क्या तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए लालू यादव की हड़बड़ी से असहज हो रहे हैं नीतीश कुमार?

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क्या तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए लालू यादव की हड़बड़ी से असहज हो रहे हैं नीतीश कुमार?

क्या तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए लालू यादव की हड़बड़ी से असहज हो रहे हैं नीतीश कुमार?

1974 के आंदोलन से निकले समाजवादी नेता और बिहार की राजनीति में बड़े भाई-छोटे भाई के नाम से मशहूर लालू यादव और नीतीश कुमार 74 दिन से एक-दूसरे के घर नहीं गए हैं। 16 अक्टूबर को जेडीयू के सर्वोच्च नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आखिरी बार लालू यादव से मिलने पूर्व सीएम राबड़ी देवी के आवास गए थे। उससे पहले कभी लालू सीएम आवास तो कभी नीतीश राबड़ी आवास लगातार आ-जा रहे थे। विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस की व्यस्तता के कारण सितंबर से नवंबर तक इंडिया गठबंधन में सन्नाटा पसरा रहा। नतीजों में कांग्रेस की तगड़ी हार के बाद से दोनों पटना में नहीं मिले हैं। इंडिया गठबंधन की बैठक के लिए दोनों अलग-अलग दिल्ली गए और लौटे। मीटिंग में जो मिले बस वही मुलाकात हुई।

राजनीतिक गलियारों में इंडिया गठबंधन की बैठक से पहले और उसके बाद नीतीश की 19 दिन लंबी चुप्पी ने कई सवाल पैदा किए हैं। उनमें सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव के राजनीतिक दबाव से नीतीश कुमार असहज हो रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि 2022 में महागठबंधन में जेडीयू की वापसी के बाद से आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह समेत कई नेता नए साल में तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने की जो बात कर रहे थे, वो बात अब साल का अंत आते-आते विवाद का कारण बन गई है।

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सूत्रों के अनुसार लालू चाहते हैं कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश राष्ट्रीय राजनीति का रुख करें ताकि उनके बेटे को 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सरकार चलाने का अनुभव हासिल हो सके। लालू को लगता है कि नीतीश की परछाई से बाहर आकर तेजस्वी बतौर सीएम अपने काम, अपनी योजनाओं और अपनी नीतियों से खुद को और आरजेडी को मजबूत कर सकेंगे। यह मौका तेजस्वी को देने का वक्त आ गया है। सूत्रों का कहना है कि लालू यह भी चाहते हैं कि जेडीयू का आरजेडी में विलय हो जाए ताकि बिहार में एक ही मजबूत समाजवादी दल रहे।

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सूत्रों के मुताबिक नीतीश जेडीयू के विलय पर किसी भी चर्चा से असहज हो जाते हैं। यही वजह है कि लालू से उनकी मुलाकात थम सी गई हैं। जहां तक तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का सवाल है, नीतीश कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि तेजस्वी उनके सब कुछ हैं और उनके उत्तराधिकारी भी। नीतीश ने बहुत पहले ये साफ कर दिया था कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसमें संकेत था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश का नेतृत्व ही रहेगा। अब लोकसभा चुनाव से पहले तेजस्वी को सीएम बनाने की लालू यादव की हड़बड़ी से नीतीश खिन्न हो गए हैं। लालू से मेल-मुलाकात में अचानक आई कमी इसका ही नतीजा है।

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इंडिया गठबंधन की बैठक में अपना नाम नहीं बढ़ाने के कारण भी लालू यादव और तेजस्वी यादव से नीतीश कुछ नाराज बताए जा रहे हैं। नीतीश को भरोसा था कि जब उन्होंने तेजस्वी को उत्तराधिकारी बता दिया है तो लालू अपनी पूरी ताकत उनके पीछे लगा देंगे। दिल्ली में गठबंधन की आखिरी बैठक में नीतीश को लालू यह अहसास कराने में नाकाम रहे कि वो भी उसी शिद्दत से राष्ट्रीय राजनीति में उनकी मदद कर रहे हैं। नीतीश को ममता बनर्जी से कम शिकायत है जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम पीएम कैंडिडेट के लिए उछाला। उनकी शिकायत लालू यादव से है जिन्हें ममता बनर्जी से पहले भाषण करने का मौका मिला था लेकिन उन्होंने नीतीश का नाम नहीं लिया। ये मौका चूकने की बात है। 

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दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक शुक्रवार को हो रही है जिसमें सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह पद छोड़ देंगे। ललन की विदाई के लिए लालू यादव से उनकी बढ़ रही नजदीकी को कारण बताया जा रहा है। ललन सिंह से पहले वाले अध्यक्ष आरसीपी सिंह के साथ भी यही हुआ था जब उनकी नजदीकी बीजेपी के साथ बढ़ गई थी। नीतीश को जानने वाले बताते हैं कि वो दबाव में असहज हो जाते हैं और जब असहज हो जाते हैं तो उसे भले बताते ना हों, लेकिन छुपाते भी नहीं हैं। लालू यादव को लेकर नीतीश की असहजता अब जाहिर हो चुकी है। इस असहजता का समाधान जेडीयू की बैठक से निकलेगा या फिर नीतीश खुद ही तेजस्वी को भरोसे में लेकर लालू यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स पर ब्रेक लगाएंगे, ये आने वाले दिनों में ही साफ होगा।

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