गांव-छोटे शहरों में बिजली व्यवस्था दुरुस्त होने का दावा: निजीकरण होने से आपूर्ति बेहतर होने की उम्मीद, नौकरी पर खतरा नहीं – Lucknow News h3>
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उत्तर प्रदेश सरकार ने कर्मचारी विरोध और राजनीतिक शोर-शराबे के बावजूद राज्य के दो प्रमुख बिजली वितरण निगमों (डिस्कॉम्स) के निजीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया है। सीएम योगी की मंजूरी के बाद ऊर्जा विभाग ने यूपी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को इस योजना को लागू करन
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ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बड़ा लाभ निजीकरण का सबसे बड़ा लाभ ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में देखने को मिलेगा, जहां अभी तक बिजली की आपूर्ति अनियमित है और शिकायत निवारण की व्यवस्था कमजोर है। निजी कंपनियों के आने से न केवल सेवा सुधरेगी, बल्कि लोगों में भरोसा भी बढ़ेगा।
कर्मचारी संगठनों और कुछ राजनीतिक दलों ने इस निर्णय का विरोध किया है। उनका मानना है कि इससे कर्मचारियों की नौकरियों पर असर पड़ेगा। लेकिन सरकार ने स्पष्ट किया है कि मौजूदा कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जाएगी और उन्हें नई व्यवस्था में स्थानांतरित किया जाएगा।
सीएम योगी की मंजूरी के बाद ऊर्जा विभाग ने यूपी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को इस योजना को लागू करने के आदेश जारी कर दिए हैं।
बिजली सिर्फ सेवा नहीं, बुनियादी अधिकार राज्य की बिजली वितरण कंपनियां वर्षों से वित्तीय घाटे से जूझ रही हैं।
इसके दो मुख्य कारण हैं- एटीएंडसी (तकनीकी और कॉमर्शियल घाटा) नुकसान और राजस्व की वसूली में लगातार कमी। इन नुकसानों का सीधा असर न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी अनियमित आपूर्ति, बिलिंग समस्याओं और सेवा की गुणवत्ता में कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्राइवेट कंपनियों द्वारा संचालित डिस्कॉम्स ने देश के अन्य हिस्सों में इन चुनौतियों से निपटने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। दिल्ली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
वहां जब 2002 में निजीकरण हुआ था, तब एटीएंडसी नुकसान 48-57% के बीच था। आज ये नुकसान घटकर 6.98% से 7.25% के बीच आ गए हैं, जबकि पूरे भारत में औसत नुकसान अभी भी 15% से ऊपर है। निजीकरण से सेवा की गुणवत्ता बेहतर होगी, तकनीकी दक्षता बढ़ेगी और वित्तीय घाटा कम होगा। निजी कंपनियां सेवा वितरण में पारदर्शिता, जवाबदेही और उपभोक्ता केंद्रित मॉडल अपनाती हैं। उनके लिए ‘मीटरिंग-बिलिंग-कलेक्शन’ की प्रक्रिया केवल एक तकनीकी कार्य नहीं, बल्कि सेवा सुधार की रीढ़ है।
राज्य की बिजली वितरण कंपनियां वर्षों से वित्तीय घाटे से जूझ रही हैं।
दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों से सीख दिल्ली के निजी डिस्कॉम्स ने बीते दो दशकों में जो सुधार किए, वही काम अब केंद्र सरकार की पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना के तहत देश भर में लागू करने की योजना बनाई जा रही है। चाहे वह स्मार्ट मीटरिंग हो, वितरण नेटवर्क का आधुनिकीकरण हो या कर्मचारियों का प्रशिक्षण—ये सभी क्षेत्र दिल्ली के निजी डिस्कॉम्स पहले ही सफलतापूर्वक कर चुके हैं।
दिल्ली की तीन निजी वितरण कंपनियों ने यह सफलता बिना किसी बड़े केंद्रीय अनुदान या सरकारी निगरानी के हासिल की। दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और भुवनेश्वर जैसे शहरों में पहले ही बिजली वितरण का निजीकरण हो चुका है।
इन सभी जगहों पर निजीकरण के बाद सेवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, बिजली चोरी में कमी आई है, और उपभोक्ताओं की संतुष्टि बढ़ी है। उत्तर प्रदेश भी अब इसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार अब उसी मॉडल को अपनाकर अपने वितरण नेटवर्क को प्रभावी और लाभकारी बनाना चाहती है।
बिजली चोरी में कमी आई है, और उपभोक्ताओं की संतुष्टि बढ़ी है।
निजीकरण एक सुधार नहीं, बदलाव की जरूरत है उत्तर प्रदेश में डिस्कॉम्स का निजीकरण अचानक लिया गया फैसला नहीं, बल्कि लंबे समय से चली आ रही समस्याओं का स्थायी समाधान है। यह निर्णय केवल वितरण कंपनियों के ढांचे में बदलाव नहीं लाएगा, बल्कि प्रदेश के लाखों उपभोक्ताओं के जीवन में स्थायित्व, सुविधा और भरोसे का संचार करेगा।
कई बार ऐसे नीतिगत फैसलों को राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है, लेकिन यह जरूरी है कि हम दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दें। निजीकरण सिर्फ आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और ऊर्जा समानता का एक माध्यम है।