बड़गांव का प्राचीन सूर्य मंदिर छठ पूजा का प्रमुख केंद्र: लोक आस्था का महापर्व छठ और तालाब का विशेष महत्व, कुष्ठ रोग निवारक की मान्यता – Nalanda News h3>
सूर्य मंदिर में विराजमान छठी मैया।
लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की शुरुआत मंगलवार से हो गई है। सूर्य उपासना के इस पावन पर्व में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा है। नालंदा के बड़गांव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर, जो भगवान NEWS4SOCIALकी उपासना का प्रमुख केंद्र है, इन दिनों विशेष आस्था का केंद
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पौराणिक महत्व से जुड़े इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र और कार्तिक माह में छठ पर्व के अवसर पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में व्रती आते हैं। सूर्य पुराण में उल्लेखित है कि स्वयं भगवान कृष्ण ने भी युद्ध के समय राजगीर आने पर यहां भगवान सूर्य की आराधना की थी, जो इस स्थल के महत्व को और बढ़ा देता है।
बड़गांव स्थित पौराणिक सूर्य मंदिर।
कुष्ठ रोग निवारक तालाब का रहस्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बड़गांव स्थित सूर्य तालाब में स्नान करने से कुष्ठ जैसे गंभीर रोग भी दूर हो जाते हैं। इस तालाब का निर्माण राजा शाम्ब ने करवाया था, जिन्हें महर्षि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग हो गया था।
मंदिर के पुजारी माला पांडे ने इस संबंध में एक रोचक कथा सुनाई, उन्होंने कहा कि महर्षि दुर्वासा भगवान श्री कृष्ण से मिलने द्वारका गए थे। उस समय श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ विहार कर रहे थे। इसी दौरान अचानक भगवान श्री कृष्ण के पौत्र राजा साम्ब को हंसी आ गई, जिसे दुर्वासा ने अपना अपमान समझा और उन्हें कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया।
इसके बाद श्री कृष्ण ने अपने पौत्र को कुष्ठ रोग निवारण के लिए सूर्य की उपासना के साथ सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी। राजा शाम्ब अपने दादा के निर्देश पर सूर्य राशि की खोज में निकल पड़े।
छठ व्रतियों के लिए तैयार सूर्य तालाब।
49 दिनों की तपस्या और मुक्ति
खोज के दौरान, जब राजा शाम्ब को प्यास लगी। उन्होंने अपने सेवक से पानी लाने को कहा, जहाँ एक गड्ढे में थोड़ा गंदा पानी मिला। सेवक ने लाकर राजा शाम्ब को दिया। उस पानी से हाथ-पैर धोने और पीने के बाद उन्होंने अपने शरीर में परिवर्तन महसूस किया। वहीं रुककर उन्होंने 49 दिनों तक सूर्य की उपासना की, जिसके फलस्वरूप वे श्राप से मुक्त हो गए।
राजा शाम्ब ने इसी स्थान पर एक तालाब का निर्माण करवाया और सूर्य मंदिर की स्थापना की, जो आज भी दुनिया के 12 प्रमुख सूर्य मंदिरों (अर्को) में गिना जाता है।
मंदिर में स्थापित है कई पौराणिक मूर्तियां।
छठ पूजा और तालाब का विशेष महत्व
आज भी इस तालाब का पानी विशेष महत्व रखता है। छठ व्रत के दौरान श्रद्धालु इसी तालाब के पानी से ‘लोहंडा’ प्रसाद बनाते हैं। स्थानीय ग्रामीण भी इसी पवित्र जल से छठ का प्रसाद तैयार करते हैं।
तालाब की खुदाई के दौरान भगवान सूर्य, कल्प विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी और छठी मैया (आदित्य माता) की प्रतिमाएं मिली थीं। साथ ही, नवग्रह देवताओं की मूर्तियां भी प्राप्त हुई थीं, जिन्हें मंदिर में स्थापित किया गया है।बिहार के अलावा बाहर से आने वाले छठ व्रतियों के द्वारा सूर्य तालाब के आस-पास साड़ी, धोती और कपड़े से तम्बू बनाकर उसी में 4 दिनों तक रहकर छठ पर्व करते हैं।
झारखंड के बसोडीह से छठ महापर्व करने आई मीणा देवी बताती हैं कि वह सपरिवार यहां आए हैं और चार दिनों तक रहकर छठ पर्व करते हैं। पिछले वर्ष भी वे यहां आए थे। यहां आकर छठ पर्व करना अच्छा लगता है। सच्चे मन से मांगी गई। सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
द्वारिका विगहा से आए श्रद्धालु बिहारी कुमार ने बताया कि वह भी पूरे परिवार के साथ बड़गांव आए हैं। यहां आकर छठ पर्व करना काफी अच्छा लगता है। किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है। प्रशासन का भी पूरा सहयोग मिलता है।
छठ पर्व पर तंबुओं का शहर बन जाता है बड़गांव।
वैदिक काल से ही बड़गांव सूर्य उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। पंडितों का मानना है कि यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्राचीन भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय भी है। इस वर्ष भी छठ पूजा के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं बड़गांव पहुंचे है। स्थानीय प्रशासन ने व्रतियों की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्था की है।