नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन की मुलाकात से पड़ी बड़े गठबंधन की नींव, तीन राज्यों में पड़ेगा असर

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नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन की मुलाकात से पड़ी बड़े गठबंधन की नींव, तीन राज्यों में पड़ेगा असर

नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन की मुलाकात से पड़ी बड़े गठबंधन की नींव, तीन राज्यों में पड़ेगा असर

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम के तहत बुधवार को झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से मिले। मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत में दोनों नेताओं ने एकसुर में एकजुटता पर हामी भरी। नीतीश कुमार ने कहा कि इतिहास बदलने की कोशिशों और नफरत की सियासत से पूरे देश में विपक्ष एकजुट होकर मुकाबला करेगा। झारखंड में झामुमो, कांग्रेस और आरजेडी का पहले से गठबंधन है। नीतीश कुमार की पहल से जेडीयू समेत तमाम वामपंथी दल गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। वामदलों के शीर्ष नेताओं मसलन सीताराम येचुरी, डी. राजा और दीपांकर भट्टाचार्य पहले ही विपक्षी एकजुटता की पहल का समर्थन कर चुके हैं। 

झारखंड में झामुमो और कांग्रेस भाजपा विरोधी इन दलों से ज्यादा बड़ा जनाधार रहा है। अलग राज्य बनने के बाद आरजेडी का जनाधार सिमटता गया। चुनाव दर चुनाव उसके ग्राफ गिरते रहे। जेडीयू ने कभी झारखंड में पैर जमाने की बड़ी पहल नहीं की। इसका अपना बड़ा जनाधार अभी तक नहीं है। वामदलों का भी प्रदर्शन उल्लेखनीय नहीं रहा है। हालांकि झारखंड का सामाजिक और सियासी मिजाज समाजवादी और वामदलों के अनुकूल रहा है। ऐसे में ये तमाम दल अगर एकजुट होते हैं तो इनके छोटे-छोटे जनाधार भी एकसाथ जुड़कर बड़ा आकार ले सकते हैं। तब यह एनडीए के लिए बड़ी चुनौती होगी।

झारखंड बनने के बाद अभी-तक वहां किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। 2014 विधानसभा चुनाव में भाजपा को सर्वाधिक 36 और 2019 में झामुमो को सबसे अधिक 30 सीटें मिलीं। सरकार बनाने के लिए 81 सदस्यीय विधानसभा में 42 सीटों की दरकार होती है। झारखंड की सियासत का खास पहलू उलट-पुलट भी है। ताजा उदाहरण बीता लोकसभा और विधानसभा चुनाव है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 11 और उसके सहयोगी दल आजसू को एक सीट मिली। विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन को 46 सीटें मिल गईं और इसने सरकार बना ली। इसलिए भी कांग्रेस, वामदलों समेत समाजवादी क्षेत्रीय दलों का गठबंधन बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। 

तीन राज्यों में पड़ेगा असर

झामुमो के महागठबंधन का हिस्सा बनने से झारखंड समेत बिहार और पश्चिम बंगाल में भी असर पड़ेगा। झामुमो को झारखंड सीमावर्ती बिहार के विधानसभा क्षेत्रों में वोट हासिल होते रहे हैं। कई बार मिलते-जुलते चुनाव चिह्न के कारण इसने जेडीयू को नुकसान भी पहुंचाया है। इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी झारखंड के सीमावर्ती इलाकों में झामुमो का छोटा ही सही जनाधार रहा है। इसी तरह झारखंड में आरजेडी, जेडीयू और वामदलों का छोटा-बड़ा जनाधार रहा है। झारखंड में कुर्मी 14 फीसदी वोट है।

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नीतीश कुमार इस वोट बैंक को भी प्रभावित कर सकते हैं। सबसे बड़ी चुनौती महागठबंधन की सीटों का तालमेल है। अगर पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में महागठबंधन के दलों मसलन कांग्रेस एवं वामदलों का क्षेत्रीय समाजवादी दलों के साथ सीटों का बंटवारा हो जाता है, तो फिर इन राज्यों में भी विपक्षी एका अपना रंग दिखा सकती है। इस अर्थ में हेमंत से नीतीश कुमार की मुलाकात एक बड़े गठबंधन की नींव रख सकती है।

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