पीलीभीत में होली का अनोखा रंग: माधोटांडा में महिलाओं का एक दिन राज, पुरुष छिपने को मजबूर – Pilibhit News h3>
सौरभ दीक्षित|पीलीभीत12 मिनट पहले
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पीलीभीत में होली का अनोखा रंग।
पीलीभीत जिले में स्थित माधोटांडा में होली का त्योहार एक अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां बरसाने की तरह ही एक दिन पूरी तरह से महिलाओं का राज होता है।
भारत-नेपाल सीमा से लगे इस कस्बे में राजवाड़ों के समय से चली आ रही यह परंपरा महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन गई है। इस दिन छोटी बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाएं तक अपने इस विशेष अधिकार का पूरा उपयोग करती हैं। घूंघट में रहने वाली नई दुल्हनें भी घर की चौखट से बाहर निकलकर अपनी ननदों और सहेलियों के साथ रंग-गुलाल में शामिल होती हैं।
पुरुष महिलाओं के सामने नतमस्तक
माधोटांडा की होली की खास बात यह है कि इस दिन बड़े से बड़े पदाधिकारी भी महिलाओं के सामने नतमस्तक हो जाते हैं। महिलाओं की पिचकारियों के डर से कस्बे के पुरुष जंगल या अन्य जगहों में छिप जाते हैं। उन्हें डर रहता है कि अगर महिलाओं के हाथ लग गए, तो मुश्किल हो सकती है।
ढोलक की थाप पर फाग गीत
यहां की संस्कृति में ढोलक की थाप और हारमोनियम की धुन पर फाग गीत गाए जाते हैं। जो तराई क्षेत्र में हर किसी का मन मोह लेते हैं। जिस तरह ब्रज, बरसाने और अवध की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। उसी तरह माधोटांडा की यह अनूठी होली भी अपनी अलग पहचान रखती है।
मंदिर में एकत्र होकर महिलाएं पहले भगवान से खेलती हैं होली माधोटांडा में दो दिन होली खेले जाने की परंपरा बहुत प्राचीन परंपरा है। पहले दिन कस्बा में पुरुषों की टोलियां घर-घर जाकर होली खेलती हैं। दूसरे दिन कस्बा की महिलाएं रानी सुंदर कुंवरी के पति राजा जयसिंह द्वारा निर्मित प्राचीन ठाकुरद्वारा मंदिर माधव मुकंद महाराज में एकत्र होकर सबसे पहले श्री राधाकृष्ण, सीताराम के साथ रंग खेलती। फिर अन्य देवी-देवताओं को भी रंग गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेने के बाद आपस में एक दूसरे के साथ रंग खेलने की शुरुआत करती हैं। उसके बाद घर घर जाकर महिलाओं की टोलियां लोगों को रंगों में सराबोर कर देती हैं। अगर इस दिन कोई भी पुरुष धोखे से महिलाओं के हत्थे चढ़ जाता है, तो उसका बुरा हश्र हो जाता है। माधोटांडा के राजघरानों से शुरू हुई थी यह परंपरा
दो दिन होली की शुरुआत के पीछे कस्बा के बुजुर्गों का कहना है कि माधोटांडा रजवाड़े के शाही परिवारों के पुरुष पहले दिन आपस में होली खेलते थे। दूसरे दिन अपने लाव लश्कर के साथ जंगल में शिकार को रवाना हो जाते थे। पूरा गांव महिलाओं के लिए छोड़ दिया जाता था। जिससे महिलाएं जी भरकर आपस में होली खेल सके। आज भी यहां बुजुर्गों की बनाई इस परंपरा का पालन किया जा रहा है।
डर से भाग जाते हैं पुरुष
ब्रज, बरसाना आदि में जहां कई दिनों तक होली खेले जाने की परंपरा है। वहीं जनपद के माधोटांडा में दो दिन होली खेले जाने की परंपरा यहां पहले दिन पुरुष और दूसरे दिन महिलाएं होली खेलती है। दूसरे दिन गांव के अधिकांश पुरुष महिलाओं की डर की वजह से जंगल की ओर कूच कर जाते हैं। यदि कोई पुरुष इनकी रंग खेलने की आजादी में दखलंदाज़ी करता है, तो उसकी जमकर कर रंगों से धुलाई की जाती है। छुटकारा पाने के लिए फगुआ देना पड़ता है।
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सौरभ दीक्षित|पीलीभीत12 मिनट पहले
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पीलीभीत में होली का अनोखा रंग।
पीलीभीत जिले में स्थित माधोटांडा में होली का त्योहार एक अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां बरसाने की तरह ही एक दिन पूरी तरह से महिलाओं का राज होता है।
भारत-नेपाल सीमा से लगे इस कस्बे में राजवाड़ों के समय से चली आ रही यह परंपरा महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन गई है। इस दिन छोटी बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाएं तक अपने इस विशेष अधिकार का पूरा उपयोग करती हैं। घूंघट में रहने वाली नई दुल्हनें भी घर की चौखट से बाहर निकलकर अपनी ननदों और सहेलियों के साथ रंग-गुलाल में शामिल होती हैं।
पुरुष महिलाओं के सामने नतमस्तक
माधोटांडा की होली की खास बात यह है कि इस दिन बड़े से बड़े पदाधिकारी भी महिलाओं के सामने नतमस्तक हो जाते हैं। महिलाओं की पिचकारियों के डर से कस्बे के पुरुष जंगल या अन्य जगहों में छिप जाते हैं। उन्हें डर रहता है कि अगर महिलाओं के हाथ लग गए, तो मुश्किल हो सकती है।
ढोलक की थाप पर फाग गीत
यहां की संस्कृति में ढोलक की थाप और हारमोनियम की धुन पर फाग गीत गाए जाते हैं। जो तराई क्षेत्र में हर किसी का मन मोह लेते हैं। जिस तरह ब्रज, बरसाने और अवध की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। उसी तरह माधोटांडा की यह अनूठी होली भी अपनी अलग पहचान रखती है।
मंदिर में एकत्र होकर महिलाएं पहले भगवान से खेलती हैं होली माधोटांडा में दो दिन होली खेले जाने की परंपरा बहुत प्राचीन परंपरा है। पहले दिन कस्बा में पुरुषों की टोलियां घर-घर जाकर होली खेलती हैं। दूसरे दिन कस्बा की महिलाएं रानी सुंदर कुंवरी के पति राजा जयसिंह द्वारा निर्मित प्राचीन ठाकुरद्वारा मंदिर माधव मुकंद महाराज में एकत्र होकर सबसे पहले श्री राधाकृष्ण, सीताराम के साथ रंग खेलती। फिर अन्य देवी-देवताओं को भी रंग गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेने के बाद आपस में एक दूसरे के साथ रंग खेलने की शुरुआत करती हैं। उसके बाद घर घर जाकर महिलाओं की टोलियां लोगों को रंगों में सराबोर कर देती हैं। अगर इस दिन कोई भी पुरुष धोखे से महिलाओं के हत्थे चढ़ जाता है, तो उसका बुरा हश्र हो जाता है। माधोटांडा के राजघरानों से शुरू हुई थी यह परंपरा
दो दिन होली की शुरुआत के पीछे कस्बा के बुजुर्गों का कहना है कि माधोटांडा रजवाड़े के शाही परिवारों के पुरुष पहले दिन आपस में होली खेलते थे। दूसरे दिन अपने लाव लश्कर के साथ जंगल में शिकार को रवाना हो जाते थे। पूरा गांव महिलाओं के लिए छोड़ दिया जाता था। जिससे महिलाएं जी भरकर आपस में होली खेल सके। आज भी यहां बुजुर्गों की बनाई इस परंपरा का पालन किया जा रहा है।
डर से भाग जाते हैं पुरुष
ब्रज, बरसाना आदि में जहां कई दिनों तक होली खेले जाने की परंपरा है। वहीं जनपद के माधोटांडा में दो दिन होली खेले जाने की परंपरा यहां पहले दिन पुरुष और दूसरे दिन महिलाएं होली खेलती है। दूसरे दिन गांव के अधिकांश पुरुष महिलाओं की डर की वजह से जंगल की ओर कूच कर जाते हैं। यदि कोई पुरुष इनकी रंग खेलने की आजादी में दखलंदाज़ी करता है, तो उसकी जमकर कर रंगों से धुलाई की जाती है। छुटकारा पाने के लिए फगुआ देना पड़ता है।
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