‘नसबंदी में गलती सरकार की तो खर्चा भी उठाए’: प्रयागराज में 11 साल बाद अदालत से इंसाफ; महिला बोली- नमक रोटी खाई, हार नहीं मानी – Prayagraj (Allahabad) News

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‘नसबंदी में गलती सरकार की तो खर्चा भी उठाए’:  प्रयागराज में 11 साल बाद अदालत से इंसाफ; महिला बोली- नमक रोटी खाई, हार नहीं मानी – Prayagraj (Allahabad) News
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‘नसबंदी में गलती सरकार की तो खर्चा भी उठाए’: प्रयागराज में 11 साल बाद अदालत से इंसाफ; महिला बोली- नमक रोटी खाई, हार नहीं मानी – Prayagraj (Allahabad) News

प्रयागराज21 मिनट पहले

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‘सरकारी सिस्टम की लापरवाही के खिलाफ मैंने 11 साल लड़ाई लड़ी। नसबंदी के बाद भी गर्भवती हो गई थी। पांच बच्चे पहले से थे। मजदूरी कर नमक-रोटी खाकर बच्चों को पालती। ऐसे में छठा बच्चा कैसे पाल लेती? डॉक्टर बोले- अबॉर्शन करा दो। लेकिन, बच्चे को गर्भ में कैसे मार दूं। कर्जा लेकर दवा कराई और केस भी लड़ा। छठी बच्ची हुई। नसबंदी में चूक सरकार की ओर से हुई है तो उसका खर्च भी सरकार ही उठाए।’

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ये बातें प्रयागराज की उस महिला ने कहीं, जिसे 4 जून को स्थायी लोक अदालत से न्याय मिला। कोर्ट ने नसबंदी के बावजूद मां बनने पर सरकार पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। पैदा हुई बेटी के भरण-पोषण के लिए सरकार को 5 हजार रुपए हर महीने 18 साल की उम्र तक या ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी होने तक देनें होंगे। अनचाहे गर्भ से महिला को हुई मानसिक तकलीफ के लिए 20 हजार रुपए अदा करने होंगे। दैनिक NEWS4SOCIALरिपोर्टर ने उस महिला से बात की। नसबंदी से लेकर बच्ची के जन्म, कोर्ट जाने और इंसाफ के बाद अनीता का क्या कहना है, पढ़िए…

टीनशेड में ये अनीता और विनय का घर है। मजदूरी करके दोनों परिवार पालते हैं।

दिहाड़ी मजदूर के 5 बच्चे, फिर कराई नसबंदी प्रयागराज से 41 किमी दूर बहरिया ब्लॉक में कलीपुर छाता गांव है। यहां अनीता और उनके पति विनय कुमार एक झोपड़ीनुमा घर में रहते हैं। दोनों पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं। इनके 6 बच्चे, जिसमें दो बेटी और चार बेटे हैं।

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25 अक्टूबर, 2013 को अनीता ने मऊआइमा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) में डॉक्टर नीलिमा से नसबंदी कराई। बताया गया कि नसबंदी सफल हो गई है। तीन महीने बाद अनीता को अचानक पेट दर्द उठा। कमजोरी महसूस होने लगी। फिर 31 जनवरी, 2014 को अल्ट्रासाउंड हुआ। पता चला कि अनीता 16 हफ्ते 6 दिन की गर्भवती हैं।

11 साल की बेटी अंजलि के साथ मां अनीता और पिता विनय।

डॉक्टर बोले- अबॉर्शन करा दो अनीता गर्भ की बात सुनकर सन्न रह गई। परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह और बच्चों की जिम्मेदारी उठा सकें। डॉक्टर ने उन्हें गर्भ गिराने की सलाह दी, लेकिन जब तक वह अबॉर्शन के लिए रुपए का इंतजाम करतीं, गर्भ में पल रहा बच्चा 6 माह का हो चुका था। फिर उन्हें बच्चे को जन्म देना पड़ा। अब वह बेटी अंजलि 11 साल की हो चुकी है।

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अप्रैल-2014 में कोर्ट में वाद दायर किया लड़की पैदा हुई तो अनीता और विनय ने अप्रैल-2014 में प्रयागराज के चीफ मेडिकल अफसर (CMO) को पक्षकार बनाते हुए स्थायी लोक अदालत में शिकायत दर्ज कराई। डॉक्टरों की चूक के लिए मुआवजे की मांग की।

बेटी जितना चाहे, उसे पढ़ाऊंगा : पिता NEWS4SOCIALसे बातचीत में विनय कुमार ने कहा- मेरा बड़ा बेटा कृष्णा 8वीं तक पढ़ा, जो अब दिल्ली में कमाता है। उससे छोटा मुकेश 10वीं तक पढ़ा, अब सूरत में कमाता है। उससे छोटा हरिकेश 9वीं और अंकित 8वीं में पढ़ते हैं। बेटी अंतिमा 5वीं में पढ़ती है। सबसे छोटी बेटी अंजलि क्लास-2 में है।

उन्होंने कहा- मेरे बड़े दोनों बेटे ज्यादा नहीं पढ़ पाएं, लेकिन सबसे छोटी बेटी अंजलि पढ़ने में तेज है। बेटी को चाहे कर्जा लेना पड़े, लेकिन जितना पढ़ना चाहेगी, उसे पढ़ाएंगे। अभी वो डॉक्टर बनने को कहती है। हम चाहते हैं कि वो पुलिस में भी जाए। जहां तक पढ़ेगी, हर हाल में पढ़ाएंगे।

मां बोली- कर्जा लेकर कोर्ट जाती थी अनीता ने कहा- कोर्ट केस लड़ने के लिए पैसे नहीं थे। दूसरे से उधार लेकर जाती थी। मनरेगा में कभी एक महीने बाद तो कभी छह महीने बाद मजदूरी मिलती थी। कई बार कोर्ट से आती तो बच्चे भूखे दरवाजे पर मिलते, बहुत मुश्किलों का सामना किया। मजदूरी और कोर्ट आने-जाने के बाद घर पहुंचने में देर रात हो जाती। पैसे भी न रहते, कई बार नमक-रोटी खाकर सो जाते।

अब कोर्ट की बात करते हैं

ये अनीता और विनय का घर है। छह बच्चों के साथ दंपती घर में रहते हैं।

8 साल बाद CMO अदालत में पेश हुए, बोले- 60 हजार में सुलह कर लो नसबंदी के बावजूद गर्भ ठहरा तो अनीता और विनय ने डॉक्टर से मदद मांगी। डॉक्टर अबॉर्शन के अलावा दूसरा रास्ता नहीं बता रहे थे। फिर दोनों मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) प्रयागराज के पास पहुंचे। विनय बताते हैं कि CMO के यहां कई चक्कर लगाया, कुछ समाधान नहीं मिला। तब वकील सुधाकर मिश्रा की मदद से स्थायी लोक अदालत का दरवाजा खटखटाया।

वकील सुधाकर मिश्रा ने बताया- अदालत से नोटिस भेजे जाने के बाद भी 8 साल तक CMO दफ्तर से नोटिस का जवाब नहीं दिया गया। लगातार लापरवाही बरतने पर अदालत ने मामले में CMO की जवाबदेही तय करने का नोटिस भेजा तो पहली बार CMO 29 जुलाई, 2022 को अदालत में हाजिर हुए।

लोक अदालत ने सुलह की पेशकश करते हुए अनीता और स्वास्थ्य महकमे को आपसी समझौता करने का एक मौका दिया। जिसमें अनीता ने अपने वकील के जरिए बेटी अंजलि के पढ़ाई परवरिश और शादी के खर्च के रूप में 5 लाख रुपए की मांग की। इस पर हेल्थ अफसरों ने सरकारी तौर पर 60 हजार रुपए से अधिक के मुआवजा न दे पाने की बात कही। मजबूरन अदालत ने समझौता न हो पाने की स्थिति में कोर्ट कार्रवाई जारी रखी।

अनीता कहती हैं- सुबह खाना बनाते हैं, फिर हम दोनों मजदूरी पर निकल जाते हैं।

11 साल, 5 जज और 130 तारीखों बाद मिला न्याय वकील सुधाकर मिश्रा बताते हैं, 11 साल के इस मुकदमे में करीब 130 बार सुनवाई हुई। पांच बार पीठासीन अधिकारी बदले गए। राज्य सरकार और CMO कार्यालय की ओर से लगातार मामले को टालने की कोशिशें होती रहीं। लेकिन, अनीता ने हार नहीं मानी। कभी पैदल चलकर तो कभी कर्ज लेकर वह अपने पति के साथ हर तारीख पर पेश होती रहीं।

वकील सुधाकर मिश्रा की मदद से अनीता और विनय ने अप्रैल 2024 में वाद दायर किया।

अनीता कोर्ट में बोलीं- सरकार की गलती, वही खर्च उठाए अनीता ने कोर्ट में कहा- डॉक्टर की गलती से मेरी जिंदगी फिर से उलझ गई। अब इस बच्चे का खर्च मैं कैसे उठा पाऊंगी? नसबंदी में चूक सरकार की ओर से हुई है तो उसका खर्च भी सरकार ही उठाए। असफल नसबंदी के लिए 5 लाख रुपए मुआवजा और बेटी के भरण-पोषण के लिए 25 हजार रुपए हर महीने देने की मांग की।

सरकार बोली- 3 महीने के अंदर ऑपरेशन की असफलता क्यों नहीं बताई सरकार की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि ऑपरेशन एक अनुभवी डॉक्टर ने किया था। महिला ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। ऑपरेशन की असफलता की सूचना 3 महीने के निर्धारित समय में नहीं दी गई। इसलिए याची मुआवजे की हकदार नहीं है।

ये अंजलि है, वह अब 11 साल की हो चुकी है।

कोर्ट ने कहा- नाकामी का बोझ महिला पर डालना ठीक नहीं कोर्ट ने माना कि नसबंदी ऑपरेशन की असफलता स्पष्ट रूप से डॉक्टर की लापरवाही का परिणाम है। सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी को बढ़ावा देती है तो उसकी नाकामी का बोझ किसी महिला पर नहीं डाल सकती। अपनी नाकामी का बोझ महिला पर डालना ठीक नहीं है।

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