डंकी रूट्स का कड़वा सच: युवकों की दिल दहला देने वाली कहानी, जो घायल या बीमार होता, उसे मरने के लिए छोड़ देते h3>
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अमेरिका से डिपोर्ट होकर लौटे सुखपाल व हरविंदर अपने परिजनों व विधायक टांडा के साथ। – फोटो : संवाद
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पांच फरवरी को अमेरिका से डिपोर्ट किए गए 104 भारतीयों ने वहां यातनाएं सही। अमेरिकी सेना का विमान इन लोगों को वापस लेकर अमृतसर पहुंचा तब तक ये लोग जंजीरों से बंधे हुए थे। अब सभी लोग अपने-अपने घर पहुंच गए हैं। इन्होंने जो कुछ सहन किया, उस खतरनाक और दर्दनाक सफर की कहानी साझा कर रहे हैं। जो डंकी रूट के जरिये अमेरिका पहुंचने की कोशिश में बिताए गए महीनों की असलियत को उजागर कर रही है।
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अमेरिका से डिपोर्ट होकर लौटे होशियारपुर के टांडा इलाके के दोनों नौजवानों ने डंकी रूट की जो कहानी बयान की है, वो दिल दहला देने वाली है। सुखपाल और हरविंदर ने विधायक जसवीर सिंह राजा और डीएसपी के सामने अमेरिका जाने के दौरान आई परेशानियों और चुनौतियों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उन्हें एजेंटों ने धोखा दिया और सीधी फ्लाइट की बात कर डंकी रूट से भेज दिया।
रास्ते में कई लोगों ने तोड़ा दम
सुखपाल ने बताया कि उसने एजेंट से बात की थी तो उसने यूरोप के रास्ते वहां से सीधे मेक्सिको की फ्लाइट से भेजने की बात की थी, लेकिन यूरोप पहुंचकर आगे डंकी रूट से जंगलों से पैदल चला कर और समुद्र के रास्ते मेक्सिको पहुंचाया। इस दौरान उन्होंने करीब 15 घंटे एक नाव में समुद्री यात्रा की। फिर उन्हें पहाड़ी रास्ते में जंगलों से होकर करीब 45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। इस दौरान दो कोई बीमार हुआ या घायल हुए, उसे वहीं मरने के लिए छोड़ दिया गया। रास्ते में कई लोगों की मौत हुई और उन्होंने लाशें पड़ी देखीं। वह 22 जनवरी को मेक्सिको बॉर्डर क्रॉस कर अमेरिका में दाखिल हुए, तो वहां पर उन्हें अमेरिकन आर्मी ने उन्हें पकड़ लिया और उन्हें वहां से जेल ले जाया गया।
14 दिन बाद वर्क परमिट देने की कही थी बात
उन्हें पूछा गया कि वह वहां क्या करने आए हैं, तो सबका कहना था कि उन्हें काम नहीं मिला तो काम की तलाश में वहां आए हैं। इस पर उन्हें जेल ले जा कर एक कमरे में बंद कर दिया गया। उन्हें कहा गया था कि 14 दिन बाद उन्हें वर्क परमिट दिया जाएगा, लेकिन उन्हें जेल से निकाल कर सीधे ही डिपोर्ट कर वापस अमृतसर भेज दिया गया।
कतर से ब्राजील ले गया एजेंट, फिर नाव से तय किया सफर
हरविंदर ने बताया कि उसे एजेंट ने यहां से सीधे मेक्सिको ले जाने की बात कही थी, लेकिन फिर कहा कि बात नहीं बन रही और उसे कतर ले जाया गया। वहां से फिर उसे ब्राजील ले जाया गया और फिर पेरू से फ्लाइट की बात कही गई। फिर उसे समुद्र के रास्ते चार घंटे एक छोटी प्लास्टिक की नाव से ले जाया गया जो रास्ते में डूबने ही वाली थी पर किसी तरह वह बच गए। उसके बाद उन्हें लगातार पैदल चला कर मेक्सिको की सीमा पार कराई गई। इस दौरान खाने-पीने के लिए कोई इंतजाम नहीं था। कभी कभार उनको ब्रेड मिल जाती, जो पानी में भिगो कर ही खानी पड़ती थी और कई बार भूखे ही सोना पड़ता था। उन्होंने बताया कि उनके कई साथी रास्ते में ही दम तोड़ गए जो लड़का रास्ते में बीमार हो जाता था उसे वह वहीं पर छोड़ जाते थे और कई जो कोई ऊंची आवाज में बात करता था, तो वह उसको गोली भी मार देते थे।
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