प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का अच्छा असर पर्यावरण पर भी h3>
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6 घंटे पहले
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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर
एक राष्ट्र एक चुनाव (ओएनओई) के प्रस्ताव ने पूरे देश में चर्चाओं को जन्म दिया है, जिसमें मुख्य रूप से शासन की दक्षता, लागत-बचत और प्रशासनिक और सुरक्षा प्रणालियों पर बोझ कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसे ऐसे समाधान के रूप में सराहा जा रहा है, जो सरकारी मशीनरी को चुनाव-प्रचार की तुलना में शासन पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बना सकता है। साथ ही जो विभिन्न राज्यों में लगातार चुनावों के कारण होने वाले व्यवधानों को कम कर सकता है। लेकिन एक और आयाम है जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है- इसका पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव।
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चुनाव लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनके लिए पर्यावरण को भी कीमत चुकानी पड़ती है। हर चुनाव चक्र में लोगों की भारी आवाजाही, सामग्री की छपाई, ईंधन की खपत, बिजली का उपयोग और बड़े पैमाने पर शारीरिक और डिजिटल लामबंदी होती है।
28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग आयोजित चुनावों की संख्या से इसका गुणा करें, तो यह पैमाना बहुत बड़ा हो जाता है। यदि भारत ओएनओई के माध्यम से लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराता है तो अनुमान है कि 6.5 लाख करोड़ के कुल अनुमानित चुनाव व्यय में से पांच साल की अवधि में कम से कम 4 या 5 लाख करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। यह केवल वित्तीय बचत नहीं है; यह गतिविधियों में भारी कमी को भी दर्शाता है। ओएनओई के क्रियान्वयन के माध्यम से बचाए जाने वाले उत्सर्जन कई स्रोतों से आएंगे। यात्रा एक प्रमुख योगदानकर्ता है।
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हर चुनाव में लाखों मतदान अधिकारी, अर्धसैनिक बल, राजनीतिक प्रचारक और मतदाता हवाई, रेल और सड़क सहित परिवहन के विभिन्न साधनों का उपयोग करके देश भर में घूमते हैं। कम चुनाव का मतलब है कम यात्राएं, कम ईंधन की खपत और कम प्रदूषण। राजनीतिक अभियान तीव्र ऊर्जा उपयोग का एक और क्षेत्र है।
हजारों रैलियां आयोजित की जाती हैं, जिनमें लाउडस्पीकर, लाइटिंग सेटअप, डीजल जनरेटर, वाहनों के काफिले और अस्थायी संरचनाओं का उपयोग किया जाता है- ये सभी बिजली और ईंधन पर चलते हैं। इसके अलावा, चुनाव के मौसम में मुद्रित सामग्री- पोस्टर, बैनर, फ्लायर्स, टी-शर्ट और प्लास्टिक के सामान की बाढ़ आ जाती है। इनमें से ज्यादातर एकल-उपयोग वाली वस्तुएं हैं जो या तो लैंडफिल में चली जाती हैं या जला दी जाती हैं, जिससे प्रदूषण में योगदान होता है।
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यहां तक कि डिजिटल और प्रसारण अभियान भी पर्यावरणीय लागत वहन करते हैं। हर सोशल मीडिया विज्ञापन और वीडियो स्ट्रीम के पीछे एक डेटा सेंटर होता है, जो हर सेकंड बिजली की खपत करता है। सैकड़ों निर्वाचन क्षेत्रों और कई चुनाव चक्रों में संचयी डिजिटल पदचिह्न काफी बड़ा हो जाता है। ओएनओई इन चक्रों को एकल, समयबद्ध प्रक्रिया में संघनित कर देगा, जिससे बेहतर नियंत्रण, नियोजन और अंततः कम पर्यावरणीय दुष्प्रभाव संभव होगा।
कार्बन-तीव्रता का मतलब है कि एक इकाई जीडीपी के लिए कितना सीओटू उत्सर्जित होता है। 2023-24 तक भारत की कार्बन-तीव्रता प्रति ₹100 खर्च पर 0.24 किलोग्राम सीओटू थी। इसके आधार पर, ₹5 लाख करोड़ की आर्थिक गतिविधि के परिणामस्वरूप लगभग 1.2 मिलियन टन- या 12 लाख मीट्रिक टन सीओटू उत्सर्जन होगा।
यह लगभग 12 लाख परिपक्व पेड़ों को काटने के बराबर है। क्योकि एक पूर्ण विकसित पेड़ अपने जीवनकाल में लगभग एक मीट्रिक टन सीओटू अवशोषित करता है। ऐसे में ओएनओई के बहुआयामी लाभ हैं। इससे पैसों की बचत होती है और प्रशासनिक तनाव कम होता है। सरकारों को दीर्घकालिक नीति पर काम करने के लिए अधिक निर्बाध समय मिलता है। और यह स्पष्ट रूप से जलवायु-लाभ भी प्रदान करता है।
जलवायु संकट की मांग है कि हम हर गतिविधि को क्लाइमेट के नजरिए से देखें। एक देश एक चुनाव न केवल लोकतंत्र को मजबूत बनाता है, बल्कि बिना किसी अतिरिक्त निवेश के कार्बन फुटप्रिंट को भी कम कर सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर
एक राष्ट्र एक चुनाव (ओएनओई) के प्रस्ताव ने पूरे देश में चर्चाओं को जन्म दिया है, जिसमें मुख्य रूप से शासन की दक्षता, लागत-बचत और प्रशासनिक और सुरक्षा प्रणालियों पर बोझ कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसे ऐसे समाधान के रूप में सराहा जा रहा है, जो सरकारी मशीनरी को चुनाव-प्रचार की तुलना में शासन पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बना सकता है। साथ ही जो विभिन्न राज्यों में लगातार चुनावों के कारण होने वाले व्यवधानों को कम कर सकता है। लेकिन एक और आयाम है जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है- इसका पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव।
चुनाव लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनके लिए पर्यावरण को भी कीमत चुकानी पड़ती है। हर चुनाव चक्र में लोगों की भारी आवाजाही, सामग्री की छपाई, ईंधन की खपत, बिजली का उपयोग और बड़े पैमाने पर शारीरिक और डिजिटल लामबंदी होती है।
28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग आयोजित चुनावों की संख्या से इसका गुणा करें, तो यह पैमाना बहुत बड़ा हो जाता है। यदि भारत ओएनओई के माध्यम से लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराता है तो अनुमान है कि 6.5 लाख करोड़ के कुल अनुमानित चुनाव व्यय में से पांच साल की अवधि में कम से कम 4 या 5 लाख करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। यह केवल वित्तीय बचत नहीं है; यह गतिविधियों में भारी कमी को भी दर्शाता है। ओएनओई के क्रियान्वयन के माध्यम से बचाए जाने वाले उत्सर्जन कई स्रोतों से आएंगे। यात्रा एक प्रमुख योगदानकर्ता है।
हर चुनाव में लाखों मतदान अधिकारी, अर्धसैनिक बल, राजनीतिक प्रचारक और मतदाता हवाई, रेल और सड़क सहित परिवहन के विभिन्न साधनों का उपयोग करके देश भर में घूमते हैं। कम चुनाव का मतलब है कम यात्राएं, कम ईंधन की खपत और कम प्रदूषण। राजनीतिक अभियान तीव्र ऊर्जा उपयोग का एक और क्षेत्र है।
हजारों रैलियां आयोजित की जाती हैं, जिनमें लाउडस्पीकर, लाइटिंग सेटअप, डीजल जनरेटर, वाहनों के काफिले और अस्थायी संरचनाओं का उपयोग किया जाता है- ये सभी बिजली और ईंधन पर चलते हैं। इसके अलावा, चुनाव के मौसम में मुद्रित सामग्री- पोस्टर, बैनर, फ्लायर्स, टी-शर्ट और प्लास्टिक के सामान की बाढ़ आ जाती है। इनमें से ज्यादातर एकल-उपयोग वाली वस्तुएं हैं जो या तो लैंडफिल में चली जाती हैं या जला दी जाती हैं, जिससे प्रदूषण में योगदान होता है।
यहां तक कि डिजिटल और प्रसारण अभियान भी पर्यावरणीय लागत वहन करते हैं। हर सोशल मीडिया विज्ञापन और वीडियो स्ट्रीम के पीछे एक डेटा सेंटर होता है, जो हर सेकंड बिजली की खपत करता है। सैकड़ों निर्वाचन क्षेत्रों और कई चुनाव चक्रों में संचयी डिजिटल पदचिह्न काफी बड़ा हो जाता है। ओएनओई इन चक्रों को एकल, समयबद्ध प्रक्रिया में संघनित कर देगा, जिससे बेहतर नियंत्रण, नियोजन और अंततः कम पर्यावरणीय दुष्प्रभाव संभव होगा।
कार्बन-तीव्रता का मतलब है कि एक इकाई जीडीपी के लिए कितना सीओटू उत्सर्जित होता है। 2023-24 तक भारत की कार्बन-तीव्रता प्रति ₹100 खर्च पर 0.24 किलोग्राम सीओटू थी। इसके आधार पर, ₹5 लाख करोड़ की आर्थिक गतिविधि के परिणामस्वरूप लगभग 1.2 मिलियन टन- या 12 लाख मीट्रिक टन सीओटू उत्सर्जन होगा।
यह लगभग 12 लाख परिपक्व पेड़ों को काटने के बराबर है। क्योकि एक पूर्ण विकसित पेड़ अपने जीवनकाल में लगभग एक मीट्रिक टन सीओटू अवशोषित करता है। ऐसे में ओएनओई के बहुआयामी लाभ हैं। इससे पैसों की बचत होती है और प्रशासनिक तनाव कम होता है। सरकारों को दीर्घकालिक नीति पर काम करने के लिए अधिक निर्बाध समय मिलता है। और यह स्पष्ट रूप से जलवायु-लाभ भी प्रदान करता है।
जलवायु संकट की मांग है कि हम हर गतिविधि को क्लाइमेट के नजरिए से देखें। एक देश एक चुनाव न केवल लोकतंत्र को मजबूत बनाता है, बल्कि बिना किसी अतिरिक्त निवेश के कार्बन फुटप्रिंट को भी कम कर सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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