फंस गया है RJD-JDU में सीट बंटवारा, नीतीश के ही फॉर्मूला 2019 से ज्यादा सीट मांग रहे लालू-तेजस्वी! h3>
इंडिया गठबंधन की दिल्ली में चौथी बैठक के 16 दिन बीत चुके हैं लेकिन बिहार समेत किसी भी राज्य में सीट शेयरिंग पर घटक दलों में कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है। हर जगह सीट पर दावे और प्रतिदावे चल रहे हैं। बैठक के बाद सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि सीट बंटवारा के लिए 31 दिसंबर डेडलाइन तय हुई है जो बीत गई पर कुछ बात बनी नहीं। कुछ नेताओं ने खुलकर कहा था कि तीन हफ्ते के अंदर सब हो जाएगा। दो हफ्ते बीत चुके हैं। तीसरे का भी दो दिन निकल चुका है। बचे हुए पांच दिन में कोई चमत्कार ही इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारा करा सकता है।
बिहार में इंडिया गठबंधन यानी महागठबंधन के दलों के सीट बंटवारा की शिखर वार्ता तो असल में नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच होनी है लेकिन दिल्ली में गठबंधन की मीटिंग से पहले ही दोनों ने मिलना बंद कर रखा है। दिल्ली में 19 दिसंबर की मीटिंग में औपचारिक मुलाकात छोड़ दें तो उसके बाद दोनों की कोई बैठक नहीं हुई है। तेजस्वी यादव भी नीतीश के जेडीयू अध्यक्ष बनने के सातवें दिन मिलने सीएम आवास गए। नीतीश और तेजस्वी के बीच 20 मिनट बात हुई है। एक दिन पहले नीतीश की ललन सिंह से 15 मिनट की मुलाकात हुई थी। चीजें अब चलती दिख रही हैं लेकिन सूत्रों का कहना है कि आरजेडी और जेडीयू के बीच सीट बंटवारा में फॉर्मूले का पेच फंसा हुआ है।
सीएम आवास पहुंचे तेजस्वी, नीतीश से मुलाकात; कल ललन से मिले थे जेडीयू अध्यक्ष
सूत्रों का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने जिस फॉर्मूले को आधार बनाकर बीजेपी से 17 लोकसभा सीटें ली थीं, लालू यादव उसी फॉर्मूले के आधार पर आरजेडी के लिए जेडीयू से ज्यादा सीट मांग रहे हैं। 2019 में जेडीयू के पास दो सांसद थे लेकिन विधानसभा में विधायक बीजेपी से ज्यादा थे। जेडीयू विधायकों की संख्या को आधार बनाकर नीतीश ने बीजेपी से 17-17 सीट पर बराबरी का समझौता किया। बाकी 6 सीटें रामविलास पासवान की लोजपा को गई थी। अब लालू विधायक गिना रहे हैं तो नीतीश सांसद दिखा रहे हैं। जेडीयू किसी सूरत में आरजेडी से एक कम सीट नहीं लड़ना चाहती ताकि उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल बना रहे।
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मामला फॉर्मूला पर फंसा हुआ है। जब तक लालू-तेजस्वी और नीतीश सीट बंटवारा का दोनों पक्षों को मान्य फॉर्मूला नहीं तय कर लेते तब तक बिहार में ना तो आरजेडी और जेडीयू के बीच सीट शेयरिंग हो पाएगी और ना ही कांग्रेस या लेफ्ट पार्टियों के बीच सीट का बंटवारा। सीट बंटवारे में आरजेडी के सामने कोई संकट ही नहीं है क्योंकि लोकसभा में उसका कोई सांसद नहीं है।
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लेकिन नीतीश के सामने कई सवाल और संकट हैं। 2019 में एनडीए से जीते जेडीयू के 16 सांसदों में 8 ने आरजेडी और 5 ने कांग्रेस को हराया था। बाकी 3 सीट पर RLSP और HAM के उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और अशोक आजाद हारे थे। नीतीश को आशंका है कि जेडीयू की जीती सीट आरजेडी या कांग्रेस को दी गई तो उनके सांसद बागी हो सकते हैं और बीजेपी उसका फायदा उठाने के लिए तैयार बैठी है। नीतीश को सिर्फ सीटों की गिनती की चिंता नहीं है, उन्हें जेडीयू के कब्जे वाली सीट किसी और को देने से पैदा होने वाली समस्या की भी चिंता है। नीतीश की चिंताओं और लालू की उम्मीदों में जब तक संतुलन नहीं बैठ जाता, बिहार में सीट का सवाल पहेली बना रहेगा।
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जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष पद से ललन सिंह की विदाई के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर दबाव बढ़ाते हुए अरुणाचल प्रदेश की दो में एक लोकसभा सीट के लिए कैंडिडेट अनाउंस कर दिया है। अरुणाचल की दोनों सीट कांग्रेस लड़ना चाहती है। जेडीयू के उम्मीदवार देने से कांग्रेस सकते में है क्योंकि इंडिया गठबंधन में लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादातर सीट पर एक सीट, एक कैंडिडेट की बात चल रही है। मुंगेर में ललन सिंह तो सीतामढ़ी में देवेश चंद्र ठाकुर इस तरह घूम रहे हैं मानो ये सीटें जेडीयू ने रिजर्व कर ली है।
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आरजेडी से असामान्य हो रहे संबंध के बीच ललन सिंह के जेडीयू अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने और पार्टी की बागडोर नीतीश के हाथ में जाने से कांग्रेस को कड़ा मैसेज गया है कि गठबंधन के सूत्रधार को तवज्जो नहीं मिलने से जेडीयू नाराज है। सितंबर से ही जल्दी सीट बंटवारे की बात कर रहे नीतीश ने अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू कैंडिडेट उतारकर कांग्रेस पर दबाव और बढ़ाया है। बिहार में कांग्रेस के हितों की रक्षा लालू यादव के हवाले है। इंडिया गठबंधन की अगली बैठक से पहले नीतीश ने यह साफ कर दिया है कि अब उनकी उपेक्षा को जेडीयू बर्दाश्त नहीं करने वाली है। लालू यादव के भी तेवर बदले हैं। दिल्ली में नीतीश का नाम ना बढ़ाने की वजह से खराब हुए माहौल को अब वो नीतीश को खुले समर्थन से ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं।
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इंडिया गठबंधन की दिल्ली में चौथी बैठक के 16 दिन बीत चुके हैं लेकिन बिहार समेत किसी भी राज्य में सीट शेयरिंग पर घटक दलों में कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है। हर जगह सीट पर दावे और प्रतिदावे चल रहे हैं। बैठक के बाद सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि सीट बंटवारा के लिए 31 दिसंबर डेडलाइन तय हुई है जो बीत गई पर कुछ बात बनी नहीं। कुछ नेताओं ने खुलकर कहा था कि तीन हफ्ते के अंदर सब हो जाएगा। दो हफ्ते बीत चुके हैं। तीसरे का भी दो दिन निकल चुका है। बचे हुए पांच दिन में कोई चमत्कार ही इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारा करा सकता है।
बिहार में इंडिया गठबंधन यानी महागठबंधन के दलों के सीट बंटवारा की शिखर वार्ता तो असल में नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच होनी है लेकिन दिल्ली में गठबंधन की मीटिंग से पहले ही दोनों ने मिलना बंद कर रखा है। दिल्ली में 19 दिसंबर की मीटिंग में औपचारिक मुलाकात छोड़ दें तो उसके बाद दोनों की कोई बैठक नहीं हुई है। तेजस्वी यादव भी नीतीश के जेडीयू अध्यक्ष बनने के सातवें दिन मिलने सीएम आवास गए। नीतीश और तेजस्वी के बीच 20 मिनट बात हुई है। एक दिन पहले नीतीश की ललन सिंह से 15 मिनट की मुलाकात हुई थी। चीजें अब चलती दिख रही हैं लेकिन सूत्रों का कहना है कि आरजेडी और जेडीयू के बीच सीट बंटवारा में फॉर्मूले का पेच फंसा हुआ है।
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सूत्रों का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने जिस फॉर्मूले को आधार बनाकर बीजेपी से 17 लोकसभा सीटें ली थीं, लालू यादव उसी फॉर्मूले के आधार पर आरजेडी के लिए जेडीयू से ज्यादा सीट मांग रहे हैं। 2019 में जेडीयू के पास दो सांसद थे लेकिन विधानसभा में विधायक बीजेपी से ज्यादा थे। जेडीयू विधायकों की संख्या को आधार बनाकर नीतीश ने बीजेपी से 17-17 सीट पर बराबरी का समझौता किया। बाकी 6 सीटें रामविलास पासवान की लोजपा को गई थी। अब लालू विधायक गिना रहे हैं तो नीतीश सांसद दिखा रहे हैं। जेडीयू किसी सूरत में आरजेडी से एक कम सीट नहीं लड़ना चाहती ताकि उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल बना रहे।
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मामला फॉर्मूला पर फंसा हुआ है। जब तक लालू-तेजस्वी और नीतीश सीट बंटवारा का दोनों पक्षों को मान्य फॉर्मूला नहीं तय कर लेते तब तक बिहार में ना तो आरजेडी और जेडीयू के बीच सीट शेयरिंग हो पाएगी और ना ही कांग्रेस या लेफ्ट पार्टियों के बीच सीट का बंटवारा। सीट बंटवारे में आरजेडी के सामने कोई संकट ही नहीं है क्योंकि लोकसभा में उसका कोई सांसद नहीं है।
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लेकिन नीतीश के सामने कई सवाल और संकट हैं। 2019 में एनडीए से जीते जेडीयू के 16 सांसदों में 8 ने आरजेडी और 5 ने कांग्रेस को हराया था। बाकी 3 सीट पर RLSP और HAM के उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और अशोक आजाद हारे थे। नीतीश को आशंका है कि जेडीयू की जीती सीट आरजेडी या कांग्रेस को दी गई तो उनके सांसद बागी हो सकते हैं और बीजेपी उसका फायदा उठाने के लिए तैयार बैठी है। नीतीश को सिर्फ सीटों की गिनती की चिंता नहीं है, उन्हें जेडीयू के कब्जे वाली सीट किसी और को देने से पैदा होने वाली समस्या की भी चिंता है। नीतीश की चिंताओं और लालू की उम्मीदों में जब तक संतुलन नहीं बैठ जाता, बिहार में सीट का सवाल पहेली बना रहेगा।
ललन सिंह की विदाई के बाद अरुणाचल प्रदेश में कैंडिडेट का ऐलान, क्या है जेडीयू का मास्टरप्लान
जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष पद से ललन सिंह की विदाई के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर दबाव बढ़ाते हुए अरुणाचल प्रदेश की दो में एक लोकसभा सीट के लिए कैंडिडेट अनाउंस कर दिया है। अरुणाचल की दोनों सीट कांग्रेस लड़ना चाहती है। जेडीयू के उम्मीदवार देने से कांग्रेस सकते में है क्योंकि इंडिया गठबंधन में लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादातर सीट पर एक सीट, एक कैंडिडेट की बात चल रही है। मुंगेर में ललन सिंह तो सीतामढ़ी में देवेश चंद्र ठाकुर इस तरह घूम रहे हैं मानो ये सीटें जेडीयू ने रिजर्व कर ली है।
हफ्ते भर में नीतीश के दूसरे सिग्नल से मुश्किल में कांग्रेस, अरुणाचल में JDU ने क्यों उम्मीदवार उतारा
आरजेडी से असामान्य हो रहे संबंध के बीच ललन सिंह के जेडीयू अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने और पार्टी की बागडोर नीतीश के हाथ में जाने से कांग्रेस को कड़ा मैसेज गया है कि गठबंधन के सूत्रधार को तवज्जो नहीं मिलने से जेडीयू नाराज है। सितंबर से ही जल्दी सीट बंटवारे की बात कर रहे नीतीश ने अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू कैंडिडेट उतारकर कांग्रेस पर दबाव और बढ़ाया है। बिहार में कांग्रेस के हितों की रक्षा लालू यादव के हवाले है। इंडिया गठबंधन की अगली बैठक से पहले नीतीश ने यह साफ कर दिया है कि अब उनकी उपेक्षा को जेडीयू बर्दाश्त नहीं करने वाली है। लालू यादव के भी तेवर बदले हैं। दिल्ली में नीतीश का नाम ना बढ़ाने की वजह से खराब हुए माहौल को अब वो नीतीश को खुले समर्थन से ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं।