प्रयागराज नगर निगम में 1.44 करोड़ का घोटाला: आउटसोर्स कर्मचारियों ने गृहकर की रसीदें काटकर राशि नहीं की जमा, एफआईआर दर्ज – Prayagraj (Allahabad) News h3>
सचिन प्रजापति | प्रयागराज52 मिनट पहले
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संगम नगरी प्रयागराज की प्रतिष्ठा को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब नगर निगम के दो जोनों से 1.44 करोड़ रुपये के गबन का मामला उजागर हुआ। यह घोटाला न केवल निगम प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि आउटसोर्सिंग व्यवस्था की पारदर्शिता और निगरानी तंत्र की पोल भी खोलता है।
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क्या है पूरा मामला?
नगर निगम के जोन-3 और जोन-7 में कार्यरत दो आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर – आकाश श्रीवास्तव (जोन-3) और सत्यम शुक्ला (जोन-7) – पर आरोप है कि इन्होंने गृहकर के नाम पर जनता से धनराशि वसूली, रसीदें काटीं, लेकिन वह राशि निगम के खजाने तक पहुंची ही नहीं। इस गबन को लेकर मुख्य कर निर्धारण अधिकारी पी.के. द्विवेदी द्वारा दी गई तहरीर के मुताबिक, प्रारंभिक जांच में पाया गया कि
जोन 3 के आकाश श्रीवास्तव की आईडी से काटी गई 88 रसीदों में ₹18,08,661 की राशि निगम कोष में नहीं जमा की गई। वहीं जोन 7 के सत्यम शुक्ला की आईडी से 387 गृहकर रसीदें जारी की गईं, जिनकी राशि ₹1,26,05,368 थी जो गायब है।
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घोटाला छिपाने के लिए ID भी करवाई निष्क्रिय
यही नहीं जोन 7 के सत्यम शुक्ला ने अपने फर्जीवाड़े को छिपाने के लिए 30 मार्च को आईटी ऑफिसर केशव गुप्ता से संपर्क कर अपनी आईडी निष्क्रिय करवा दी। साथ ही उसने 29 मार्च की 14 रसीदें भी निरस्त करवा लीं, ताकि रिकार्ड में गड़बड़ी छिपाई जा सके।
ऑडिट ने खोली सच्चाई, FIR दर्ज
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नगर निगम के मुख्य नगर लेखा परीक्षक द्वारा कराए गए विशेष ऑडिट से दोनों ऑपरेटरों की गतिविधियों की परतें खुलीं। ऑडिट आख्या में यह साफ-साफ दर्शाया गया है कि यह सोची-समझी वित्तीय अनियमितता है। इसके आधार पर कर्नलगंज थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई है, और दोनों आरोपियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
प्रशासनिक लापरवाही या अंदरूनी सांठगांठ
अब सवाल यह उठ रहा है कि इतनी बड़ी धनराशि का गबन सिर्फ दो कंप्यूटर ऑपरेटरों की करतूत हो सकती है या फिर इसके पीछे कोई बड़ी सांठगांठ है? क्या संबंधित जोन के प्रभारी, लेखा अधिकारी या अन्य स्टाफ को इसकी भनक नहीं लगी? या वे भी इस घोटाले में मौन समर्थन कर रहे थे?
आउटसोर्सिंग प्रणाली पर उठते सवाल
इस मामले ने नगर निगमों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों की भूमिका और जवाबदेही पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या बिना उचित निगरानी और ऑडिट ट्रैकिंग के इतने संवेदनशील विभागों में आउटसोर्स स्टाफ को जिम्मेदारी देना सही है?
जनता में आक्रोश, पारदर्शिता की मांग
विवाद के बाद शहरवासियों में रोष है। लोगों का कहना है कि जब वे ईमानदारी से गृहकर जमा करते हैं, तो उस धन का गबन होना विश्वासघात है। कई नागरिक संगठनों ने मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच हो, दोषियों को जेल भेजा जाए और भविष्य में ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम और रियल-टाइम रसीद सत्यापन लागू किया जाए।
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सचिन प्रजापति | प्रयागराज52 मिनट पहले
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संगम नगरी प्रयागराज की प्रतिष्ठा को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब नगर निगम के दो जोनों से 1.44 करोड़ रुपये के गबन का मामला उजागर हुआ। यह घोटाला न केवल निगम प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है, बल्कि आउटसोर्सिंग व्यवस्था की पारदर्शिता और निगरानी तंत्र की पोल भी खोलता है।
क्या है पूरा मामला?
नगर निगम के जोन-3 और जोन-7 में कार्यरत दो आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर – आकाश श्रीवास्तव (जोन-3) और सत्यम शुक्ला (जोन-7) – पर आरोप है कि इन्होंने गृहकर के नाम पर जनता से धनराशि वसूली, रसीदें काटीं, लेकिन वह राशि निगम के खजाने तक पहुंची ही नहीं। इस गबन को लेकर मुख्य कर निर्धारण अधिकारी पी.के. द्विवेदी द्वारा दी गई तहरीर के मुताबिक, प्रारंभिक जांच में पाया गया कि
जोन 3 के आकाश श्रीवास्तव की आईडी से काटी गई 88 रसीदों में ₹18,08,661 की राशि निगम कोष में नहीं जमा की गई। वहीं जोन 7 के सत्यम शुक्ला की आईडी से 387 गृहकर रसीदें जारी की गईं, जिनकी राशि ₹1,26,05,368 थी जो गायब है।
घोटाला छिपाने के लिए ID भी करवाई निष्क्रिय
यही नहीं जोन 7 के सत्यम शुक्ला ने अपने फर्जीवाड़े को छिपाने के लिए 30 मार्च को आईटी ऑफिसर केशव गुप्ता से संपर्क कर अपनी आईडी निष्क्रिय करवा दी। साथ ही उसने 29 मार्च की 14 रसीदें भी निरस्त करवा लीं, ताकि रिकार्ड में गड़बड़ी छिपाई जा सके।
ऑडिट ने खोली सच्चाई, FIR दर्ज
नगर निगम के मुख्य नगर लेखा परीक्षक द्वारा कराए गए विशेष ऑडिट से दोनों ऑपरेटरों की गतिविधियों की परतें खुलीं। ऑडिट आख्या में यह साफ-साफ दर्शाया गया है कि यह सोची-समझी वित्तीय अनियमितता है। इसके आधार पर कर्नलगंज थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई है, और दोनों आरोपियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
प्रशासनिक लापरवाही या अंदरूनी सांठगांठ
अब सवाल यह उठ रहा है कि इतनी बड़ी धनराशि का गबन सिर्फ दो कंप्यूटर ऑपरेटरों की करतूत हो सकती है या फिर इसके पीछे कोई बड़ी सांठगांठ है? क्या संबंधित जोन के प्रभारी, लेखा अधिकारी या अन्य स्टाफ को इसकी भनक नहीं लगी? या वे भी इस घोटाले में मौन समर्थन कर रहे थे?
आउटसोर्सिंग प्रणाली पर उठते सवाल
इस मामले ने नगर निगमों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों की भूमिका और जवाबदेही पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या बिना उचित निगरानी और ऑडिट ट्रैकिंग के इतने संवेदनशील विभागों में आउटसोर्स स्टाफ को जिम्मेदारी देना सही है?
जनता में आक्रोश, पारदर्शिता की मांग
विवाद के बाद शहरवासियों में रोष है। लोगों का कहना है कि जब वे ईमानदारी से गृहकर जमा करते हैं, तो उस धन का गबन होना विश्वासघात है। कई नागरिक संगठनों ने मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच हो, दोषियों को जेल भेजा जाए और भविष्य में ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम और रियल-टाइम रसीद सत्यापन लागू किया जाए।