छत्तीसगढ़ के जेपी प्लांट में घटना, एमपी में 7 घंटे होता रहा हंगामा | Impact of incident at Bhilai JP plant visible in Satna | News 4 Social h3>
भिलाई में फंदा लगाकर आत्महत्या करने वाले बिरहुली गांव के निवासी सत्यम सिंह (23) पिता मोतीमन सिंह का शव मंगलवार को सतना पहुंचा तो परिजन ट्रैक्टर में उसका शव लेकर बाबूपुर प्लांट के सामने आ धमके और प्रदर्शन करने लगे। सात घंटे से ज्यादा समय तक नारेबाजी करते हुए वे आरोप लगाते रहे कि कंपनी ने आठ माह से वेतन नहीं दिया, इसीलिए सत्यम ने आत्महत्या की। परिजन और प्रदर्शनकारियों ने पीडि़त परिवार के एक सदस्य को नौकरी और मुआवजे की मांग की। इसके साथ ही वे यहां से भिलाई प्लांट ले जाए गए सभी गांव के लड़कों को वापस बुलाने की मांग भी कर रहे थे।
प्रबंधन ने खड़े किए हाथ
इस बीच लगभग 2 बजे सतना विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा भी मौके पर पहुंचे। प्रदर्शनकारियों की ओर से उन्होंने फैक्ट्री प्रबंधन से बात की और मांगों का निराकरण करने कहा। लेकिन फैक्ट्री के प्रेसीडेंट शंभू ने मांग मानने में असमर्थता जता दी। उनका कहना था कि मौत भिलाई में हुई है ऐसे में यहां का प्रबंधन निर्णय नहीं ले सकता। इसके बाद विधायक की मौजूदगी में निर्णय लिया गया कि शव को कलेक्ट्रेट लेकर चलते हैं। निर्णय के बाद विधायक अपने वाहन से पहले कलेक्ट्रेट पहुंच गए। इसके लगभग आधे घंटे बाद प्रदर्शनकारी शव लेकर कलेक्ट्रेट परिसर के अंदर दाखिल हो गए और परिसर के अंदर कलेक्ट्रेट में आंतरिक गेट के सामने शव रखकर प्रदर्शन शुरू कर दिया।
कलेक्ट्रेट में स्थिति हंगामाई बनी रही
कलेक्ट्रेट परिसर के अंदर शव रख कर प्रदर्शन की स्थिति को देखते हुए स्थिति हंगामाई हो गई थी। प्रबंधन कुछ करने से हाथ खड़े कर चुका था। प्रशासन की ओर से अपर कलेक्टर ऋषि पवार, एसडीएम नीरज खरे, सीएसपी महेन्द्र सिंह लगातार समझाइश देने में जुटे थे। विधायक सिद्धार्थ का कहना था कि फैक्ट्री प्रबंधन की वजह से आत्महत्या हुई है। लिहाजा वह परिजन की मांग पूरी करे। कई दौर की समझौता वार्ता के बाद साढ़े 9 बजे फैक्ट्री प्रबंधन ने मांग मानने को तैयार हुआ। मृतक सत्यम के परिवार के एक व्यक्ति को स्थाई नौकरी, एक लाख रुपए नगद देने सहित भिलाई में काम कर रहे सतना के सभी 35 लोगों को 4-4 के बैच में सतना प्लांट भेजने का निर्णय फाइनल किया गया। इसके बाद प्रदर्शन समाप्त हुआ।
यह था परिजन का आरोप
सत्यम के बड़े पिता हीरामन सिंह ने बताया कि जब सतना में सीमेंट प्लांट स्थापित हो रहा था तब फैक्ट्री ने हमारी जमीनें ली थीं। वादे के अनुसार परिवार के सदस्य की भर्ती भी की गई। शुरुआत में इन्हें सतना स्थित बाबूपुर प्लांट में रखा गया। इसके बाद इन्हें छत्तीसगढ़ के भिलाई प्लांट में भेज दिया गया। यहां से लगभग एक दर्जन बच्चों को भिलाई भेजा गया है। लेकिन एक साल से इन्हें पूरा वेतन नहीं दिया जा रहा है। कभी पांच तो कभी दस प्रतिशत वेतन ही दे रहे हैं।
फैक्ट्री प्रबंधन कहता है अभी प्लांट बंद है। जब चालू होगा तब पूरा वेतन दिया जाएगा। वहां श्रमिकों को टूटे फूटे क्वार्टरों में रखा गया है और बाहर आने जाने नहीं दिया जाता। आर्थिक समस्या से जूझ रहे श्रमिक उधार लेकर काम चला रहे हैं। ऐसे में उधार देने वालों का दबाव लगातार आ रहा है। इसी परेशानी में सत्यम ने आत्महत्या कर ली। फैक्ट्री प्रबंधन चाहता तो इन्हें सतना प्लांट भेज सकता था। इस घटना के बाद प्रदर्शनकारी मुआवजे सहित सत्यम के स्थान पर अन्य की स्थाई नौकरी की मांग कर रहे थे।
प्रदर्शन कर रहे किसान गंगा सिंह का भी कहना था कि सत्यम की मौत की वजह आर्थिक समस्या है। कंपनी की ओर से खर्च के लिए कुछ रकम देकर वेतन का आश्वासन दे दिया जाता था। दोस्तों को फोन लगाकर उधार मांगता था। कंपनी उन्हें कभी पांच तो कभी दस प्रतिशत ही वेतन दे रही थी।
भिलाई में फंदा लगाकर आत्महत्या करने वाले बिरहुली गांव के निवासी सत्यम सिंह (23) पिता मोतीमन सिंह का शव मंगलवार को सतना पहुंचा तो परिजन ट्रैक्टर में उसका शव लेकर बाबूपुर प्लांट के सामने आ धमके और प्रदर्शन करने लगे। सात घंटे से ज्यादा समय तक नारेबाजी करते हुए वे आरोप लगाते रहे कि कंपनी ने आठ माह से वेतन नहीं दिया, इसीलिए सत्यम ने आत्महत्या की। परिजन और प्रदर्शनकारियों ने पीडि़त परिवार के एक सदस्य को नौकरी और मुआवजे की मांग की। इसके साथ ही वे यहां से भिलाई प्लांट ले जाए गए सभी गांव के लड़कों को वापस बुलाने की मांग भी कर रहे थे।
प्रबंधन ने खड़े किए हाथ
इस बीच लगभग 2 बजे सतना विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा भी मौके पर पहुंचे। प्रदर्शनकारियों की ओर से उन्होंने फैक्ट्री प्रबंधन से बात की और मांगों का निराकरण करने कहा। लेकिन फैक्ट्री के प्रेसीडेंट शंभू ने मांग मानने में असमर्थता जता दी। उनका कहना था कि मौत भिलाई में हुई है ऐसे में यहां का प्रबंधन निर्णय नहीं ले सकता। इसके बाद विधायक की मौजूदगी में निर्णय लिया गया कि शव को कलेक्ट्रेट लेकर चलते हैं। निर्णय के बाद विधायक अपने वाहन से पहले कलेक्ट्रेट पहुंच गए। इसके लगभग आधे घंटे बाद प्रदर्शनकारी शव लेकर कलेक्ट्रेट परिसर के अंदर दाखिल हो गए और परिसर के अंदर कलेक्ट्रेट में आंतरिक गेट के सामने शव रखकर प्रदर्शन शुरू कर दिया।
कलेक्ट्रेट में स्थिति हंगामाई बनी रही
कलेक्ट्रेट परिसर के अंदर शव रख कर प्रदर्शन की स्थिति को देखते हुए स्थिति हंगामाई हो गई थी। प्रबंधन कुछ करने से हाथ खड़े कर चुका था। प्रशासन की ओर से अपर कलेक्टर ऋषि पवार, एसडीएम नीरज खरे, सीएसपी महेन्द्र सिंह लगातार समझाइश देने में जुटे थे। विधायक सिद्धार्थ का कहना था कि फैक्ट्री प्रबंधन की वजह से आत्महत्या हुई है। लिहाजा वह परिजन की मांग पूरी करे। कई दौर की समझौता वार्ता के बाद साढ़े 9 बजे फैक्ट्री प्रबंधन ने मांग मानने को तैयार हुआ। मृतक सत्यम के परिवार के एक व्यक्ति को स्थाई नौकरी, एक लाख रुपए नगद देने सहित भिलाई में काम कर रहे सतना के सभी 35 लोगों को 4-4 के बैच में सतना प्लांट भेजने का निर्णय फाइनल किया गया। इसके बाद प्रदर्शन समाप्त हुआ।
यह था परिजन का आरोप
सत्यम के बड़े पिता हीरामन सिंह ने बताया कि जब सतना में सीमेंट प्लांट स्थापित हो रहा था तब फैक्ट्री ने हमारी जमीनें ली थीं। वादे के अनुसार परिवार के सदस्य की भर्ती भी की गई। शुरुआत में इन्हें सतना स्थित बाबूपुर प्लांट में रखा गया। इसके बाद इन्हें छत्तीसगढ़ के भिलाई प्लांट में भेज दिया गया। यहां से लगभग एक दर्जन बच्चों को भिलाई भेजा गया है। लेकिन एक साल से इन्हें पूरा वेतन नहीं दिया जा रहा है। कभी पांच तो कभी दस प्रतिशत वेतन ही दे रहे हैं।
फैक्ट्री प्रबंधन कहता है अभी प्लांट बंद है। जब चालू होगा तब पूरा वेतन दिया जाएगा। वहां श्रमिकों को टूटे फूटे क्वार्टरों में रखा गया है और बाहर आने जाने नहीं दिया जाता। आर्थिक समस्या से जूझ रहे श्रमिक उधार लेकर काम चला रहे हैं। ऐसे में उधार देने वालों का दबाव लगातार आ रहा है। इसी परेशानी में सत्यम ने आत्महत्या कर ली। फैक्ट्री प्रबंधन चाहता तो इन्हें सतना प्लांट भेज सकता था। इस घटना के बाद प्रदर्शनकारी मुआवजे सहित सत्यम के स्थान पर अन्य की स्थाई नौकरी की मांग कर रहे थे।
प्रदर्शन कर रहे किसान गंगा सिंह का भी कहना था कि सत्यम की मौत की वजह आर्थिक समस्या है। कंपनी की ओर से खर्च के लिए कुछ रकम देकर वेतन का आश्वासन दे दिया जाता था। दोस्तों को फोन लगाकर उधार मांगता था। कंपनी उन्हें कभी पांच तो कभी दस प्रतिशत ही वेतन दे रही थी।