पलकी शर्मा का कॉलम: पाकिस्तान का ‘परमाणु मुखौटा’ अब उतर चुका है h3>
2 घंटे पहले
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पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost
पिछले दो दशकों से एक मिथक भारत और पाकिस्तान के तमाम टकरावों पर हावी रहा है- यह कि इस्लामाबाद के पास परमाणु हथियार हैं। इसकी शुरुआत 1998 में हुई थी, जब पहले भारत परमाणु शक्ति बना और उसके बाद पाकिस्तान। तब से इस्लामाबाद एक ही नैरेटिव को पकड़े हुए है। इसे रावलपिंडी के जनरलों ने गढ़ा था।
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यह तथ्य कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं, इस बात का लाइसेंस मान लिया गया कि वह आतंकवाद का निर्यात कर सकता है। 2001 के संसद हमले से लेकर 2008 के मुंबई हमलों तक, पाकिस्तान लगातार भारत को चोट पहुंचाता रहा और भारत ने भी डोजियर्स और डिप्लोमेसी के साथ सावधानी से जवाब दिया। लेकिन कभी सैन्य कार्रवाई नहीं की।
2016 के उरी हमले के बाद यह बदल गया। भारत ने नई मिसाल कायम की कि तुम हमला करोगे, तो हम पलटवार करेंगे। 2019 में- पुलवामा हमले के बाद- भारत ने इस स्थिति को और मजबूत किया। अब पहलगाम के बाद, और बड़ा बदलाव आया है। अब आतंकवाद के किसी भी कृत्य को युद्ध के रूप में देखा जाएगा। पाकिस्तान अब अपने परमाणु हथियारों के पीछे नहीं छिप सकता। उसे नतीजे भुगतने होंगे।
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ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान और पीओके में 9 आतंकी ठिकानों पर हमला किया। हमने उनके नागरिकों या सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना नहीं बनाया। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत नहीं चाहता था कि तनाव बढ़े।
लेकिन पाकिस्तान इस मामले को तूल देना चाहता था और वह भी भारतीय नागरिकों पर निशाना साधकर। लेकिन उसकी तमाम कोशिशें उलटी पड़ गईं। भारत ने जोरदार जवाबी हमला किया। उसने न केवल पाकिस्तान की हवाई सुरक्षा में सेंध लगाई, बल्कि उनके परमाणु कवच के मिथक को भी जमींदोज कर दिया।
भारत नो-फर्स्ट यूज पॉलिसी का पालन करता है, जिसका मतलब है कि हम अपने परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेंगे। तो पाकिस्तान के परमाणु हथियार भारत को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से रोकने के लिए नहीं थे।
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वे भारत को कुछ भी करने से रोकने के लिए थे। आतंकवाद के खिलाफ किसी जवाबी कार्रवाई को एटमी युद्ध को उकसावा देने के चश्मे से देखा गया। यह लगभग एक स्ट्रैटेजिक-वीटो की तरह था। पाकिस्तान अपने युद्धों को नॉन-स्टेट एक्टर्स को आउटसोर्स करके खुद बेगुनाह होने का दिखावा कर सकता था।
भारत और दुनिया परमाणु-प्रतिक्रिया के अंदेशे से उसे ऐसा करने की छूट भी देते रहे। लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के इस फरेब का पर्दाफाश कर दिया है। डिटरेंस की नीति तभी कारगर होती है, जब दोनों पक्ष तर्कसंगत हों। पाकिस्तान ने तो उलटे बेतुकेपन को ही अपना हथियार बना लिया है।
भारत ने 1974 में जब अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था तो इसे ‘बुद्ध मुस्कराए’ कहा था। लेकिन इसने पाकिस्तान को भी एटमी हथियार बनाने के लिए प्रेरित किया। इस अभियान का नेतृत्व जुल्फिकार अली भुट्टो कर रहे थे।
उन्होंने कहा था, हम घास खा लेंगे, भूखे रह लेंगे, लेकिन एटम बम जरूर बनाएंगे। उन्होंने इसे मुसलमानों के लिए एक परमाणु-कवच की तरह मुस्लिम-दुनिया के सामने पेश किया। लेकिन अब यह नैरेटिव तार-तार हो चुका है। क्योंकि, यह इस्लाम नहीं पाकिस्तान के बारे में था। वह अपने आतंक के कारखानों के लिए मजहब का इस्तेमाल कर रहा था।
भारत ने यह भी दिखाया है कि छद्म युद्ध अब पाकिस्तान के लिए सस्ता सौदा नहीं रह गया है। उन्हें आतंकवाद को समर्थन देने की कीमत चुकानी होगी। पाकिस्तान में फौज ही मुल्क की कमान संभालती है। इस फौज का यह रिकॉर्ड है कि इसने हर युद्ध हारा है। लेकिन वह अपने मिथकों के कारण शक्तिशाली बनी हुई है।
इस संघर्ष के दौरान भी उसने यही रणनीति अपनाई। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने परमाणु युद्ध की ओर संकेत किया। समाचार-एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से कहा गया कि पाकिस्तान की शीर्ष परमाणु संस्था की बैठक होने वाली है। यह कवायदें नाकाम रहीं।
ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया है कि परमाणु हथियार आतंकवाद को छिपाने का जरिया नहीं हो सकते। आप निर्दोष नागरिकों की हत्या करके दुनिया को ब्लैकमेल नहीं कर सकते। जब कोई आपको जवाबदेह ठहराने की कोशिश करता है तो आप महाविनाश की ओर संकेत नहीं कर सकते।
अगर पाकिस्तान हमला करेगा तो भारत भी जवाब देगा। यही न्यू नॉर्मल है। बुनियादी बदलाव यह हुआ है कि अब भारत पाकिस्तान की स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं खेल रहा है। जब आप दुश्मन के फरेब का खुलासा करते हैं तो खेल हमेशा के लिए बदल जाता है।
पाकिस्तान की पोल खुल चुकी है। उसका परमाणु-मुखौटा उतर चुका है। इसका यह मतलब नहीं है कि खतरा टल गया है। लेकिन भारत ने दिखाया है कि परमाणु हथियारों के बावजूद पाकिस्तान को दंडित किया जा सकता है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)
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पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost
पिछले दो दशकों से एक मिथक भारत और पाकिस्तान के तमाम टकरावों पर हावी रहा है- यह कि इस्लामाबाद के पास परमाणु हथियार हैं। इसकी शुरुआत 1998 में हुई थी, जब पहले भारत परमाणु शक्ति बना और उसके बाद पाकिस्तान। तब से इस्लामाबाद एक ही नैरेटिव को पकड़े हुए है। इसे रावलपिंडी के जनरलों ने गढ़ा था।
यह तथ्य कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं, इस बात का लाइसेंस मान लिया गया कि वह आतंकवाद का निर्यात कर सकता है। 2001 के संसद हमले से लेकर 2008 के मुंबई हमलों तक, पाकिस्तान लगातार भारत को चोट पहुंचाता रहा और भारत ने भी डोजियर्स और डिप्लोमेसी के साथ सावधानी से जवाब दिया। लेकिन कभी सैन्य कार्रवाई नहीं की।
2016 के उरी हमले के बाद यह बदल गया। भारत ने नई मिसाल कायम की कि तुम हमला करोगे, तो हम पलटवार करेंगे। 2019 में- पुलवामा हमले के बाद- भारत ने इस स्थिति को और मजबूत किया। अब पहलगाम के बाद, और बड़ा बदलाव आया है। अब आतंकवाद के किसी भी कृत्य को युद्ध के रूप में देखा जाएगा। पाकिस्तान अब अपने परमाणु हथियारों के पीछे नहीं छिप सकता। उसे नतीजे भुगतने होंगे।
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान और पीओके में 9 आतंकी ठिकानों पर हमला किया। हमने उनके नागरिकों या सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना नहीं बनाया। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत नहीं चाहता था कि तनाव बढ़े।
लेकिन पाकिस्तान इस मामले को तूल देना चाहता था और वह भी भारतीय नागरिकों पर निशाना साधकर। लेकिन उसकी तमाम कोशिशें उलटी पड़ गईं। भारत ने जोरदार जवाबी हमला किया। उसने न केवल पाकिस्तान की हवाई सुरक्षा में सेंध लगाई, बल्कि उनके परमाणु कवच के मिथक को भी जमींदोज कर दिया।
भारत नो-फर्स्ट यूज पॉलिसी का पालन करता है, जिसका मतलब है कि हम अपने परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेंगे। तो पाकिस्तान के परमाणु हथियार भारत को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से रोकने के लिए नहीं थे।
वे भारत को कुछ भी करने से रोकने के लिए थे। आतंकवाद के खिलाफ किसी जवाबी कार्रवाई को एटमी युद्ध को उकसावा देने के चश्मे से देखा गया। यह लगभग एक स्ट्रैटेजिक-वीटो की तरह था। पाकिस्तान अपने युद्धों को नॉन-स्टेट एक्टर्स को आउटसोर्स करके खुद बेगुनाह होने का दिखावा कर सकता था।
भारत और दुनिया परमाणु-प्रतिक्रिया के अंदेशे से उसे ऐसा करने की छूट भी देते रहे। लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के इस फरेब का पर्दाफाश कर दिया है। डिटरेंस की नीति तभी कारगर होती है, जब दोनों पक्ष तर्कसंगत हों। पाकिस्तान ने तो उलटे बेतुकेपन को ही अपना हथियार बना लिया है।
भारत ने 1974 में जब अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था तो इसे ‘बुद्ध मुस्कराए’ कहा था। लेकिन इसने पाकिस्तान को भी एटमी हथियार बनाने के लिए प्रेरित किया। इस अभियान का नेतृत्व जुल्फिकार अली भुट्टो कर रहे थे।
उन्होंने कहा था, हम घास खा लेंगे, भूखे रह लेंगे, लेकिन एटम बम जरूर बनाएंगे। उन्होंने इसे मुसलमानों के लिए एक परमाणु-कवच की तरह मुस्लिम-दुनिया के सामने पेश किया। लेकिन अब यह नैरेटिव तार-तार हो चुका है। क्योंकि, यह इस्लाम नहीं पाकिस्तान के बारे में था। वह अपने आतंक के कारखानों के लिए मजहब का इस्तेमाल कर रहा था।
भारत ने यह भी दिखाया है कि छद्म युद्ध अब पाकिस्तान के लिए सस्ता सौदा नहीं रह गया है। उन्हें आतंकवाद को समर्थन देने की कीमत चुकानी होगी। पाकिस्तान में फौज ही मुल्क की कमान संभालती है। इस फौज का यह रिकॉर्ड है कि इसने हर युद्ध हारा है। लेकिन वह अपने मिथकों के कारण शक्तिशाली बनी हुई है।
इस संघर्ष के दौरान भी उसने यही रणनीति अपनाई। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने परमाणु युद्ध की ओर संकेत किया। समाचार-एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से कहा गया कि पाकिस्तान की शीर्ष परमाणु संस्था की बैठक होने वाली है। यह कवायदें नाकाम रहीं।
ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया है कि परमाणु हथियार आतंकवाद को छिपाने का जरिया नहीं हो सकते। आप निर्दोष नागरिकों की हत्या करके दुनिया को ब्लैकमेल नहीं कर सकते। जब कोई आपको जवाबदेह ठहराने की कोशिश करता है तो आप महाविनाश की ओर संकेत नहीं कर सकते।
अगर पाकिस्तान हमला करेगा तो भारत भी जवाब देगा। यही न्यू नॉर्मल है। बुनियादी बदलाव यह हुआ है कि अब भारत पाकिस्तान की स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं खेल रहा है। जब आप दुश्मन के फरेब का खुलासा करते हैं तो खेल हमेशा के लिए बदल जाता है।
पाकिस्तान की पोल खुल चुकी है। उसका परमाणु-मुखौटा उतर चुका है। इसका यह मतलब नहीं है कि खतरा टल गया है। लेकिन भारत ने दिखाया है कि परमाणु हथियारों के बावजूद पाकिस्तान को दंडित किया जा सकता है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)
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