​​​​​​​नवनीत गुर्जर का कॉलम: गली-मोहल्ले बात चली है, पता चला है…

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​​​​​​​नवनीत गुर्जर का कॉलम:  गली-मोहल्ले बात चली है, पता चला है…
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​​​​​​​नवनीत गुर्जर का कॉलम: गली-मोहल्ले बात चली है, पता चला है…

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  • ​​​​​​​Navneet Gurjar’s Column The Talk Is Going On In The Streets And Neighborhoods, It Has Been Found Out…

6 घंटे पहले

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नवनीत गुर्जर

  • सुर्खियों से आगे – चौराहों, घरों, दफ्तरों में बह​स छिड़ी

बहस छिड़ी है। चौराहों पर। घरों में। दफ्तरों में भी। हमें तो सिर्फ पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर ही चाहिए। बस। इससे कम कुछ नहीं। कुछ भी नहीं।यह सुनते ही उसी चौराहे पर खड़ा दूसरा व्यक्ति कहता है- भाई दो-तीन दिन में तो तुम पड़ोसी के घर पर भी कब्जा नहीं कर पाओगे, वो तो पीओके है! कैसी बात कर रहे हो! जरा सोच-समझकर बोलो!

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पहले वाला बोला- ठीक है, ठीक है तो कम से कम कुछ दिन लड़ते तो सही, ये बीच में सीजफायर करने की क्या जरूरत थी? अब तीसरा आया मैदान में। बोला- भाई अंतरराष्ट्रीय माहौल, जरूरतें और सिचुएशन भी देखनी पड़ती है। ऐसे चौपाल पर निर्णय नहीं किए जाते। कुछ सोच समझकर ही सीजफायर किया होगा!

पहला व्यक्ति, निराशा के स्वर में- ठीक है भाई तुम सब ठहरे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय जानकार। हम तो गांव के गंवार हैं! लेकिन इतना कहे देते हैं कि ये सब पसंद नहीं आया हमको! कुछ तो तगड़ा सबक सिखाना था पाकिस्तान को। चौथा व्यक्ति बोला- सिखाया तो सही, उसके एयरबेस डैमेज किए। चालीस सैनिक मार गिराए। और क्या चाहिए?

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पहला- हां, तो ये सब कह ही रहे हो! दिखाई कहां दे रहा है? अब दूसरे, तीसरे और चौथे ने एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखा और चल दिए। भाई इस गंवार को समझाना अपने बस की बात नहीं है। पहला चिल्लाया- हां-हां जाओ! मैं अकेला ही काफी हूं। आए बड़े! ये कर दिया, वो कर दिया, बताने वाले! जाओ। अब चौराहे से चलते हैं दफ्तर की तरफ। दो दिन बड़ा उत्साही माहौल रहा। वो मारा। वो पछाड़ा। इतने ड्रोन गिरा दिए।

विमान भी मार गिराया। आतंकी तो सौ से ज्यादा उड़ा दिए। कुछ एयरबेस भी तबाह कर दिए। गजब कर दिया। इस बीच अचानक दफ्तर के टीवी पर ट्रम्प का ट्वीट प्रकट होता है। उसमें कहा जाता है- हमारे अफसरों, प्रतिनिधियों ने रातभर मेहनत की और भारत-पाकिस्तान को सीजफायर के लिए राजी कर लिया। दफ्तर के उत्साही लोग टीवी को छोड़ इधर-उधर हो लेते हैं। कहते हैं- मोदीजी पीओके लिए बिना मानने वाले नहीं हैं। ये ट्रम्प बकवास कर रहा है। ऐसे कैसे सीजफायर हो जाएगा?

पाकिस्तान को नेस्तनाबूद किए बिना हम मानेंगे नहीं। हद है! हमारे बीच ये ट्रम्प और ये अमेरिका कहां से आ टपका? हमारी सेनाओं का शौर्य, उनका पराक्रम निश्चित तौर पर महान है। इस सब को हम इस तरह बीच में छोड़ने वाले नहीं हैं। पीओके तो लेकर ही रहेंगे।यह सब चर्चा चल ही रही थी कि भारतीय विदेश सचिव टीवी पर आते हैं और सीजफायर पर सहमति बनने की घोषणा कर देते हैं।

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दफ्तर में मौजूद तमाम उत्साही चेहरे उदासी का लिबास ओढ़े अपने-अपने कम्प्यूटरों पर खटर-पटर करने लगते हैं। मन ही मन बुड़बुड़ाते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है?ये भी कोई बात हुई?खुशी-उदासी के इस भ्रमजाल में एक दिन बीत जाता है। फिर खबर आती है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रात आठ बजे राष्ट्र के नाम संदेश देंगे। उदास चेहरे फिर खिलखिला उठते हैं।

कहते हैं- अब पाकिस्तान की खैर नहीं। आस-निरास के बीच जैसे ही शाम होती है, ट्रम्प भाई साहब फिर टीवी पर टपक पड़ते हैं। कहते हैं हमने परमाणु हमले टाल दिए। भारत- पाकिस्तान के सामने शर्त रखी कि व्यापार करना है तो युद्ध तुरंत रोको। युद्ध नहीं रोका तो व्यापार बंद।आखिर दोनों मान गए। ट्रम्प की यह बात किसी के गले नहीं उतरी। हर कोई इसे सफेद झूठ ही मान रहा था।

आखिर आठ बजे और हमारे प्रधानमंत्री टीवी पर आए। उन्होंने साफ कहा- भारत किसी परमाणु हमले के नाम पर की जाने वाली ब्लैकमेलिंग को सहन नहीं करेगा। व्यापार का तो सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने साफ किया कि ट्रेड, टॉक और टेररिज्म एक साथ नहीं चल सकते। हम किसी धमकी की परवाह न पहले करते थे और न ही आगे करेंगे। किसी भी तरह के आतंकवाद को सहन करने का सवाल ही नहीं उठता। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा- यदि पाकिस्तान से भविष्य में कोई बात होगी तो या तो आतंकवाद पर होगी या पीओके पर। तीसरा कोई विषय न है, न कभी होगा।

  • ट्रम्प के बयान से उदास लग रहे तमाम चेहरे फिर मुस्करा उठे। लगभग सभी ने एक स्वर में कहा- अब तो पाकिस्तान से पीओके लेकर ही रहेंगे। इससे कम कुछ नहीं। कुछ भी नहीं। जहां तक घरों का सवाल है, उनका तो माहौल ही बदल चुका है। यहां अब टीवी सेट समाचारों के लिए ऑन नहीं हो रहा। यहां साउथ की देखी-दिखाई फिल्मों का स्वाद लिया जा रहा है!ट्रम्प के बयान से उदास लग रहे तमाम चेहरे फिर मुस्करा उठे। सभी ने एक स्वर में कहा- अब तो पाकिस्तान से पीओके लेकर ही रहेंगे। इससे कम कुछ नहीं। कुछ भी नहीं। जहां तक घरों का सवाल है, उनका तो माहौल ही बदल चुका है।

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