फरीदकोट में विधानसभा स्पीकर के कार्यक्रम में विरोध: बंद कमरा बैठक में की नारेबाजी, संधवां बोले-सिर्फ वीडियो बनाना चाहते थे किसान – Faridkot News h3>
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फरीदकोट में किसानों से बातचीत करने आते विधानसभा स्पीकर संधवां और बैठक के लिए कमरे में बैठे किसान नेता।
पंजाब के फरीदकोट में शिक्षा क्रांति अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में आयोजित कार्यक्रमों में विधानसभा स्पीकर कुलतार सिंह संधवां को किसानों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। गांव मिश्रीवाला में जब पुलिस ने किसानों को आगे बढ़ने से रोका, तो वे गांव चंदबा
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किसानों का आरोप है कि विधानसभा स्पीकर ने मीडिया की मौजूदगी में उनसे बातचीत करने से मना कर दिया। इसके विरोध में किसानों ने नारेबाजी कर अपना विरोध दर्ज करवाया। हालांकि, स्पीकर का कहना है कि किसान वास्तविक बातचीत नहीं करना चाहते थे, बल्कि केवल वीडियो बनाना चाहते थे।
पत्रकारों से बातचीत करते विधानसभा स्पीकर कुलतार सिंह संधवां।
विधानसभा स्पीकर से सवाल-जवाब करना चाहते थे किसान
संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक ने खनौरी और शंभू बॉर्डर से अपने मोर्चे खत्म करवाए जाने के विरोध में आम आदमी पार्टी के नेताओं को घेरने का ऐलान किया था। इसी के तहत किसान नेता विधानसभा स्पीकर से सवाल-जवाब करना चाहते थे।
किसान नेता सोना सिंह और अन्य नेताओं ने स्पष्ट किया कि वे स्पीकर से किसान मोर्चे को खत्म करवाने के कारणों और किसानों की अन्य मांगों के बारे में चर्चा करना चाहते थे। लेकिन स्पीकर ने मीडिया की मौजूदगी में बातचीत से इनकार कर दिया।
मौके पर तैनात पुलिस बल।
विधानसभा स्पीकर ने केवल वीडियो बनाने का लगाया आरोप
विधानसभा स्पीकर कुलतार सिंह संधवां ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वह किसानों की हर बात का जवाब देने को तैयार थे। उनका आरोप था कि किसान वास्तविक संवाद नहीं करना चाहते थे, बल्कि केवल वीडियो बनाना चाहते थे, जिसके कारण बैठक सफल नहीं हो सकी।
गुरुवार को स्पीकर ने अपने दौरे में मिश्रीवाला, मोरां वाली, घुमियारा और चंदबाजा के सरकारी स्कूलों में विकास योजनाओं का उद्घाटन किया। हालांकि, किसानों के विरोध प्रदर्शन की घोषणा का इन कार्यक्रमों पर स्पष्ट प्रभाव देखा गया।
जानकारी देते किसान नेता सोना सिंह।
समारोह में अधिकांश कुर्सियां खाली रहीं
गांव चंदबाजा के स्कूल में आयोजित समारोह में अधिकांश कुर्सियां खाली रहीं, जो किसान आंदोलन के प्रभाव को दर्शाता है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि किसान आंदोलन का असर स्थानीय स्तर पर सरकारी कार्यक्रमों पर भी पड़ रहा है।
प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया और किसानों को स्पीकर से मिलवाने की व्यवस्था की, लेकिन दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पाई। मीडिया की उपस्थिति को लेकर दोनों पक्षों के बीच मतभेद स्पष्ट रूप से सामने आए।