कैसे बना चिनाब रेलवे ब्रिज, जिसका PM ने किया उद्धाटन: 10 पुलों के बराबर लगा लोहा, कश्मीर को दिल्ली से सीधे जोड़ेगा h3>
आप कभी कश्मीर गए हैं? हां या न, जवाब जो भी हो, लेकिन अगली बार जब भी आप कश्मीर जाएंगे तो सफर बिल्कुल अलग होगा। पहली बार आप ट्रेन से श्रीनगर तक जा पाएंगे। जम्मू और पीर-पंजाल में पहाड़ियों की ऊंचाई पार करते हुए आपकी ट्रेन चिनाब घाटी पहुंचेगी। यहीं बना ह
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PM नरेंद्र मोदी ने 6 जून को जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बने इस पुल का उद्घाटन किया। ये पुल न सिर्फ कश्मीर घाटी को पूरे भारत से जोड़ेगा, बल्कि इलाके में बिजनेस, टूरिज्म और इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट को भी नई रफ्तार देगा। PM यहां से कटरा गए और वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाई।
16 साल में 1486 करोड़ रुपए की लागत से बना ये ब्रिज इंजीनियरिंग का शानदार नमूना तो है ही, भारतीय रेलवे के लिए भी अब तक का सबसे चैलेंजिंग प्रोजेक्ट रहा है। दैनिक NEWS4SOCIALआपको बता रहा है इस ब्रिज की पूरी कहानी, वो भी ग्राउंड जीरो से।
चिनाब रेलवे ब्रिज उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक का हिस्सा है। इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत करीब 43 हजार करोड़ रुपए है। सबसे पहले इस प्रोजेक्ट के बारे में जान लीजिए…
धनुष के आकार का ये ब्रिज जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में है। 20 जून, 2024 को रामबन के संगलदान से रियासी स्टेशन के बीच मेमू ट्रेन का ट्रायल रन किया गया। इससे पहले 16 जून को ब्रिज पर इलेक्ट्रिक इंजन का ट्रायल हुआ था। आज इस ब्रिज से पहली ट्रेन गुजरेगी।
अब कश्मीर तक वंदे भारत ट्रेन PM मोदी ने कटरा से श्रीनगर के बीच वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को भी हरी झंडी दिखाई। रेलवे बोर्ड के आदेश के मुताबिक, इस रूट पर दो ट्रेनें चलाई जाएंगी। इसमें श्रीनगर से जम्मू तवी और जम्मू तवी से श्रीनगर के बीच कुल चार वंदे भारत ट्रेनों के फेरे होंगे। हालांकि अभी ये ट्रेन कटरा से श्रीनगर के बीच ही चलेगी।
नॉर्दर्न रेलवे 7 जून से कटरा-श्रीनगर रूट पर वंदे भारत ट्रेन सर्विस शुरू कर देगी। IRCTC की वेबसाइट पर टिकट बुकिंग की जा सकेगी। अभी दो ट्रेनें हफ्ते में 6 दिन ही चलेंगी।
अब लौटते हैं प्रोजेक्ट की अहम कड़ी, चिनाब रेलवे ब्रिज पर… पुल की ऊंचाई इतनी कि नीचे एफिल टावर खड़ा हो जाए चिनाब पुल को देखने के लिए हमने अपना सफर जम्मू से शुरू किया। चिनाब पुल जम्मू से करीब 70 किमी दूर है। यहां हमें प्रोजेक्ट के डिप्टी चीफ इंजीनियर रश्मि रंजन मलिक मिले। 2015 से इस प्रोजेक्ट से जुड़े मलिक ही पुल के बारे में हमें सब कुछ बताने वाले थे। शुरुआत इसकी खासियत से हुई।
रश्मि रंजन मलिक बताते हैं, ‘चिनाब नदी के तल से देखें तो ये पुल 359 मीटर ऊंचा है। पेरिस का मशहूर एफिल टावर भी इससे 35 मीटर छोटा है। अगर इस पुल के नीचे एफिल टावर को खड़ा कर दें, तो वो पुल को छू भी नहीं सकेगा।’
‘ये जितना खूबसूरत है, उतना ही मजबूत भी। इसकी लाइफ कम से कम 120 साल होगी। इसे बनाने में 29 हजार मीट्रिक टन स्टील इस्तेमाल हुआ है। ये आम तौर पर बनने वाले पुल से 10 गुना ज्यादा है।’
रश्मि रंजन मलिक आगे बताते हैं, ‘पुल के आर्च का फाउंडेशन एक सीध में दिखता है, लेकिन ऐसा नहीं है। दोनों सिरों के फाउंडेशन अलग-अलग ऊंचाई पर हैं। आर्च के अलग-अलग हिस्सों को बोल्टिंग करके जोड़ा गया है। आर्च की फाउंडेशन के पास चौड़ाई 30 मीटर है, आर्च के बीच में पटरी के पास ये 9 मीटर ही बचती है। इससे फायदा ये होता है कि पुल पर लगने वाला फोर्स कंप्रेशन में रहता है।’
2009 में तैयार होना था, 2010 में काम ही शुरू हुआ चिनाब पुल प्रोजेक्ट को साल 2003 में मंजूरी मिली थी। शुरुआती प्लान के तहत इसे 2009 तक तैयार हो जाना था। हालांकि कंस्ट्रक्शन और सेफ्टी से जुड़ी चुनौतियों की वजह से काम रुकता गया। 2009 में पूरे प्रोजेक्ट और डिजाइन का रिव्यू किया गया। रेलवे के अधिकारियों ने डिजाइन अप्रूव किया और फिर 2010 में इस पर काम शुरू हो सका।
नवंबर, 2017 में चिनाब पुल के बेस सपोर्ट का काम पूरा हुआ। 2017 के बाद से इसके मुख्य हिस्से आर्च का कंस्ट्रक्शन शुरू हुआ। 2022 में पुल बनकर तैयार हुआ।
चिनाब घाटी से कश्मीर तक का पूरा इलाका नॉर्दर्न रेलवे में आता है। हालांकि, पुल के कंस्ट्रक्शन के लिए कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड को एग्जीक्यूटिव एजेंसी और डिजाइन कंसल्टेंट बनाया गया। कोंकण रेलवे पहले भी इस तरह का रेलवे ब्रिज बना चुका है। इसी अनुभव की वजह से उसे चुना गया। रश्मि रंजन मलिक कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड में ही डिप्टी इंजीनियर हैं।
वे बताते हैं, ‘ये पुल मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और सिविल इंजीनियरिंग का करिश्मा है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग से फेब्रिकेशन, सिविल इंजीनियरिंग में सर्वे और स्लोप स्टेबिलिटी का खास काम हुआ है। यहां एक वक्त में 2200 मजदूर काम करते थे।’
हिमालय की ऊंची पहाड़ियों पर काम करना सबसे बड़ी चुनौती रश्मि रंजन मलिक बताते हैं, ‘हमने सर्वे करके चुना था कि चिनाब पर पुल बनाने के लिए ये ही बेस्ट लोकेशन है। इसके बेस के लिए पहाड़ की कटिंग शुरू की। पहाड़ काटते वक्त बहुत सावधानी बरती, ताकि किसी फेलियर की गुंजाइश न बचे।’
‘ये प्रोजेक्ट हिमालय की पीर पंजाल रेंज के पास है। हिमालय एक न्यूली फोल्डेड माउंटेन है। यहां की जियोलॉजिकल कंडीशन में काम करना इंजीनियर्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। ऐसे पहाड़ों पर काम करने के लिए गहराई से भूगर्भीय जांच परीक्षण करना जरूरी है। परीक्षण के बाद हर काम को करने के लिए इनोवेटिव तरीके तलाशने जरूरी थे।’
हमें पता था कि हमें अलर्ट रहकर और खतरों को भांपते हुए काम करना होगा। सबसे पहले हमने लोकेशन साइट पर एक कनेक्टिंग रोड तैयार की। इसके बाद आर्च के दोनों पिलर्स के लिए भी कनेक्टिंग रोड बनाई।
‘इसके बाद पहाड़ों की खुदाई शुरू की। हमने पहाड़ों की जियोलॉजी, रॉक कंसॉलिडेशन, स्टेबिलिटी की स्टडी की, फिर पहाड़ों की कटिंग शुरू की।’
‘किसी चट्टान का एक ब्लॉक काटते थे, तो उस पूरी जगह को पानी से धोकर ऑन साइट वेरिफेकेशन करते थे। फिर रॉक कंसॉलिडेशन चेक करते थे, उसकी रिपोर्ट बनाते थे। हमने पूरे प्रोजेक्ट के हर स्टेज का पूरा डॉक्यूमेंटेशन इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हिसाब से किया है। ये गर्व की बात है कि इतने बड़े प्रोजेक्ट में एक भी मजदूर या इंजीनियर की कैजुअल्टी नहीं हुई।’
‘भूकंप के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में 2 से लेकर 5 तक में बांटा गया है। चिनाब घाटी का इलाका सिस्मिक जोन 4 में आता है। फिर भी हमने ब्रिज को सिस्मिक जोन 5 के हिसाब से डिजाइन किया है। ये रिक्टर स्केल पर 8 तीव्रता तक का भूकंप झेल सकता है।’
‘यहां की परिस्थितियों में सबसे अहम था हवाओं की तेज गति और पुल के आर्च पर उसका असर। चिनाब घाटी में जिस लोकेशन पर पुल बना है, ये विंड प्रोन है। यहां 50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार तक हवा चलती है। पुल को ऐसे बनाया गया है कि ये 266 किमी की रफ्तार से चलने वाली हवा भी झेल सकता है।’
‘तेज हवा से पुल को बचाने के लिए सर्कुलर विंड ब्रेसिंग दी गई है। इसमें करीब 3 लाख बोल्ट इस्तेमाल किए गए हैं। सेफ्टी ऑडिट के लिए हमने स्पेशल लिफ्ट दी हैं। इसके जरिए पूरे पुल के हर हिस्से को छूकर जांच की जा सकती है।’
चिनाब ब्रिज रेलवे के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट है। इसके कंस्ट्रक्शन के लिए कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड को एग्जीक्यूटिव एजेंसी और डिजाइन कंसल्टेंट बनाया गया।
कश्मीर के टूरिज्म और एक्सपोर्ट को फायदा, सेना तक तेजी से हथियार पहुंचेंगे चिनाब रेलवे ब्रिज बनने के बाद जम्मू-कश्मीर उधमपुर के रास्ते दिल्ली से जुड़ गया है। अब देश के अलग-अलग हिस्सों से टूरिस्ट कश्मीर जा सकेंगे। रेलवे रूट खुलने से यहां के टूरिज्म सेक्टर को सबसे ज्यादा फायदा होगा। इसके अलावा चिनाब ब्रिज देखने के लिए भी टूरिस्ट आने लगे हैं।
रश्मि रंजन मलिक कहते हैं कि इंजीनियरिंग की दुनिया के लोगों के लिए चिनाब रेलवे ब्रिज किसी तीर्थ स्थल की तरह होगा।
चिनाब ब्रिज सेना के लिए भी बहुत अहम है। डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एक्सपर्ट रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी बताते हैं, ‘चिनाब रेलवे ब्रिज कनेक्ट होने के साथ ही दिल्ली की कश्मीर में सीधी पहुंच हो जाएगी।
इस पुल से हमारी सामरिक और सैन्य क्षमताओं में जबरदस्त इजाफा होगा। कश्मीर में तैनात सेना तक आर्म्स, एम्युनिशन, टैंक सीधे घाटी में पहुंच सकेंगे। बारामूला तक रेल कनेक्ट होने से बॉर्डर तक रसद की पहुंच भी आसान होगी।
‘अभी कश्मीर घाटी में फोर्स के मूवमेंट में बहुत समय और एफर्ट लगता है। रेल कनेक्टिवटी से कश्मीर में मूवमेंट तेज होगा और आर्थिक रूप से भी फायदे का रूट होगा।’
चिनाब ब्रिज से पाकिस्तान और चीन की चिंता क्यों बढ़ी है? डिफेंस एक्सपर्ट जेएस सोढ़ी के मुताबिक चिनाब ब्रिज कश्मीर के अखनूर इलाके में बना है। जैसे नॉर्थ ईस्ट में सिलीगुड़ी कॉरिडोर को चिकन नेक कहा जाता है, जहां अगर चीन का कब्जा हो जाए तो देश दो हिस्सों में टूट सकता है।
इसी तरह अखनूर इलाका कश्मीर का चिकन नेक है। इसीलिए इस इलाके में चिनाब ब्रिज का बनना भारत के लिए सामरिक तौर पर बेहद खास है। अब हर मौसम में सेना और आम लोग इस हिस्से में ट्रेन या दूसरे वाहनों से जा सकेंगे।
(दैनिक NEWS4SOCIALने ये स्टोरी 22 जुलाई, 2024 को की थी, आज इसे दोबारा पब्लिश किया गया है।)
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