‘पिचर्स’ के योगी का क्या कहना! OTT पर कहानी कहने वालों को ईमानदार रहने की जरूरत- अरुणभ कुमार h3>
स्टार्टअप को लेकर वेब सीरीज तो कई बनीं, लेकिन इनमें सबसे हिट पिचर्स रही। अब इस सीरीज का दूसरा सीजन आ गया है। इसी सिलसिले में इसके कलाकार और टीवीएफ के क्रिएटर अरुणभ कुमार से हमने की खास बातचीत।
– पिचर्स के पहले सीजन जितेंद्र कुमार के किरदार को काफी पसंद किया गया था। लेकिन दूसरे सीजन के ट्रेलर में वह नहीं दिखाई दे रहे। क्या वह इस बार शो में नहीं हैं?
रियल लाइफ में बहुत कॉमन होता है कि एक फाउंडर छोड़कर चला जाता है या लड़ाई हो जाती है या अपना कुछ नया शुरू कर लेता है। तो इसमें से जितेंद्र के साथ क्या होता है, वह जानने के लिए आपको शो देखना पड़ेगा।
– आपने शो में योगी का किरदार निभाया है जिसके अपने कुछ डर थे? क्या वह डर रियल लाइफ में भी हैं।
मुझे लगता है कि उसे डर नहीं कह सकते लेकिन प्रेशर कह सकते हैं। जैसे कि पहला सीजन अच्छा गया तो अब प्रेशर है। पहला सीजन जब बना रहे थे तो सोच रहे थे कि जैसा बनेगा वैसा बनेगा। लेकिन अब दूसरा सीजन अच्छा बनाने के लिए ही हमने इतना वक्त लिया है क्योंकि हम बस ईमानदारी के साथ कहानी कहना चाहते थे।
– मगर टीवीएफ के कई शो ऐसे होते हैं जो आम आदमी से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। कैसे आप युवाओं की नब्ज पकड़ते हैं?
हम लोग जहां से आते हैं, हम वही कहानियां कहना पसंद करते हैं। मुझे लगता है कि हम मानते हैं कि एक कहानीकार के रूप में हमें पता है कि हमारी कुछ सीमाएं हैं, हमें पता है कि हमें किस तरह कहानियां कहनी चाहिए। वहीं से शायद इस नब्ज की शुरुआत होती है कि हम उन्हीं कहानियों को छेड़ते हैं जिन्हें हमें पता होता है कि हम जी चुके हैं। पिचर्स के साथ भी यही था कि मैं इंजीनियरिंग कॉलेज से हूं और वहां 2007 से 2010 के बीच स्टार्टअप्स का एक हुजूम आया और उसके बाद 2014-15 में इस पर काफी बातें हो रही थीं। तो 2011-12 में मैंने एक कहानी सोची। इसलिए पिचर्स सपने देखने की कहानी है और सभी ने इससे रिलेट किया। उम्मीद है कि इस सीजन में भी दर्शकों को मजा आए।
– कहते हैं कि ओटीटी पर कोई लगाम नहीं है, उस पर कुछ भी चला दिया जाता है। ऐसा सच भी है। आप इस बारे में क्या कहेंगे?
मुझे लगता है कि लोग हमारे शो तो अपने परिवार के साथ भी देख सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि हमारा एक तरीका है जिंदगी को देखने का। एक कहानीकार के तौर पर आपको खुद पर लगाम लगानी है। आपको ईमानदार रहने की जरूरत है। आपको ना खुद को रोकना है और ना ही कुछ ज्यादा करने की जरूरत होनी चाहिए। क्योंकि इस मीडियम का फायदा यही है कि आप कोई भी कहानी कह सकते हैं। जब ये मीडियम नहीं था, तब कई तरह की कहानियां नहीं कही जा पाती थीं, मगर वो अब हो पा रहा है। एक कलाकार और क्रिएटर के तौर पर पूरी इंडस्ट्री आज इसके लिए थैंकफुल है। लेकिन जैसा कि कहते हैं ना कि ज्यादा अधिकारों के साथ ज्यादा जिम्मेदारियां भी आती हैं। तो पहले कम अधिकार थे तो जिम्मेदारी भी कम थी। इसका ध्यान हर कहानी कहने वाले को ध्यान रखना चाहिए।
– वेब सीरीज एस्पिरेंट भी काफी हिट थी। क्या इसके दूसरे सीजन को लेकर कोई बात चल रही है?
जी हां, उसका दूसरा सीजन भी पाइपलाइन में है। कहानी पर फिलहाल काम हो रहा है। इसका दूसरा पार्ट पहली कहानी से आगे ही चलेगा।
– पिचर्स के पहले सीजन जितेंद्र कुमार के किरदार को काफी पसंद किया गया था। लेकिन दूसरे सीजन के ट्रेलर में वह नहीं दिखाई दे रहे। क्या वह इस बार शो में नहीं हैं?
रियल लाइफ में बहुत कॉमन होता है कि एक फाउंडर छोड़कर चला जाता है या लड़ाई हो जाती है या अपना कुछ नया शुरू कर लेता है। तो इसमें से जितेंद्र के साथ क्या होता है, वह जानने के लिए आपको शो देखना पड़ेगा।
– आपने शो में योगी का किरदार निभाया है जिसके अपने कुछ डर थे? क्या वह डर रियल लाइफ में भी हैं।
मुझे लगता है कि उसे डर नहीं कह सकते लेकिन प्रेशर कह सकते हैं। जैसे कि पहला सीजन अच्छा गया तो अब प्रेशर है। पहला सीजन जब बना रहे थे तो सोच रहे थे कि जैसा बनेगा वैसा बनेगा। लेकिन अब दूसरा सीजन अच्छा बनाने के लिए ही हमने इतना वक्त लिया है क्योंकि हम बस ईमानदारी के साथ कहानी कहना चाहते थे।
– मगर टीवीएफ के कई शो ऐसे होते हैं जो आम आदमी से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। कैसे आप युवाओं की नब्ज पकड़ते हैं?
हम लोग जहां से आते हैं, हम वही कहानियां कहना पसंद करते हैं। मुझे लगता है कि हम मानते हैं कि एक कहानीकार के रूप में हमें पता है कि हमारी कुछ सीमाएं हैं, हमें पता है कि हमें किस तरह कहानियां कहनी चाहिए। वहीं से शायद इस नब्ज की शुरुआत होती है कि हम उन्हीं कहानियों को छेड़ते हैं जिन्हें हमें पता होता है कि हम जी चुके हैं। पिचर्स के साथ भी यही था कि मैं इंजीनियरिंग कॉलेज से हूं और वहां 2007 से 2010 के बीच स्टार्टअप्स का एक हुजूम आया और उसके बाद 2014-15 में इस पर काफी बातें हो रही थीं। तो 2011-12 में मैंने एक कहानी सोची। इसलिए पिचर्स सपने देखने की कहानी है और सभी ने इससे रिलेट किया। उम्मीद है कि इस सीजन में भी दर्शकों को मजा आए।
– कहते हैं कि ओटीटी पर कोई लगाम नहीं है, उस पर कुछ भी चला दिया जाता है। ऐसा सच भी है। आप इस बारे में क्या कहेंगे?
मुझे लगता है कि लोग हमारे शो तो अपने परिवार के साथ भी देख सकते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि हमारा एक तरीका है जिंदगी को देखने का। एक कहानीकार के तौर पर आपको खुद पर लगाम लगानी है। आपको ईमानदार रहने की जरूरत है। आपको ना खुद को रोकना है और ना ही कुछ ज्यादा करने की जरूरत होनी चाहिए। क्योंकि इस मीडियम का फायदा यही है कि आप कोई भी कहानी कह सकते हैं। जब ये मीडियम नहीं था, तब कई तरह की कहानियां नहीं कही जा पाती थीं, मगर वो अब हो पा रहा है। एक कलाकार और क्रिएटर के तौर पर पूरी इंडस्ट्री आज इसके लिए थैंकफुल है। लेकिन जैसा कि कहते हैं ना कि ज्यादा अधिकारों के साथ ज्यादा जिम्मेदारियां भी आती हैं। तो पहले कम अधिकार थे तो जिम्मेदारी भी कम थी। इसका ध्यान हर कहानी कहने वाले को ध्यान रखना चाहिए।
– वेब सीरीज एस्पिरेंट भी काफी हिट थी। क्या इसके दूसरे सीजन को लेकर कोई बात चल रही है?
जी हां, उसका दूसरा सीजन भी पाइपलाइन में है। कहानी पर फिलहाल काम हो रहा है। इसका दूसरा पार्ट पहली कहानी से आगे ही चलेगा।