खुदा की जमीन पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला वहशीपन, जानिए 31 साल पहले अजमेर में हुआ क्‍या था

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खुदा की जमीन पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला वहशीपन, जानिए 31 साल पहले अजमेर में हुआ क्‍या था

खुदा की जमीन पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला वहशीपन, जानिए 31 साल पहले अजमेर में हुआ क्‍या था

‘आप उतना जानते हैं, जितना पढ़ा या सुना है, लेकिन 1992 में आखिर क्या हुआ था? हकीकत हम बताते हैं…’ ये डायलॉग ‘अजमेर 92’ फिल्म का है, जिसका ट्रेलर इस संवाद से शुरू होता है। डायरेक्टर पुष्पेंद्र सिंह की फिल्म अजमेर में साल 1992 में हुए गैंगरेप कांड पर आधारित है। आजतक के सबसे बड़े और दिल-दहला देने वाले कांड में से एक कहानी ये भी है। जिसे उमेर तिवारी और करण वर्मा ने मिलकर प्रोड्यूस किया है। ‘अजमेर 92’ सिनेमाघरों में 21 जुलाई 2023 को रिलीज हो रही है। आइए बताते हैं आखिर 31 साल पहले क्या हुआ था, जिसने लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया था।

वैसे तो अजमेर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और दुनिया को रचने वाले ब्रह्माजी के पुष्कर धाम के लिए मशहूर है। लेकिन साल 1992 में हुए गैंगरेप कांड के बाद दुनियाभर में ये शहर घिनौने अपराध की वजह से भी खूब चर्चा में रहा था। दो साल तक यहां ऐसी घिनौनी हरकत की गई, जिसने इंसानियत को तार-तार कर दिया था।

क्या था अजमेर 1992 गैंगरेप कांड

Ajmer Rape Case: अजमेर के स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियों की नग्न तस्वीरें लीक करने वाले एक गैंग ने इस कांड को अंजाम दिया था। ये गिरोह लड़कियों की तस्वीरें लीक करने की धमकी देकर गैंगरेप किया करता था। ये हैवान स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों को फार्महाउस पर बुलाते थे और बलात्कार करते थे। ये सब घरवालों की नाक के नीचे हो रह था, लेकिन किसी को कानों कान खबर न पड़ी। दरअसल ये गिरोह लड़कियों को ब्लैकमेल करता था कि अगर वह किसी को कुछ बताएंगी तो वह उनकी नग्न तस्वीरें लीक कर देंगे।

Ajmer 1992 Rape Case Scandal

What is Ajmer 1992 case

हैरानी की बात ये थी कि कई स्कूल तो अजमेर का जाने-माने प्राइवेट स्कूल थे। जहां आईएएस और आईपीएस की बच्चियां भी पढ़ा करती थीं। DNA की रिपोर्ट के मुताबिक, 250 से भी ज्यादा लड़कियों को ब्लैकमेल किया गया। इन बच्चियों की उम्र 11 से 20 साल की हुआ करती थी। अश्लील तस्वीर की आड़ में आरोपियों ने महीनों तक रेप किया था।

कैसे पता चला अजमेर 1992 केस का

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इस गैंगरेप के बारे में तब पता चला, जब लोकल न्यूजपेपर ‘नवज्योति न्यूज’ के एक पत्रकार संतोष गुप्ता ने खबर छापी। इस रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे राजनीतिक, सामाजिक और बड़े ओहदे पर बैठे लोग शहर में गंदगी मचा रहे हैं। वह स्कूल-कॉलेजों में पढ़ रही बच्चियों को ब्लैकमेल कर रहे हैं। इसी रिपोर्ट के बाद प्रशासन से लेकर राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया।

अमजेर 92 केस की एक सच्चाई ये भी

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस केस के बारे में पुलिस और प्रशासन को पता तो चल गया था लेकिन वह डर रहे थे कि शहर में दंगे न हो जाए। शांति व कानून व्यवस्था में चूक न हो जाए। रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर आरोपी मुस्लिम और पीड़ित हिंदू बताए गए थे। खैर इस तरह की खबरें सामने आने के बाद लोगों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया। पूरे राजस्थान में लोग सड़कों पर उतर आए थे। अंत में कई आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया।

गाड़ियां लड़कियों को लेने आती और छोड़कर जाती

अजमेर हत्याकांड में वैसे तो कई बड़े नाम सामने आए। लेकिन मुख्य दोषी फारुक चिश्ती बताया गया, जिसने पहले स्कूल की लड़की को फंसाया था। फिर आगे इसी राह में और भी लड़कियों को डराया गया और फंसाया गया। ये गैंग गाड़ियां भेजकर लड़कियों को फार्महाउस पर बुलाते थे और फिर रेप के बाद उन्हें घर में छोड़कर जाते थे। रेप के वक्त इनकी तस्वीरें ली जाती थीं और इसी आधार पर इन्हें चुप करवा दिया जाता। कहा तो ये भी गया था कि जिन लोगों ने इस कांड के बारे में मुंह खोलने की कोशिश की उन्हें भी मौत के घाट उतारने की धमकी दी जाती थी। वहीं, करीब 7-8 लड़कियों ने डर और बदनामी के चलते सुसाइड भी कर लिया।

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कौन था अजमेर 1992 के मास्टरमांइड

अजमेर 1992 स्कैंडल का मास्टरमाइंड फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती बताए गए थे। इन तीनों आरोपियों के तार यूथ कांग्रेस से जुड़े थे। फारुक न सिर्फ राजनैतिक बल्कि धार्मिक रूप से भी काफी पावरफुल बताया जाता था। जिसकी पहुंच दरगाह के केयरटेकर्स तक थी।

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अजमेर 1992 केस के आरोपियों का क्या हुआ?

साल 1992 में ही इस गैंगरेप का भांडा फूटा था। तब खूब बवाल भी हुआ। में 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद ये मामला डिस्ट्रिक्ट, हाईकोर्ट से लेकर फास्ट ट्रैक, सुप्रीम कोर्ट से लेकर पॉक्सो कोर्ट के बीच घूमता रहा। साल 1994 में इन आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम नाम के आदमी ने जेल से रिहा होने के बाद सुसाइड कर लिया था।

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जमानत पर बाहर आए आरोपी

अजमेर कोर्ट ने साल 1998 में इन आठों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। फिर साल 2001 में चार आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया था। फिर सुप्रीम कोर्ट में जब ये मामला पहुंचा तो तमाम जांच और पक्षों को देखने के बाद अदालत ने बाकि बचे चारों दोषियों की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया गया। इस बीच फारूक चिश्ती ने खुद को दिमागी रूप से पागल बताया। साल 2012 तक आते आते बाकि आरोपी भी जेल से जमानत पर बाहर आ गए।