गहलोत की खिलाफत करने वाले तीनों वरिष्ठ कांग्रेस विधायक ‘रास्ते से हटे’
Rajasthan Politics : राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस के तीन दिग्गज नेताओं ने सियासी मैदान से बाहर रहने का ऐलान कर दिया है। ये तीनों नेता सचिन पायलट गुट से संबंध रखते हैं और हाल ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर बयानबाजी के चलते चर्चित भी रहे हैं। विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
Jodhpur News In Hindi | जोधपुर: कांग्रेस के तीन विधायकों ने आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। पहले नेता भरतसिंह कुंदनपुर हैं, जिन्होंने कई दिनों पहले ही ऐलान कर दिया था कि वे आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि युवा नेतृत्व को राजनीति में आगे बढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए। बुजुर्ग नेताओं को कुर्सी का मोह छोड़ देना चाहिए। दूसरे नेता हेमाराम चौधरी हैं, जिन्होंने भी ऐलान कर दिया कि वे भी अब चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखते हैं। पिछली बार भी उनकी इच्छा नहीं थी लेकिन पार्टी ने टिकट दे दिया, तब उन्होंने चुनाव लड़ा। अब पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और पार्टी के सीनियर विधायक दीपेन्द्र सिंह शेखावत ने भी आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है। खास बात यह है कि ये तीनों विधायक सीएम अशोक गहलोत के विरोधी रहे हैं और सचिन पायलट के कट्टर समर्थक हैं।
आखिर किनके लिए छोड़ा जा रहा चुनावी मैदान
तीन वरिष्ठ नेताओं की ओर से चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान करने के बाद राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं छिड़ गई हैं। कई लोग इस कदम को सराहनीय बताते हुए तारीफ कर रहे हैं लेकिन अधिकतर लोगों का कहना है कि भले ही इन नेताओं ने चुनाव मैदान छोड़ दिया हो लेकिन वे अपने ही बेटे बेटियों को आगे कर रहे हैं। पार्टी के दूसरे कार्यकर्ताओं को मौका नहीं दे रहे। ऐसे में क्षेत्र की राजनीति उसी घर में रहेगी तो चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान केवल दिखावा है। हेमाराम चौधरी अपनी परम्परागत सीट गुढ़ा मलानी से अपनी बेटी सुनीता चौधरी को आगे ला रहे हैं। जबकि श्रीमाधोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहने वाले दीपेन्द्र सिंह शेखावत अपने बेटे बालेंदु सिंह के लिए स्वयं चुनाव मैदान से हट रहे हैं। युवा नेताओं का कहना है अगर कोई नेता स्वयं मैदान छोड़ रहे हैं तो उन्हें अपने परिवार के बजाय एक्टिव कार्यकर्ता को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए।
क्या गहलोत की राह आसान होगी
अशोक गहलोत के विरोधी रहे भरत सिंह, हेमाराम चौधरी और दीपेन्द्र सिंह शेखावत ने भले ही चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया हो लेकिन इससे गहलोत की राजनीति पर कोई फर्क पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। जब इन्हीं नेताओं के बेटे-बेटी चुनाव मैदान में आएंगे तो यह जरूरी नहीं कि वे गहलोत के समर्थक के रूप में डटे रहेंगे। जाहिर तौर पर वे अपने पिता के पदचिन्हों पर ही चलेंगे। ऐसे में गहलोत की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पार्टी के लिए यह फैसले जरूर फायदेमंद रहेंगे। पार्टी को यह कहना का मौका मिलेगा कि उन्होंने युवा नेतृत्व को राजनीति में आने का अवसर प्रदान किया है।
राहुल गांधी कर चुके हैं युवाओं की पैरवी
कांग्रेस के अधिवेशन में स्वयं राहुल गांधी युवा नेतृत्व की पैरवी कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि 50 फीसदी टिकट युवाओं को दिए जाने चाहिए। इसी फॉर्मूले पर कांग्रेस आगे बढ़ रही है। पिछले दिनों यूथ कांग्रेस के सम्मेलन में सीएम गहलोत ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों में 100 सीटों पर युवाओं को अवसर दिए जाने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस आगे बढ़कर युवाओं को नेतृत्व का अवसर प्रदान करती है। कांग्रेस के जो बुजुर्ग नेता चुनावी मैदान छोड़ रहे हैं और उनके स्थान पर उनक बेटे-बेटी भी आगे आएंगे तो पार्टी यह कहने की हकदार होगी कि उन्होंने युवा नेतृत्व को अवसर दिया है। (रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़)
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Rajasthan Politics : राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस के तीन दिग्गज नेताओं ने सियासी मैदान से बाहर रहने का ऐलान कर दिया है। ये तीनों नेता सचिन पायलट गुट से संबंध रखते हैं और हाल ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर बयानबाजी के चलते चर्चित भी रहे हैं। विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
आखिर किनके लिए छोड़ा जा रहा चुनावी मैदान
तीन वरिष्ठ नेताओं की ओर से चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान करने के बाद राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं छिड़ गई हैं। कई लोग इस कदम को सराहनीय बताते हुए तारीफ कर रहे हैं लेकिन अधिकतर लोगों का कहना है कि भले ही इन नेताओं ने चुनाव मैदान छोड़ दिया हो लेकिन वे अपने ही बेटे बेटियों को आगे कर रहे हैं। पार्टी के दूसरे कार्यकर्ताओं को मौका नहीं दे रहे। ऐसे में क्षेत्र की राजनीति उसी घर में रहेगी तो चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान केवल दिखावा है। हेमाराम चौधरी अपनी परम्परागत सीट गुढ़ा मलानी से अपनी बेटी सुनीता चौधरी को आगे ला रहे हैं। जबकि श्रीमाधोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहने वाले दीपेन्द्र सिंह शेखावत अपने बेटे बालेंदु सिंह के लिए स्वयं चुनाव मैदान से हट रहे हैं। युवा नेताओं का कहना है अगर कोई नेता स्वयं मैदान छोड़ रहे हैं तो उन्हें अपने परिवार के बजाय एक्टिव कार्यकर्ता को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए।
क्या गहलोत की राह आसान होगी
अशोक गहलोत के विरोधी रहे भरत सिंह, हेमाराम चौधरी और दीपेन्द्र सिंह शेखावत ने भले ही चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया हो लेकिन इससे गहलोत की राजनीति पर कोई फर्क पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। जब इन्हीं नेताओं के बेटे-बेटी चुनाव मैदान में आएंगे तो यह जरूरी नहीं कि वे गहलोत के समर्थक के रूप में डटे रहेंगे। जाहिर तौर पर वे अपने पिता के पदचिन्हों पर ही चलेंगे। ऐसे में गहलोत की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पार्टी के लिए यह फैसले जरूर फायदेमंद रहेंगे। पार्टी को यह कहना का मौका मिलेगा कि उन्होंने युवा नेतृत्व को राजनीति में आने का अवसर प्रदान किया है।
राहुल गांधी कर चुके हैं युवाओं की पैरवी
कांग्रेस के अधिवेशन में स्वयं राहुल गांधी युवा नेतृत्व की पैरवी कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि 50 फीसदी टिकट युवाओं को दिए जाने चाहिए। इसी फॉर्मूले पर कांग्रेस आगे बढ़ रही है। पिछले दिनों यूथ कांग्रेस के सम्मेलन में सीएम गहलोत ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों में 100 सीटों पर युवाओं को अवसर दिए जाने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस आगे बढ़कर युवाओं को नेतृत्व का अवसर प्रदान करती है। कांग्रेस के जो बुजुर्ग नेता चुनावी मैदान छोड़ रहे हैं और उनके स्थान पर उनक बेटे-बेटी भी आगे आएंगे तो पार्टी यह कहने की हकदार होगी कि उन्होंने युवा नेतृत्व को अवसर दिया है। (रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़)
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