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नीरजा चौधरी का कॉलम: भाजपा जाति जनगणना का लाभ उठाने की स्थिति में है

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नीरजा चौधरी का कॉलम:  भाजपा जाति जनगणना का लाभ उठाने की स्थिति में है

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नीरजा चौधरी का कॉलम: भाजपा जाति जनगणना का लाभ उठाने की स्थिति में है

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  • Neerja Chaudhary’s Column BJP Is In A Position To Take Advantage Of The Caste Census

2 घंटे पहले

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नीरजा चौधरी वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार

जाति जनगणना पर भाजपा का हृदय-परिवर्तन जरूर हुआ है, लेकिन यह भी सच है कि पार्टी ने इसे कभी खारिज नहीं किया था। इसके निहितार्थों को लेकर पार्टी के भीतर और व्यापक संघ परिवार में भी ऊहापोह थी। बुधवार को कैबिनेट की सर्वोच्च समिति सीसीपीए ने जाति जनगणना को मंजूरी देने के लिए बैठक की।

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पिछले दो वर्षों से इस विचार को आगे बढ़ा रहे राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी अब इसके लिए सरकार पर दबाव बनाने का श्रेय ले रहे हैं। लेकिन लंबे समय के बाद किसी निर्णय पर राजनीतिक सर्वसम्मति दिखी है और भाजपा, कांग्रेस, क्षेत्रीय दल सभी एक ही पक्ष में हैं।

भाजपा का गणित यह है कि वह इस निर्णय का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है। क्योंकि आज वह पहले की तरह ब्राह्मण-बनिया पार्टी नहीं कहलाती है, बल्कि पिछले दशक में उसने दलितों-पिछड़ों में अपना समर्थन-आधार बढ़ाया है। सरकार का नेतृत्व एक ऐसे प्रधानमंत्री कर रहे हैं, जो खुद ओबीसी वर्ग से आते हैं।

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वैसे भी भाजपा ऐसी पार्टी है, जो किसी भी स्थिति को अपने फायदे में बदलने में माहिर है। भाजपा को मुद्दा भुनाना आता है, कांग्रेस इस खेल में पिट जाती है। राहुल गांधी द्वारा इस मुद्दे को उठाने के बाद से पिछले दो वर्षों में हुए चुनावों में कांग्रेस को कितने अतिरिक्त ओबीसी वोट मिले हैं?

दूसरी तरफ 2024 के लोकसभा चुनावों में यूपी में भाजपा की सीटें भी 62 से घटकर 33 रह गईं और इसी के चलते वह बहुमत के आंकड़े से पीछे रह आई। इस गिरावट का एक महत्वपूर्ण कारण ओबीसी थे। उन्होंने भाजपा को उतने पैमाने पर वोट नहीं दिया, जैसी कि उनसे उम्मीद की जा रही थी।

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सैद्धांतिक रूप से, जाति जनगणना का प्रयोजन है यह पता करना कि विभिन्न जातियां और उपजातियां कहां खड़ी हैं, ताकि सरकार हाशिए के लोगों को आगे आने का मौका देने के लिए उपयुक्त कार्यक्रम बना सके। अभी तक हम 1931 की जाति जनगणना के आंकड़ों पर ही निर्भर हैं।

उसके बाद, 2011 में भी एक जाति जनगणना हुई थी, लेकिन उसके अधिकांश निष्कर्षों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। यह अजीब बात है कि न तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए- जो उस समय सत्ता में थी- और न ही भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए- जो पिछले 11 वर्षों से सत्ता में है- ने 2011 की जनगणना से मिली जानकरियों का खुलासा किया है। न ही वह जानकारी ‘लीक’ हो पाई है। कहा जाता है कि 2011 की जाति जनगणना से पता चला था भारत में 46 लाख जातियां हैं!

राजनीतिक रूप से देखा जाए तो जाति जनगणना को राजनीतिक दलों द्वारा ओबीसी जातियों का समर्थन जुटाने के साधन के रूप में देखा जाता है, क्योंकि वे बड़ी संख्या में हैं। बिहार, तेलंगाना या कर्नाटक जैसी राज्य सरकारों द्वारा की गई जाति जनगणना से पता चलता है कि ओबीसी की संख्या और बढ़ने की संभावना है।

2023 में बिहार की जाति जनगणना में पाया गया था कि राज्य में ओबीसी की आबादी 63% थी। 1931 की जाति जनगणना के अनुसार, ओबीसी का राष्ट्रीय औसत 52% था। ऐसा होने पर, ओबीसी स्वाभाविक रूप से आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में अधिक हिस्सेदारी की मांग करेंगे। वे नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अधिक आरक्षण चाहेंगे। राजनीति में इस बदली हुई हकीकत के दूरगामी परिणाम होंगे।

इस निर्णय की टाइमिंग ने भी सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है। यह निर्णय ऐसे समय लिया गया है, जब देश पहलगाम आतंकी हमले के सदमे से जूझ रहा था। प्रधानमंत्री ने आतंकवादियों को ऐसा सबक सिखाने की बात कही है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

कई उच्चस्तरीय बैठकों के बाद सेना प्रमुखों को फ्री-हैंड दे दिया गया है। बढ़ते तनाव और सस्पेंस के बीच अचानक सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने सुर्खियों को बदल दिया है। जाति का मुद्दा उभरने ने अचानक स्थिति को थोड़ा ‘सामान्य’ कर दिया है। हमारी फौजें तब हमला करने का फैसला ले सकती हैं, जब सभी का ध्यान कहीं और हो।

पहलगाम में जिस तरह से हिंदुओं को निशाना बनाया गया, उसका मकसद देश में हिंदू-मुस्लिम टकराव पैदा करना था। लेकिन अब तक हालात नियंत्रण में रहे हैं। ऐसी स्थिति में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण जोखिम भरा कार्ड होता। पहलगाम ने वैसे भी हर जगह हिंदू चेतना को गहरा किया है- और यह भाजपा की मदद कर सकता है।

आम तौर पर विपक्षी दल भाजपा द्वारा हिंदुओं के ध्रुवीकरण का मुकाबला करने के लिए जाति कार्ड का इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन अब भाजपा ने भी जाति को अपने राजनीतिक ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया है।

भाजपा किसी भी स्थिति को अपने फायदे में बदलने में माहिर है। उसे मुद्दा भुनाना आता है, कांग्रेस इस खेल में पिट जाती है। राहुल द्वारा इस मुद्दे को उठाने के बाद से हुए चुनावों में कांग्रेस को कितने अतिरिक्त ओबीसी वोट मिले? (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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