बिहार की लोकसभा सीटों का हाल : आरा में बीजेपी की हैट्रिक पर नजर, 1984 के बाद से नहीं जीती कांग्रेस

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बिहार की लोकसभा सीटों का हाल : आरा में बीजेपी की हैट्रिक पर नजर, 1984 के बाद से नहीं जीती कांग्रेस

बिहार की लोकसभा सीटों का हाल : आरा में बीजेपी की हैट्रिक पर नजर, 1984 के बाद से नहीं जीती कांग्रेस

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पहले शाहाबाद तो अब आरा संसदीय क्षेत्र से गुजरने वाली गंगा एवं सोन नदियों की धारा की तरह यहां की राजनीति में भी उतार-चढ़ाव होता रहा है। शुरुआत में यहां कांग्रेस की तूती बोलती थी तो पूरे देश के साथ बदलाव की बयार भी बही। मध्य के दौर में समाजवादी राजनीति का दबदबा कायम हुआ तो लाल सलाम की धमक भी सुनाई दी। पिछले दो चुनावों से यहां जय श्रीराम की गूंज है। देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर सत्ता संग्राम तक आरा की अलग पहचान रही है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में यहां के बाबू वीर कुंवर सिंह जैसे योद्धा ने अहम भूमिका निभाई तो बाद के दिनों में बाबू जगजीवन राम, रामसुभग सिंह, बलिराम भगत, एपी शर्मा, तपेश्वर सिंह, मीरा कुमार जैसी हस्तियों को जन्म देने वाली आरा की धरती राजनीतिक रूप से भी उर्वरा रही है। संघर्ष की इस धरती पर नक्सली आंदोलनों को भी खाद-पानी मिलता रहा है।

शुरुआती पांच आम चुनावों में यहां कांग्रेस का दबदबा रहा तो पिछले दो लोकसभा चुनावों से भाजपा का कमल खिल रहा है। इस बार भाजपा यहां जीत की हैट्रिक लगाने की जुगत में है तो भाकपा माले 1989 का आईपीएफ का इतिहास दुहराने की फिराक में है। हालांकि कांग्रेस को छोड़ अन्य किसी राजनीतिक दल ने यहां जीत की हैट्रिक दर्ज नहीं की है। लिहाजा भाजपा के समक्ष इस बार जीत की हैट्रिक लगाने की चुनौती भी है।

बता दें कि 1989 में यहां इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) ने देश में पहली बार जीत दर्ज की। बाद में आईपीएफ भाकपा माले के रूप में यहां सक्रिय रहा है और चुनावी अखाड़े में उतरता रहा है। 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में यहां भाकपा माले उम्मीदवार को राजद का समर्थन था और भाजपा के आरके सिंह व भाकपा माले के राजू यादव के बीच सीधा मुकाबला हुआ था। इसके पूर्व 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर में यहां पहली बार कमल खिला था। तब करीब 23 साल बाद यहां के चुनावी अखाड़े में उतरने वाली भाजपा ने ब्यूरोक्रेट के बड़े नाम पूर्व केंद्रीय गृह सचिव राजकुमार सिंह को सीधे चुनावी राजनीति में उतार दिया था। भाजपा का यह दांव फिट बैठा और बाहरी रहते हुए आरके सिंह ने न केवल धमाकेदार जीत दर्ज की, बल्कि यहां भाजपा की जीत का खाता भी खुल गया। 2019 में यहां राजकुमार सिंह ने भाजपा के टिकट पर लगातार दूसरी जीत दर्ज की।

देश की राजनीतिक हवा के विपरीत भी रहा है चुनावी नतीजा

आजादी के बाद से लेकर अब तक के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो आरा का चुनावी नतीजा राजनीतिक हवा के विपरीत भी आता रहा है। देश की पहली गैर कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद 1980 में जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर चली तो यहां का नतीजा इसके विपरीत रहा। तब जनता पार्टी के ही चंद्रदेव प्रसाद वर्मा अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे और यहां कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह 1989 में वीपी सिंह की लहर में भी यहां जनता दल को जीत नहीं मिल सकी थी। तब यहां इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) ने पहली बार महत्वपूर्ण जीत दर्ज की। हालांकि अगले चुनाव में ही जनता दल ने यहां पहली बार जीत दर्ज की और 2009 तक इस क्षेत्र पर जनता दल व इससे विभाजित समता पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का वर्चस्व रहा। बारी-बारी से इन दलों का ही उक्त क्षेत्र पर कब्जा रहा।

1984 के बाद कभी नहीं जीती कांग्रेस

आरा संसदीय क्षेत्र पूर्व में शाहाबाद संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। पहले आम चुनाव 1952 से लेकर 1971 तक यहां कांग्रेस का दबदबा रहा। दिग्गज कांग्रेसी बलिराम भगत ने यहां से लगातार पांच बार जीत दर्ज की और कई महत्वूर्ण पदों पर आसीन रहे। 1977 में जनता पार्टी की आंधी में यहां कांग्रेस के साथ बलिराम भगत को भी पहली बार पराजय झेलनी पड़ी। 1977 और 1980 में लगातार दो हार के बाद 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की बदौलत कांग्रेस फिर यहां लौटी और बलिराम भगत ने छठी जीत दर्ज की। हालांकि कांग्रेस की यह आखिरी सफलता रही। 1984 के बाद यहां कांग्रेस कभी नहीं जीती।

लोकसभा में आईपीएफ का पहला सांसद आरा से ही

देश की लोकसभा में आईपीएफ का पहला सांसद भेजने का इतिहास आरा का ही रहा है। 1989 में पूरे उत्तर भारत में नारा गूंज रहा था-बीपी सिंह राजा नहीं फकीर है-देश की तकदीर है। तब यहां का चुनावी नतीजा देश की हवा के विपरीत रहा और यहां जनता दल उम्मीदवार को पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में आईपीएफ पर प्रतिबंध लगने के बाद भाकपा माले यहां सक्रिय रहा है और चुनावी अखाड़े में मजबूती से उतरता रहा है पर उसे अब जीत नसीब नहीं हो सकी है। अलबत्ता पिछले चुनाव में सीधे मुकाबले में भाकपा माले ने यहां दूसरा स्थान हासिल किया था।

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