चेतन भगत का कॉलम: आज भारत के सामने कई और भी जरूरी मसले हैं

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चेतन भगत का कॉलम:  आज भारत के सामने कई और भी जरूरी मसले हैं
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चेतन भगत का कॉलम: आज भारत के सामने कई और भी जरूरी मसले हैं

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  • Chetan Bhagat’s Column Today India Is Facing Many More Important Issues

4 घंटे पहले

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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार

आज भारत के लिए क्या दांव पर है? हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं। आगामी दो दशकों में हम मध्यम-आय वाले देश हो सकते हैं और तीन या चार दशकों में एक पूर्ण विकसित देश। लेकिन यह अपने आप नहीं होगा। इसके लिए हमें अपना फोकस बनाए रखना होगा, स्मार्ट नीतियां बनानी होंगी, कड़ी मेहनत करनी होगी और आगे बढ़ने में हमें राष्ट्रीय सद्भाव की भी आवश्यकता होगी।

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आज यही और केवल यही भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए- पाकिस्तान नहीं। लेकिन दुर्भाग्य से हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को लेकर उत्तेजित रहता है। विभाजन के घाव, अनेक युद्धों और लगातार आतंकवादी हमलों ने पाकिस्तान के सवाल को चर्चा का केंद्र-बिंदु बनाए रखा है।

पहलगाम हमले ने निश्चित ही देश को विचलित कर दिया था। सब इसका प्रतिशोध चाहते थे। भारत ने जवाबी हमला किया और पाकिस्तान के नागरिकों या रक्षा ढांचे को नहीं, बल्कि आतंकवादी स्थलों को निशाना बनाया। इससे यह तो साफ हो गया कि हमारा मकसद पाकिस्तान को संदेश देना था, युद्ध भड़काना नहीं। लेकिन जब पाकिस्तान ने मिसाइलों, ड्रोन से जवाबी कार्रवाई की तो लगा कि हम एक फुल-स्केल युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं।

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शुक्र है कि संघर्ष-विराम हो गया। हालांकि यह चौंकाने वाला था कि कितने सारे भारतीय पाकिस्तान से आर-पार की लड़ाई चाहते थे। टीवी मीडिया ने भी नाटकीय सायरनों, पाकिस्तान में भारतीय सैनिकों के प्रवेश की फर्जी खबरों और कराची बंदरगाह को नष्ट करने के झूठे दावों के साथ उन्माद को बढ़ाने में योगदान दिया। सोशल मीडिया ने भी आग में घी डाला। इस पर सवाल उठाने वाले को देश-विरोधी, पाकिस्तान-समर्थक, बुजदिल करार दिया गया।

तो क्या भारत के पास पाकिस्तान जैसे विफल-देश से लड़ने के अलावा और कुछ बेहतर करने को नहीं है? क्या पाकिस्तान पर भारत की कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ एक संदेश के रूप में शुरू नहीं हुई थी? उसके बाद हमें एक पूर्णकालिक युद्ध की ओर क्यों बढ़ना चाहिए था? इससे क्या हासिल होता? और अगर पाकिस्तान बौखलाकर हम पर परमाणु हमला कर देता तो हम अपने कितने देशवासियों को खोने के लिए तैयार होते? एक हजार? दस हजार? एक लाख?

लेकिन शुक्र है कि सरकार में शीर्ष पर ठंडे दिमाग वाले लोग बैठते हैं। हमें भी अपनी सोच को वैसा ही बनाना होगा। यह 1971 नहीं है। उस समय, भारत की प्रति व्यक्ति आय 118 डॉलर थी, जीडीपी 65 अरब डॉलर की थी और बामुश्किल 1% की दर से विकास हो रहा था।

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तब हमें पाकिस्तान को हराना एक राष्ट्रीय उपलब्धि की तरह लगा था, क्योंकि तब हमारे पास गर्व करने लायक और कुछ नहीं था। इसके अलावा, तब दोनों ही देशों के पास परमाणु हथियार भी नहीं थे, इसलिए युद्ध अपेक्षाकृत सीमित पैमाने पर लड़े जाते थे।

लेकिन यह 2025 है। भारत में अब प्रति व्यक्ति आय 2,500 डॉलर से अधिक है और जीडीपी 3.5 ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी है। हमारी अर्थव्यवस्था 6 से 8% की दर से बढ़ रही है, जो दुनिया में सबसे तेज है। एपल ने आईफोन के अधिकांश उत्पादन को चीन से भारत ​शिफ्ट करने की घोषणा की है। यह निर्णय हमारे यहां वैश्विक निवेश की लहर ला सकता है, बशर्ते हम स्थिर और सुरक्षित रहें। क्योंकि कोई भी युद्धग्रस्त देश में अरबों का निवेश नहीं करना चाहेगा।

कल्पना कीजिए कि अगर हम सोशल मीडिया के युद्ध-प्रेमियों की बात मान लेते तो इसके क्या नतीजे होते? हमारे देश का विकास रुक जाता। हमारे युवाओं का भविष्य पटरी से उतर जाता। और सबसे बढ़कर, जारों भारतीयों की जान दांव पर लग जाती।

उस लड़ाई में हम जीतकर भी क्या साबित करते? यह कि हमने पाकिस्तान को हरा दिया? तो क्या यही हमारे लिए बेंचमार्क है? एक फेल्ड-स्टेट पर जीत? और अगर आपको लगता है कि पाकिस्तान को युद्ध में हराने से आतंकवाद समाप्त हो जाता तो यह अतीत के युद्धों में जीत के बाद क्यों नहीं हुआ?

वास्तव में पाकिस्तान से चली चंद दिनों की लड़ाई से भी सिर्फ यही हुआ कि हमने उसको सुर्खियों में ला दिया। उनके लीडरों और जनरलों को वैश्विक मीडिया का अटेंशन मिलने लगा। क्यों? क्योंकि वे भारत से लड़ाई कर रहे थे। ठीक वैसे ही, जैसे जब कोई सेलेब्रिटी किसी ट्रोल को जवाब देता है तो वह ट्रोल महत्वपूर्ण हो जाता है। तो समझदारी भरा तरीका क्या है? पाकिस्तान के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन हमारे पास खोने के लिए बहुत कुछ है।

पाकिस्तान का तो समूचा अस्तित्व ही लड़ाई-फसाद पर टिका है, लेकिन हमारे लिए उसके साथ लड़ाई में उलझना एक खतरनाक डिस्ट्रैक्शन साबित होगा। हमें यह सीखना होगा कि गैरजरूरी चीजों से कैसे खुद को अलग करें। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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