देश में बढ़ती महंगाई के बीच क्या पैकेज्ड फूड कंपनियां बढ़ाने जा रही हैं दाम? जानिए क्या है तैयारी
मुंबई: एक ओर जहां खाने-पीने की चीजों की महंगाई में तेजी जारी है तो दूसरी ओर पैकेज्ड फूड कंपनियों का दाम बढ़ाने का कोई इरादा नजर नहीं आ रहा है। जबकि पिछले साल महंगाई बढ़ते ही लगभग सभी कंपनियों ने या तो दाम बढ़ा लिए थे या वही दाम रख कर उनका वजन कुछ कम कर दिया था। भारत में साज फूड्स के बिस्कुट और बेकरी ब्रैंड Bisk Farm के MD विजय कुमार सिंह का कहना है कि महंगाई बढ़ने से इस कैटिगरी पर दबाव साफ नजर आ रहा है। गांवों में डिमांड सुस्त पड़ी है और ग्रोथ में मुश्किल आ रही है। सिंह कहते हैं, ‘अभी हम कमॉडिटी की कीमत में इजाफे का दबाव सहन कर रहे हैं। प्रॉफेटेब्लिटी अच्छी है और कंस्यूमर पर कोई बोझ नहीं डालन चाहते। वैसे भी अभी महंगाई का कोई खास असर हमारी कैटिगरी पर नहीं आया है। उम्मीद है कि नहीं आएगा, क्योंकि चुनावी साल में सरकार महंगाई को लेकर और ज्यादा सर्तक रहेगी। हमनें अभी सुपर फूड देशी घी के प्रॉडक्ट लॉन्च किए जिसे अच्छा रेस्पांस भी मिला है।
डिमांड पर आया था असर
हालांकि, इक्विनॉमिक्स रिसर्च के एमडी जी. चोकलिंग्गम ने बताया कि इस बार की महंगाई का दवाब पिछले साल से अलग है। इसलिए पैकेज्ड फूड कंपनियों ने दाम अभी तक नहीं बढ़ाए हैं। पिछले साल सभी तरह की कमॉडिटी के दाम बढ़े थे लेकिन इस बार दुनिया में आर्थिक सुस्ती के कारण कमोडिटी बास्केट का वह हिस्सा जो क्रूड से जुड़ा है उसमें गिरावट का ट्रेंड दिखा रहा है। वहीं, जो हिस्सा एग्री कमॉडिटी से जुड़ा है, वह बैमौसम बारिश और तुफानी मॉनसून के कारण धीरे-धीरे बढ़ रहा है। कंपनियां प्राइस को लेकर इसलिए भी बैकफुट पर हैं कि पिछले साल कीमतें बढ़ने से डिमांड पर असर आ गया था।
वेजिटेबल्स की कीमतें ज्यादा बढ़ीं
पारले प्रॉडक्ट्स के सीनियर कैटिगरी हेड मयंक शाह का कहना है कि फ्रूट और वेजिटेबल्स की कीमतें ज्यादा बढ़ी हैं। इससे हमारे ऊपर असर नहीं हुआ है। हमारे लिया ज्यादा असर खाद्य तेज, शुगर, मिल्क और गेहूं और मैदा आदि करता है। इनमें मिक्स्ड प्राइस ट्रेंड हैं। हालांकि, हम एग्री-कमॉडिटी में महंगाई पर करीबी नजर रख रहे हैं।
कमॉडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया का कहना है कि फूड कंपनियां अपने कमॉडिटी बास्केट को देखकर निर्णय लेंगी। चूंकि उनके बास्केट में जो कमॉडिटी हैं, अगर उसकी कीमतें सह लेने के दायरे में हैं और उनके मार्जिन को हिट नहीं हो रहा है तो वे अभी कीमतें नहीं बढ़ाएंगी। शायद यही वजह है कि नेस्ले और ब्रिटानिया अपने प्रॉडक्ट की कीमतों को अभी पुराने स्तर पर बनाए हुए हैं।
खाने का तेल हुआ महंगा
रिटेल ट्रेडर्स का कहना है कि खाने के तेल की कीमतें तो एक साल से भी कम समय में 50% कम हुई हैं, क्योंकि विकसित देशों में कंस्यूमर की ओर से डिमांड कम है और ऑइल सीड का प्रॉडक्शन भी अच्छा हुआ है। शक्कर 42-45 रुपये किलो के बीच स्टेबल चल रही है। ऐसे में कंपनियां अभी प्राइस को लेकर रिस्क नहीं लेना चाहतीं।
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डिमांड पर आया था असर
हालांकि, इक्विनॉमिक्स रिसर्च के एमडी जी. चोकलिंग्गम ने बताया कि इस बार की महंगाई का दवाब पिछले साल से अलग है। इसलिए पैकेज्ड फूड कंपनियों ने दाम अभी तक नहीं बढ़ाए हैं। पिछले साल सभी तरह की कमॉडिटी के दाम बढ़े थे लेकिन इस बार दुनिया में आर्थिक सुस्ती के कारण कमोडिटी बास्केट का वह हिस्सा जो क्रूड से जुड़ा है उसमें गिरावट का ट्रेंड दिखा रहा है। वहीं, जो हिस्सा एग्री कमॉडिटी से जुड़ा है, वह बैमौसम बारिश और तुफानी मॉनसून के कारण धीरे-धीरे बढ़ रहा है। कंपनियां प्राइस को लेकर इसलिए भी बैकफुट पर हैं कि पिछले साल कीमतें बढ़ने से डिमांड पर असर आ गया था।
वेजिटेबल्स की कीमतें ज्यादा बढ़ीं
पारले प्रॉडक्ट्स के सीनियर कैटिगरी हेड मयंक शाह का कहना है कि फ्रूट और वेजिटेबल्स की कीमतें ज्यादा बढ़ी हैं। इससे हमारे ऊपर असर नहीं हुआ है। हमारे लिया ज्यादा असर खाद्य तेज, शुगर, मिल्क और गेहूं और मैदा आदि करता है। इनमें मिक्स्ड प्राइस ट्रेंड हैं। हालांकि, हम एग्री-कमॉडिटी में महंगाई पर करीबी नजर रख रहे हैं।
कमॉडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया का कहना है कि फूड कंपनियां अपने कमॉडिटी बास्केट को देखकर निर्णय लेंगी। चूंकि उनके बास्केट में जो कमॉडिटी हैं, अगर उसकी कीमतें सह लेने के दायरे में हैं और उनके मार्जिन को हिट नहीं हो रहा है तो वे अभी कीमतें नहीं बढ़ाएंगी। शायद यही वजह है कि नेस्ले और ब्रिटानिया अपने प्रॉडक्ट की कीमतों को अभी पुराने स्तर पर बनाए हुए हैं।
खाने का तेल हुआ महंगा
रिटेल ट्रेडर्स का कहना है कि खाने के तेल की कीमतें तो एक साल से भी कम समय में 50% कम हुई हैं, क्योंकि विकसित देशों में कंस्यूमर की ओर से डिमांड कम है और ऑइल सीड का प्रॉडक्शन भी अच्छा हुआ है। शक्कर 42-45 रुपये किलो के बीच स्टेबल चल रही है। ऐसे में कंपनियां अभी प्राइस को लेकर रिस्क नहीं लेना चाहतीं।
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