घर-घर में मिलने वाली इस काली मशीन का बदल गया लुक, नए जमाने के हिसाब से हुई ट्रेंडी
मशीन में नहीं आता कोई बड़ा फॉल्ट
सिलाई मशीनों के सर्विस इंजीनियर शादाब ने बताया कि मैंने बेंगलुरु में मशीन को ठीक करने की 6 महीने की ट्रेनिंग ली थी। उससे पहले मैं केवल पुरानी हाथ से चलने वाली मशीनों की फिटिंग करता था। जब से हाईटेक मशीनें आई हैं, तब से काम अच्छा हुआ है। टेलर से लेकर बड़ी फैक्ट्रियों में भी यही इस्तेमाल हो रही हैं। इन मशीनों में कोई बड़ा फॉल्ट नहीं आता। इसमें पुरानी मशीन की तरह बार-बार तेल भी नहीं डालना पड़ता। इन मशीनों में कटर भी होता है, जो सिलाई बंद होने पर धागा अपने आप काट देता है, जिससे धागे की भी बचत होती है। सिलाई वाली जगह पर लाइट भी रहती है, जिससे कारीगरों को साफ दिखता है। यहां सेकंड हैंड मशीनें ज्यादा बिकती हैं। आम तौर पर एक मशीन को रिपेयर करने में 15-20 मिनट का समय लगता है।
नेपाल बॉर्डर तक से आते हैं ग्राहक
मौजपुर सिलाई मशीन मार्केट असोसिएशन के प्रधान देवानंद ने बताया कि यह मार्केट करीब 35 साल पुरानी है। मार्केट में सिलाई मशीनों की 40-45 दुकानें हैं, जिनमें इसकी खरीद-बिक्री और रिपेयरिंग का काम होता है। पूरे भारत में यहां से माल जाता है और नेपाल बॉर्डर तक से लोग सिलाई मशीन लेने आते हैं। यहां कमर्शल मशीनें ज्यादा बिकती हैं। अब मार्केट में काली वाली मशीनों का काम ना के बराबर ही है। यहां उनकी अब 3-4 दुकानें ही बची हैं। यहां कई बड़ी फैक्ट्री से भी मशीनें आती हैं, जिन्हें रिपेयर कर यहां फिर बेचा जाता है। पहले मशीनों में क्लच मोटर का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब की मशीनों में चाइना की मोटर यूज़ होती है जो बिजली कम खाती हैं। अभी मार्केट में काम थोड़ा मंदा है। इससे सही काम तो कोरोना की दूसरी लहर के दौरान था। यहां का काम कपड़ा बाजारों पर निर्भर करता है। गांधी नगर का काम चलता है तो यहां भी काम अच्छा रहता है। 15-20 किलोमीटर की रेंज में आने वाले इलाकों से लोग यहां मशीनें रिपेयर कराने ज्यादा आते हैं।
‘काली मशीनों का काम तमाम हो गया’
घरेलू काले रंग की सिलाई मशीन का कारोबार करने वाले अख्तर ने बताया कि पिछले 5-6 वर्षों से काली मशीनों का काम बिल्कुल मंदा हो गया है। ज्यादातर लोग घरों में भी ऑटोमैटिक मशीनें ही ले रहे हैं। इनकी क्वालिटी अच्छी होती है। पुरानी काली सेकंड हैंड मशीनों की कीमत 1000-1200 रुपये से शुरू हो जाती है। नई काली मशीन की कीमत 2200 रुपये शुरू हो जाती है। लेकिन, इनके ग्राहक अब दिन में 1-2 ही आते हैं। जिनके पास घरों में यह मशीन है, उन्हें लोग बस रिपेयर कराने ही आते हैं। रिपेयरिंग के लिए दिन में 5-6 ग्राहक तो आ ही जाते हैं। इन मशीनों का काम अब खत्म ही है। हम भी अब आने वाले समय में सफेद मशीनों का ही काम करेंगे, क्योंकि अब ग्राहक वही ज्यादा मांगते हैं।