खामेनेई से खुन्नस या ट्रम्प को जंग में घसीटना: नेतन्याहू का असली मकसद क्या; ईरान में परमाणु बम बनाने के सबूत नहीं, फिर क्यों हमला किया

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खामेनेई से खुन्नस या ट्रम्प को जंग में घसीटना:  नेतन्याहू का असली मकसद क्या; ईरान में परमाणु बम बनाने के सबूत नहीं, फिर क्यों हमला किया
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खामेनेई से खुन्नस या ट्रम्प को जंग में घसीटना: नेतन्याहू का असली मकसद क्या; ईरान में परमाणु बम बनाने के सबूत नहीं, फिर क्यों हमला किया

5 फरवरी 2003 को अमेरिका के विदेश मंत्री कोलिन पॉवेल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक शीशी लहराने लगे। दावा किया कि इराक के शासक सद्दाम हुसैन के पास ऐसे रासायनिक हथियार हैं, जिनसे सामूहिक विनाश हो जाएगा। ऐसा माहौल बनाया गया कि इराक पर हमला जरूरी ल

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20 मार्च 2003 की सुबह ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ की शुरुआत हुई। इसमें अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के 2.95 लाख सैनिकों ने कुवैत की सीमा से इराक पर हमला किया। मई तक सद्दाम हुसैन का शासन गिर गया और उसे पकड़कर फांसी दे दी गई।

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हालांकि इराक में कोई रासायनिक हथियार या वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन नहीं मिले। जानकार मानते हैं कि अमेरिका ने तेल, स्ट्रैटजिक इंट्रेस्ट और सद्दाम से खुन्नस की वजह से रासायनिक हथियारों की कहानी गढ़ी, ताकि हमला किया जा सके।

तस्वीर 13 दिसंबर 2003 की है। सद्दाम हुसैन को पकड़कर ले जाते अमेरिकी सैनिक।

22 साल बाद 13 जून 2025 को अब इजराइल ने ईरान पर ताबड़तोड़ हमले किए और जंग छेड़ दी है। इजराइल के पीएम नेतन्याहू ने दावा किया कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बेहद करीब है। उसे रोकने का ये आखिरी मौका है। हालांकि इस दावे पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

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क्या ईरान सच में परमाणु बम बना रहा या हमले के पीछे नेतन्याहू का मकसद कुछ और है; जानेंगे NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर में…

सवाल-1: क्या ईरान परमाणु बम बनाने के बेहद करीब है?

जवाब: अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, 4 फरवरी 2025 को इजराइली पीएम नेतन्याहू, ट्रम्प से मिलने अमेरिका पहुंचे। इसी दौरान इजराइली खुफिया विभाग ने अमेरिका को बताया कि ईरान परमाणु बम बनाने की तैयारी कर रहा है।

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31 मार्च 2025 को आई इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी यानी IAEA की रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान ने 17 मई तक अनुमानित 408.6 किलो 60% तक प्योरिटी वाला यूरेनियम बना लिया है। ये चिंता की बात है कि बिना परमाणु हथियार वाले देशों में अकेला ईरान इस क्षमता का यूरेनियम संवर्धन कर रहा है। हालांकि इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि ईरान छिपाकर कोई न्यूक्लियर प्रोग्राम चला रहा है।

60% प्योर यूरेनियम के 42 किलो से एक परमाणु बम बन सकता है। इसी आधार पर कहा गया कि ईरान कुछ ही हफ्तों में 9 परमाणु हथियार बना सकता है।

हालांकि अमेरिका की खुफिया जानकारी के मुताबिक, ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा था…

  • अमेरिकी न्यूज चैनल CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम का एसेसमेंट करने वाले अमेरिकी खुफिया एजेंसियों से जुड़े 4 लोगों ने कहा, ‘ईरान परमाणु बम बनाने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी टारगेट से भी तीन साल दूर है।’
  • न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘अमेरिका के टॉप ऑफिसर्स को ईरान के परमाणु बम बनाने की कोई जानकारी नहीं थी।
  • मार्च 2025 में अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर तुलसी गबार्ड ने भी कहा था, ‘अमेरिकी खुफिया विभाग का आकलन है कि ईरान परमाणु बम नहीं बना रहा है। ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई ने 2003 में न्यूक्लियर वेपन बनाने के जिस प्रोग्राम को रद्द किया था, उसे दोबारा शुरू नहीं किया गया है।’

19 जून को IAEA के चीफ राफेल ग्रॉसी ने साफ कर दिया कि ईरान के पास परमाणु बम बनाने लायक यूरेनियम होना और परमाणु हथियार बनाने की कोशिश करना दो अलग बातें हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा,

हमने कई बार ये कन्फर्म किया है कि ईरान के पास पहले और अब भी कई न्यूक्लियर बम बनाने के लिए पर्याप्त यूरेनियम है, लेकिन इसे न्यूक्लियर हथियार नहीं समझा जाना चाहिए। हमारे पास कोई ठोस सबूत नहीं है कि ईरान का कोई न्यूक्लियर हथियार बनाने का प्रोग्राम या प्लान है।

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IAEA चीफ राफेल ग्रॉसी के मुताबिक, ‘हमने कभी भी यह नहीं कहा था कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है।’

सवाल-2: अगर ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा था, तो इजराइल ने उस पर हमला क्यों कर दिया?

जवाब: परमाणु हथियार बनाने की बात गलत भी है, तो नेतन्याहू के पास ईरान पर हमले की 4 बड़ी वजहें हैं…

1. ईरान ने इजराइल के खिलाफ हमास की मदद की: फिलिस्तीन में हमास, लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हूती विद्रोहियों को ईरान का प्रॉक्सी यानी समर्थित संगठन माना जाता है। दावा किया जाता है कि अक्टूबर 2023 में हमास के इजराइल पर हमले में ईरान का पूरा हाथ था। ईरान ने हमास को पैसे, हथियार और हमले की ट्रेनिंग दी, साथ ही लेबनान की राजधानी बेरुत में हमास लीडर्स से मिलकर हमले का प्लान तैयार किया। इसी तरह हिजबुल्लाह और हूतियों को भी इजराइल पर हमले करने के लिए ईरान पर मदद करने के आरोप लगते हैं।

2. 2024 में ईरान के 300 मिसाइल अटैक्स का बदला: 1 अप्रैल 2024 को इजराइल ने सीरिया में इरानी दूतावास पर हमला करके उसके के 7 सैन्य कमांडरों की हत्या कर दी थी। इसके जवाब में 13 अप्रैल को ईरान ने ऑपरेशन ‘ट्रू प्रॉमिस 1′ के तहत इजराइल पर 120 मिसाइल हमले किए गए। इजराइल ने 31 जुलाई 2024 को तेहरान में हमास के टॉप लीडर इस्माइल हानियेह और 27 सितंबर को बेरुत में हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह और ईरान के जनरल अब्बास निलफोरौशन की हत्या कर दी। इसके जवाब में ईरान ने 1 अक्टूबर को ऑपरेशन ‘ट्रू प्रॉमिस 2’ लॉन्च करके इजराइल पर 200 मिसाइलें दागीं।

इस्माइल हानियेह, हसन नसरल्लाह और अब्बास निलफोरौशन (बाएं से दाएं)

3. इजराइल को ईरान की मिसाइलों से खतरा: इजराइल के हमले के पहले तक ईरान के पास अलग-अलग रेंज की 3000 मिसाइल्स थीं। इजराइली मिलिट्री डेटा के मुताबिक, अभी ईरान के पास करीब 1300 मिसाइल्स बाकी हैं। जून 2024 में ईरान ने 18 हजार किमी प्रति घंटा की स्पीड से टारगेट पर हमला करने में सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइल ‘फत्ताह’ भी बना ली है। रडार पर मुश्किल से पकड़ में आने वाली ये मिसाइल सिर्फ 7 सेकेंड में इजराइल पर टार्गेटेड अटैक कर सकती है।

4. ईरान-अमेरिका में डील रोकना: 15 जून को ओमान में अमेरिका और ईरान के अधिकारियों के बीच न्यूक्लियर डील पर छठे दौर की बैठक होनी थी। JNU में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक इजराइल के हमले की टाइमिंग से लगता है कि वह ये डील नहीं चाहता था, उसने बैठक से ठीक पहले 13 जून को ईरान पर हमला कर दिया। इसके बाद ईरान ने आगे डील पर अमेरिका से कोई भी बात करने से मना कर दिया।

सवाल-3: ईरान पर हमले से इजराइल क्या हासिल करना चाहता है?

जवाब: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ईरान की न्यूक्लियर साइट्स को तबाह करना इजराइल का अकेला इरादा नहीं था। इस जंग में इजराइल के दो और बड़े मोटिव हैं…

1. ईरान में तख्तापलट के बाद कमजोर सरकार बनवाना

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सुशांत सरीन कहते हैं कि इजराइल का प्राइमरी ऑब्जेक्टिव ईरान को कमजोर करना था। ईरान की सत्ता पर इस्लामिक मुल्लाओं की जगह इजराइल से अच्छे रिश्ते रखने वाली या कम से कम उसे दुश्मन न मानने वाली सरकार आ जाए, तो सोने पर सुहागा होगा। नेतन्याहू शुरुआत से इसके कई स्पष्ट संकेत दे रहे हैं…

  • जंग के बीच नेतन्याहू ने ईरानी लोगों से ‘ईरान के झंडे के नीचे एकजुट होने, खामेनेई और ईरान के ‘दमनकारी क्रूर इस्लामिक शासन’ के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की। ये भी कहा कि उनकी लड़ाई ईरान के लोगों से नहीं बल्कि खामेनेई के शासन से है।
  • 15 जून को नेतन्याहू ने कहा- ‘हमारे पास सूचना है कि ईरान के सीनियर नेता अपने बैग पैक करने लगे हैं। उन्हें पता है कि आगे क्या होने वाला है।’
  • 18 जून को इजराइली हैकर्स ने ईरान के कई न्यूज चैनल हैक करके लोगों से विद्रोह की अपील की। हैकर्स ने साल 2022 में ईरान में हिजाब के विरोध में हुए प्रदर्शन वाले वीडियो चलाए, जिनमें महिलाएं अपने बाल काट रही हैं।

2. अमेरिका को ईरान के खिलाफ जंग में शामिल करना

प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं कि इजराइल नहीं चाहता कि अमेरिका और ईरान के बीच रिश्ते बेहतर हों। अभी ईरान बहुत कमजोर है, अमेरिका ने उस पर कई बैन लगाए हैं। अगर ईरान और अमेरिका के बीच डील होती, तो ये बैन हटाए जाते, साथ ही ईरान को कई कॉमर्शियल फायदे मिल सकते थे। इसलिए इजराइल चाहता था कि डील न हो सके और अमेरिका भी ईरान पर हमला कर दे।

ब्रिटिश अखबार ‘द गार्जियन’ की एक खबर के मुताबिक, एक इजराइली ऑफिसर ने कहा कि इजराइल का पूरा ऑपरेशन शुरुआत से इस बात पर टिका था कि अमेरिका किसी न किसी समय ईरान के खिलाफ जंग में शामिल होगा।

हालांकि सुशांत सरीन कहते हैं कि इजराइल की तरह ही अमेरिका से भी ईरान के संबंध कई सालों से खराब हैं। अब ईरान इतना कमजोर हो गया है कि अमेरिका आसानी से ईरान को पूरी तरह घुटनों पर ला सकता है।

18 जून को जंग के पांचवें दिन इजराइल के तेलअवीव में दो बड़े बोर्ड लगाए गए, जिन पर ट्रम्प की तस्वीर के साथ लिखा है- ‘मिस्टर प्रेसिडेंट, फिनिश द जॉब!’

सवाल-4: ट्रम्प ने अपनी ही खुफिया एजेंसियों के इनपुट्स को गलत मानकर इजराइल का साथ क्यों दिया?

जवाब: इजराइल और ईरान के बीच संघर्ष में ट्रम्प का स्टैंड 3 स्टेप में बदला है…

1. शुरुआत में ट्रम्प ईरान पर हमले के पक्ष में नहीं थे: न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ‘न्यूक्लियर डील प्रभावित न हो, इसलिए ट्रम्प नहीं चाहते थे कि इजराइल, ईरान पर हमला करे। वह ईरान को अपनी शर्तों पर चलाना चाहते थे, न कि इजराइल की शर्तों पर।’

‘मई में ट्रम्प ने नेतन्याहू को फोन पर चेतावनी भी दी। अपने एक सहयोगी से कहा कि नेतन्याहू उन्हें मिडिल-ईस्ट में एक बड़े युद्ध में घसीटने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि उन्होंने अमेरिका की जनता से वादा किया था कि वे अमेरिका को किसी भी जंग से दूर रखेंगे। महीनों तक वे यह सोचते रहे कि नेतन्याहू का गुस्सा कैसे कंट्रोल किया जाए।’

2. नेतन्याहू नहीं रुके, तो बीच का रास्ता अपनाया: अखबार के मुताबिक, ‘ट्रम्प ईरान के परमाणु कार्यक्रम को किसी भी तरह रोकना चाहते थे, लेकिन वह बातचीत आगे नहीं बढ़ा रहा था। इजराइलियों ने उन्हें यकीन दिलाया कि सैन्य विकल्प खोलने से ईरान के साथ डील आसान हो जाएगी।

असल में नेतन्याहू बिना अमेरिका की मदद के भी ईरान की न्यूक्लियर लेबोरेटरीज पर ही नहीं, बल्कि पूरे ईरान पर एक काफी बड़े हमले की तैयारी में थे। ट्रम्प प्रशासन भी नेतन्याहू को रोकने में सक्षम नहीं था। ऐसे में ट्रम्प को उनका समर्थन करना पड़ा। उन्होंने इस बात को भी झुठला दिया कि ईरान अभी कोई परमाणु बम नहीं बना रहा है।’

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ‘9 जून को नेतन्याहू ने ट्रम्प को फोन पर कहा था- मिशन शुरू हो गया है। हमारी सेना ईरान के अंदर मौजूद है। फोन कटने के बाद बाद ट्रम्प ने अपने साथ मौजूद लोगों से कहा– मुझे लगता है, हमें उनकी (इजराइल की) मदद करनी होगी।’

3. इजराइल को जंग में बढ़त मिली, तो खुलकर उसके साथ आ गए: इजराइल के हमला शुरू करने के बाद ट्रम्प ने शुरुआत में इससे दूरी बनाए रखी, लेकिन जब इजराइल को जंग में ईरान पर शुरुआती बढ़त मिली तो ट्रम्प खुलेआम उनके पक्ष में आ गए। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, जब ट्रम्प ने अपने पसंदीदा फॉक्स न्यूज चैनल पर इजराइली हमले की तस्वीरें देखीं, तो इसका क्रेडिट लेने से खुद को रोक नहीं पाए। उन्होंने फोन पर पत्रकारों से कहना शुरू कर दिया कि इस हमले में पर्दे के पीछे से उनकी भूमिका, लोगों को जितना पता है, उससे कहीं ज्यादा ज्यादा है।

सवाल-5: क्या अमेरिका सीधे तौर पर ईरान के साथ जंग में शामिल हो गया है?

जवाब: अभी तक अमेरिका ने सीधे ईरान पर हमला नहीं किया है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रम्प ने सेना को इसकी मंजूरी देने का फैसला ले लिया है। हालांकि इस फैसले का फाइनल ऑर्डर उन्होंने अभी रोक रखा है। 18 जून को ट्रम्प ने चेतावनी दी है कि अगले हफ्ते या उससे भी कम समय में कुछ बड़ा होने वाला है।

दरअसल, इजराइली हमलों में अभी तक पहाड़ों के नीचे गहराई में बनी ईरान की फोर्डो परमाणु लैबोरेटरी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। इसे सिर्फ अमेरिका के B2 बमवर्षक विमानों से ‘बंकर बस्टर बम’ गिराकर तबाह किया जा सकता है। ये विमान अमेरिका ने इजराइल या किसी भी अन्य देश को नहीं दिए हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ‘अब ट्रम्प ईरान की फोर्डो परमाणु लैबोरेटरी पर हमला करने के लिए गंभीरता से विचार कर रहे हैं।’

फोर्डो लैबोरेटरी की सैटेलाइट इमेज। 21 जून को ट्रम्प ने कहा है कि इजराइल के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह ईरान के फोर्डो जैसे गहरे अंडरग्राउंड परमाणु ठिकाने को अकेले नष्ट कर सके।

सवाल-6: ईरान में सत्ता परिवर्तन होने से इजराइल-अमेरिका को क्या मिलेगा?

जवाब: एक्सपर्ट्स के मुताबिक ईरान में सत्ता परिवर्तन से इजराइल और अमेरिका को तीन चीजें हासिल होंगी-

1. मिडिल ईस्ट पर पूरा कंट्रोल: मिडिल ईस्ट में कतर, इराक, सीरिया, जॉर्डन, कुवैत और सऊदी अरब जैसे देशों में अमेरिका ने अपने मिलिट्री बेस बनाए हुए हैं। सुशांत सरीन कहते हैं कि ईरान के कब्जे वाले लाल सागर के रूट्स के जरिए अमेरिका का तेल और बाकी चीजों का ट्रेड भी चलता है। ईरान अकेला ऐसा देश है, जहां अमेरिका का कोई बेस नहीं है। अगर ईरान में अमेरिका के मन मुताबिक सरकार आती है, तो पूरे मिडिल ईस्ट पर उसका कंट्रोल हो जाएगा।

2. सऊदी जैसे देशों से मजबूत अलायंस: सुशांत सरीन कहते हैं कि मिडिल ईस्ट में सऊदी अरब और ईरान के बीच इस्लामिक देशों की लीडरशिप को लेकर वर्चस्व की पुरानी लड़ाई है। सऊदी अरब जैसे अरब देशों से अमेरिका के सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक रिश्ते हैं। ईरान के कमजोर पड़ते ही इन देशों से अमेरिका के संबंध और बेहतर होंगे।

3. इजराइल-अमेरिका गठजोड़ और मजबूत होगा: राजन कुमार के मुताबिक, ईरान के कमजोर होने से इजराइल, अमेरिकी सहयोग का सबसे बड़ा दावेदार बना रहेगा। अगर ईरान से अमेरिका के संबंध बेहतर हो जाते, तो इजराइल को मिडिल ईस्ट में एक मजबूत टक्कर मिल सकती थी। अभी तक इजराइल, अमेरिका से सबसे ज्यादा आर्थिक और सैन्य सहायता पाने वाला देश है।

काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस यानी CFR की एक रिपोर्ट के मुताबिक-

  • 1948 में इजराइल बनने के बाद से अब तक अमेरिका उसे 300 बिलियन डॉलर यानी 25 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा दे चुका है।
  • 2019 में साइन किए गए एक MoU के तहत इजराइल को अमेरिका से सालाना 3।8 बिलियन डॉलर यानी करीब 32 हजार करोड़ रुपए की सैन्य मदद मिलती है। यह इजराइल के कुल सैन्य बजट का लगभग 16% है।
  • इसके अलावा हमास के इजराइल पर हमले के बाद अमेरिका एक कानून बनाकर अप्रैल 2024 तक उसे 1719 बिलियन डॉलर यानी करीब 115 लाख करोड़ रुपए दे चुका है।

सवाल-7: क्या ईरान में सत्ता परिवर्तन के लिए सुप्रीम लीडर खामेनेई को हटाना या मारना जरूरी है?

जवाब: 18 जून को ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ पर खामेनेई को बिना शर्त सरेंडर करने की धमकी देते हुए लिखा था- हम जानते हैं कि सुप्रीम लीडर कहां छिपा है, लेकिन हम उसे मारेंगे नहीं।’

एक्सपर्ट्स का मानना है कि खामेनेई की हत्या करने से भी अमेरिका और इजराइल के लिए ईरान में सत्ता परिवर्तन करना आसान नहीं है…

  • सुशांत सरीन कहते हैं कि अमेरिका और इजराइल के खिलाफ ईरान में नफरत भी बढ़ेगी। ईरान की जनता, इजराइल के कहने पर सत्ता के खिलाफ नहीं खड़ी होगी, क्योंकि अभी तक के इजराइली हमलों में 90% तक आम लोग मारे गए हैं।
  • लंदन के रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में मिडिल-ईस्ट प्रोग्राम की डायरेक्टर सनम वकील कहती हैं कि खामेनेई 86 साल के हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें हटाने या मार देने से ईरान में कोई सत्ता नहीं बचेगी। खामेनेई के बाद क्या होगा, इस पर पहले ही विचार किया जा चुका है।
  • ईरान के राजा रहे मोहम्मद रेजा शाह पहलवी के बेटे रजा पहलवी शासन करने लायक नहीं हैं। अभी तक कोई ऐसा विपक्ष सामने नहीं आया है, जो इजराइल अमेरिका के बूते तख्तापलट करने की स्थिति में हो।
  • बिना जमीनी सेना भेजे, सिर्फ हवाई हमलों से ईरान पर कंट्रोल नहीं किया जा सकेगा। इजराइल के लिए ईरान में जमीनी सेना भेजना लगभग नामुमकिन है।

1989 से ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनेई की उम्र 86 साल है।

सवाल-8: क्या अमेरिका और ईरान में बातचीत से मुद्दा सुलझाने के सारे रास्ते बंद हो गए हैं?

जवाब: ट्रम्प ने कहा है कि अब बातचीत के लिए बहुत देर हो चुकी है। हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि इस हफ्ते अमेरिकी दूत स्टीव विटकॉफ और ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची के बीच बातचीत हो सकती है, लेकिन उसके पहले जरूरी है कि ईरान बिना शर्त समझौते को तैयार हो।

हालांकि खामेनेई इसके लिए तैयार नहीं हैं। ईरानी मीडिया के अनुसार ट्रम्प की सरेंडर की धमकी के जवाब में खामेनेई ने जंग का ऐलान करते हुए कहा कि ईरान कभी सरेंडर नहीं करेगा। ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा है कि जब तक इजराइली हमले बंद नहीं होते, हम किसी से भी बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं।

सुशांत सरीन कहते हैं कि ईरान बीते 9 दिनों में बहुत कमजोर हो चुका है। ऐसे में खामेनेई अमेरिका की शर्तों पर समझौता करने को तैयार हो सकते हैं, क्योंकि इससे कम से कम वह अपनी सत्ता बचाने में कामयाब हो जाएंगे।

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10 देशों ने कैसे हासिल किए परमाणु हथियार, क्या अब कोई नहीं बना सकता; ईरान के पीछे क्यों पड़े इजराइल और अमेरिका

इजराइल का कहना है कि वो ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए हमले करता रहेगा।पिछले 80 सालों में 10 देशों ने कैसे हासिल किए परमाणु हथियार, क्या अब कोई देश परमाणु बम नहीं बना सकता, अगर ईरान ने बना लिया तो क्या हो जाएगा; पूरी कहानी पढ़िए..

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