बिना ईसर के निकलती है राजस्थान में यहां गणगौर की सवारी, 200 सालों से जानिए क्यों हो रहा ऐसा

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बिना ईसर के निकलती है राजस्थान में यहां गणगौर की सवारी, 200 सालों से जानिए क्यों हो रहा ऐसा

बिना ईसर के निकलती है राजस्थान में यहां गणगौर की सवारी, 200 सालों से जानिए क्यों हो रहा ऐसा


जैसलमेर: राजस्थान का मारवाड़ क्षेत्र जहां की वीरता,शौर्य,कला,संस्कृति के साथ ही यहां के रीति-रिवाज,त्योहार का इतिहास अपनी अलग ही पहचान रखता है। वहीं भारत-पाक सीमा पर स्थित इस क्षेत्र के सरहदी जिले जैसलमेर की गणगौर दूसरे शहरों से अलग है। यहां गणगौर अपने आप में ऐतिहासिक घटना के चलते अलग ही तरीके से मनाई जाती है। राजस्थान में भगवान शिव-पार्वती के प्रतीक के रूप में ईसर-गणगौर की पूजा की जाती है। प्रदेश के अन्य जिलों में जहां गणगौर की सवारी चैत्र शुक्ला तृतीया को निकलती है वहीं सरहदी जिले जैसलमेर में गणगौर की सवारी चैत्र शुक्ला चतुर्थी की शाम को निकलती है। बड़ी बात यह है कि यहां गणगौर माता (मां पार्वती) की सवारी बिना ईसर (शिव) के निकलती है। बिना ईसर के गणगौर की सवारी राजस्थान के दूसरे किसी भी शहर में कहीं भी नहीं दिखती है ।

सोनार दुर्ग से निकलती है सवारी

जैसलमेर में गणगौर की शाही सवारी शहर के सोनार दुर्ग से रवाना होती है। दुर्ग स्थित अखे विलास, राजा महल और आई नाथ मंदिर में महारावल की ओर से पूजा-अर्चना करने के बाद गणगौर की सवारी निकाली जाती है। भाटी वंश की ठकुराइनें (राजपूत महिलाएं) और भाटी कुल की महिलाएं गौरी की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर शाही गाजे-बाजे के साथ रवाना होती है। शाही सवारी में ऊंट, घोड़े और नगाड़े बजाने वाले आगे-आगे चलते हैं । वही महारावल घोड़े पर सवार होते हैं। वहीं रियासत कालीन राजपरिवार के सदस्य और शहरवासी भी इस रैली में शामिल होते हैं।

इस शाही सवारी को देखने के लिए जैसलमेर जिले के सुदूर क्षेत्रों से भी लोग पहुंचते हैं। लोगों का ये हुजूम लोकतंत्र में भी राजतंत्र के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है,जो देखते ही बनता है। शाही सवारी शहर के मुख्य बाजार से होती हुई गड़ीसर सरोवर पहुंचती है। यहां गणगौर को पानी पिलाने की परंपरा का पालन किया जाता है। इसके बाद शाही सवारी वापस सोनार दुर्ग की ओर लौटती है।

जैसलमेर की गणगौर को आज भी है अपने ईसर का इंतजार

इतिहासकार नन्दकिशोर शर्मा बताते है कि रियासत काल से ही जैसलमेर में गणगौर की सवारी बिना ईसर के लिए निकलती है। इसके पीछे की कहानी यह है कि जैसलमेर के महारावल (राजा) गजसिंह की शादी के मौके पर यहां दीवान सालमसिंह ने शादी के मंडप की चंवरी में दूल्हे राजा पर सोने की मुद्राएं घोल कर उछाल दी थी। बीकानेर के शाही परिवार को जैसलमेर के दीवान का यह कृत्य खटक गया था। इसके बाद जैसलमेर और बीकानेर के लोगों के बीच खटास बढ़ती गई।

इसी दौरान एक बार जैसलमेर के कुछ लोग बीकानेर के पशुओं को चुराकर ले आए। इस पर बीकानेर की सेना ने जैसलमेर पर हमला कर दिया। उन्होंने यह हमला तक किया जब यहां गणगौर मेले की सवारी निकाल रही थी। जैसलमेर के गड़ीसर स्थान पर शाही सवारी पर अचानक बोल जाने के बाद इस हमले में जैसलमेरवासियों ने गवर को तो बचा लिया। लेकिन बीकानेर की सेना ईसर की प्रतिमा को ले जाने में सफल हो गई। इस घटना को लगभग 200 वर्ष से भी ज्यादा समय बीत चुका है। इसके बाद से यहां अकेली गणगौर की ही शाही सवारी निकाली जाती है।जैसलमेर की गणगौर को आज भी अपने ईसर का इंतजार है।

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