देश में यहां है मूंछ- ढाढ़ी वाले हनुमान, नारियल से पूरी होती है मन्नत, पढ़िये 268 साल पुराने इस धाम की कहानी

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देश में यहां है मूंछ- ढाढ़ी वाले हनुमान, नारियल से पूरी होती है मन्नत, पढ़िये  268 साल पुराने इस धाम की कहानी

देश में यहां है मूंछ- ढाढ़ी वाले हनुमान, नारियल से पूरी होती है मन्नत, पढ़िये 268 साल पुराने इस धाम की कहानी


चूरू : राजस्थान में हनुमान जन्मोत्सव (Hanuman janamutsav 2023 ) का खास उत्साह दिख रहा है। राजस्थान में हनुमान मंदिर के तौर पर खास पहचान रखने वाले सालासर बालाजी धाम पर इसी के चलते जबरदस्त भीड़ देखने को मिल रही है। यहां देश के हर राज्य से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। हनुमान जयंती के अलावा यहां शरद पूर्णिमा पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। शरद पूर्णिमा को यहां मेला भरता है, जिसका लोगों के बीच खास उत्साह रहता हैं।

​यहां हैं ढाढ़ी- मूंछ में हनुमान​

सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के चुरू जिले से सुजानगढ़ क्षेत्र में हैं। संभवत : यह देश का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां हनुमान जी की प्रतिमा ढाढ़ी- मूंछ में हैं। ढाढ़ी- मूंछ में यहां भगवान की मूर्ति होने के पीछे एक खास और रोचक कहानी है। बताया जाता है कि एक संत मोहन दास महाराज अपनी बहन कान्ही बाई के घर भोजन कर रहे थे। इसी दौरान बालाजी (हनुमान जी) ने उन्हें साधु के वेश में दर्शन दिए। इसके बाद मोहन दास महाराज ने बालाजी को दाढ़ी-मूंछ में देखा तो उन्होंने दाढ़ी-मूंछ वाले बालाजी की प्रतिमा का ही शृंगार किया। यही मूर्ति अब सालासर मंदिर में विराजमान हैं।

​मूर्ति स्थापना हुई 268 साल पहले​

-268-

सालासर धाम की स्थापना करीब 268 साल पहले हुई थी। संत मोहन दासजी महाराज ने बालाजी के चढ़ावे में आए पांच रुपए से मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर बनाने के पीछे का मकसद भी श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। संवत 1811 श्रावण शुक्ला नवमी शनिवार के दिन बालाजी महाराज की मूर्ति स्थापित हुई थी। इसके बाद में संत मोहन दासजी ने फतेहपुर के नूर मोहम्मद और दाऊ नामक कारीगरों को मंदिर निर्माण के लिए बुलाया। सम्वत् 1815 में निर्माण पूरा हुआ। वर्तमान में मंदिर परिसर लंबे-चौड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है और सभी सुविधाएं भी हैं। देशभर में सालासर धाम अलग पहचान रखता है। कई राज्यों से यहां श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने आते हैं।

​नारियल से पूरी होती है मनौती​

​नारियल से पूरी होती है मनौती​

सालासर बालाजी धाम में नारियल चढ़ावे में खास तौर से रखा जाता है। माना जाता है कि भगवान नारियल के भेंट स्वीकार कर लोगों की मनोकामना पूरी करते हैं। हर साल करीब 25 लाख नारियल मंदिर में चढ़ाए जाते हैं। खास बात यह भी है कि यहां मनौती के इन नारियलों का दोबारा उपयोग में नहीं लिया जाता है। उन्हें खेत में गड्‌ढा खोदकर दबा दिया जाता हैं।

नारियलों को फेंका नहीं जाता

नारियलों को फेंका नहीं जाता

यहां करीब करीब 200 सालों से श्रद्धालु मंदिर परिसर में ही लगे खेजड़ी के एक पेड़ पर लाल कपड़े में नारियल बांधकर जाते हैं । इन नारियलों को फेंका नहीं जाता है। ना ही जलाया जाता है और ना ही कोई अन्य उपयोग होता है। इसके पीछे भी एक रोचक कथा है। नारियलों को सालासर बालाजी मंदिर से करीब 11 किलोमीटर दूर मुरड़ाकिया गांव के पास करीब 250 बीघा खेत में गड्ढा करके दबा दिया जाता है। यशोदा नंदन पुजारी ने बताया कि शुरुआती दिनों में इन नारियलों को धूने की ज्योत में डालकर जला दिया जाता था। लेकिन तीसरी पीढ़ी के पुजारी परिवार के मुखिया को एक सपना आया।

​ऐसे रखा नारियलों को सुरक्षित रखना का फैसला​

​ऐसे रखा नारियलों को सुरक्षित रखना का फैसला​

इस सपने में पुजारी ने देखा कि नारियलों के साथ भक्तों की मनोकामनाएं भी जल रही हैं। पुजारी ने अपने परिवारजनों को इकट्ठा कर यह बात बताई। इसके बाद मन्नतों के इन नारियलों को सुरक्षित रखने का फैसला किया गया।

​अभी दिन रात खुले रहेंगे पट​

​अभी दिन रात खुले रहेंगे पट​

हनुमान जन्मोत्सव पर चैत्र पूर्णिमा के तीन दिवसीय मेले में आयोजन किया गया है। तीन लाख से ज्यादा लोग बालाजी के दर्शन करेंगे। मेले के दौरान मंदिर रोज 19 घंटे खुला रहेगा। पुजारी ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए मेले के दौरान मंगलवार को रात तीन बजे पट खोले गए।

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