क्या गहलोत और पायलट की सियासी सुलह स्थायी है? जानें क्या रहा समझौते का फार्मूला

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क्या गहलोत और पायलट की सियासी सुलह स्थायी है? जानें क्या रहा समझौते का फार्मूला

क्या गहलोत और पायलट की सियासी सुलह स्थायी है? जानें क्या रहा समझौते का फार्मूला

राजस्थान में पार्टी आलाकमाना ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच समझौता करा दिया है। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी एकजुट है। पार्टी की तरफ से यह दावा भी किया जा रहा है कि सचिन पायलट की कई मांगों को पार्टी ने स्वीकर कर लिया है।

 

हाइलाइट्स

  • महीनों बाद सचिन पायलट अशोक गहलोत के प्रति नरम दिखे
  • पार्टी ने कहा सचिन पायलट की कई बातों को मान लिया गया है
  • राजस्थान चुनाव गहलोत के नाम और चेहरे पर लड़ा जाएगा
नई दिल्ली : क्या राजस्थान कांग्रेस में अब सबकुछ ठीक हो गया है? अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी युद्ध विराम क्या स्थायी है? किन शर्तों पर दोनों नेताओं के बीच चले लंबे विवाद को विराम दिया गया? ये सवाल तब उठे जब एक बार फिर कांग्रेस ने राजस्थान में सामूहिक नेतृत्व का संदेश दिया है और महीनों बाद सचिन पायलट अशोक गहलोत के प्रति नरम दिखे। पार्टी ने दावा किया कि सचिन पायलट की कई बातों को मान लिया गया है। अशोक गहलोत से पार्टी को उम्मीद है कि वह पांच वर्षों में राज बदलने का रिवाज इस बार खत्म कर देंगे।

क्या रहा फॉर्म्युला?

पायलट और गहलोत के बीच समझौते के फॉर्म्युला के तहत अशोक गहलोत के नेतृत्व और चेहरे पर न सिर्फ विधानसभा चुनाव होगा बल्कि उनके गवर्नेंस मॉडल को ही चुनाव में एक्स फैक्टर पार्टी बनाएगी। पार्टी को लगता है कि अशोक गहलोत ने पिछले एक साल में जमीन पर जिस तरह चीजें की हैं, उसके बाद अब वे विकल्प के साथ-साथ मजबूरी भी हैं। उन्होंने चुनाव को पूरी तरह गहलोत के पक्ष या विपक्ष वाला बना दिया है। हालांकि, अब भी जमीन पर कई विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पार्टी के लिए चिंता का कारण है। कई सीट पर नए उम्मीदवार उतारकर इसे कम किया जा सकता है। पार्टी को मिले आंतरिक फीडबैक और सर्वे के अनुसार अशोक गहलोत को कमजोर करने की कोई कोशिश का बड़ा नुकसान हो सकता है। यही कारण है कि न सिर्फ अशोक गहलोत सीएम बने रहे बल्कि अभी राज्य में पार्टी के अंदर जो नियुक्तियां हुईं उसमें गहलोत की ही चली।

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गहलोत ने ऐसे पलटी बाजी

पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के दौरान जब अशोक गहलोत अचानक दावेदारी से हटे तो असहज-सी स्थिति बन गई। उस वक्त माना गया था कि उन्होंने गांधी परिवार की इच्छा के विपरीत ऐसा कदम उठाया। गहलोत-सचिन पायलट के बीच यह फॉर्म्युला बनाया गया था कि गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे और सचिन के जिम्मे राजस्थान की जिम्मेदारी आएगी। मगर, गहलोत ने तर्क दिया कि अगर विधायकों की पसंद के खिलाफ कोई सीएम बनेगा तो इससे पार्टी को बड़ा नुकसान होगा। पार्टी ने भी विधायकों से बात की तो गहलोत के समर्थन की बात आई। इसके बाद गहलोत अपनी कुर्सी बचाए रखने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने इस साल राज्य में जिस तरह आक्रामक तरीके से महंगाई राहत कैंप के अलावा दूसरी कल्याणकारी योजनाओं के साथ पूरे राज्य का दौरा किया वह भी उनके पक्ष में गया।
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पायलट का क्या होगा?

क्या सचिन पायलट को पार्टी ने समझौता फॉर्म्युले में नजरअंदाज किया? पार्टी सूत्रों के अनुसार ऐसा नहीं है। केंद्रीय नेतृत्व मानता है कि पायलट पार्टी के भविष्य के चेहरे हैं। साथ ही हाल के समय में तमाम विरोध के बावजूद जिस तरह वह पार्टी में बने रहे यह बात भी उनके पक्ष में गई। पिछले कुछ वर्षों में पूरे देश में सचिन पायलट पार्टी के स्टार प्रचारक बने और राहुल गांधी-प्रियंका गांधी के बाद राजस्थान के बाहर सबसे अधिक रैली करने वाले पार्टी के नेता बने हैं। यह तय है कि गहलोत से युद्ध विराम के बाद उन्हें निश्चित तौर पर नई भूमिका मिल सकती है। इसके तहत पार्टी में महासचिव के पद के अलावा 2024 आम चुनाव में राष्ट्रीय तौर पर भी बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। पार्टी को लगता है कि अगर अशोक गहलोत को लूप में रखा गया तो वह खुद भी सचिन पायलट के लिए बेहतर अवसर पैदा करने का मौका दे सकते हैं।
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सबसे बड़ा सवाल

हालांकि, अब भी सियासी युद्ध विराम के बाद की तस्वीर साफ नहीं है। बस इतना भर तय हुआ कि राजस्थान चुनाव गहलोत के नाम और चेहरे पर लड़ा जाएगा। पूर्व में भी ऐसी कोशिशें हुई लेकिन वह स्थायी नहीं रह सकीं। हालांकि, इस बार सचिन पायलट ने भी कुछ दिनों से नरम रुख दिखाया तो गहलोत भी पूरी तरह से चुनावी मोड में हैं। वह कोई जोखिम लेने के मूड में नहीं हैं। सुलह कितनी मजबूत है यह जानने के लिए कुछ दिन रुकना होगा।

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