांतारा थीम को लेकर स्पेशल क्रेज था। कांतारा के पंजुर्ली देव बनने के लिए 5 महिलाओं ने स्पेशल मेकअप आर्टिस्ट बुलाए थे।
ऐसे शुरू हुआ धींगा गवर पर्व
कभी विधवा महिलाओं को गणगौर पूजा का अवसर देने के लिए यह पर्व शुरू हुआ था। अब इसने मेले का रूप ले लिया है। अब इस पर्व में विधवा महिलाओं के साथ कुंआरी लड़कियां और विवाहित महिलाएं भी शरीक होने लगी है। सब मिलकर एक साथ गणगौर पूजा करती हैं।
ऐसे शुरू हुई बेंत मारने की परपंरा
दरअसल, पांच दशक पहले जब मेला शुरू हुआ था तो विधवा महिलाएं जो गणगौर की पूजा करती थीं और रात को एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले में गणगौर के दर्शन करने जाती थीं। तो उनके सामने पुरुषों के आने की मनाही होती थीं। फिर भी अगर कोई पुरुष उनको रास्ते में मिल जाता था तो महिलाएं उसे बेंत मारती थीं। कई बार जान-पहचान के या रिश्तेदार पुरुष के मिलने पर महिलाएं ठिठोली के अंदाज में भी उसे बेंत मारती थी। इसके बाद में यह परम्परा बन गई। साथ ही हजारों के संख्या में लोग मेले में आने लगे।
सोने के गहने से लदी होती है गणगौर प्रतिमाएं
कभी परकोटे के भीतर बसे पुराने शहर में महिलाओं के लिए शुरू किए गए इस मेले ने अब काफी बड़ा और आधुनिक रूप ले लिया है। गणगौर पूजने वाली महिलाएं और मेले में आए पुरुष सभी सुनारों की घाटी में विराजित की जाने वाली गणगौर की प्रतिमा के दर्शन जरूर करते हैं। यह गणगौर चमत्कारी मानी जाती है और इसकी साज-सज्जा भी अनूठी होती है। इस गणगौर प्रतिमा को कई किलो सोने के गहने पहनाए जाते हैं।
मेले के प्रसाद की भी अपनी विशेषता
धींगा गवर मेले की एक विशेषता इस का प्रसाद भी है। यह प्रसाद मेले के मजे को और बढ़ा देता है। कम मात्रा में भांग मिला यह प्रसाद सभी को बांटा जाता है। हाथों में डंडे लिए मेले में घूमती महिलाएं भी यह प्रसाद लेती है।
बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात
मेले में सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था। मेला सोमवार तड़के करीब चार बजे तक चला। इसके बाद पांच बजे महिलाएं अलग-अलग तालाब और बावड़ियों पर जाकर गणगौर पूजा की सामग्री का विसर्जन कर व्रत खोला। घूंघट प्रथा वाले प्रदेश में महिलाओं की इस तरह आजादी वाकई अलग तरह का अहसास कराती है। रिपोर्ट : लालिता व्यास।