दिल्ली में चढ़-उतर रही यमुना से कितना खतरा? डीडीए के 10 रिवर प्रोजेक्ट बाढ़ में ‘बह’ गए
डीडीए के कौन से प्रोजेक्ट हैं प्रभावित
अधिकारी ने कहा कि उदाहरण के लिए, वासुदेव घाट पर बारादरी का काम बरकरार है। अन्य स्थलों पर पैदल ट्रैक को भी कोई नुकसान नहीं होने की उम्मीद है। बांससेरा जैसे ऊंचाई वाले स्थान प्रभावित नहीं हैं। हालांकि, स्थिति ने परियोजनाओं के पूरा होने पर सवालिया निशान लगा दिया है। अधिकारियों का कहना है कि हमें जुलाई के अंत तक वासुदेव घाट पर काम पूरा करना था। छह और परियोजनाएं – कालिंदी अविरल, असिता वेस्ट, अमृत बायोडायवर्सिटी पार्क, यमुना वाटिका, कालिंदी बायोडायवर्सिटी पार्क और यमुना वनस्थली साल के अंत तक पूरी होनी थीं। एक अधिकारी ने कहा. ओल्ड रेलवे ब्रिज और आईटीओ बैराज के बीच 90 हेक्टेयर की असिता ईस्ट परियोजना पूरी हो चुकी है। स्थिति ने डीडीए को प्रजातियों के बारे में अधिक सेलेक्टिव होना भी सिखाया है। अधिकारी ने कहा, ‘हमारे पास पहले से ही बाढ़ क्षेत्र के लिए अनुकूल 20-25 पौधों की एक सूची है। हम बड़ी मात्रा में नदी घास के अलावा उन्हें लगाने पर ध्यान केंद्रित करेंगे। डीडीए ने देशी पेड़ों के 6 लाख पौधे और 95 लाख नदी घास के पौधे लगाए थे। इससे बाढ़ क्षेत्र में 1,350 मिलियन लीटर पानी बढ़ाने में मदद मिली है।
किसी ने ऐसी उम्मीद नहीं की थी
एक अधिकारी ने कहा कि हम एक या दो महीने में नई योजना तैयार करेंगे। हालांकि, टेंडर के जरिए लाखों की संख्या में पौधे और घास खरीदने और उन्हें रोपने में समय लगेगा। नदी की घासें यमुना के निकट के कई स्थानों से प्राप्त की जाती थीं। बाढ़ क्षेत्र को मिट्टी के कटाव, अतिक्रमण और अन्य कारकों से बचाने के लिए परियोजनाएं शुरू की गई हैं। मानसून के दौरान जल संचय यहां एक नियमित विशेषता है। अधिकारी ने कहा कि हालांकि, इस बार चीजें हर किसी की कल्पना से परे हो गई हैं। हम यमुना के स्तर में वृद्धि के बाद नियमित रूप से साइटों का दौरा कर रहे हैं। अधिकारी ने कहा कि हम आश्वस्त हैं कि मानसून से पहले किया गया वृक्षारोपण जीवित नहीं रहेगा क्योंकि घास और पौधे छोटे थे। उन्होंने कहा कि बाढ़ के पानी के रुकने से मिट्टी भी दूषित हो गई होगी। अधिकारियों को उम्मीद है कि अगली कुछ बारिशों से गुणवत्ता में फिर से सुधार होगा। डीडीए बाढ़ क्षेत्र के लिए पौधों की लगातार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस क्षेत्र का उपयोग नर्सरी के रूप में भी करता है। ज्यादातर, यमुना तट क्षेत्र के लिए अनुकूल प्रजातियां यहां उगाई गई थीं। बाढ़ ने उन्हें भी नुकसान पहुंचाया है।
बाढ़ से यमुना खादर में डूबी नर्सरियां
यमुना में आई बाढ़ से नदी किनारे बनीं तमाम नर्सरियां डूब गईं। फूल, फल और सब्जियों के पौध पानी में बहकर बर्बाद हो गए। इंडियन नर्सरीमैन असोसिएशन के प्रेजिडेंट वाईपी सिंह ने बताया कि दिल्ली से नोएडा की यमुना रिवर बेल्ट में 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी नर्सरियां हैं। मयूर विहार पुस्ते पर 4-5 किलोमीटर क्षेत्र में नर्सरी हैं। इनमें 450 नर्सरियां तो छोटे किसान और माली चलाते हैं, जो पार्ट टाइम काम करते हैं। इनकी बीवी और बच्चे नर्सरी में दिन-रात जुटे रहते हैं। करीब 50 मध्यमवर्गीय नर्सरीमैन इनमें काम करते हैं। यमुना की बाढ़ से नर्सरी कारोबार को 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान पहुंचा है। बाढ़ में नर्सरी में 5 से 10 फुट तक पानी इकट्ठा हो गया है। फाइकस, टोपबेरी, गुलदावरी, गेंदा, जाफरी के प्लांट खराब हो गए।
4-5 साल में कई नर्सरियां हुईं शिफ्ट
पिछले 4-5 वर्षों में बहुत-सी नर्सरियां दिल्ली से नोएडा तक यमुना किनारे शिफ्ट हुई हैं। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के कई प्रोजेक्ट आने के बाद भी नर्सरी शिफ्ट हुई हैं। वाईपी सिंह ने बताया कि बुराड़ी और आईटीओ के आसपास भी नर्सरी हैं, जो कि छोटी बेल्ट है। बाढ़ में अमरूद, आम, जामुन, फालसा, चीकू, तुरई और लौकी को नुकसान पहुंचा है। इन पौधों को लोग घरों में लगा लेते हैं। इसी की तैयारियां नर्सरी में होती है। आमतौर पर सितंबर और अक्टूबर में यमुना का जलस्तर बढ़ता था। यह पहला मौका है, जब जुलाई में बाढ़ आई। सितंबर-अक्टूबर तक काफी माल बिक जाता था। इस बाढ़ ने सीजन की शुरुआत में पेड़-पौधे खत्म कर दिए। अब 3 महीने बाद बारिश खत्म होगी, तब फिर से काम शुरू कर पाएंगे। बरसाती सीजन में थोड़े बहुत ही प्लांट तैयार कर पाते हैं।
मालियों को मदद की जरूरत
वाईपी सिंह ने बताया कि बाढ़ की वजह से यमुना खादर में काम करने वाले मालियों की माली हालत खराब हो गई है। आईएनए की ओर से नोएडा में रोज 2.5 हजार लोगों को निशुल्क खाना मुहैया कराया जा रहा है। नोएडा के डीएम से भी मुलाकात का समय मांगा है, ताकि सरकार की ओर से मदद मिल सके। असोसिएशन ने सामाजिक संगठनों से भी मदद की गुहार लगाई है।