पंजाब के तरनतारन में पाकिस्तानी PM शहबाज का घर: परदादा की मजार संभाल रहे सिख, गांववाले बोले- शर्म आती है h3>
‘पाकिस्तान से भारत में मिसाइल या बम दागे जाते हैं तो नुकसान ही होता है। शहबाज और नवाज से यही कहना चाहूंगा कि यहां भी आपका घर-परिवार है। अगर आप मिसाइल दागोगे तो वो आपके गांव, आपके भाइयों पर भी गिरेगी। इसमें आपके ही परिवार का नुकसान होगा।’
.
पंजाब के तरनतारन के जाति उमरा गांव के रहने वाले बलविंदर सिंह दोनों देशों के बीच अमन चाहते हैं। भारत के इसी गांव से पाकिस्तानी PM शहबाज शरीफ और पूर्व PM नवाज शरीफ की जड़ें जुड़ी हैं। ये इनका पैतृक गांव है, जो अमृतसर से महज 35-40 किलोमीटर दूर है।
गांव के ही रहने वाले गुरपाल भी दोनों देशों के बीच बने तनाव के माहौल से खुश नहीं हैं। वे कहते हैं, ‘शरीफ परिवार में कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनता है, तो हमें गर्व होता है। जब कुछ गलत होता है, तो लोग सवाल करते हैं कि आपके गांव का प्रधानमंत्री कुछ करता क्यों नहीं? तब शर्म महसूस होती है।‘
पहलगाम आतंकी हमले के बाद से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है। इन सबके बीच हम पाकिस्तानी PM के गांव पहुंचे। यहां लोगों से बात कर हमने जानने की कोशिश की कि आखिर इस तनाव भरे माहौल को लेकर लोग क्या सोचते हैं? वो शरीफ परिवार को कैसे याद करते हैं और उनसे क्या उम्मीदें रखते हैं?
शहबाज और नवाज के परदादा का पुश्तैनी घर अब गुरुद्वारा बना पंजाब के तरनतारन जिले में बसा जाति उमरा गांव। यहां का शरीफ परिवार दशकों से पाकिस्तान की सियासत पर राज कर रहा है। गांव में घूमते हुए हम सबसे पहले उस जगह पहुंचे, जहां कभी मियां मुहम्मद शरीफ यानी शहबाज और नवाज के पिता का पुश्तैनी घर हुआ करता था। आज उस जगह पर एक विशाल गुरुद्वारा है।
यहीं हमारी मुलाकात सेना से रिटायर्ड फौजी गुरपाल सिंह से हुई। वो इन दिनों गुरुद्वारे के एक हिस्से में लंगर हॉल बनवाने के काम में जुटे हुए हैं। वे बताते हैं कि जमीन भले ही नवाज और शहबाज शरीफ के परिवार की है, लेकिन अब इस पर जो भी कंस्ट्रक्शन हो रहा है, वो गांव वालों के चंदे से किया जा रहा है।
गुरपाल ने बताया, ‘1976 से पहले तक यहां शरीफ परिवार की हवेली हुआ करती थी। नवाज शरीफ के भाई अब्बास शरीफ ने इसे गांव को दान कर दिया था। अब्बास पेशे से एक बिजनसमैन थे। वो अक्सर यहां आया करते थे। हालांकि अब वे इस दुनिया में नहीं है। 2013 में उनका निधन हो गया।‘
‘1976 में अब्बास जब गांव आए तो हवेली की जर्जर हालत देखकर दुखी हो गए। यहां उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। इसी वजह से उन्होंने इसे गांव को दान दे दिया। उनकी हवेली के बगल में पहले एक छोटा गुरुद्वारा था। उनकी जमीन मिलने के बाद हमने गुरुद्वारे का विस्तार कर दिया।
शरीफ परिवार को गांव से लगाव, पाकिस्तान में भी इसी नाम पर गांव बसाया गांव में अब लंगर हॉल बन रहा है। नवाज शरीफ के पूर्वजों की मजारें पहले की तरह ही हैं। समय-समय पर उनकी मरम्मत होती रहती है। गांव वाले मिलकर उनके परिवार की हर पुरानी चीज की देखरेख करते हैं। गुरपाल बताते हैं, ‘इस गांव से शरीफ परिवार को इतना प्यार है कि उन्होंने पाकिस्तान के इकबाल तहसील में यूनियन काउंसिल 124 में इसी नाम से एक और गांव बसा लिया।
‘इस गांव में शरीफ परिवार की एक आलीशान हवेली और एस्टेट है। नवाज के पोते जायद हुसैन नवाज की शादी भी यहीं से हुई थी। गांव के लोग उनके संपर्क में रहते हैं। जब हालात खराब हुए, तब संपर्क टूटा। वरना कोई न कोई आता-जाता रहता है।‘
गुरुपाल कहते हैं, ‘गांव वालों को शरीफ परिवार से काफी उम्मीदें हैं। वे चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध बनें। व्यापार बढ़े। नवाज शरीफ ने गांव को बहुत कुछ दिया है। उनके कहने पर 2013 में यहां स्टेडियम भी बनवाया गया। गांव को जरूरत से ज्यादा सुविधाएं दी गई हैं।‘
स्टेडियम की देखभाल ना होने से वो जर्जर हालत में है। पूरे मैदान में बड़ी-बड़ी घास जमी दिखी।
PM और CM बनने पर गर्व, लेकिन आतंकवाद के सपोर्ट से गर्दन झुकी मौजूदा स्थिति पर गुरपाल कहते हैं, ‘जब दोनों देशों के हालात खराब होते हैं, तो दुख होता है। जब नवाज या शहबाज शरीफ कोई अच्छा काम करते हैं, तो गांव वालों को गर्व होता है। जब कुछ गलत होता है, तो लोग सवाल करते हैं कि आपके गांव का प्रधानमंत्री कुछ करता क्यों नहीं? तब शर्म महसूस होती है। हमें ऐसे देखते हैं कि हमारे गांव के किसी लड़के ने आतंकवाद का सपोर्ट किया है।‘
उन्होंने कहा कि नवाज शरीफ की बेटी मुख्यमंत्री बनीं और शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने तो गांव का मान बढ़ा। लोग कहते हैं कि आपके गांव से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन अभी के हालात से हमारी गर्दन झुकी हुई है।
गुरपाल आगे कहते हैं, ‘हम यही संदेश देना चाहते हैं कि यहां भी पंजाबी और पंजाब है, वहां भी पंजाबी और पंजाब है। ये बर्बादी दोनों की है। इस समस्या का हल निकालें और कंट्रोल करें। हम आर्मी में थे। जब सीजफायर होता था, तो एक्टिविटीज रुक जाती थीं। अब एक तरफ सीजफायर होता है, तो दूसरी तरफ से गोलीबारी शुरू हो जाती है। हुक्मरानों को कंट्रोल करना चाहिए।‘
‘हमारा खून एक जैसा है। दुख होता है, चाहे खबर सच्ची हो या झूठी। जब कुछ शुरू होता है, तो पाकिस्तान से होता है, खत्म हिंदुस्तान में होता है। हम एक परिवार हैं। हमारी बोली, खून और हदें एक हैं। बस थोड़ा सा प्यार और बढ़ाना चाहिए।‘
पूर्व सरपंच बोले- बॉर्डर पार भले गया शरीफ परिवार, लेकिन नाता नहीं तोड़ा गुरुद्वारे से निकलकर जब हम गांव के बीच पहुंचे, तो हमारी मुलाकात पूर्व सरपंच दिलबाग सिंह से हुई। उन्होंने बताया कि मियां मुहम्मद शरीफ यहां अक्सर आया करते थे। उन्होंने ही खानदानी हवेली गांव को दान में दी। शरीफ परिवार भले ही बॉर्डर के उस पार चला गया, लेकिन उन्होंने यहां से नाता नहीं तोड़ा। परिवार की महिलाएं अक्सर कपड़ों की खरीदारी करने अमृतसर आया करती थीं।
वे बताते हैं, ‘2024 में नवाज शरीफ के पोते जैद हुसैन नवाज की शादी में भी एक बड़े बिजनेसमैन को इनवाइट किया गया था। गांव के लोगों को भी वॉट्सएप पर इनविटेशन आया था, लेकिन समय कम होने के कारण यहां के लोग वीजा के लिए अप्लाई नहीं कर सके। हालांकि शादी की खबरें हमने अखबारों में पढ़ी।‘
2022 में जब शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद दिखी तो इसी गुरुद्वारे में उनके लिए अरदास की गई थी। ये दिखाता है कि गांव ने इस जुड़ाव को अपनाया है और मानवीय रिश्ता बनाए रखा है।
पूर्व सरपंच ने बताया कि 1970 से 2013 के बीच उन्होंने इस क्षेत्र में काफी विकास देखा। बादल सरकार के समय में इस गांव को 3.34 करोड़ रुपए की ग्रांट मिली। इससे गांव में पक्की सड़कें, एक पानी की टंकी, इलेक्ट्रिक पोल और स्टेडियम बनकर तैयार हुआ था।
शरीफ परिवार आतंक का समर्थक, ये सुनकर तकलीफ होती है शरीफ परिवार गांव का इकलौता मुस्लिम परिवार था। उनके पिता अक्सर ये कहते थे कि उनके परिवार की तरक्की इसी गांव से जुड़ी हुई थी। यहां के लोगों के आशीर्वाद से ही परिवार तरक्की कर सका। दिसंबर 2013 में पाकिस्तान वाले पंजाब के मुख्यमंत्री रहते हुए शहबाज शरीफ भारत आए थे। तब उन्होंने गांव में अपने परदादा मियां मुहम्मद बख्श की कब्र पर जाकर चादर चढ़ाई थी।
उस दौरे को याद करते हुए दिलबाग कहते हैं, ‘हमने पूरे गांव को दुल्हन की तरह सजाया था। शान्ति के प्रतीक सफेद रंग से गांव का हर घर रंगा गया था। शहबाज की पत्नी भी साथ आईं थीं। उन्होंने हवेली वाली जगह देखी और परदादा की कब्र पर चादर चढ़ाई। वे गांव वालों के लिए गिफ्ट भी लाए थे।‘
गांव वालों ने भी पैसे मिलाकर शहबाज और उनकी पत्नी के लिए एक गोल्ड रिंग, गांव की तस्वीर और अन्य स्मृति चिन्ह गिफ्ट किए थे।
पाकिस्तान के आतंकवाद को बढ़ावा देने के सवाल पर दिलबाग कहते हैं, ‘सीमा के दोनों ओर अपने परिवार रहते हैं। शांति से दोनों को फायदा और युद्ध से सिर्फ नुकसान होगा। पाकिस्तान का नाम अक्सर आतंकवाद के साथ जोड़ा जाता है। शरीफ परिवार का नाम आतंकवाद को सपोर्ट करने वालों के साथ जोड़ा जा रहा है, इससे पीड़ा हो रही है।‘
‘मेरा मानना है कि आतंकवाद का समर्थन करने वालों को सजा मिलनी ही चाहिए। भले ही शरीफ परिवार से हमारे संबंध हैं, लेकिन मैं यही कहूंगा कि अगर वे गलत कर रहे हैं तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए।‘
पाकिस्तान से ड्रोन आएगा तो शरीफ के परिवार पर ही गिरेगा शहबाज शरीफ के परदादा की मजार की देखरेख बलविंदर सिंह का परिवार करता है। हम जब वहां पहुंचे तो वे मजार के आसपास लगी बेंच साफ कर रहे थे। वे बताते हैं, ‘शरीफ परिवार के लाहौर जाने के बाद हमारे गांव के बुजुर्ग उनकी फैक्ट्रीज में काम करते थे। हमारे लड़के दुबई में इनकी फैक्ट्रीज में काम करते हैं। गांव के लिए वे हमेशा अच्छा ही सोचते हैं।‘
देश के मौजूदा हालात को लेकर कहते हैं, ‘गांव के लोग दोनों देशों की सरहद पर शांति चाहते हैं। पाकिस्तान में जो आतंकवाद फैला है, उसे वहीं खत्म किया जाए। आतंकवादी भारत में आकर नुकसान करता है। इससे देश में तनाव बढ़ता है। पाकिस्तान जो कर रहा है, वो गलत है। हम चाहते हैं कि इसका समाधान बातचीत से हो, न कि युद्ध के मैदान में हो।‘
‘पाकिस्तान से जब मिसाइल या बम दागे जाते हैं तो नुकसान भारत का ही होता है। शरीफ परिवार से यही कहना चाहूंगा कि वहां भी आपका परिवार है और यहां भी आपका परिवार ही है। अगर मिसाइल गिरेगी तो आपके परिवार का भी नुकसान होगा। दोनों देशों के बीच शांति बनी रहे, ये जरूरी है।‘
‘हमारा गांव आतंकवाद का समर्थन नहीं करता’ हमने गांव में कुछ और लोगों से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन ज्यादातर कैमरे के सामने बोलने से बचते दिखे। सुखजिंदर ऑफ कैमरा बात करने को तैयार हुए।
वे कहते हैं, ‘किसी एक व्यक्ति या कुछ बुरे लोगों की वजह से पूरे गांव या परिवार को दोषी ठहराना गलत है। बुरे लोग हर जगह होते हैं। जो गलत करते हैं, उनसे सरकार निपटे। गांव का इससे कोई लेना-देना नहीं। हमारा गांव आतंकवाद का समर्थन नहीं करता।‘
जब शरीफ परिवार में से कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनता है, तो हमें गर्व होता है। लोग कहते हैं कि आपके गांव का व्यक्ति प्रधानमंत्री बना। सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। जब आतंकवाद की बात आती है, तो शर्मिंदगी होती है। लगता है यार, ये हमारे गांव का मुंडा है।
गांव वालों को उम्मीद है कि शरीफ परिवार का ये जुड़ाव भारत-पाक रिश्तों को सुधारने में मदद करेगा।
दो गांव, एक नाम और तस्वीर अलग-अलग अमृतसर के जाति उमरा गांव की जमीनी हकीकत और लाहौर के जाति उमरा की भव्यता में बड़ा फर्क है। भारत का जाति उमरा एक सामान्य सा गांव है। यहां के लोगों की जिंदगी खेती-किसानी से चलती है। गांव के कुछ लोग शहरों में काम कर रहे हैं।
वहीं, लाहौर का जाति उमरा गांव शरीफ परिवार की सत्ता और संपत्ति का गवाह है। ये इत्तेफाक ग्रुप और शरीफ ग्रुप जैसे बड़े व्यापारिक साम्राज्यों का सेंटर है। 1937 में इसी गांव से निकले शरीफ परिवार ने लाहौर ही नहीं पाकिस्तान में भी अपनी अलग जगह बनी ली।
………………………….
ये खबर भी पढ़ें…
पाकिस्तान से 50 मीटर दूर रहने वालों का हौसला
पंजाब के पठानकोट शहर से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर काशीवाड़मा गांव है। पक्की सड़कें, पक्के घर, चौपाल पर ताश खेलते, गपशप करते लोगों को देखकर ये किसी आम गांव सा लगता है। हालांकि, ये गांव खास है। ये पाकिस्तान के सबसे नजदीक बसे गांवों में से एक है। पाकिस्तान की सरहद यहां से सिर्फ 50 मीटर दूर है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने 8 मई से भारत के शहरों पर हमले शुरू किए। तब बॉर्डर से सटे गांव खाली होने लगे। काशीवाड़मा गांव में लोग डटे रहे। पढ़िए पूरी खबर…