पुलिसवाले घोड़ों पर बैठकर कर रहे खेत की निगरानी, VIDEO: सिपाहियों की अलग-अलग शिफ्ट में ड्यूटी लगी, दिनभर खेतों में घूमते हैं – barh News h3>
राजधानी पटना से 90 किलोमीटर दूर…बाढ़ का करीब साढ़े चार हजार बीघा में फैला सरहन टाल। चना, मसूर, गेहूं, अलसी और बाजरे के लहलहाते पौधे। इनकी खुशबू दूर तक आती है। खेत के मेड़ (रास्ते) पर करीब दो किलोमीटर दूर आगे बढ़े तो घोड़े पर सवार बिहार पुलिस के 5 सिप
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उन्होंने बताया पिछले 20 दिनों से फसल की रखवाली कर रहे हैं। घोड़े से रखवाली क्यों?, पूछने पर ड्यूटी पर मौजूद हवलदार बृजबिहारी सिंह ने बताया, ‘हम लोग फसलों की रखवाली करते हैं। टाल एरिया में जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है और ना कोई बांध है, जहां पुलिस की गाड़ी जा सके। ऐसे में हम लोगों की ड्यूटी लगाई गई है।’
‘चारों तरफ खेतों में फसल लगे हैं। टाल के बीचों-बीच बड़ी गाड़ी ले जाने में फसल बर्बाद होती है। खेतों के बीच में आने-जाने के लिए पतली बांध है। घोड़ा तेजी से दौड़ सकते हैं। ये पानी, दलदल जमीन के साथ किसी भी जमीन पर दौड़ने भागने में सक्षम होते हैं। इसलिए हमलोग घोड़े से ही फसलों की रखवाली कर रहे हैं। ऐसे में फसल भी बर्बाद नहीं होती है।’
सरहन टाल में घोड़ों से खेतों की निगरानी करते बिहार पुलिस के जवान।
सिपाही से बातचीत के बाद आगे बढ़े तो कुछ गांव वाले/किसान मिले। उन्होंने बताया, ‘जब फसल थोड़ी बड़ी होती है तो आसपास के गांव के मवेशी पालने वाले झुंड बनाकर एक साथ 30-35 लोग आते हैं और काटकर चले जाते हैं।’
‘अभी मवेशी को मसूर, चना और मटर खिलाने से गाय और भैंस ज्यादा दूध देती है। इसलिए चोर खेतों में लगे मसूर, चना, मटर की फसल को काट लेते हैं। मना करने पर मारपीट करते हैं।’
किसान अमरेश कुमार ने बताया, ‘पूरे इलाके में बरसात के दिनों में पानी भर जाता है, जिसके कारण धान की खेती नहीं हो पाती है। किसान सिर्फ मसूर, चना, गेहूं, मटर और जौ जैसे रबी फसल पर ही निर्भर रहते हैं। जब फसल तैयार होने को आती है तो मवेशी वाले गुंडागर्दी कर फसल काट लेते हैं। इस साल भी चोर चोरी से फसल काटने लगे थे। जब से पुलिस वाले पहुंचे हैं, तब से चोरी बंद है।’
6 साल से हो रही घोड़े से रखवाली
किसान मनोज कुमार ने बताया, ‘1990 की दशक में सबसे ज्यादा फसल की चोरी होती थी। यह इलाका इतना बड़ा है कि खेतों में किसान रुककर निगरानी नहीं कर सकते हैं। सबका घर काफी दूर है। चोरी की जब घटना बढ़ी तो इसकी शिकायत थाने में की गई। तब से हर साल फसल तैयार होने के समय पुलिस वाले आते हैं। 2019 से यहां घोड़े से पुलिस वाले खेतों में घूमकर रखवाली करते हैं।’
साढ़े 4 हजार बीघा में फैले टाल एरिया में चना, मसूर और गेहूं की खेती होती है। 6 महीने पानी में टाल एरिया डूबा रहता है।
बाढ़ ASP राकेश कुमार ने बताया…
टाल क्षेत्र के कई इलाके में पक्की सड़क नहीं थी। वहां पुलिस का पहुंचना मुश्किल था। फसल को चोर काट ले जाते थे। ऐसी जगहों पर पुलिस कैंप करती थी। बीते कुछ सालों में कई टाल के एरिया में सड़क बन गई वहां अब पुलिस असानी से चली जाती है और पेट्रोलिंग भी करती है। सरहन में अभी भी सड़क नहीं है। इसलिए वहां पुलिस का अस्थायी कैंप बनाया गया है। हमारे ट्रेंड घोड़े और पुलिस के जवान फसलों की निगरानी कर रहे हैं।
किसान सिर्फ रबी फसल की करते हैं खेती
सरहन गांव में जाने वाली संकरी सड़क है। इस पर काफी गड्ढे हैं। इसी सड़क से पैदल, साइकिल और मोटरसाइकिल से लोग आते-जाते हैं। गांव के बाहर ही रोड खत्म हो जाता है। टाल एरिया में जाने के लिए आपको पैदल जाना पड़ेगा।
सरहन गांव के दक्षिण में लगभग 5 किलोमीटर तक कोई दूसरा गांव नहीं है। यह पूरा टाल का एरिया है, जहां साल के 6 महीने से अधिक पानी लगा होता है। ऐसे में किसान धान की खेती सही से नहीं कर पाते हैं। सिर्फ रबी फसल की खेती करते हैं।
गांव की सड़क टूट गई है। एरिया में बड़ी गाड़ी नहीं जा सकती है।
एक घोड़े पर रोज 500 रुपए खर्च
हवलदार बृजबिहारी सिंह ने बताया, ‘अभी हमारे पास 5 घोड़े हैं। यहां कुल 6 पुलिस वालों की ड्यूटी दी गई है। ये आम घोड़े से काफी अलग हैं। 5 घोड़े में से 3 विदेशी और 1 देशी ब्रीड के हैं। सभी घोड़े को स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है। किसी भी बड़े नाला, बांध को फनाने, तेजी से भागने और पीछा करने, दलदल जमीन और पहाड़ी इलाकों में भी आसानी से दौड़ भाग लेने में सक्षम हैं।’
पांचों घोड़े को भागलपुर के अश्वारोही कैंप से लाया गया है। बिहार में पटना, राजगीर पुलिस अकादमी, भागलपुर, सोनपुर और आरा में अश्वारोही कैंप का मुख्यालय है। बिहार में अश्वारोही कैंप का मुख्यालय आरा में है।
पूरे बिहार के अश्वारोही कैंप में अभी 125 घोड़े है। जिसमें से 42 घोड़े की आरा ट्रेनिंग कैंप में ट्रेनिंग चल रही है। एक घोड़े को पूरी तरीके से ट्रेंड होने में 52 सप्ताह का समय लगता है।
इन सभी घोड़े के खाने और सेहत का भी काफी ख्याल रखा जाता है। खाने में रोज ई, चोकर, चना, तीसी , जौ, सोयाबीन और गुड़ दिए जाते हैं। एक घोड़े पर लगभग 500 रुपए का रोज का खर्च आता है। समय-समय पर वैक्सीन भी लगाई जाती है। रोज इनकी ब्रश और हाथ से मालिश की जाती है। बिहार में विधि व्यवस्था और गेम, परेड में हिस्सा लेने के लिए घोड़े को रखा गया है। यहां पुलिस की गाड़ी नहीं पहुंच पाती है, वैसे जगहों पर इन घोड़े की मदद ली जाती है।