कोर्ट में उल्टा पड़ा महिला का दांव, अब पति को देगी इतने लाख रूपए, जानिए आखिर क्या है मामला | ex wife cunning prove costly high court decision give Rs 1 lakh to husband read case | News 4 Social h3>
बेवजह मुकदमेबाजी की याचिका को लेकर महिला को कोर्ट ने आदेश दिया कि ऐसे केस के लिए वो अदालत का सहारा नहीं ले सकती। इंदौर की रहने वाली महिला को पिछले साल फरवरी में आपसी सहमति से तलाक हो गया था, जिसमें उसे समझौते के तौर पर 50 लाख रुपए भी मिले थे। तलाक के दौरान हुए समझौते के दौरान महिला को पूर्व पति के खिलाफ दर्ज केस भी वापस लेने थे। इसमें महिला ने पूर्व पति और ससुरालवालों के खिलाफ क्रूरता, आपराधिक धमकी और अन्य आरोपों के लिए पांच साल पहले पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।
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कोर्ट ने महिला पर लगाया 1 लाख जुर्माना
बताया जा रहा है कि जिस मामले में पूर्व में समझोता हो चुका, उनकी शादी साल 2000 में हुई थी। उनकी एक 20 साल की बेटी भी है जो तलाक के बाद से अपने पिता के साथ ही रह रही है। अब इस मामले में अदालत ने महिला की सहमति के बिना दहेज उत्पीड़न, मारपीट और गर्भपात के आरोप से संबंधित मामले को रद्द करते हुए उसे अपने पूर्व पति को 1 लाख रुपए देने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने महिला के पूर्व पति और ससुरालवालों द्वारा उनके खिलाफ मामले को रद्द करने की मांग वाली याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि एक लाख रुपए का जुर्माना सिर्फ बेईमान वादियों को सावधान करने के लिए लगाया है कि वे गंभीर मुकदमेबाजी के लिए अदालतों का सहारा न ले सकें और अदालतों का बहुमूल्य समय किसी तरह बर्बाद करने की अनुमति नहीं दी जा सके।
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कोर्ट ने आदेश में कहा
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महिला 4 हफ्तों में अपने पूर्व पति के बैंक खाते में जुर्माना राशि जमा करे। अदालत के अनुसार, जोड़े ने 2 फरवरी 2023 को आपसी सहमति से तलाक लिया था, जिसके बदले में महिला को 50 लाख रुपए भी दिए गए। हाईकोर्ट ने कहा कि जहां तक आईपीसी की धारा 498ए, 323, 506, 34, 325 के तहत अन्य अपराधों का सवाल है। ये पाया गया कि शिकायतकर्ता ने सर्वव्यापी आरोप लगाए हैं और इस तथ्य पर विचार करते हुए आपसी सहमति से तलाक का फैसला सुनाया गया है। पक्षों के बीच पहले ही पारित हो चुका है। महिला इसे वापस लेने के लिए बाध्य थी, लेकिन उसने जानबूझकर गुप्त इरादों के तहत आरोप-पत्र के उस हिस्से को भी वापस लेने से इनकार कर दिया। इसलिए अपने पूर्व पति के साथ समझौता करने और उसके बदले में 50 लाख रुपए स्वीकार करने के बावजूद याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामले को जारी रखने में प्रतिवादी का आचरण स्पष्ट रूप से ‘अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग’ है।
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बेवजह मुकदमेबाजी की याचिका को लेकर महिला को कोर्ट ने आदेश दिया कि ऐसे केस के लिए वो अदालत का सहारा नहीं ले सकती। इंदौर की रहने वाली महिला को पिछले साल फरवरी में आपसी सहमति से तलाक हो गया था, जिसमें उसे समझौते के तौर पर 50 लाख रुपए भी मिले थे। तलाक के दौरान हुए समझौते के दौरान महिला को पूर्व पति के खिलाफ दर्ज केस भी वापस लेने थे। इसमें महिला ने पूर्व पति और ससुरालवालों के खिलाफ क्रूरता, आपराधिक धमकी और अन्य आरोपों के लिए पांच साल पहले पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी।
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कोर्ट ने महिला पर लगाया 1 लाख जुर्माना
बताया जा रहा है कि जिस मामले में पूर्व में समझोता हो चुका, उनकी शादी साल 2000 में हुई थी। उनकी एक 20 साल की बेटी भी है जो तलाक के बाद से अपने पिता के साथ ही रह रही है। अब इस मामले में अदालत ने महिला की सहमति के बिना दहेज उत्पीड़न, मारपीट और गर्भपात के आरोप से संबंधित मामले को रद्द करते हुए उसे अपने पूर्व पति को 1 लाख रुपए देने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने महिला के पूर्व पति और ससुरालवालों द्वारा उनके खिलाफ मामले को रद्द करने की मांग वाली याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि एक लाख रुपए का जुर्माना सिर्फ बेईमान वादियों को सावधान करने के लिए लगाया है कि वे गंभीर मुकदमेबाजी के लिए अदालतों का सहारा न ले सकें और अदालतों का बहुमूल्य समय किसी तरह बर्बाद करने की अनुमति नहीं दी जा सके।
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कोर्ट ने आदेश में कहा
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महिला 4 हफ्तों में अपने पूर्व पति के बैंक खाते में जुर्माना राशि जमा करे। अदालत के अनुसार, जोड़े ने 2 फरवरी 2023 को आपसी सहमति से तलाक लिया था, जिसके बदले में महिला को 50 लाख रुपए भी दिए गए। हाईकोर्ट ने कहा कि जहां तक आईपीसी की धारा 498ए, 323, 506, 34, 325 के तहत अन्य अपराधों का सवाल है। ये पाया गया कि शिकायतकर्ता ने सर्वव्यापी आरोप लगाए हैं और इस तथ्य पर विचार करते हुए आपसी सहमति से तलाक का फैसला सुनाया गया है। पक्षों के बीच पहले ही पारित हो चुका है। महिला इसे वापस लेने के लिए बाध्य थी, लेकिन उसने जानबूझकर गुप्त इरादों के तहत आरोप-पत्र के उस हिस्से को भी वापस लेने से इनकार कर दिया। इसलिए अपने पूर्व पति के साथ समझौता करने और उसके बदले में 50 लाख रुपए स्वीकार करने के बावजूद याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामले को जारी रखने में प्रतिवादी का आचरण स्पष्ट रूप से ‘अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग’ है।