बाघ को भी जिंदा खाने वाला दुर्लभ वाइल्ड डॉग: भौंकते नहीं, सीटी की तरह आवाज निकालते हैं; बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दो साल बाद दिखे – Umaria News

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बाघ को भी जिंदा खाने वाला दुर्लभ वाइल्ड डॉग:  भौंकते नहीं, सीटी की तरह आवाज निकालते हैं; बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दो साल बाद दिखे – Umaria News
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बाघ को भी जिंदा खाने वाला दुर्लभ वाइल्ड डॉग: भौंकते नहीं, सीटी की तरह आवाज निकालते हैं; बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दो साल बाद दिखे – Umaria News

उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में विलुप्त प्राय वाइल्ड डॉग (सोन कुत्ता) का झुंड पतौर परिक्षेत्र की पनपथा बीट में नजर आया है। जंगल में सफाईकर्मी की तरह काम करने वाले सोन कुत्ते दिखने को प्रबंधन बड़ी उपलब्धि मान रहा है। दावा है कि इससे पहले 2023

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टाइगर रिजर्व के रेंजर अर्पित मैराल का दावा है कि ये दो साल बाद टाइगर रिजर्व में दिखे हैं। ये कभी–कभार ही दिखते हैं। ये एक जगह पर नहीं रुकते, बल्कि हमेशा घूमते रहते हैं।

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प्रबंधन के मुताबिक इनकी संख्या 20 से ज्यादा हो सकती है। बीटीआर प्रबंधन ने इसकी जानकारी भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) को भी दे दी है।

इसके बाद टाइगर रिजर्व प्रबंधन की चिंता भी बढ़ गई है। वजह है कि झुंड में शिकार करने वाले ये वाइल्ड डॉग्स बाघ तक का शिकार कर लेते हैं। इन्हें बाघों का बच्चा चोर भी कहा जाता है।

दैनिक भास्कर ने इसे लेकर टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा से बात कर इसकी खासियत के बारे में जाना। वर्मा कहते हैं कि खास है कि ये अपने शिकार का मरने का इंतजार नहीं करते। हमले के बाद जैसे ही शिकार घायल होकर गिरता है, इनका झुंड उसे चारों तरफ से खाना शुरू कर देता है। यानी ये जिंदा जानवर ही खा जाते हैं। ये हमेशा झुंड में ही शिकार करते हैं। इसकी विशेषता है कि ये सामान्य कुत्ते की तरह भौंकने की बजाए सीटी की तरह आवाज निकालते हैं। ये जंगलों सफाईकर्मी की तरह काम करते हैं।

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बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दो अलग-अलग झुंड में 20 से ज्यादा सोनकुत्ते दिखाई दिए हैं।

अपने से चार गुना प्राणी का शिकार कर सकते हैं

पीके वर्मा के अनुसार, सोन कुत्ते दुर्लभ वन्यप्राणी हैं। ये दो से ढाई फीट ऊंचे और तीन फीट तक लंबे हो सकते हैं। बेहद खतरनाक मांसाहारी जंगली कुत्ते की प्रजाति है, जिसे अंग्रेजी में ढोले (Dhole) कहते हैं। इसका साइंटिफिक नाम Cuon alpinus होता है। इसे एशियाई जंगली कुत्ता, भारतीय जंगली कुत्ता और सीटी कुत्ता के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग इसे लाल कुत्ता भी कहते हैं। कई इसे लाल लोमड़ी समझने की गलती भी कर बैठते हैं।

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इनकी विशेषता है कि ये हमेशा झुंड में रहते हैं। सामूहिक रूप से शिकार करते हैं। अपने शिकार को जीवित अवस्था में ही खाना शुरू कर देते हैं।

ये अपने से चार से पांच गुना बड़े आकार और वजन के जानवरों को भी आसानी से शिकार बना लेते हैं। लगातार घूमते रहने की प्रवृत्ति के कारण इन्हें गिनना और पहचानना मुश्किल होता है। वन विभाग इनकी सुरक्षा के लिए विशेष निगरानी कर रहा है। परिस्थितिकी तंत्र में इन दुर्लभ जीवों की अहम भूमिका है।

झुंड में शिकार करने के कारण यह खतरनाक माने जाते हैं।

बाघ भी बदल लेते हैं ठिकाना

वर्मा के मुताबिक वाइल्ड डॉग्स को दूर से ही बाघिन के शावकों की गंध आ जाती है। ये शावकों को भी खा जाते हैं। इसके चलते बाघों के लिए सोन कुत्तों को खतरा माना जाता है। सोन कुत्ता जिस जंगल में रहते हैं, आसपास के क्षेत्र में से बाघ अपना ठिकाना बदल देते हैं। सोन कुत्ता अगर झुंड में है, उन्हें बाघ दिख जाए, तो उसे भी शिकार बना लेते हैं। बताते हैं कि सोन कुत्तों के झुंड से बाघ हार जाता है। यही वजह है सोन कुत्तों का झुंड छोटे से लेकर बड़े वन्य प्राणियों पर हमला कर लेते हैं। ये लोग शिकार पर झुंड में टूट पड़ते हैं।

वर्मा कहते हैं कि सोन कुत्ता सामान्य कुत्तों की भांति भौंकता नहीं, बल्कि सीटी बजाने जैसी आवाज निकालता है। झुंड में रहने वाले सोन कुत्तों का भी पूरी तरह से सामाजिक सिस्टम होता है। झुंड में ही ये जंगली जानवरों का शिकार करते हैं।

इनकी ट्रैकिंग संभव नहीं

टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा का कहना है कि गर्मी के चलते बाघ, पानी और आग की निगरानी की जाती है। इसी दौरान ये दिखाई दिए हें। जीपीएस के जरिए भी इनकी ट्रैकिंग संभव नहीं है। कारण– ये घने जंगलों में अंदर तक चले जाते हैं। जहां आज 20 से ज्यादा कुत्ते दिखाई दिए हैं, वहां पहले इनकी संख्या चार से ज्यादा थी। यह जंगल में ज्यादा दूर तक चले जाते हैं।

कैमरे, प्रत्यक्ष देखने और पगमार्क के आधार पर इनकी गणना होती है। इसी साल फरवरी में फेज 4 की गणना में पता चला था कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दो झुंड में लगभग 20 से अधिक सोन कुत्ते हैं। इनकी बढ़ती संख्या बांधवगढ़ का अच्छा वातावरण है। प्रदेश के पेंच और कान्हा किसली टाइगर रिजर्व में भी सोनकुत्ते हैं, लेकिन यहां संख्या ज्यादा नहीं है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाईबी झाला बताते हैं…

‘सोन कुत्तों का बसेरा एक दौर में कश्मीर से लेकर बिहार तक था। मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र से लगे प्रदेशों में भी इनको देखा जा सकता था। 1990 के बाद से विलुप्त वन्य प्राणियों की श्रेणी में आ गए।’

वन्यजीव संरक्षण के प्रयास और अपील

वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार किसी जंगल में सोन कुत्तों की मौजूदगी दर्शाती है कि वहां जैव विविधता संरक्षित है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने इस घटना को दर्ज कर लिया है। इनकी निगरानी को बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है।

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