जेडीयू में नीतीश ने वापस ली सत्ता, क्या बिहार में भी बदलेगा सत्ता का समीकरण? अटकलों का दौर फिर शुरू h3>
जेडीयू की सत्ता एक बार फिर नीतीश कुमार ने अपने हाथ में ले ली है। जिसकी अटलकें बीते कई दिनों से चल रही थीं। लेकिन खुद नीतीश कुमार से लेकर ललन सिंह समेत पार्टी के दिग्गज नेता तमाम कयासों को अफवाह बता रहे थे। लेकिन जदयू में शुक्रवार को जो कुछ घटित हुआ, इसकी पटकथा बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। जदयू की तरफ से भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की अटकलों को खारिज किया जाता रहा लेकिन भाजपा के राज्यसभा सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी डंके की चोट पर दावा कर रहे थे। कि 29 दिसंबर को जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से ललन सिंह इस्तीफा देंगे। उधर रालोजद सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा दावा कर रहे थे कि नीतीश कुमार के साथ धोखा हुआ है। ललन सिंह राजद से मिलकर सत्ता पलट की व्यूहरचना तैयार कर रहे थे। ये दोनों कभी नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे हैं।
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इस तरह एनडीए नेताओं के दावे सही निकले पर अब ज्यादा अहम सवाल है, आगे क्या? ललन सिंह का अध्यक्ष पद छोड़ना कई सियासी कयासों को जन्म दे गया है। नीतीश कुमार ऐसे फैसले तभी लेते हैं जब किसी की पार्टी के प्रति निष्ठा पर उन्हें कोई शक हो। जदयू के अंदर सत्ता बदलने के बाद क्या अब राज्य का सत्ता समीकरण बदलने वाला है?
नीतीश कुमार की जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के बाद से भाजपा नेताओं के सुर भी बदले नजर आ रहे हैं। नीतीश कुमार पर तीखी टिप्पणी करते रहे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी की प्रतिक्रिया है कि यह जदयू का आंतरिक मामला है, भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जदयू का एक ही नेता हैं नीतीश कुमार, दूसरा कोई नहीं। उन्होंने कभी आरसीपी सिंह को तो कभी ललन सिंह को बना दिया।
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वहीं जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि भाजपा हमारी दुश्मन नहीं है। राजनीति में कोई भी दुश्मन नहीं होता। इस तरह केसी त्यागी ने खुलकर तो कुछ भी नहीं कहा, लेकिन इस बात का इशारा जरूर कर दिया कि जरूरत के वक्त कुछ भी हो सकता है।
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उधर, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की यात्रा रद्द होने और नीतीश कुमार के पार्टी अध्यक्ष बनने पर उनकी तंग प्रतिक्रिया के भी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। तेजस्वी की प्रतक्रिया में वह ओज और उत्साह नहीं था। उन्होंने कहा कि हां बने हैं, अच्छी बात है। बधाई देता हूं। गुरुवार को उन्होंने कहा था कि ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से नहीं हटेंगे।
जाहिर है, अगले कुछ दिन बिहार की सियासत के लिए अहम होंगे। क्या जदयू फिर एनडीए का हिस्सा बनने जा रहा है? यह सवाल लोगों को ज्यादा मथ रहा है। जानकारों का अनुमान और सियासी गलियारे की गुफ्तगू इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। ललन सिंह को अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है, इसका कारण जो अब तक सुर्खियों में है कि ललन सिंह लालू और तेजस्वी के करीब बन उन्हें मजबूत करने की जुगत कर रहे थे।
मीडिया में यह बात कई दिनों से सुर्खियों में रही, लेकिन किसी जदयू नेता ने इसका खंडन नहीं किया। और यह कारण सही है तो बिहार में फिर नया सत्ता समीकरण के आकार लेने की बड़ी वजह भी यही होगा। आरसीपी सिंह को जब राष्ट्रीय अध्यक्ष से हटाया गया था तो कौन जानता था कि यह जदयू के एनडीए से अलग होने का संकेत है। उस समय आरसीपी पर भाजपा के करीब हो जाने का अंदेशा था। नीतीश कुमार ने एक बार प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि ललन सिंह और बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने राजद के साथ गठबंधन की सलाह दी थी। वैसे जदयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जो राजनीतिक प्रस्ताव पारित किए हैं, उसका लब्बोलुआब यही है कि केन्द्र की एनडीए सरकार को वह लोकतंत्र के लिए खतरा मानता है और उसके खिलाफ आगे भी लड़ाई जारी रहेगी।
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जेडीयू की सत्ता एक बार फिर नीतीश कुमार ने अपने हाथ में ले ली है। जिसकी अटलकें बीते कई दिनों से चल रही थीं। लेकिन खुद नीतीश कुमार से लेकर ललन सिंह समेत पार्टी के दिग्गज नेता तमाम कयासों को अफवाह बता रहे थे। लेकिन जदयू में शुक्रवार को जो कुछ घटित हुआ, इसकी पटकथा बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। जदयू की तरफ से भले ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की अटकलों को खारिज किया जाता रहा लेकिन भाजपा के राज्यसभा सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी डंके की चोट पर दावा कर रहे थे। कि 29 दिसंबर को जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से ललन सिंह इस्तीफा देंगे। उधर रालोजद सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा दावा कर रहे थे कि नीतीश कुमार के साथ धोखा हुआ है। ललन सिंह राजद से मिलकर सत्ता पलट की व्यूहरचना तैयार कर रहे थे। ये दोनों कभी नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे हैं।
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नीतीश कुमार की जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के बाद से भाजपा नेताओं के सुर भी बदले नजर आ रहे हैं। नीतीश कुमार पर तीखी टिप्पणी करते रहे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी की प्रतिक्रिया है कि यह जदयू का आंतरिक मामला है, भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जदयू का एक ही नेता हैं नीतीश कुमार, दूसरा कोई नहीं। उन्होंने कभी आरसीपी सिंह को तो कभी ललन सिंह को बना दिया।
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वहीं जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि भाजपा हमारी दुश्मन नहीं है। राजनीति में कोई भी दुश्मन नहीं होता। इस तरह केसी त्यागी ने खुलकर तो कुछ भी नहीं कहा, लेकिन इस बात का इशारा जरूर कर दिया कि जरूरत के वक्त कुछ भी हो सकता है।
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उधर, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की यात्रा रद्द होने और नीतीश कुमार के पार्टी अध्यक्ष बनने पर उनकी तंग प्रतिक्रिया के भी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। तेजस्वी की प्रतक्रिया में वह ओज और उत्साह नहीं था। उन्होंने कहा कि हां बने हैं, अच्छी बात है। बधाई देता हूं। गुरुवार को उन्होंने कहा था कि ललन सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से नहीं हटेंगे।
जाहिर है, अगले कुछ दिन बिहार की सियासत के लिए अहम होंगे। क्या जदयू फिर एनडीए का हिस्सा बनने जा रहा है? यह सवाल लोगों को ज्यादा मथ रहा है। जानकारों का अनुमान और सियासी गलियारे की गुफ्तगू इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। ललन सिंह को अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है, इसका कारण जो अब तक सुर्खियों में है कि ललन सिंह लालू और तेजस्वी के करीब बन उन्हें मजबूत करने की जुगत कर रहे थे।
मीडिया में यह बात कई दिनों से सुर्खियों में रही, लेकिन किसी जदयू नेता ने इसका खंडन नहीं किया। और यह कारण सही है तो बिहार में फिर नया सत्ता समीकरण के आकार लेने की बड़ी वजह भी यही होगा। आरसीपी सिंह को जब राष्ट्रीय अध्यक्ष से हटाया गया था तो कौन जानता था कि यह जदयू के एनडीए से अलग होने का संकेत है। उस समय आरसीपी पर भाजपा के करीब हो जाने का अंदेशा था। नीतीश कुमार ने एक बार प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि ललन सिंह और बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने राजद के साथ गठबंधन की सलाह दी थी। वैसे जदयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जो राजनीतिक प्रस्ताव पारित किए हैं, उसका लब्बोलुआब यही है कि केन्द्र की एनडीए सरकार को वह लोकतंत्र के लिए खतरा मानता है और उसके खिलाफ आगे भी लड़ाई जारी रहेगी।